घड़ियों की सुईयां तो वैसे ही चलती रहेंगी-साहित्य कविता


जिंदगी में अब कभी कुछ नहीं होता खास।
जैसा अपना नजरिया है, वैसा ही होता आभास।

घड़ियों की सुईयां तो वैसे ही चलती रहेंगी
जैसे रोज चलती साथ, आपस में करती परिहास।

एक दिन के गुजरते, वर्ष हो जाता है पुराना
एक दिन के आने से, नये का होता है अहसास।

कितने बसंत गुजरे, कितने पतझड, आये
बनाया नहीं किसी ने, अपना स्थाई निवास।

आज लिख रहे कविता, कल कहानी लिखेंगे
बनेगा शब्द का साथी वही, जो होगा अपने पास।

कहीं गम करेंगे हमला, कहीं खुशियां बरसेंगी
डटे रहना है जिंदगी में, मजबूत रखना विश्वास।

……………………………….

सोने जैसे रंग के
कमर तक लहराते बाल
नीली आंखों से बहती हुई प्रेम की धार
बंद होठ कहने लगते हैं
गूढ़ अर्थ वाले खामोश शब्द
चेहरे पर छायी है स्निग्ध मुस्कराहट
जब देखें तो होता है सुखद अहसास
एक अनजानी खुशबू से
उठती हैं दिल में तरंगे
किसी सुंदर पल के पास आने की होती आहट
पर तुम तस्वीर से कभी बाहर निकल कर
जिंदगी की सच्ची धारा में मत बहना
इसमें ख्वाबों के फूल के साथ
सच के कांटों के साथ भी पड़ता है रहना
जिनसे डरकर सभी भागते हैं।
हो जाते तब होशहवास गायब
पर दीवार पर तुझे देख कर मिलता है सुकून
तब जागते हैं

……………………….

यह आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की सिंधु केसरी-पत्रिका ’ पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
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