कमीज पर लगे
दाग मिटाने के लिये
रोज नया रंग लगाते हैं।
चरित्र पर लगे
दाग छिपाने के लिये
चाल का ढंग बदल आते हैं।
कहें दीपक बापू अपनी आदत से
लाचार होते चालाक लोग
हालातों के हिसाब से
कभी दिखाते स्वयं को नायक
कभी आम इंसान के रूप में
भीड़ के संग बदल जाते हैं।
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कहीं खेल में बेईमानी
कहीं बेईमानी के भी
खेल होते हैं।
कहीं खिलाड़ी लगा जुआ में
कहीं जुआरी लगा खेल में
दोनों में बहुत सारे आपसी
घालमेल होते हैं।
कहें दीपक बापू बरसों गंवाये
खेल देखते हुए
पता लगा जुआ देख रहे थे,
जीत हार का फैसला
पहले तय हुआ देख रहे थे,
पैसे की माया है
असल के भी नकली खेल होते हैं
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja “Bharatdeep”
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athor and editor-Deepak Raj Kukreja “Bharatdeep”,Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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