सच्चा प्यार जो दिल से मिले
अब कहां मिलता है,
अब तो वह डालरों में बिकता है।
आशिक हो मालामाल
माशुका हो खूबसूरत तो
दिल से दिल जरूर मिलता है।
———-
आज के शायर गा रहे हैं
इश्क पर लिखे पुराने शायरों के कलाम,
लिखने के जिनके बाद
गुज़र गयी सदियां
पता नहीं कितनी बीती सुबह और शाम।
बताते हैं वह कि
इश्क नहीं देखता देस और परदेस
बना देता है आदमी को दीवाना,
देना नहीं उसे कोई ताना,
तरस आता है उनके बयानों पर,
ढूंढते हैं अमन जाकर मयखानों पर,
जिस इश्क की गालिब सुना गये
वह दिल से नहीं होता,
डालरों से करे आशिक जो
माशुका को सराबोर
उसी से प्यार होता,
क्यों पाक रिश्ते ढूंढ रह हो
आजकल के इश्क में
होता है जो रोज यहां नीलाम।
———-
कवि, लेखक और संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
http://anantraj.blogspot.com
—————–
यह आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप का चिंतन’पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.अनंत शब्दयोग
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका
4.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान पत्रिका
दीपक भारतदीप द्धारा
|
Also posted in arebic, अनुभूति, अभिव्यक्ति, आचरण, क्षणिका, दीपक भारतदीप, दीपकबापू, मस्तराम, हंसना, हिंदी साहित्य, हिन्दी शायरी, Deepak bapu, Deepak bharatdeep, E-patrika, hindi megazine, hindi writer, india, inglish, internet, mastram, vividha, vyangya, web bhaskar, web dunia, web duniya, web jagaran, web pajab kesari, web times
|
Tagged प्यार, मनोरंजन, मस्ती, शायरी, शेर, संदेश, समाज, हिन्दी साहित्य, hindi literature, hindi sahitya, hindi satire poem, shayri
|
सर्वशक्तिमान का अवतार बताकर भी
कई राजा अपना राज्य न बचा सके।
सारी दुनियां की दौलत भर ली घर में
फिर भी अमीर उसे न पचा सके।
ढेर सारी कहानियां पढ़कर भी भूलते लोग
कोई नहीं जो उनका रास्ता बदल चला सके।
मालुम है हाथ में जो है वह भी छूट जायेगा
फिर भी कौन है जो केवल पेट की रोटी से
अपने दिला को मना सके।
अपने दर्द को भुलाकर
बने जमाने का हमदर्द
तसल्ली के चिराग जला सके।
—————
दौलत बनाने निकले बुत
भला क्या ईमान का रास्ता दिखायेंगे।
अमीरी का रास्ता
गरीबों के जज़्बातों के ऊपर से ही
होकर गुजरता है
जो भी राही निकलेगा
उसके पांव तले नीचे कुचले जायेंगे।
———–
उस रौशनी को देखकर
अंधे होकर शैतानों के गीत मत गाओ।
उसके पीछे अंधेरे में
कई सिसकियां कैद हैं
जिनके आंसुओं से महलों के चिराग रौशन हैं
उनको देखकर रो दोगे तुम भी
बेअक्ली में फंस सकते हो वहां
भले ही अभी मुस्कराओ।
कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
http://rajlekh.blogspot.com
यह आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप का चिंतन’पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.अनंत शब्दयोग
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका
4.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान पत्रिका
दीपक भारतदीप द्धारा
|
Also posted in arebic, अनुभूति, अभिव्यक्ति, क्षणिका, दीपक भारतदीप, दीपकबापू, भारत, मस्तराम, साहित्य, सृजन, हास्य कविता, हास्य-व्यंग्य, हिन्दी, bharat, Dashboard, Deepak bapu, Deepak bharatdeep, E-patrika, hindi megazine, hindi sahitya, hindi writer, india, inglish, internet, mastram, shayri, sher, urdu, web dunia, web duniya, web jagaran, web pajab kesari, web times, writing
|
Tagged कला, मनोरंजन, मस्ती, शायरी, शेर, समाज, हिन्दी साहित्य, hindi poem, hindi society, hindi-socity, masti, shayri, sher
|
स्वर्ग की परियां किसने देखी
स्वयं जाकर
बस एक पुराना ख्याल है।
धरती पर जो मिल सकते हैं,
तमाम तरह के सामान
ऊपर और चमकदार होंगे
यह भी एक पुराना ख्याल है।
मिल भी जायें तो
क्या सुगंध का मजा लेने के लिये
नाक भी होगी,
मधुर स्वर सुनने के लिये
क्या यह कान भी होंगे,
सोना, चांदी या हीरे को
छूने के लिये हाथ भी होंगे,
परियों को देखने के लिये
क्या यह आंख भी होगी,
ये भी जरूरी सवाल है।
धरती से कोई चीज साथ नहीं जाती
यह भी सच है
फिर स्वर्ग के मजे लेने के लिये
कौनसा सामान साथ होगा
यह किसी ने नहीं बताया
इसलिये लगता है स्वर्ग और परियां
बस एक ख्याल है।
कवि, लेखक और संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
http://anantraj.blogspot.com
—————–
यह आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप का चिंतन’पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.अनंत शब्दयोग
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका
4.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान पत्रिका
दीपक भारतदीप द्धारा
|
Also posted in abhivyakti, अभिव्यक्ति, क्षणिका, दीपक भारतदीप, दीपकबापू, मस्तराम, शादी, हिन्दी, bharat, Deepak bapu, Deepak bharatdeep, E-patrika, hindi megazine, hindi thought, hindi writer, india, inglish, internet, mastram, web bhaskar, web dunia, web duniya, web jagaran, web pajab kesari, web times, writing, yakeen
|
Tagged कला, मनोरंजन, मस्ती, शायरी, शेर, समाज, हिंदी साहित्य, hindi entertainment, hindi poem, mastram, narak, shayri, sher, swarg
|
प्राकृतिक का नियम है परिवर्तन! दिन हुआ है तो रात भी होगी। सूरज उगा है तो जरूर डूबेगा। धूप है तो अंधेरा भी होगा। यह तो प्रतिदिन होने वाले नियम हैं इसलिये दिखाई देते हैं और इनमें किसी प्रकार का परिवर्तन करने की शक्ति हमें अपने अंदर अनुभव नहीं करते इसलिये कोई दावा नहीं करते। मगर परिवर्तनशील प्रकृत्ति के अन्य भी बहुत सारे नियम हैं जो हमें दिखाई नहीं देते। कई जगह छहः महीने का दिन और रात तो कई जगह दशकों का दिन और रात होता है। केवल समय और दिन ही परिवर्तन शील नहीं है बल्कि प्रकृत्ति का स्वरूप भी परिवर्तनशील है। अनेक प्रकार के जीव यहां बने और मिट गये। डायनासोर की चर्चा तो हमने सुनी होगी जिनके बारे में कहा जाता है कि आसमान से टपके किसी कहर की वजह से वह नष्ट हो गये।
इस पृथ्वी का सच कोई नहीं जानता। सभी अनुमान से कहते हैंे कि इस तरह है या उस तरह है। कहने का तात्पर्य यह है कि यहां किसी वस्तु, व्यक्ति, खनिज, अन्न का जो स्वरूप आज है वह कल कुछ दूसरा हो सकता है और आज से पहले कुछ दूसरा रहा होगा। अलबत्ता जीवन निर्माण की प्रक्रिया में कोई परिवर्तन नहीं आता दिखता पर उसके दृश्यव्य बाह्य रूप में परिवर्तन होता है और होता रहेगा।
भाषा, समाज, जाति, तथा अन्य आधारों पर बने व्यक्ति समूहों की यही हश्र होना है इसे कोई रोक नहीं सकता। मनुष्य प्रकृत्ति का दोहन अपनी शक्ति के अनुसार अधिक से अधिक कर सकता है पर उस पर नियंत्रण कभी नही कर सकता। ऐसे में कुछ लोगा यह दावा करते हैं कि वह भाषा, जाति, धर्म, और वर्ण के आधार पर बने अपने समूहों की पहचान बरकरार रखेंगे।
अगर उनसे पूछे कि‘क्यों?’
इसके बिना इस धरा का जीवन नष्ट हो जायेगा। अगर अपनी पहचान नहीं बचाकर रखी तो दूसरी पहचान वाले हमें नष्ट कर देंगे। यह पहचान हमारी अस्मिता है? आदि आदि प्रकार के जवाब।
भला यह कैसे संभव है जो समाज प्राकृतिक परिवर्तनों से बने हैं वह उन्हीं की वजह से नष्ट होने से बच जायें? मगर दावा करने वाले करते हैं। मनुष्य के मन में भावनायें होती हैं और वही उसका संचालन करती हैं। उनका दोहन अपने लाभ के लिये करने वाले व्यापारी उसमें भय, आशंकायें और स्वप्नों का एक जाल रचते हैं। वह ऐसे असंभव काम को अपने हाथों से करने का दावा करते हैं जो उनके बस का है ही नहीं। परिवर्तन को रोकना कठिन है। सौ बरस में मनुष्य का और दो सौ बरस में परिवार का अस्त्तिव मिटने के साथ अपनी पहचान खोता है तो हजार साल में समूह भी अपना अस्तित्व नहीं बचा सकते हैं। जाति, भाषा, धर्म तथा अन्य आधारों पर बने समूह कोई स्थाई पिंजरा नहीं है जिसमें आकर भगवान का हर जीवन हमेशा फंसता रहे। फिर सवाल यह है कि अपनी पहचान किसलिये बनाये रखना चाहिये? अरे, अपना जीवन आदमी शांति और भक्ति के साथ जिये तो उसे फिर पहचान की क्या जरूरत है? ऐसे में पहचान का ढोंग न करें चाहिये न उसमें फंसे।इस पर प्रस्तुत हैं काव्यात्मक अभिव्यक्ति-
धरती पर उगे हैं इंसान
पर वह उसमें गड़े मुर्दों में
अपनी पहचान खोजते हैं।
अपने लहू से सींचे चमन का
मजा लेने की भला कैसे सोचें
पूरी जिंदगी अपनी पहचान के
संकट से जूझते
उनके पसीने का मजा
जिंदगी के दलाल भोगते हैं।।
————-
उसने नारा लगाया कि
‘आओ मेरे पीछे
मैं तुम्हें अपनी पहचान बताता हूं
कैसे बचाओ उसे
इसका रास्ता भी बताऊंगा।’
लोग बिना सोचे समझे
चल पड़े उसके पीछे
पर पहचान नहीं मिली
रास्ते पर रखे पत्थरों का
इतिहास सुनाते हुए वह चलता रहा
भीड़ का कारवां भी उसके पीछे था
उसने सौदागरों के इतिहास में
अपना नाम दर्ज कर लिया
पर पहचान का पता किसी को न दिया
कभी जाति की
तो कभी धर्म की
कभी भाषा की चादर बिछाता रहा
पहचान का प्रमाण दिखाता रहा
बस कहता रहा जिंदगी भर
समूह की एकता की बात
जब थक गया तो कहने लगा कि
‘चलते रहो मेरे साथ
आने वाली पीढ़ियों को भी
इसी पहचान की राह चलना है
इसी में जीना और मरना है
मेरी बात मानना बंद किया तो
फिर भूत की तरह सताऊंगा।’
कवि, लेखक और संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
http://anantraj.blogspot.com
—————–
यह आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप का चिंतन’पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.अनंत शब्दयोग
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका
4.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान पत्रिका
दीपक भारतदीप द्धारा
|
Also posted in arebic, अनुभूति, अभिव्यक्ति, आध्यात्म, आलेख, आस्था, कला, चिन्तन, दीपक भारतदीप, दीपकबापू, मस्तराम, समाज, साहित्य, सूचना, सृजन, हिंदी साहित्य, हिन्दी, bharat, Deepak bapu, Deepak bharatdeep, E-patrika, hindi megazine
|
Tagged मनोरंजन, मस्त राम, मस्ती, संपादकीय, हिंदी लेख, हिंदी साहित्य, hindi article, hindi editorial, hindi lekh
|