इंटरनेट पर हिन्दी लाने के लिये लेखकों को प्रोत्साहन की जरूररत-हिन्दी दिवस और विश्व हिन्दी सम्मेलन पर नया पाठ


         इस समय हमारे देश में अंतर्जाल के विषय पर अनेक चर्चायों हो रही हैं।  सभी जानते हैं कि इस समय देश में डिजिटल इंडिया सप्ताह चल रहा है तो हमारे जैसे सामान्य स्वतंत्र लेखक प्रयोक्ताओं के लिये चिंत्तन का समय भी है।  आज से आठ वर्ष पूर्व जब अंतर्जाल पर हमने लिखना शुरु किया तब याहू और गूगल के बारे में ज्यादा मालुम नहीं था।  निरंतर सक्रिय रहने से  अनुभव आया तो पता लगा कि हम तो विदेशी लोगों की कृपा से इंटरनेट पर चल रहे हैं।  यह भी पता चला कि साफ्टवेयर में भारत नंबर वन है तो यहीं के पूंजीपति भी विदेश में प्रभावशाली हैं।  बीच की कड़ी में ही कहीं विदेशी प्रबंधक हैं जो इतने शक्तिशाली हैं कि हमारे देश की सारी सूचनायें उनके पास पहुंचती हैं। वह चाहे जब हमारे अंतर्जालीय शक्ति  को कमजोर कर सकते हैं।

                              इधर भारत को विश्व की महाशक्ति बनने की के सपने भी देखे और दिखाये जा रहे हैं।  मंगल यान पर अगर भारत पहुंच सकता है तो क्यों नहीं यहां कोई  स्वदेशी अंतर्जालीय मस्तिष्क स्थापित नहीं हो सकता। दूसरा यह भी कि जब तक यह नहीं बनेगा भारत के शक्तिशाली होने का भ्रम ही हो सकता है। इसलिये भारत में स्वदेश सर्वर बनाने का प्रयास युद्धस्तर पर होना ही चाहिये।

                              एक किस्सा याद आता है। एक जापानी व्यापारी भारत आया। उसने कहीं से कैंकड़े खरीदे। विक्रेता ने उसे ढेर सार कैंकड़े जिस बर्तन में रखकर दिये उसका ढक्कन नहीं लगा था। व्यापारी ने विक्रेता से कहा-‘यह कीड़े ढक्कन न होने से निकलकर भाग जायेंगे।’’

                              विक्रेता ने कहा-‘नहीं, भागने की कोशिश सभी करेंगे पर एक दूसरे को पीछे भी घसीटते रहेंगे। आपका जहाज जब अपने देश पहुंचेगा तब तक एक भी कीड़ा यहां से निकल नहीं पायेगा।’

                              अनेक विद्वान इस कथा को भारत के जनमानस से जोड़ते हैं पर जब डिजिटल इंडिया की बात करते हैं तो फिर यही विचार तो आता ही है कि पूंजी और मस्तिष्क की दृष्टि से विश्व में श्रेष्ठ होते हुए भी हम पिछड़े क्यों हैं? कहीं इसी तरह की प्रवृत्ति भारतीय धनपतियों की तो नहीं है। आत्ममंथन करें तो देश के धनपति राजा के बाद स्वयं को ही समाज का नियंत्रक मानते हैं। वह मस्तिष्क से संपन्न लोगों को सामने बिठाकर सम्मान नहीं देना चाहते।  सबसे बड़ी बात तो यह कि वह उनमें यह प्रवृत्ति ही नहीं है कि वह किसी बुद्धि या श्रम करने वाले को श्रेष्ठ दृष्टि से देखें। जब तक हमारे देश के पूंजीपति आधुनिक युग में सामरिक, अंतरिक्ष तथा इंटरनेट के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने के लिये योजना नहीं बनायेंगे उनको विदेश में पैसा खर्च करने पर खूब सुविधायें मिलती रहेंगी पर हार्दिक सम्मान कहीं नहीं  मिल पायेगा। भले ही वह अपने प्रचार माध्यमों से कितनी भी अपनी महान छवि दिखा लें पर विदेश में उन्हें हेय नहीं तो श्रेष्ठ दृष्टि से भी नहीं देखा जाता।

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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,

ग्वालियर मध्यप्रदेश

writer and poet-Deepak Raj kurkeja “Bharatdeep”

Gwalior Madhya Pradesh

कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
http://rajlekh.blogspot.com 

यह आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप का चिंतन’पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।

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