शेयर बाज़ार ढहने से देश नहीं ढहता-हिन्दी लेख


                                   शेयर बाज़ार अतिधनवान लोगों को व्यस्त रखता है। इससे जनमानस के लिये आवश्यक वस्तुओं सहज सुलभ रहती है हालांकि वायदा बाज़ार के माध्यम से धनवान लोग वहां भी अपनी कला दिखाते हैं।  आम इंसान शेयर बाज़ार को एक ऐसे खेल मैदान की तरह देखता है जहां उसका प्रवेश वर्जित है।  धनवान लोग वहां हारते जीतते रहते हैं।  हम जैसे चिंत्तक यह मानते हैं कि धनवान लोगों का  मायावी बाज़ार मे व्यस्त रहना उसी तरह अच्छी बात है जैसे आदतन अपराधी का मादक द्रव्य में व्यस्त रहना।

                                   इधर सुना है कि शेयरों के दाम औंधे मुंह गिरने लगे हैं। सामान्य नागरिकों के लिये यह चिंता का विषय होना ही चाहिये। जिस तरह शराबखाने से निकला कोई मसखरा खतरनाक हो जाता है उसी तरह शेयर नामक शराब से ऊबे धनपति फिर कहीं सोने, जमीन तथा अनाज के व्यापार में कहीं अपना धन लगाने लगे तो मुश्किल खड़ी कर देंगे। मुश्किल यह है कि हमारे देश में कुछ लोगों के पास इतना पैसा है कि वह सोचते हैं कि रखे कहां? दीवारों के छिपाया, फर्श में दबाया, बैंकों मे रखा, और अल्मारी में घुसेड़ा फिर भी इतना बचता है कि वह शेयर बाज़ार में लगा देते हैं।  सोना, जमीन और महंगी कारों को खरीदने पर भी उनका पैसा खत्म नहीं होता।

                                   उनका शेयर बाज़ार में व्यस्थ रहना समाज के स्वास्थ्य के लिये ठीक रहता है। भावों के उतार चढ़ाव देखकर वह अपना दिल बहलाते हैं। कभी खुशी तो कभी गम की उदासीनता का आनंद लेते हैं-भाव गिरने पर उन्हें मूड खराब होने के प्रचार का अवसर मिलता है।

                                   बहरहाल इस व्यंग्य के साथ ही हम अपने चिंत्तन का निष्कर्ष भी बता दें।  इस बार मंदी का दौर चला तो बड़े बड़े औद्योगिक घराने संकट में पड़ सकते हैं। आमइंसान का इतना खून निकाल चुके हैं कि अब कुछ बाकी नहीं।

इस पर लिखे गये ट्विटर

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शेयरबाज़ार ढहने पर सोमवार काला हो जाता है पर आश्चर्य है फसल बर्बाद करने वाले ओलों काला नहीं कहा जाता।

दरअसल शेयरों में धन का विनियोजन करना खायेपीयेअघाये लोगों का काम है। उसके भाव गिरे तो वह दालचीनी में पैसालगाकर मंहगी कर देंगे।

शेयर बाज़ार सूचकांक ढहे या बचे इसकी परवाह किसे है? यहां तो लोग प्याज, दाल, और चीनी के मूल्य सूचकांक से आहत हैं।

प्याज ऐसा नहीं है जिसे न मिलने पर कोई भूखा रह जाये! इसके दाम बढ़ने पर इतना रुदन जमता नहीं है।

बाबा रामदेव का डीआरडीओ से समन्वय होना अच्छी बात है। आपत्तियां उठाने वालों का जवाब देना जरूरी नहीं।

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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप 

ग्वालियर मध्य प्रदेश

Writer and poet-Deepak Raj Kukreja “Bharatdeep”
Gwalior Madhyapradesh

वि, लेखक एवं संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर

poet,writer and editor-Deepak Bharatdeep, Gwaliro

http://rajlekh-patrika.blogspot.com

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