सपनों का बाज़ार-हिन्दी व्यंग्य कवितायें


शांति के लिये

कबूतर उड़ाते

विकास के लिये

सपनों का बाज़ार लगाते हैं।

सोते हैं आरामदायक बिस्तर पर

बेघरों के लिये चिंत्तन करते

अपने महल दर्शनीय बनाते है।

कहें दीपक बापू जनहित पर

समाज सेवकों की सेना

चली आ रही है,

प्रजा शब्दों से ही

छली जा रही है,

सभी अपने इष्ट का रूप

बताते सर्वश्रेठ

नाम लेकर नामा कमाते हैं।

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विश्वास कोई रस्म नहीं है

जिसे निभाया जाये।

सहायता कोई गीत नहीं

करने के बाद जिसे गाया जाये।

आशा कोई आकाश में

लटका फल नहीं है

जो गिर कर हाथ आ जाये।

कहें दीपक बापू अहंकार पर

सवारी करते हैं लोग

पांव जमीन पर नहीं होते,

वीरता का करते दिखावा

दिल में डर रहे होते,

आत्म प्रचार में लगे बकवादी

कोई नहीं ऐसा जो अपने

कौशल का प्रमाण साथ लाये।

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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’

ग्वालियर मध्यप्रदेश

Deepak Raj Kukreja “Bharatdeep”

Gwalior Madhyapradesh

संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 

athor and editor-Deepak Raj Kukreja “Bharatdeep”,Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com

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