चीनी सामान के बहिष्कार से जुड़ती देशभक्ति-हिन्दी संपादकीय


                                                            चीन भारत के प्रति शत्रुभाव रखता है यह सर्वविदित है और हम तो उसके भारत के उपभोक्ता बाज़ार में खुले प्रवेश पर पहले भी सवाल उठाते रहे हैं। सबसे बड़ा हमारा सवाल यह रहा है कि भारत में लघुउद्योग व कुटीर उद्योग को प्रोत्साहन की नीति थी वह सफल क्यों नहीं रही? इन लघु व कुटीर उद्योगों में निर्मित छोटे छोटे सामान भारतीय परंपराओं का अभिन्न भाग होते थे। यह पता ही नहीं चला कि चीनी सामान ने भारतीय बाज़ार में प्रवेश किया पर इतना तय है कि यह देश के आर्थिक तथा राजनीति के शिखर पर विराजमान लोगों के आंखों के सामने ही हुआ था-या कहें उन्होंने अपनी आंखें फेर ली थीं।

                                           अब अचानक चीन के एक आतंकी के प्रति प्रेमपूर्ण व्यवहार दिखाने पर उसके सामान के बहिष्कार का आह्वान देशभक्ति के नाम पर किया जा रहा है।  सच कहें तो अब देशभक्ति को सस्ता बनाया जा रहा है।  इस समय दिवाली के अवसर पर पर्व से संबंधित पटाखे, सजावाट का सामान तथा खिलौने आदि न खरीदने के लिये जोरदार अभियान चल रहा है।  हम बता दें कि मोबाइल, लेपटॉप तथा कंप्यूटर में भी ढेर सारा चीनी सामान लगा है।  अनेक आधुनिक सामान तो चीन से पुर्जें लाकर यही संयोजित किया जाता है।  हमें एक दुकानदार ने बताया था कि इनवर्टर, स्कूटर , कार तथा चाहे कहीं भी लगने वाली जो भी बैट्री हो वह चीन में ही बनती है।  इस समय बड़े व्यापारियों से कोई अपील नहीं कर रहा-क्योंकि उन्हें शायद देशभक्ति दिखाने की जरूरत नहीं है।  इसके लिये आसान शिकार मध्यम तथा निम्न वर्ग का व्यवसायी बनाया जा रहा है।  हम यहां चीनी सामान बिकने का समर्थन नहीं कर रहे पर हमारे देश के मध्यम तथा निम्न वर्ग के व्यवसायियों के रोजगार की चिंता करने से हमें कोई रोक नहीं सकता।  वैसे ही हमारे देश में रोजगार के अवसर कम होते जा रहे हैं।  आजकल छोटे व्यापारी आधुनिक मॉल संस्कृति के विकास के कारण वैसे भी अस्तित्व का संघर्ष कर रहे हैं-स्थित यह है कि उनकी नयी पीढ़ी अपना पैतृक काम छोड़कर नौकरी की तलाश में घूम रही हैं।  ऐसे में दिपावली तथा होली जैसे पर्वों के समय जो अधिक कमाने की जिम्मेदारी योजना होती है उस पर पानी फिरा जा रहा है।  अनेक लोगों ने चीन का सामान भरा है और अगर उनकी बिक्री कम हुई तो पूंजी का नाश होगा-हालांकि जिस तरह महंगाई व आय के असमान वितरण ने जिस तरह समाज के एक बहुत बड़े वर्ग की क्रय क्षमता को कम किया उससे भी दीवाली पर चीनी सामान की बिक्री कम हो सकती है। यह अलग बात है कि इसे देशभक्ति के खाते में ही दिखाया जायेगा।

                                       अपनी रक्षा की इच्छा रखने वाला हर आदमी देश के प्रति वफादार होता है-देशभक्ति दिखाने में उत्साह रखना भी चाहिये पर इसका मतलब यह नहीं है कि हम हर छोटे विषय पर भी अपने दाव खेलने लगे।  देश में आर्थिक असमंजसता का वातावरण है इसलिये यह ध्यान रखना चाहिये कि अपने नागरिकों की हानि न हो। हमें सबसे ज्यादा आपत्ति उस योग शिक्षक पर कर रहे हैं जिसने योग व्यवसाय के दम पर बड़ी कंपनी बनाकर पूंजीपति का उपाधि प्राप्त कर ली और अब चीनी सामान के बहिष्कार का आह्वान कर रहा है।  इस तरह वह छोटे व्यापारियों को उसी तरह संकट में डाल रहा है जैसे कि उसकी हर मोहल्ले में खुली दुकानें डाल रही हैं।  अगर उसमें हिम्मत है तो चीन से आयात करने वाले बड़े दलालों, व्यापारियों तथा उद्योगपतियों से देशभक्ति दिखाने को कहें-जिनका अरबों का विनिवेश चीन में हैं।  प्रसंगवश हमने हमेशा ही मध्यम वर्ग के संकट की चर्चा की है और इस विषय में जिस तरह देशभक्ति दिखाने के लिये फिर उसे बाध्य किया जा रहा है उस पर हमारी नज़र है।

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मनोरंजन से अध्यात्मिक शांति बेचने का प्रयास-हिन्दी लेख


                 पूरे विश्व में प्रचार माध्यमों के बीच हर प्रकार के दर्शक और श्रोता को प्रभावित करने की होड़ चल पड़ी है। मनोरंजन के नाम पर अनेक तरह के कार्यक्रम आते हैं पर अब तो भक्ति पर भी व्यवसायिक कार्यक्रम बनने लगे हैं। प्रातःकाल टीवी तथा रेडियो पर धर्मभीरु लोगों के आनंद के लिये भजनों का कार्यक्रम प्रसारित होता है। जिन लोगों का अंतर्मन अध्यात्मिक रस से सराबोर होता है उन्हें इनके श्रवण से आनंद मिलता है। यह अलग बात है कि भजन और आरती में अंतर बहुत कम लोग समझते हैं। आरती हमेशा ही भक्त को सर्वशक्मिान के समक्ष याचक तथा पीड़ित के रूप में प्रस्तुत करती है। श्रीमद्भागवत् गीता में भक्तों के चार प्रकार-आर्ती, अर्थार्थी, जिज्ञासु तथा ज्ञानी- बताये गये हैं। आत भाव वालों को आरती, अर्थार्थी भाव वालों के नाम स्मरण, योग ज्ञान साधना वालों को मंत्र वाले भजन अधिक पसंद आते हैं। जिज्ञासु सभी प्रकार के भजनों का श्रवण यह सोचकर करते हैं कि शायद उनको इससे आनंद मिल जाये-कुछ को मिलता है तो कुछ इन्हें आम गीत मान लेते हैं।

               अनेक जगह व्यवसायिक व्यायाम शिक्षक अपने यहां आने वाले शिष्यों के लिये गीत संगीत मद्धिम स्वर से बजाने का प्रबंध भी करते हैं। हमने अपने अभ्यास से यह अनुभव किया है कि सुबह के समय मौन होकर योग साधना या सैर करना चाहिये। जब दिन भर ही विषयों से संपर्क के दौरान अपनी समस्त इंद्रियों को सक्रिय रखना ही है तो फिर प्रातःकाल से ही उनके उपयोग कर उन्हें थकाने की  आवश्यकता ही नहीं है। प्रातःकाल तो समस्त इंद्रियों को मौन रखकर ऊर्जा संचय का है और अपना ध्यान श्रवण, दर्शन अथवा चिंत्ताओं में लगाना अपनी सृजित ऊर्जा को विसर्जित करना ही है। अनेक जगह लोग प्रातःकाल भ्रमण तथा योग साधना के समय बातें करते हैं। उन्हें कोई शिक्षक यह नहीं समझाता कि इस तरह ऊर्जा का अपव्यय देह में विकार अधिक लाता है।

                अनेक व्यवसायिक  व्यायाम तथा योग शिक्षकों में यह अहंकार का भाव आ ही जाता है। वह गुरु हैं इस भाव से उन्हें संतोष नहीं होता वरन् वह उसका अनुभव दूसरे को कराकर आत्मसंतोष करना चाहते हैं। इसके विपरीत निष्काम भाव से योग शिक्षा देने वाले इस भाव से परे होते हैं।

                   हमारा मानना है कि प्रातःकाल का समय धर्म के लिये होता है और कहा जाता है कि धर्म ही मानव जीवन की सबसे बड़ी शक्ति होती है। इसलिये प्रातःकाल मौन होकर दैहिक, मानसिक तथा वैचारिक शक्ति का संचय करना चाहिये।  इस दौरान सांसरिक विषयों पर वार्तालाप करने से योग साधना, व्यायाम तथा भ्रमण के सारे लाभों से वंचित होना पड़ता है।

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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’

ग्वालियर मध्यप्रदेश

Deepak Raj Kukreja “Bharatdeep”

Gwalior Madhyapradesh

संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 

athor and editor-Deepak Raj Kukreja “Bharatdeep”,Gwalior
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                                   शेयर बाज़ार अतिधनवान लोगों को व्यस्त रखता है। इससे जनमानस के लिये आवश्यक वस्तुओं सहज सुलभ रहती है हालांकि वायदा बाज़ार के माध्यम से धनवान लोग वहां भी अपनी कला दिखाते हैं।  आम इंसान शेयर बाज़ार को एक ऐसे खेल मैदान की तरह देखता है जहां उसका प्रवेश वर्जित है।  धनवान लोग वहां हारते जीतते रहते हैं।  हम जैसे चिंत्तक यह मानते हैं कि धनवान लोगों का  मायावी बाज़ार मे व्यस्त रहना उसी तरह अच्छी बात है जैसे आदतन अपराधी का मादक द्रव्य में व्यस्त रहना।

                                   इधर सुना है कि शेयरों के दाम औंधे मुंह गिरने लगे हैं। सामान्य नागरिकों के लिये यह चिंता का विषय होना ही चाहिये। जिस तरह शराबखाने से निकला कोई मसखरा खतरनाक हो जाता है उसी तरह शेयर नामक शराब से ऊबे धनपति फिर कहीं सोने, जमीन तथा अनाज के व्यापार में कहीं अपना धन लगाने लगे तो मुश्किल खड़ी कर देंगे। मुश्किल यह है कि हमारे देश में कुछ लोगों के पास इतना पैसा है कि वह सोचते हैं कि रखे कहां? दीवारों के छिपाया, फर्श में दबाया, बैंकों मे रखा, और अल्मारी में घुसेड़ा फिर भी इतना बचता है कि वह शेयर बाज़ार में लगा देते हैं।  सोना, जमीन और महंगी कारों को खरीदने पर भी उनका पैसा खत्म नहीं होता।

                                   उनका शेयर बाज़ार में व्यस्थ रहना समाज के स्वास्थ्य के लिये ठीक रहता है। भावों के उतार चढ़ाव देखकर वह अपना दिल बहलाते हैं। कभी खुशी तो कभी गम की उदासीनता का आनंद लेते हैं-भाव गिरने पर उन्हें मूड खराब होने के प्रचार का अवसर मिलता है।

                                   बहरहाल इस व्यंग्य के साथ ही हम अपने चिंत्तन का निष्कर्ष भी बता दें।  इस बार मंदी का दौर चला तो बड़े बड़े औद्योगिक घराने संकट में पड़ सकते हैं। आमइंसान का इतना खून निकाल चुके हैं कि अब कुछ बाकी नहीं।

इस पर लिखे गये ट्विटर

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शेयरबाज़ार ढहने पर सोमवार काला हो जाता है पर आश्चर्य है फसल बर्बाद करने वाले ओलों काला नहीं कहा जाता।

दरअसल शेयरों में धन का विनियोजन करना खायेपीयेअघाये लोगों का काम है। उसके भाव गिरे तो वह दालचीनी में पैसालगाकर मंहगी कर देंगे।

शेयर बाज़ार सूचकांक ढहे या बचे इसकी परवाह किसे है? यहां तो लोग प्याज, दाल, और चीनी के मूल्य सूचकांक से आहत हैं।

प्याज ऐसा नहीं है जिसे न मिलने पर कोई भूखा रह जाये! इसके दाम बढ़ने पर इतना रुदन जमता नहीं है।

बाबा रामदेव का डीआरडीओ से समन्वय होना अच्छी बात है। आपत्तियां उठाने वालों का जवाब देना जरूरी नहीं।

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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप 

ग्वालियर मध्य प्रदेश

Writer and poet-Deepak Raj Kukreja “Bharatdeep”
Gwalior Madhyapradesh

वि, लेखक एवं संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर

poet,writer and editor-Deepak Bharatdeep, Gwaliro

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इंटरनेट पर हिन्दी लाने के लिये लेखकों को प्रोत्साहन की जरूररत-हिन्दी दिवस और विश्व हिन्दी सम्मेलन पर नया पाठ


         इस समय हमारे देश में अंतर्जाल के विषय पर अनेक चर्चायों हो रही हैं।  सभी जानते हैं कि इस समय देश में डिजिटल इंडिया सप्ताह चल रहा है तो हमारे जैसे सामान्य स्वतंत्र लेखक प्रयोक्ताओं के लिये चिंत्तन का समय भी है।  आज से आठ वर्ष पूर्व जब अंतर्जाल पर हमने लिखना शुरु किया तब याहू और गूगल के बारे में ज्यादा मालुम नहीं था।  निरंतर सक्रिय रहने से  अनुभव आया तो पता लगा कि हम तो विदेशी लोगों की कृपा से इंटरनेट पर चल रहे हैं।  यह भी पता चला कि साफ्टवेयर में भारत नंबर वन है तो यहीं के पूंजीपति भी विदेश में प्रभावशाली हैं।  बीच की कड़ी में ही कहीं विदेशी प्रबंधक हैं जो इतने शक्तिशाली हैं कि हमारे देश की सारी सूचनायें उनके पास पहुंचती हैं। वह चाहे जब हमारे अंतर्जालीय शक्ति  को कमजोर कर सकते हैं।

                              इधर भारत को विश्व की महाशक्ति बनने की के सपने भी देखे और दिखाये जा रहे हैं।  मंगल यान पर अगर भारत पहुंच सकता है तो क्यों नहीं यहां कोई  स्वदेशी अंतर्जालीय मस्तिष्क स्थापित नहीं हो सकता। दूसरा यह भी कि जब तक यह नहीं बनेगा भारत के शक्तिशाली होने का भ्रम ही हो सकता है। इसलिये भारत में स्वदेश सर्वर बनाने का प्रयास युद्धस्तर पर होना ही चाहिये।

                              एक किस्सा याद आता है। एक जापानी व्यापारी भारत आया। उसने कहीं से कैंकड़े खरीदे। विक्रेता ने उसे ढेर सार कैंकड़े जिस बर्तन में रखकर दिये उसका ढक्कन नहीं लगा था। व्यापारी ने विक्रेता से कहा-‘यह कीड़े ढक्कन न होने से निकलकर भाग जायेंगे।’’

                              विक्रेता ने कहा-‘नहीं, भागने की कोशिश सभी करेंगे पर एक दूसरे को पीछे भी घसीटते रहेंगे। आपका जहाज जब अपने देश पहुंचेगा तब तक एक भी कीड़ा यहां से निकल नहीं पायेगा।’

                              अनेक विद्वान इस कथा को भारत के जनमानस से जोड़ते हैं पर जब डिजिटल इंडिया की बात करते हैं तो फिर यही विचार तो आता ही है कि पूंजी और मस्तिष्क की दृष्टि से विश्व में श्रेष्ठ होते हुए भी हम पिछड़े क्यों हैं? कहीं इसी तरह की प्रवृत्ति भारतीय धनपतियों की तो नहीं है। आत्ममंथन करें तो देश के धनपति राजा के बाद स्वयं को ही समाज का नियंत्रक मानते हैं। वह मस्तिष्क से संपन्न लोगों को सामने बिठाकर सम्मान नहीं देना चाहते।  सबसे बड़ी बात तो यह कि वह उनमें यह प्रवृत्ति ही नहीं है कि वह किसी बुद्धि या श्रम करने वाले को श्रेष्ठ दृष्टि से देखें। जब तक हमारे देश के पूंजीपति आधुनिक युग में सामरिक, अंतरिक्ष तथा इंटरनेट के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने के लिये योजना नहीं बनायेंगे उनको विदेश में पैसा खर्च करने पर खूब सुविधायें मिलती रहेंगी पर हार्दिक सम्मान कहीं नहीं  मिल पायेगा। भले ही वह अपने प्रचार माध्यमों से कितनी भी अपनी महान छवि दिखा लें पर विदेश में उन्हें हेय नहीं तो श्रेष्ठ दृष्टि से भी नहीं देखा जाता।

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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,

ग्वालियर मध्यप्रदेश

writer and poet-Deepak Raj kurkeja “Bharatdeep”

Gwalior Madhya Pradesh

कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
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शेयर बाज़ार ढहने से देश नहीं ढहता-हिन्दी लेख


                                   शेयर बाज़ार अतिधनवान लोगों को व्यस्त रखता है। इससे जनमानस के लिये आवश्यक वस्तुओं सहज सुलभ रहती है हालांकि वायदा बाज़ार के माध्यम से धनवान लोग वहां भी अपनी कला दिखाते हैं।  आम इंसान शेयर बाज़ार को एक ऐसे खेल मैदान की तरह देखता है जहां उसका प्रवेश वर्जित है।  धनवान लोग वहां हारते जीतते रहते हैं।  हम जैसे चिंत्तक यह मानते हैं कि धनवान लोगों का  मायावी बाज़ार मे व्यस्त रहना उसी तरह अच्छी बात है जैसे आदतन अपराधी का मादक द्रव्य में व्यस्त रहना।

                                   इधर सुना है कि शेयरों के दाम औंधे मुंह गिरने लगे हैं। सामान्य नागरिकों के लिये यह चिंता का विषय होना ही चाहिये। जिस तरह शराबखाने से निकला कोई मसखरा खतरनाक हो जाता है उसी तरह शेयर नामक शराब से ऊबे धनपति फिर कहीं सोने, जमीन तथा अनाज के व्यापार में कहीं अपना धन लगाने लगे तो मुश्किल खड़ी कर देंगे। मुश्किल यह है कि हमारे देश में कुछ लोगों के पास इतना पैसा है कि वह सोचते हैं कि रखे कहां? दीवारों के छिपाया, फर्श में दबाया, बैंकों मे रखा, और अल्मारी में घुसेड़ा फिर भी इतना बचता है कि वह शेयर बाज़ार में लगा देते हैं।  सोना, जमीन और महंगी कारों को खरीदने पर भी उनका पैसा खत्म नहीं होता।

                                   उनका शेयर बाज़ार में व्यस्थ रहना समाज के स्वास्थ्य के लिये ठीक रहता है। भावों के उतार चढ़ाव देखकर वह अपना दिल बहलाते हैं। कभी खुशी तो कभी गम की उदासीनता का आनंद लेते हैं-भाव गिरने पर उन्हें मूड खराब होने के प्रचार का अवसर मिलता है।

                                   बहरहाल इस व्यंग्य के साथ ही हम अपने चिंत्तन का निष्कर्ष भी बता दें।  इस बार मंदी का दौर चला तो बड़े बड़े औद्योगिक घराने संकट में पड़ सकते हैं। आमइंसान का इतना खून निकाल चुके हैं कि अब कुछ बाकी नहीं।

इस पर लिखे गये ट्विटर

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शेयरबाज़ार ढहने पर सोमवार काला हो जाता है पर आश्चर्य है फसल बर्बाद करने वाले ओलों काला नहीं कहा जाता।

दरअसल शेयरों में धन का विनियोजन करना खायेपीयेअघाये लोगों का काम है। उसके भाव गिरे तो वह दालचीनी में पैसालगाकर मंहगी कर देंगे।

शेयर बाज़ार सूचकांक ढहे या बचे इसकी परवाह किसे है? यहां तो लोग प्याज, दाल, और चीनी के मूल्य सूचकांक से आहत हैं।

प्याज ऐसा नहीं है जिसे न मिलने पर कोई भूखा रह जाये! इसके दाम बढ़ने पर इतना रुदन जमता नहीं है।

बाबा रामदेव का डीआरडीओ से समन्वय होना अच्छी बात है। आपत्तियां उठाने वालों का जवाब देना जरूरी नहीं।

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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप 

ग्वालियर मध्य प्रदेश

Writer and poet-Deepak Raj Kukreja “Bharatdeep”
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