दिल लगाने के ठिकाने
अब नहीं ढूंढते
क्योंकि दिल्लगी बाज़ार की शय बन गयी है,
मोहब्बत का पाखंड अब
खुश नहीं कर पाता
क्योंकि जहां बहता है जज़्बातों का दरिया
वह मतलब की बर्फ जम गयी है।
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आसमान के उड़ने की चाहत में
इतनी ऊंची छलांग मत लगाओ
कि जमीन पर गिरने पर
शरीर को इतने घाव लग जायें
जिन्हें भर न पाओ।
दूर जाना अपने मकसद के लिये उतना ही
कि साबित अपने ठिकाने पर लौट आओ।
———
कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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