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नगर में
पर्दे पर महानगर को तैरता देखकर
उसमें उतरने के लिये
हर युवा दिल मचलता है
मालुम न था उसे पत्थर के इस जंगल में
कातिल बीज भी पलता है,
जो साथ लेकर बुरा समय फलता है,
सौंदर्य के सौदागर हर मोल पर
खरीदने कौ तैयार हैं,
दरियालदिल दिखते पर सब मतलब के यार हैं,
जज़्बात की कीमत चुकाते हुए करते प्यार
पैसे भी देकर करें दिल का व्यापार
धोखे की साथ लेकर परछाई।
कहते हैं लोग
जिंदगी के मीठे और कड़वे स्वाद तो
गंवार भी जानते हैं
फिर वह पढ़ी लिखी क्यों न समझ पाई।
कौन समझाये कि पढ़े लिखे होने का मतलब
ज्ञानी होना नहीं होता,
जिंदगी के रस में अंग्रेजी पढ़ा लिखा ही
आम की जगह बबूल के पेड़ बोता,
दिमाग से बडा दिल मानते
रूह से नासमझ हैं पढ़े लिखे लोग
मस्ती का है लाइलाज रोग,
जिसका इलाज नहीं
जहां आये मजा जम गये वहीं
अच्छे बुरे की पहचान अंग्रेजी पढ़ते गंवाई।
मगर कब तक चलता यह सब
भांडा फूटना था अब
उसने अपने गले के लिये रस्सी बनाई
छोड़ गयी अपने लोगों के लिये
वह लड़की जगहंसाई।।
एक गैर के वास्ते
अपनों की महंगी जिंदगी
सस्ते प्यार के जुए में दाव पर लगाई।
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कवि,लेखक,संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
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सच्चा प्यार जो दिल से मिले
अब कहां मिलता है,
अब तो वह डालरों में बिकता है।
आशिक हो मालामाल
माशुका हो खूबसूरत तो
दिल से दिल जरूर मिलता है।
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आज के शायर गा रहे हैं
इश्क पर लिखे पुराने शायरों के कलाम,
लिखने के जिनके बाद
गुज़र गयी सदियां
पता नहीं कितनी बीती सुबह और शाम।
बताते हैं वह कि
इश्क नहीं देखता देस और परदेस
बना देता है आदमी को दीवाना,
देना नहीं उसे कोई ताना,
तरस आता है उनके बयानों पर,
ढूंढते हैं अमन जाकर मयखानों पर,
जिस इश्क की गालिब सुना गये
वह दिल से नहीं होता,
डालरों से करे आशिक जो
माशुका को सराबोर
उसी से प्यार होता,
क्यों पाक रिश्ते ढूंढ रह हो
आजकल के इश्क में
होता है जो रोज यहां नीलाम।
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कवि, लेखक और संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
http://anantraj.blogspot.com
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