बनते बिगड़ते हैं रंग और इंसान -कविता


पल रंग बदलती दुनियां में
रिश्ते भी बदलते हैं रंंग
जो सारी उमर साथ चलने का
एलान करते सरेआम
वह कभी नहीं चलते संग
जिनसे फेरा होता है मूंह
वही चल पड़ते है साथ
निभाने लगते हैं बिना वादा किये
चाहे होते है रास्ते तंग
कोई शिकायत नहीं करते
चलते है संग
……………………………….

किसी एक रंग पर मत दिल लगाना
हर रंग को अपनी आंखें पर आजमाना
किसी रंग का भरोसा नहीं फीका पड़ जाये
जो फीका लगता संभव है वही जीवन चमकाये
इंसानों के भी रंग होते हैं
कभी उनके मन होतेे उजले तो
कभी काले होते हैं
इज्जत करते हैं जो दिखाने की
करते हैं वही बदनाम
कर जाते हैं अपने पैगाम देकर दिल खुश
जो खुश्क जिंदगी जी रहे होते हैं
बनते बिगड़ते हैं रंग और इंसान
किसी एक पर मत दिल न लगाना
…………………………………
दीपक भारतदीप

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टिप्पणियाँ

  • ranjanabhatia  On जून 25, 2008 at 2:53 अपराह्न

    पल रंग बदलती दुनियां में
    रिश्ते भी बदलते हैं रंंग
    जो सारी उमर साथ चलने का
    एलान करते सरेआम
    वह कभी नहीं चलते संग
    जिनसे फेरा होता है मूंह
    वही चल पड़ते है साथ
    निभाने लगते हैं बिना वादा किये
    चाहे होते है रास्ते तंग
    कोई शिकायत नहीं करते
    चलते है संग

    मुझे यह दिल से पसंद आई है आपकी रचना एक सच है इस में …जो दिल को बहुत करीब से छु जाता है

  • Advocate Rashmi saurana  On जून 25, 2008 at 3:32 अपराह्न

    sundar rachana ke liye badhai.likhate rhe.

  • समीर लाल  On जून 25, 2008 at 6:26 अपराह्न

    किसी एक रंग पर मत दिल लगाना
    हर रंग को अपनी आंखें पर आजमाना

    -बहुत सही सीख देती कविता.

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