Category Archives: vividha

साधू, शैतान और इन्टरनेट-हिंदी हास्य व्यंग्य कविता


शैतान ने दी साधू के आश्रम पर दस्तक
और कहा
‘महाराज क्या ध्यान लगाते हो
भगवान के दिए शरीर को क्यों सुखाते हो
लो लाया हूँ टीवी मजे से देखो
कभी गाने तो कभी नृत्य देखो
इस दुनिया को भगवान् ने बनाया
चलाता तो मैं हूँ
इस सच से भला मुहँ क्यों छुपाते हो’

साधू ने नही सुना
शैतान चला गया
पर कभी फ्रिज तो कभी एसी ले आया
साधू ने कभी उस पर अपना मन नहीं ललचाया
एक दिन शैतान लाया कंप्यूटर
और बोला
‘महाराज यह तो काम की चीज है
इसे ही रख लो
अपने ध्यान और योग का काम
इसमें ही दर्ज कर लो
लोगों के बहुत काम आयेगा
आपको कुछ देने की मेरी
इच्छा भी पूर्ण होगी
आपका परोपकार का भी
लक्ष्य पूरा हो जायेगा
मेरा विचार सत्य है
इसमें नहीं मेरी कोई माया’

साधू ने इनकार करते हुए कहा
‘मैं तुझे जानता हूँ
कल तू इन्टरनेट कनेक्शन ले आयेगा
और छद्म नाम की किसी सुन्दरी से
चैट करने को उकसायेगा
मैं जानता हूँ तेरी माया’

शैतान एकदम उनके पाँव में गिर गया और बोला
‘महाराज, वाकई आप ज्ञानी और
ध्यानी हो
मैं यही करने वाला था
सबसे बड़ा इन्टरनेट तो आपके पास है
मैं इसलिये आपको कभी नहीं जीत पाया’
साधू उसकी बात सुनकर केवल मुस्कराया

डॉलर से इश्क-हिन्दी व्यंग्य कविता (love and dollar-hindi comic poem)


सच्चा प्यार जो दिल से मिले
अब कहां मिलता है,
अब तो वह डालरों में बिकता है।
आशिक हो मालामाल
माशुका हो खूबसूरत तो
दिल से दिल जरूर मिलता है।
———-
आज के शायर गा रहे हैं
इश्क पर लिखे पुराने शायरों के कलाम,
लिखने के जिनके बाद
गुज़र गयी सदियां
पता नहीं कितनी बीती सुबह और शाम।
बताते हैं वह कि
इश्क नहीं देखता देस और परदेस
बना देता है आदमी को दीवाना,
देना नहीं उसे कोई ताना,
तरस आता है उनके बयानों पर,
ढूंढते हैं अमन जाकर मयखानों पर,
जिस इश्क की गालिब सुना गये
वह दिल से नहीं होता,
डालरों से करे आशिक जो
माशुका को सराबोर
उसी से प्यार होता,
क्यों पाक रिश्ते ढूंढ रह हो
आजकल के इश्क में
होता है जो रोज यहां नीलाम।
———-

कवि, लेखक और संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
http://anantraj.blogspot.com
—————–
यह आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप का चिंतन’पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.अनंत शब्दयोग
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका
4.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान पत्रिका

उग्र हो जाता है चूहा हो या इंसान, जब माया हो मेहरबान-व्यंग्य आलेख


सुनने में आया है कि मंदी की वजह से आतंकवादी भी पस्त हो रहे हैं। एक टीवी चैनल के अनुसार पाकिस्तान अपनी कमजोर आर्थिक स्थिति वैसे जब मंदी का दौर प्रारंभिक स्थिति में था तब कुछ विश्लेषकों ने यह संभावना व्यक्त की थी कि अनेक आतंकवादी गिरोह भी इसकी लपेट में आयेंगे। यह संदेह गलत नहीं था और न है। कहने को धर्म,जाति,भाषा और क्षेत्र के नाम पर समाज में वैमनस्य फैलाने वाले बहुत सारे संगठन पूरे विश्व में सक्रिय हैं पर उसके सदस्य केवल पैसा कमाने के लिये ही उनसे जुड़ते हैं-कथित सिद्धांतों और आदर्शों से उनका संबंध तो दिखावे का होता है।

प्राचीन भारतीय कथा है कि एक संत एक गृहस्थ के घर गये। वहां उन्होंने भोजन किया और फिर कुछ देर उसके साथ बैठकर बातचीत में लगे रहे। उन्होंने देखा कि गृहस्थ अपने हाथ में एक डंडा पकड़े बैठा है और एक चूहा उसके पास आता है तो उससे उसको भगाता है। संत ने पूछा-क्या बात है कि इस डंडे को पकड़े क्यों बैठे हो? कोई चूहा तुम पर हमला थोड़े ही कर सकता है।’

गृहस्थ ने कहा-महाराज, यह चूहा बहुत दमदार है। मेरे ऊपर जो आला है यह वहां तक एक बार उछल कर ही पहुंच जाता है। ऊपर मिट्टी के बर्तन को नीचे गिरा देता है। कई बर्तन तोड़ चुका है। अब यहीं बैठकर उसे रोकने का काम कर रहा हूं।
संत ने कहा-‘उस बर्तन में क्या है?’
गृहस्थ ने कहा-‘उसमें चांदी के सिक्के हैं जो मैं अपने खर्च से बचा कर रखता हूं ताकि कहीं आपदा में काम आयें।’
संत ने कहा-‘उस बर्तन को नीचे उतारो।’

गृहस्थ ने वैसा ही किया। संत ने उन चांदी के सिक्को को लिया और घर के कोने में स्वयं ही एक गड्ढा खोदा और चांदी के सिक्के कपड़े में बांधकर उसके अंदर रखकर उस पर एक पत्थर रख दिया। गृहस्थ से कहा- इस गड्ढे का उपयोग तुम अपनी बचत रखने के लिये किया करो। यह बात किसी को बताना नहीं। मेरे जाने के बाद अंदर से गड्ढे को पक्का कर देना। यह चूहा यहां कभी नहीं पहुंच पायेगा। अब यह बर्तन फिर तुम उस आले में रख दो और मेरे साथ थोड़ा दूर बैठकर इसका तमाशा देखो।

वह दोनों थोड़ी दूर बैठ गये। खाली मैदान देखकर चूहा आया और उस आले तक उछल कर पहुंचने का प्रयास करने लगा। वहां ऊंचाई तक पहुंचने की बात तो दूर वह जमीने से थोड़ा ऊपर भी नहीं उठ पाता था। थकहारकर मैदान छोड़ गया। गृहस्थ को आश्चर्य हुआ। उसने उस संत से कहा-‘महाराज यह तो चमत्कार हो गया। यह चूहा एक ही झटके में वहां पहुंच जाता था पर आपके प्रभाव से अब जमीन से भी नहीं उठ पा रहा।’

संत ने कहा-‘यह कोई चमत्कार नहीं है। यह मेरे प्रभाव के कारण नहीं हारा। सच बात तो यह है कि यह माया का प्रभाव ही था जो चूहे को इतनी ताकत मिल रही थी जो इतनी ऊंचे एक ही झटके में पहुंच जाता था। अब खाली मिट्टी के बर्तन में इतनी ताकत नहीं है कि वह उसे अपनी तरफ खींच सके।’
यह कथा शायद प्रस्तुतीकरण में एकदम वैसी न हो जैसी सुनायी जाती है। कहीं अलग अलग तरह से प्रसंग होते हैं। संभव है यह कथा कल्पित भी हो पर इस सत्य के इंकार नहीं किया जा सकता है कि खेलती माया ही है यह अलग बात है कि इंसान अपनी ताकत का ढोंग करता है।

किसी एक संगठन की बात हम यहां नहीं कर रहे। दूनियां भर में अनेक ऐसे संगठन हैं जो धर्म,जाति,भाषा,वर्ण,रंग, और क्षेत्र के आधार पर हिंसक अभियान चलाते हैं। दावा यह करते हैं कि वह अपने समूहों का कल्याण कर रहे हैं। वह पढ़े लिखे हों या नहीं पर उनका समर्थन करने वाले ढेर सारे बुद्धिजीवी भी मिल जाते हैं। कोई उनको भटके हुए लोग कहता है तो कोई योद्धा बताता है। पुराने समय में सभ्यताओं और समूहों का टकराव हुआ है पर उसका कारण जड़,जमीन और नारी के कारण ही होती थी। आज भी कुछ नया नहीं है पर सभ्रांत बुद्धिजीवी वर्तमान मेें सक्रिय आतंकवादियों के समूहों में जाति,भाषा,और धर्म के तत्व ढूंढते हुए नजर आते हैं। अगर एक बात कहें कि आजकल सभ्य समाज है तो यह भी मानना पड़ेगा कि यह भ्रमित समाज है। पुराने विचारों को उठाकर फैंकने की बात करते हैंं पर कौनसी बात सत्य है झूठ इस पर विचार करने की शक्ति लोगों में नहीं है। आजकल भौतिकतावाद का बोलबाला है। सभी लोग धन के पीछे भाग रहे हैं। यहां तक कि अपनी बौद्धिकता की शक्ति पर कमाने वाले बुद्धिजीवी भी भागते हुए विचार करते हैं ऐसे में चिंतन करे कौन? इस लेखक ने ऐसे आलेख लिखे हैं जिसमें हमेशा ही इस बात की चर्चा की है कि आतंकवाद एक तरह से व्यवसाय बन गया है। कुछ लोग ऐसे जरूरी होंगे जिनका आर्थिक फायदा होता है और इसलिये वह इसके प्रायोजन में सहायता करते हैं-वह हफ्ता वसूली भी हो सकती है और सुरक्षाकर भी। अखबारों में ऐसी खबरें कोने में छपी मिलती हैं जिसमें आतंकवादी क्षेत्रों में तस्करी और अन्य अपराधिक गतिविधियों की बढ़ोतरी की चर्चा होती है। यह भी कहा जाता है कि प्रशासन और सरकार का ध्यान बंटाने के लिये ही इस तरह का आतंकवाद चलाया जाता है।

अगर हम मोटे तौर से देखें तो जैसे जैसे विश्व में आर्थिक और तकनीकी विकास हुआ वैसे ही आतंकवाद भी बढ़ा है। बाजार तेज होता गया तो आतंकवाद भी बढ़ता गया। अब मंदी का दौर चला रहा है। ऐसी बातें भी अखबारों में चर्चा में आती रही हैं कि आतंकवादियों ने मुद्राबाजार में अपना विनिवेश किया। बैंको में अपना पैसा जमा किया। अब जब मंदी आयी है तो उनकी हालत भी पतली हो रही है। वैसे अभी यह मानना गलत होगा कि आतंकवाद पूरी तरह से समाप्त हो जायेगा पर जिस तरह आतंकवादियों और अपराधियों के समूहों के मुखिया कटु और उग्र भाषा का प्रयोग करते हैं उससे तो यही लगता है कि केवल उनकी आर्थिकी शक्ति-दूसरे शब्दों में कहें मायावी शक्ति- बुलवा रही है। यह सही है कि आदमी कोई चूहा नहीं है पर एक बात याद रखना इस सृष्टि में सभी की देह पंचतत्वों से बनी है और अहंकार,मन और बुद्धि अपने स्वभाव के अनुसार सभी में हैं चाहे वह आदमी हो या चूहा। अंतर केवल इतना है कि माया के प्रभाव में चूहा उछल कूद करता है और आदमी अपनी वाणी से भी यही काम करता है।
………………………
यह आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की सिंधु केसरी-पत्रिका ’ पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिकालेखक संपादक-दीपक भारतदीप

बुद्धिजीवी समझाते है,पर समाज समझता नहीं-व्यंग्य आलेख


बहुत दिन से हमारे दिमाग में यह बात नहीं आ रही कि आखिर कौन किसको क्या और क्यों समझा रहा है? कब समझा रहा है यह तो समझ में आ रहा है क्योंकि चाहे जब कोई किसी को समझाने लगता है? मगर माजरा हमारी समझ में नहीं आ रहा है। कहीं छपा हुआ पढ़ते हैं या कोई दिखा रहा है तो उसे पढ़ते हैं, मगर समझ में कुछ नहीं आ रहा है।

देश में अनेक जगह पर बम फटे उसमें अनेक लोग हताहत हुए और कई परिवारों पर संकट टूट पड़ा। सब जगह तफशीश चल रही है पर इधर बुद्धिजीवियों ने देश में बहस शुरू कर दी है। अमुक धर्म देश तोड़ता है और अमुक तो प्रेम का संदेश देता है। जाति, भाषा और धर्म के लोग बहस किये जा रहे हैं। किसी से पूछो कि भई क्या बात है? आखिर यह बहस चल किस रही है।’

जवाब मिलता है कि ‘क्या करें विषयों की कमी है।’

जवाब सुनकर हैरानी होती है। फिर सोचते हैं कि ‘जिनको वाद और नारों पर चलने की आदत हो गयी है कि उनके लिये यह कठिनाई तो है कि जो विषय अखबार और टीवी पर दिखता हो उसके अलावा वह लिखें किस बात पर? फिर आजकल लो आलेख और व्यंग्य तात्कालिक मुद्दों पर लिखने के सभी अभ्यस्त हैं। वाद और नारों जमीन पर खड़े लेखक लोग समाज की थोड़ी हलचल पर ही अपनी प्रतिक्रिया देना प्रारंभ कर देते हैं। आदमी का नाम पूछा और शुरू हो गये धर्म, जाति और भाषा के नाम पर एकता का नारा लेकर। अगर अपराधी है तो उसकी जाति,भाषा और धर्म की सफाई की बात करते हुए एकता की बात करते हैं। हमारे एक सवाल का जवाब कोई नहीं देता कि क्या ‘आतंकी हिंसा अपराध शास्त्र से बाहर का विषय है?’

अगर आजकल के बुद्धिजीवियों की बातें पढ़ें और सुने तो लगता है कि यह अपराध शास्त्र से बाहर है क्योंकि इसमें हर कोई ऐसा व्यक्ति अपना दखल देकर विचार व्यक्त करता है जैसे कि वह स्वयं ही विशेषज्ञ हो। व्यवसायिक अपराध विशेषज्ञों की तो कोई बात ही नहीं सुनता। अपराध के तीन कारण होते हैं-जड़ (धन),जोरु (स्त्री) और जमीन। मगर भाई लोग इसके साथ जबरन धर्म, जाति और भाषा का विवाद जोड़ने में लगे हैं। यानि उनके लिये यह अपराध शास्त्र से बाहर का विषय है।

हम तो ठहरे लकीर के फकीर! जो पढ़ा है उस पर ही सोचते हैं। कभी सोचते हैं कि अपराध शास्त्र के लोग अपने पाठ्यक्रम का विस्तार करें तो ही ठीक रहेगा। अब इन तीनों चीजों के अलावा तीन और चीजें भी अपराध के लिये उत्तरदायी माने-धर्म,जाति और भाषा।’

यहां यह स्पष्ट कर दें कि हमने अपराध शास्त्र नहीं पढ़ा उनका एक नियम हमने रट रखा है कि अपराध केवल जड़,जोरु और जमीन के कारण ही होता है। अगर अपराध शास्त्री उसमें तीन से छह कारण जोड़ लें तो हम भी अपनी स्मृतियों में बदलाव करेंगे। अपने दिमागी कंप्यूटर में तीन से छह कारण अपराध के फीड कर देंगे। बाकी जो अन्य विद्वान है उनसे तो हम इसलिये सहमत नहीं हो सकते क्योंकि हम भी अपने को कम विद्वान नहीं समझते। एक विद्वान दूसरे विद्वान से सहमत नहीं होता यह भी हमने कहीं पढ़ा तब से चाहते हुए भी असहमति व्यक्त कर देते हैं ताकि मर्यादा बनी रहे। हां, कोई अपराध शास्त्री कहेगा तो उसे मान जायेंगे। इतना तो हम भी जानते हैं कि अपने से अधिक सयानों की बात मान लेनी चाहिये।

सभी आतंकी हिंसा की घटनाओं की चर्चा करते हैंं। हताहतों के परिवारों पर जो संकट आया उसका जिक्र करने की बजाय लोग उन मामलों में संदिग्ध लोगों पर चर्चा कर रहे हैं। उनके धर्म और जाति पर बहस छेड़े हुए हैं। अब समझाने वालों के जरा हाल देखिये।

एक तरफ कहते हैं कि दहशत की वारदात को किसी धर्म,जाति या भाषा से मत जोडि़ये। दूसरी तरफ जब वह उस पर चर्चा करते हैं तो फिर अपराधियों की जाति, भाषा और धर्म को लेकर बहस करते हैं। वह धर्म ऐसा नहीं है, वह जाति तो बहुत सौम्य है और भाषा तो सबकी महान होती है। अब समझ में नहीं आता कि वह कि हिंसक घटना से धर्म, जाति और भाषा से अलग कर रहे हैं या जोड़ रहे हैं। यह हास्याप्रद स्थिति देखकर कोई भी हैरान हो सकता है।

फिर कहते हैं कि संविधान और कानून का सम्मान होना चाहिये। मगर बहसों में संदिग्ध लोगों की तरफ से सफाई देने लगते हैं। एक तरफ कहते हैं कि अदालतों में यकीन है पर दूसरी तरफ बहस करते हुए किसी के दोषी या निर्दोष होने का प्रमाण पत्र चिपकाने लगते हैं। इतना ही नहीं समुदायों का नाम लेकर उनके युवकों से सही राह पर चलने का आग्रह करने लगते हैं। हम जैसे लोग जो इन वारदातों को वैसा अपराध मानते हैं जैसे अन्य और किसी समुदाय से जोड़ने की सोच भी नहींं सकते उनका ध्यान भी ऐसे लोगों की वजह से चला जाता है।

इस उहापोह में यही सोचते हैं कि आखिर लिखें तो किस विषय पर लिखें। अपराध पर या अपराधी के समुदाय पर। अपराध की सजा तो अदालत ही दे सकती है पर अपराधी की वजह से जाति,धर्म, और भाषा के नाम पर बने भ्रामक समूहों की चर्चा करना हमें पसंद नहीं है। ऐसे में सोचते हैं कि नहीं लिखें तो बहुत अच्छा। जिन लोगों ने इन वारदातों में अपनी जान गंवाई है उनके तो बस जमीन पर बिखरे खून का फोटो दिखाकर उनकी भूमिका की इतिश्री हो जाती है और उनके त्रस्त परिवार की एक दो दिन चर्चा रहती है पर फिर शुरू हो जाता है अपराधियों के नाम का प्रचार। हादसे से पीडि़त परिवारों की पीड़ा को इस तरह अनदेखा कर देने वाले बुद्धिजीवियों को देखकर उनके संवेदनशील होने पर संदेह होता है।

फिर शुरू होता है समझने और समझाने का अभियान। इस समय सभी जगह यह समझने और समझाने का अभियान चल रहा है। हम बार बार इधर उधर दृष्टिपात करते हैं पर आज तक यह समझ में नहीं आया कि कौन किसको क्या और क्यों समझा रहा है? समझाने वाला तो कहीं लिखता तो कहीं बोलता दिखता है पर वह समझा किसको रहा है यह दिखाई नहीं देता।
——————————-

यह आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप का चिंतन-पत्रिका…’ पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिकालेखक संपादक-दीपक भारतदीप

फरिश्ते से पहले शैतान बनाना जरूरी-हास्य व्यंग्य


शैतान कभी इस जहां में मर ही नहीं सकता। वजह! उसके मरने से फरिश्तों की कदर कम हो जायेगी। इसलिये जिसे अपने के फरिश्ता साबित करना होता है वह अपने लिये पहले एक शैतान जुटाता है। अगर कोई कालोनी का फरिश्ता बनना चाहता है तो पहले वह दूसरी कालोनी की जांच करेगा। वहां किसी व्यक्ति का-जिससे लोग डरते हैं- उसका भय अपनी कालोनी में पैदा करेगा। साथ ही बतायेगा कि वह उस पर नियंत्रण रख सकता है। शहर का फरिश्ता बनने वाला दूसरे शहर का और प्रदेश का है तो दूसरे प्रदेश का शैतान अपने लिये चुनता है। यह मजाक नहीं है। आप और हम सब यही करते हैं।

घर में किसी चीज की कमी है और अपने पास उसके लिये लाने का कोई उपाय नहीं है तो परिवार के सदस्यों को समझाने के लिये यह भी एक रास्ता है कि किसी ऐसे शैतान को खड़ा कर दो जिससे वह डर जायें। सबसे बड़ा शैतान हो सकता है वह जो हमारा रोजगार छीन सकता है। परिवार के लोग अधिक कमाने का दबाव डालें तो उनको बताओं कि उधर एक एसा आदमी है जिससे मूंह फेरा तो वह वर्तमान रोजगार भी तबाह कर देगा। नौकरी कर रहे हो तो बास का और निजी व्यवसाय कर रहे हों तो पड़ौसी व्यवसायी का भय पैदा करो। उनको समझाओं कि ‘अगर अधिक कमाने के चक्कर में पड़े तो इधर उधर दौड़ना पड़ा तो इस रोजी से भी जायेंगे। यह काल्पनिक शैतान हमको बचाता है।
नौकरी करने वालों के लिये तो आजकल वैसे भी बहुत तनाव हैं। एक तो लोग अब अपने काम के लिये झगड़ने लगे हैं दूसरी तरफ मीडिया स्टिंग आपरेशन करता है ऐसे में उपरी कमाई सोच समझ कर करनी पड़ती है। फिर सभी जगह उपरी कमाई नहीं होती। ऐसे में परिवार के लोग कहते हैं‘देखो वह भी नौकरी कर रहा है और तुम भी! उसके पास घर में सारा सामान है। तुम हो कि पूरा घर ही फटीचर घूम रहा है।
ऐसे में जबरदस्ती ईमानदारी का जीवन गुजार रहे नौकरपेशा आदमी को अपनी सफाई में यह बताना पड़ता है कि उससे कोई शैतान नाराज चल रहा है जो उसको ईमानदारी वाली जगह पर काम करना पड़ रहा है। जब कोई फरिश्ता आयेगा तब हो सकता है कि कमाई वाली जगह पर उसकी पोस्टिंग हो जायेगी।’
खिलाड़ी हारते हैं तो कभी मैदान को तो कभी मौसम को शैतान बताते हैं। किसी की फिल्म पिटती है तो वह दर्शकों की कम बुद्धि को शैताना मानता है जिसकी वजह से फिल्म उनको समझ में नहीं आयी। टीवी वालों को तो आजकल हर दिन किसी शैतान की जरूरत पड़ती है। पहले बाप को बेटी का कत्ल करने वाला शैतान बताते हैं। महीने भर बाद वह जब निर्दोष बाहर आता है तब उसे फरिश्ता बताते हैं। यानि अगर उसे पहले शैतान नहीं बनाते तो फिर दिखाने के लिये फरिश्ता आता कहां से? जादू, तंत्र और मंत्र वाले तो शैतान का रूप दिखाकर ही अपना धंध चलाते हैं। ‘अरे, अमुक व्यक्ति बीमारी में मर गया उस पर किसी शैतान का साया पड़ा था। किसी ने उस पर जादू कर दिया था।’‘उसका कोई काम नहीं बनता उस पर किसी ने जादू कर दिया है!’यही हाल सभी का है। अगर आपको कहीं अपने समूह में इमेज बनानी है तो किसी दूसरे समूह का भय पैदा कर दो और ऐसी हालत पैदा कर दो कि आपकी अनुपस्थिति बहुत खले और लोग भयभीत हो कि दूसरा समूह पूरा का पूरा या उसके लोग उन पर हमला न कर दें।’
अगर कहीं पेड़ लगाने के लिये चार लोग एकत्रित करना चाहो तो नहीं आयेंगे पर उनको सूचना दो कि अमुक संकट है और अगर नहीं मिले भविष्य में विकट हो जायेगता तो चार क्या चालीस चले आयेंगे। अपनी नाकामी और नकारापन छिपाने के लिये शैतान एक चादर का काम करता है। आप भले ही किसी व्यक्ति को प्यार करते हैं। उसके साथ उठते बैैठते हैं। पेैसे का लेनदेन करते हैं पर अगर वह आपके परिवार में आता जाता नहीं है मगर समय आने पर आप उसे अपने परिवार में शैतान बना सकते हैं कि उसने मेरा काम बिगाड़ दिया। इतिहास उठाकर देख लीजिये जितने भी पूज्यनीय लोग हुए हैं सबके सामने कोई शैतान था। अगर वह शैतान नहीं होता तो क्या वह पूज्यनीय बनते। वैसे इतिहास में सब सच है इस पर यकीन नहीं होता क्योंकि आज के आधुनिक युग में जब सब कुछ पास ही दिखता है तब भी लिखने वाले कुछ का कुछ लिख जाते हैं और उनकी समझ पर तरस आता है तब लगता है कि पहले भी लिखने वाले तो ऐसे ही रहे होंगे।
एक कवि लगातार फ्लाप हो रहा था। जब वह कविता करता तो कोई ताली नहीं बजाता। कई बार तो उसे कवि सम्मेलनों में बुलाया तक नहीं जाता। तब उसने चार चेले तैयार किये और एक कवि सम्मेलन में अपने काव्य पाठ के दौरान उसने अपने ऊपर ही सड़े अंडे और टमाटर फिंकवा दिये। बाद में उसने यह खबर अखबार में छपवाई जिसमें उसके द्वारा शरीर में खून का आखिरी कतरा होने तक कविता लिखने की शपथ भी शामिल थी । हो गया वह हिट। उसके वही चेले चपाटे भी उससे पुरस्कृत होते रहे।
जिन लड़कों को जुआ आदि खेलने की आदत होती है वह इस मामले में बहुत उस्ताद होते हैं। पैसे घर से चोरी कर सट्टा और जुआ में बरबाद करते हैं पर जब उसका अवसर नहीं मिलता या घर वाले चैकस हो जाते हैं तब वह घर पर आकर वह बताते हैं कि अमुक आदमी से कर्ज लिया है अगर नहीं चुकाया तो वह मार डालेंगे। उससे भी काम न बने तो चार मित्र ही कर्जदार बनाकर घर बुलवा लेंगे जो जान से मारने की धमकी दे जायेंगे। ऐसे में मां तो एक लाचार औरत होती है जो अपने लाल को पैसे निकाल कर देती है। जुआरी लोग तो एक तरह से हमेशा ही भले बने रहते हैं। उनका व्यवहार भी इतना अच्छा होता है कि लोग कहते हैं‘आदमी ठीक है एक तरह से फरिश्ता है, बस जुआ की आदत है।’
जुआरी हमेशा अपने लिये पैसे जुटाने के लिये शैतान का इंतजाम किये रहते हैं पर दिखाई देते हैं। उनका शैतान भी दिखाई देता है पर वह होता नहीं उनके अपने ही फरिश्ते मित्र होते हैं। आशय यह है कि शैतान अस्तित्व में होता नहीं है पर दिखाना पड़ता है। अगर आपको परिवार, समाज या अपने समूह में शासन करना है तो हमेशा कोई शैतान उसके सामने खड़ा करो। यह समस्या के रूप में भी हो सकता है और व्यक्ति के रूप में भी। समस्या न हो तो खड़ी करो और उसे ही शैतान जैसा ताकतवर बना दो। शैतान तो बिना देह का जीव है कहीं भी प्रकट कर लो। किसी भी भेष में शैतान हो वह आपके काम का है पर याद रखो कोई और खड़ा करे तो उसकी बातों में न आओ। यकीन करो इस दुनियां में शैतान है ही नहीं बल्कि वह आदमी के अंदर ही है जिसे शातिर लोग समय के हिसाब से बनाते और बिगाड़ते रहते हैं।
एक आदमी ने अपने सोफे के किनारे ही चाय का कप पीकर रखा और वह उसके हाथ से गिर गया। वह उठ कर दूसरी जगह बैठ गया पत्नी आयी तो उसने पूछा-‘यह कप कैसे टूटा?’
उसी समय उस आदमी को एक चूहा दिखाई दिया। उसने उसकी तरफ इशारा करते हुए कहा-‘उसने तोड़ा!
’पत्नी ने कहा-‘आजकल चूहे भी बहुत परेशान करने लगे हैं। देखो कितना ताकतवर है उसकी टक्कर उसे कम गिर गया। चूहा है कि उसके रूप में शेतान?
वह चूहा बहुत मोटा था इसलिये उसकी पत्नी को लगा कि हो सकता है कि उसने गिराया हो और आदमी अपने मन में सर्वशक्तिमान का शुक्रिया अदा कर रहा कि उसने समय पर एक शैतान-भले ही चूहे के रूप में-भेज दिया।’
याद रखो कोई दूसरा व्यक्ति भी आपको शैतान बना सकता है। इसलिये सतर्क रहो। किसी प्रकार के वाद-विवाद में मत पड़ो। कम से कम ऐसी हरकत मत करो जिससे दूसरा आपको शैतान साबित करे। वैसे जीवन में दृढ़निश्चयी और स्पष्टवादी लोगों को कोई शैतान नहीं गढ़ना चाहिए, पर कोई अवसर दे तो उसे छोड़ना भी नहीं चाहिए।
जैसे कोई आपको अनावश्यक रूप से अपमानित करे या काम बिगाड़े और आपको व्यापक जनसमर्थन मिल रहा हो तो उस आदमी के विरुद्ध अभियान छेड़ दो ताकि लोगों की दृष्टि में आपकी फरिश्ते की छबि बन जाये। सर्वतशक्तिमान की कृपा से फरिश्ते तो यहां कई मनुष्य बन ही जाते हैं पर शैतान इंसान का ही ईजाद किया हुआ है इसलिये वह बहुत चमकदार या भयावह हो सकता है पर ताकतवर नहीं। जो लोग नकारा, मतलबी और धोखेबाज हैं वही शैतान को खड़ा करते हैं क्योंकि अच्छे काम कर लोगों के दिल जीतने की उनकी औकात नहीं होती।
———————————-

यह मूल पाठ इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की शब्द- पत्रिका’ पर लिखा गया। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की ई-पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.दीपक भारतदीप का शब्दज्ञान-पत्रिका