दिल का उजाला ढूंढते रात के पहर में- हिन्दी शायरी


जन्म लिया हिन्दी में
पढ़े लिखे अंग्रेजी में
आजाद रहे नाम के
गुलामी सिखाती रही आधुनिक शिक्षा।
अब कटोरा लेकर नहीं
बल्कि शर्ट पर कलम टांग कर
मांग रहे पढ़े लिखे लोग नौकरी की भिक्षा।
——–
आंखों से देख रहे पर्दे पर दृश्य
कानों से सुन रहे शोर वाला संगीत
नशीले रसायनों की सुगंध से कर रही
सभी की नासिका प्रीत,
मुंह खुला रह गया है जमाने का
देखकर रौशनी पत्थरों के शहर में।
अक्ल काम नहीं करती,
हर नयी शय पर बेभाव मरती,
बाजार के सौदागरों के जाल को
जमीन पर उगे धोखे के माल को
सर्वशक्तिमान का बनाया समझ रहे हैं
हांके जा रहे हैं भीड़ में भेड़ की तरह
दिन में सूरज की रौशनी में छिपे रहते
दिल का उजाला ढूंढते रात के पहर में।

कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
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टिप्पणियाँ

  • rahul kumar  On मार्च 2, 2011 at 2:35 अपराह्न

    महंगाई में दिवाली भी मना ली
    होली भी मनाएंगे,
    लूट जिनका पेशा हैं
    उनके कारनामों पर कितना रोयेंगे,
    कब तक अपनी खुशियाँ खोएंगे,
    जब आयेगा हंसने का मौक़ा
    खुद भी हंसेगे दूसरों को भी हंसाएंगे.

    देश से लेकर विदेश तक
    हैरान हैं लुटेरे और उनके दलाल,
    क्यों नहीं हुआ देश बर्बाद
    इसका है उनको मलाल,
    वैलेन्टाईन डे और फ्रेंड्स डे के
    नाम पर मिटाने की कोशिश
    होती रही है देश की परंपराएं,
    हो गए कुछ लोग अमीर,
    गरीब हो गया उनका ज़मीर,
    मगर जो गरीब रह गए हैं,
    लुटते रहते हैं रोज
    पर मेहनत के दम पर वह सब सह गए हैं,
    ज़िन्दगी के रोज़मर्रा जंग में
    लड़ते हुए भी
    होली और दिवाली पर
    खुशियाँ मनाएँ,
    रौशन इंडिया में
    अँधेरे में खड़े भारत को जगमगाएं..
    ————————-

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