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सपने वह शय हैं-हिंदी कविता


सपने वह शय हैं

दिखाना जानो तो

लोग भूखे पेट भी सो जाते हैं,

फटेहाल हों जो लोग

सुंदर फोटो की तस्वीर दिखाओ

वह भी खुश हो जाते हैं।

कहें दीपक बापू

जिन्होंने लिया ज़माने को सुधारने का जिम्मा

उनके कारनामों पर

उंगली उठाना बेकार है

क्यों करें  वह अपने वादों को पूरा

लोग रोज नये लगाने वाले नारों पर

उनके पीछे दौड़ जाते है।

————– 

लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप

ग्वालियर मध्य प्रदेश
Writer and poet-Deepak Raj Kukreja “Bharatdeep”
Gwalior Madhyapradesh
वि, लेखक एवं संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
poet,writer and editor-Deepak Bharatdeep, Gwaliro
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असली आनंद तो हृदय के अन्दर अनुभव किया जा सकता है-हिंदी चिंत्तन


                           हम जीवन में अधिक से अधिक आनंद प्राप्त करना चाहते है। हम चाहते हैं कि हमारा मन हमेशा ही आनंद के रस में सराबोर रहे।  हम जीवन में हर रस का पूरा स्वाद चखना चाहते हैं पर हमेशा यह मलाल रहता है कि वह नहीं मिल पा रहा है।  इसका मुख्य कारण यह है कि हम यह जानते नहीं है कि आनंद क्या है? हम आनंद को बाह्य रूप से प्रकट देखना चाहते हैं जबकि वह इंद्रियों से अनुभव की जाने वाली किया है।  आनंद हाथ में पकड़े जाने वाली चीज नहीं है पर किसी चीज को हाथ में पकड़ने से आनंद की अनुभूति की जा सकती है।  आनंद बाहर दिखने वाला कोई दृश्यरूप नहीं है पर किसी दृश्य को देखकर अनुभव किया जा सकता है।  यह अनुभूति अपने मन में लिप्तता का   भाव त्यागकर की जा सकती है।  जब हम किसी वस्तु, विषय या व्यक्ति में मन का भाव लिप्त करते हैं तो वह पीड़ादायक होता है।  इसलिये निर्लिप्त भाव रखना चाहिए।
               कहने का अभिप्राय यह है कि आंनद अनुभव की जाने वाली क्रिया है। जब तक हम यह नहीं समझेंगे तब तक जीवन भर इस संसार के विषयों के  पीछे भागते रहेंगे पर हृदय आनंद  कभी नहीं मिलेगा।  संसार के पदार्थ भोगने के लिये हैं पर उनमें हृदय लगाना अंततः आंनदरहित तो कभी भारी कष्टकारक  होता है। हमें ठंडा पानी पीने के लिये,फ्रिज, हवा के लिये कूलर या वातानुकूलन यंत्र, कहीं अन्यत्र जाने के लिये वाहन और मनोरंजन के लिये दूसरे मनुष्य के द्वंद्व दृश्यों की आवश्यकता पड़ती है। यह उपभोग है।  उपभोग कभी आनंद नहीं दे सकता।  क्षणिक सुविधा आनंद की पर्याय नहीं बन सकती।  उल्टे भौतिक सुख साधनों के खराब या नष्ट होने पर तकलीफ पहुंचती है।  इतना ही नहीं जब तक वह ठीक हैं तब तक उनके खराब होने का भय भी होता है।  जहां भय है वहां आनंद कहां मिल सकता है।
जहां जहां दिल लगाया

वहां से ही तकलीफों का पैगाम आया,

जिनसे मिलने पर रोज खुश हुए

उन दोस्तों के बिछड़ने का दर्द भी आया।

कहें दीपक बापू

अपने दिल को हम

रंगते हैं अब अपने ही रंग से

इस रंग बदलती दुनियां में

जिस रंग को चाहा

अगले पल ही उसे बदलता पाया।

जब से नज़रे जमाई हैं

अपनी ही अदाओं पर

कोई दूसरा हमारे दिल को बहला नहीं पाया।

            हमें कोई  बाहरी वस्तु आनंद नहीं दे सकती।  परमात्मा ने हमें यह देह इस संसार में चमत्कार देखने के लिये नहीं वरन् पैदा करने के लिये दी है। कहा जाता है ‘‘अपनी घोल तो नशा होय’।  हमें अपने हाथों से काम करने पर ही आनंद मिल सकता है। वह भी तब जब परमार्थ करने के लिये तत्पर हों। अपने हाथ से अपने मुंह में रोटी डालने में कोई आनंद नहीं मिलता है। जब हम अपने हाथ से दूसरे को खाना खिलायें और उसके चेहरे पर जो संतोष के भाव आयें तब जो अनुभूति हो वही  आनंद है! आदमी छोटा हो या बड़ा परेशानी आने पर कहता है कि यह संसार दुःखमय है।  यह इस संसार में प्रतिदिन स्वार्थ पूर्ति के लिये होने वाले युद्धों में परास्त योद्धाओं का कथन भर होता है। जब आदमी का मन संसार के पदार्थों से हटकर कहीं दूसरी जगह जाना चाहता है तब उसे एक खालीपन की अनुभूति होती है।  जिनके पास संसार के सारे पदार्थ नहीं है वह संघर्ष करते हुए फिर भी थोड़ा बहुत आनंद उठा लेते हैं पर जिनके पास सब है वह थके लगते हैं।  किसी वस्तु का न होना दुख लगता है पर होने पर सुख कहां मिलता है? एक वस्तु मिल गयी तो फिर दूसरी वस्तु को पाने का मन में  मोह पैदा होता है।
              एकांत में आनंद नहीं मिलता तो भीड़ का शोर भी बोर कर देता हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि आंनद मिले कैसे?
               इसके लिये यह  हमें अध्यात्म का ज्ञान प्राप्त करना चाहिए।  एकांत में ध्यान करते हुए अपने शरीर के अंगों  और मन पर दृष्टिपात करना चाहिए।  धीरे धीरे शून्य में जाकर मस्तिष्क को स्थिर करने पर पता चलता है कि हम वाकई आनंद में है।  इसी शून्य की स्थिति आंनद का चरम प्रदान करती है। आनंद भोग में नहीं त्याग में है। जब हम अपना मन और मस्तिष्क शून्य में ले जाते हैं तो सांसरिक विषयों में प्रति भाव का त्याग हो जाता हैं यही त्याग आनंद दे सकता है।
लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak raj kukreja “Bharatdeep”
Gwalior Madhyapradesh
लेखक और संपादक-दीपक “भारतदीप”,ग्वालियर

poet, writer and editor-Deepak ‘BharatDeep’,Gwalior

कब तक आतंक में जीवन बितायेंगे-हिन्दी शायरी (aatank ke saye men jivan-hindi shayri)


हाथ जलने के डर से
दियासलाई नहीं जलायेंगे
तो फिर रौशनी भी नहीं पायेंगे।
चूहों की तरह अंधेरे में छिपने की
आदत हो गयी तो
हर जगह बिल्लियों के आंतक तले
अपना जीवन बितायेंगे।
कभी न कभी तो लड़ना होगा,
चूहे का वेश छोड़ इंसान बनना होगा
आग जलने दो अनाचार के खिलाफ
वह ताकतवार होंगे तो हम मर जायेंगे,
अगर कमजोर हुए तो छोड़ देंगे सांस
फैसला होना चाहिये
जीते तो अमर हो जायेंगे।

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कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com

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तस्वीर और प्रचार -हिन्दी व्यंग्य कविता


रास्ते पर खींचता हुआ
सरियों से लदा ठेला,
पसीने से अंग अंग जिसका नहा रहा है,
कई जगह फटे हुए कपड़ों से
झांक रहा है उसका काला पड़ चुका बदन,
मगर उस मजदूर की तस्वीर
बाज़ार में बिकती नहीं है,
इसलिये प्रचार में दिखती नहीं है।

सफेद चमचमाता हुआ वस्त्र पहने,
वातानुकूलित वाहनों में चलते हुए,
गर्म हो या शीतल हवा भी
जिसका स्पर्श नहीं कर सकती,
काले शीशे की पीछे छिपा जिसका चेहरा
कोई आसानी से देख नहीं सकता
वही टीवी के पर्दे पर लहरा रहा है,
क्योंकि मुश्किल से दिखता    है
इसलिये बिक रहा है महंगे भाव
सभी की नज़र ज़मी वहीं है।
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कवि, लेखक और संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
http://anant-shabd.blogspot.com

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ऊंची छलांग मत लगाओ-हिन्दी व्यंग्य शायरी


दिल लगाने के ठिकाने
अब नहीं ढूंढते
क्योंकि दिल्लगी बाज़ार की शय बन गयी है,
मोहब्बत का पाखंड अब
खुश नहीं कर पाता
क्योंकि जहां बहता है जज़्बातों का दरिया
वह मतलब की बर्फ जम गयी है।
———
आसमान के उड़ने की चाहत में
इतनी ऊंची छलांग मत लगाओ
कि जमीन पर गिरने पर
शरीर को इतने घाव लग जायें
जिन्हें भर न पाओ।
दूर जाना अपने मकसद के लिये उतना ही
कि साबित अपने ठिकाने पर लौट आओ।
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कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com

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