इंसान की समझ-हिंदी व्यंग्य कविता


हर रात की तरह आज भी

महफिलों में जाम छलकेंगे,

कुछ लोग मदहोशी में खामोश होंगे,

कुछ अपना मुद्दा उठाकर भड़केंगे,

जाम के पैमाने का हिसाब पीने वाले नहीं रखते

चढ़ गया नशा उनके दिमाग भी बहकेंगे।

कहें दीपक बापू

कमबख्त! शराब चीज क्या है

कोई समझ नहीं पाया,

जिसने नहीं पी वह रहा उदास

जिसने पी वह भी अपने दर्द का

पक्का इलाज नहीं कर पाया,

शराब न खुशी बढ़ाती है,

न गम कभी घटाती है,

छोड़ गयी हमें फिर भी उसके कायल हैं,

अपने घाव कभी नहीं भूलते, ऐसे हम भी घायल हैं,

सच यह है कि शराब का नशा एक भ्रम है,

नशा हो या न हो

इंसान के जज़्बातों के बहने का तय क्रम है,

पीकर कोई अपने नरक में

स्वर्ग के अहसास करे यह संभव है

मगर जिसने नहीं पी

वह भी नरक के अहसास भुला नहीं पाते,

शराब का तो बस नाम है

इंसान अपने जज़्बातों में यूं ही बह जाते,

अपने दर्द का इलाज इंसान क्या करेगा

अपने घाव की समझ नहीं दवा क्या भरेगा,

अलबत्ता, रात में खामोशी बढ़ती जायेगी

बस, पीने वाले ही नशे में नहाकर गरजेंगे।

————–

लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा “भारतदीप”

ग्वालियर, मध्यप्रदेश 

Writer and poet-Deepak Raj Kukreja “Bharatdeep”

Gwalior, Madhya pradesh

कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’ग्वालियर
jpoet, Writer and editor-Deepak ‘Bharatdeep’,Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
 

यह कविता/आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की अभिव्यक्ति पत्रिका’ पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।

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