कहीं आग लगी है
यकीनन कोई रोटी सेक रहा होगा,
कहीं पानी नदी का
मर्यादा तोड़कर बाहर आया है,
यकीनन कोई किनारे तोड़ रहा होगा,
कहीं भीड़ के बीच जंग छिड़ी है
यकीनन किसी ने लोगों के बीच
रिश्ता तोड़ा होगा।
कहें दीपक बापू
दर्द देते हैं जो धोखा देकर
वही इलाज का भरोसा देते हैं,
गम पैदा करने का इंतजाम करते है पहले
बांटने के लिये आते है ढोल बजाते हुए
साथ में लश्कर भी लेते हैं,
लोगों की आंखों की किरकिरी
बनने पर आमादा है चालाक सौदागर
कहीं खबर पक रही है
उनमें से कोई भी
कुछ भी करने के लिए तैयार होते हुए
कैमरों से रिश्ता जोड़ रहा होगा ।
—————
लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप
ग्वालियर मध्य प्रदेश
Writer and poet-Deepak Raj Kukreja “Bharatdeep”
Gwalior Madhyapradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
poet,writer and editor-Deepak Bharatdeep, Gwaliro
यह आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप का चिंतन’पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.अनंत शब्दयोग
4.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान पत्रिका
5.दीपक बापू कहिन
6.हिन्दी पत्रिका
७.ईपत्रिका
८.जागरण पत्रिका