Tag Archives: vyngy

साधू, शैतान और इन्टरनेट-हिंदी हास्य व्यंग्य कविता


शैतान ने दी साधू के आश्रम पर दस्तक
और कहा
‘महाराज क्या ध्यान लगाते हो
भगवान के दिए शरीर को क्यों सुखाते हो
लो लाया हूँ टीवी मजे से देखो
कभी गाने तो कभी नृत्य देखो
इस दुनिया को भगवान् ने बनाया
चलाता तो मैं हूँ
इस सच से भला मुहँ क्यों छुपाते हो’

साधू ने नही सुना
शैतान चला गया
पर कभी फ्रिज तो कभी एसी ले आया
साधू ने कभी उस पर अपना मन नहीं ललचाया
एक दिन शैतान लाया कंप्यूटर
और बोला
‘महाराज यह तो काम की चीज है
इसे ही रख लो
अपने ध्यान और योग का काम
इसमें ही दर्ज कर लो
लोगों के बहुत काम आयेगा
आपको कुछ देने की मेरी
इच्छा भी पूर्ण होगी
आपका परोपकार का भी
लक्ष्य पूरा हो जायेगा
मेरा विचार सत्य है
इसमें नहीं मेरी कोई माया’

साधू ने इनकार करते हुए कहा
‘मैं तुझे जानता हूँ
कल तू इन्टरनेट कनेक्शन ले आयेगा
और छद्म नाम की किसी सुन्दरी से
चैट करने को उकसायेगा
मैं जानता हूँ तेरी माया’

शैतान एकदम उनके पाँव में गिर गया और बोला
‘महाराज, वाकई आप ज्ञानी और
ध्यानी हो
मैं यही करने वाला था
सबसे बड़ा इन्टरनेट तो आपके पास है
मैं इसलिये आपको कभी नहीं जीत पाया’
साधू उसकी बात सुनकर केवल मुस्कराया

यारी को बेगार बना दिया


बंद तिजोरियों को सोने और रुपयों की
चमक तो मिलती जा रही है
पर धरती की हरियाली
मिटती जा रही है
अंधेरी तिजोरी को चमकाते हुए
इंसान को अंधा बना दिया
प्यार को व्यापार
और यारी को बेगार बना दिया
हर रिश्ते की कीमत
पैसे में आंकी जा रही है
अंधे होकर पकडा है पत्थर
उसे हाथी बताते
गरीब को बदनसीब और
और छोटे को अजीब बताते
दौलत से ऐसी दोस्ती कर ली है कि
इस बात की परवाह नहीं
इंसान के बीच दुश्मनी बढ़ती जा रही है
——————————–

यहाँ बोलने के लिए सब हैं आतुर
अपने बारे में सच सुनने से भयातुर
चारों और बोले जा रहे शब्द
बस बोलने के लिए
सुनता कोई नजर नहीं आता
अपनी भक्ति के गीत हर कोई गाता
जिन्दगी जीने का तरीका कोई नहीं बताता
गुरू सिखाता दूसरे को गुर
खुद सूरज उगने के बाद उठते
और बोलना शुरू करें ऐसे जैसे दादुर (मेंढक)
सुबह से शाम तक ढूढ़ते श्रोता
सच सुनने से रहते भयातुर

सच और झूठ का द्वंद


एक झूठ सौ बार बोला जाये
तो वह सच हो जाता है
और एक सच सौ बार
दुहराया जाये तो
मजाक हो जाता है
सच होता है अति सूक्ष्म
विस्तार लेते वृक्ष की तरह
कई झूठ भी समेटे हुए
वटवृक्ष बन जाता है
कौनसा पता झूठ का है
और कौनसा सच का
पता ही नही लग पाता है
लोग पते पकडे हाथ में ऐसे
मानो सच पकडा हो
भले ही झूठ ने उनकी बुद्धि को जकडा हो
जिनके पास सच है
उनको भी भरोसा नहीं उस पर
जिन्होंने झूठ को पकडा है
वह भी अपने पथ को सच
मानकर चलते हैं उस पर
सदियों से चल रहा है द्वंद
सच और झूठ का
इसका अंत कहीं नहीं आता है।
———————–

जंग में पिसता है आम आदमी


एक कहे  आजादी की  जंग
दूसरा दे उसे आतंक का रंग
आम आदमी ही होता है तंग
नहीं होता वह पूर्व और पश्चिम के संग
जानता है  अपने की हो या पराये की
उसके सीने की और ही होता है
संगीन का  निशाना
आजादी और आतंक तो बस होता है  बहाना
अपनी  राजनीतिक आजादी की चाह तो
गांधी जी की राह क्यों नहीं चलते
जानते नहीं क्या हथियारों के उपयोग से
उनके विरोधी के ही पेट पलते
अब तो सूचना का जाल चारों और
बिछ गया
पल-पल की खबर मिलते है  
आम आदमी को इसलिए ही
बेतुकी लगती है 
चाहे वह आजादी की या
आतंक के ख़िलाफ़ हो जंग
—————————–

दिल के सोच जैसी होगी दुनिया


मन का खोखलापन
तन को रुग्ण कर देता हैं
विचारों की कलुषिता से
अपना दिल ही बैचेन कर देता है
हम अपने ही दायरों में कैद हो जाते हैं

जैसा ख़्याल दिल में होगा
वैसा ही दृश्य हमारे सामने
हर हाल में प्रकट होगा
ख्वाब देखना ठीक है
पर अगर पूरे न हौं तो
देखने वाले तकलीफ उठाएँ जाते हैं

जैसी सोच होती है
वैसी ही दुनिया सामने नजर आती है
कुछ अच्छा और बुरा नहीं
नजरिया जैसा होता है
वैसे ही अहसास हो जाते हैं

इसलिये जैसी दुनिया
देखना चाहते हो
वैसी ही सोच के साथ चलो
ख़्वाबों और ख्यालों में
कुछ खूबसूरत नजरिये
जोड़ते हुए उनके साथ ढलो
जिन्दगी का सफर तो सभी काटते हैं
कुछ रोते कराहते गुजारते हैं
जो हँसते, गुनगुनाते और अपनी
हकीकतों से करते हैं दोस्ती
वही सुख के पल जीं पाते हैं