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जिसने ढूंढें हैं सहारे


आकाश में चमकते सितारे भी
नहीं दूर कर पाते दिल का अंधियारा
जब होता है वह किसी गम का मारा
चन्द्रमा भी शीतल नहीं कर पाता
जब अपनों में भी वह गैरों जैसे
अहसास की आग में जल जाता
सूर्य की गर्मी भी उसमें ताकत
नहीं पैदा कर पाती
जब आदमी अपने जज्बात से हार जाता
कोई नहीं देता यहाँ मांगने पर सहारा

इसलिए डटे रहो अपनी नीयत पर
चलते रहो अपनी ईमान की राह पर
इन रास्तों की शकल तो कदम कदम पर
बदलती रहेगी
कहीं होगी सपाट तो कहीं पथरीली होगी
अपने पाँव पर चलते जाओ
जीतता वही है जो उधार की बैसाखियाँ नहीं माँगता
जिसने ढूढे हैं सहारे
वह हमेशा ही इस जंग में हारा
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फ्लाप से जोड़ दो फ्लाप


क्रिकेट फ्लॉप
फिल्म फ्लॉप
सपनों के सौदागर कर रहे विलाप
क्रिकेट में खेलना ही पर्याप्त नहीं
गेंद और बल्ले की जंग में
अब मनोरंजन व्याप्त नहीं
खिलाडियों को फिल्म के अभिनेताओं की तरह
रेम्प पर नचवाओ
खिलाडियों को नाचना भी आता  है
लोगों को बताओ
उन्हें लगातार बह्काओ
नहीं आयेगा पीछा खर्च करने अपने आप

खिलाडियों का मैदान में खेलना
अब पर्याप्त नहीं है
जब तक दर्शकों में हीरो की
छबि व्याप्त नहीं है
इसलिए मैदान में लगाओ
किसी हीरो की छाप
फ्लाप होने की तरह बढ़ रहे हीरो
क्रिकेट भी देखते हैं
खिलाडियों को भी रंगीन चश्में से देखते हैं
उनकी फिल्में भी देखते रहो
क्रिकेट को अभी भी सहते रहो
हिट बनाने का यह नया फार्मूला है
फ्लाप से जोड़  दो फ्लाप

यहाँ बदलते हैं रिश्ते


जब काम था वह रोज
हमारे गरीबखाने पर आये
अब उन्हें हमें याद करने की
फुरसत भी नहीं मिलती
गुजरे पलों की उन्हें कौन याद दिलाये
हम डरते हैं कि
कहीं याद दिलाने पर
उन्हें अपने कमजोर पल न सताने लगें
वह यह सोचकर मिलने से
बहुत घबडाते हैं कि
हम उन्हें अपनी पुरानी असलियत का
कहीं आइना न दिखाने लगें
दूरियां है कि बढती जाएँ
टूटे-बिखरे रिश्तों को फिर जोड़ना
इतना आसान नहीं जितना लगता है
बात पहले यहीं अटकती हैं कि
आगे पहले कब और क्यों आये
अच्छा है मतलब से बने
रिश्तों को भूल ही जाएँ
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इस रंग बदलती दुनिया मैं
बदल जाते हैं रिश्ते भी
अपनों से चलते हैं
संबंध बरसों तक
पराये से लगते हैं वह भी कभी
प्रेम से जो साथ चले
वह अपना है
जहाँ कम होते लगें
छोड़ तो उन्हें तभी

बस यही संदेश इस पावन पर्व पर सुनाते


नीचे से ऊपर जाते हुए पटाखे
धमाके से कानों को कंपाते
साथ में नीचे आते प्रदूषण लाते
नीचे चलती गाडियाँ
तेज लाईट से आंखों को अंधा करती
और हार्न से निकला भयानक शोर
रास्ते के दोनों और बिखरी रौशनी
में भी उसके जलते अँधेरे का अहसास कराते
खुशी में चिराग जलाने के तो
खूब सुने हैं अफसाने
अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारता हो
एकजुट होकर समाज
नही मिलतीं ऐसी दास्ताने
अंधी दौड़ में शामिल हैं सब लोग
जिनमें अक्ल है ताकत नहीं है
जिनके पास ताकत है तो
नीयत में है अपने लाभ पाने का स्वार्थ
इसलिए चेतना का अलख नहीं जगाते

कहैं दीपक बापू
किस-किसको रोईये
आराम बड़ी चीज है
मुहँ ढककर सोईये
यह नीति अच्छी होती
अगर आवाजों से नींद नहीं टूटी होती
चैन होता हमें भी अगर
मिठाई के नाम पर विष को
परोसते नहीं देख पाते
करते समाज सेवा का व्यापार तो
हम ही चेतना का अलख जगाते
बना लेते कोई बड़ा आश्रम
इन आवाजों से दूर रह पाते
चूंकि दर्द है कई लोग का
उनका हमदर्द बन जाते
यह त्यौहार खाने-पीने के ही लिए नहीं
चिंतन और मनन के लिए भी आते
कुछ सोचो कहाँ जा रहे हो
अपने हाथ से अपने लिए विष जुटा रहे हो
बस यही सन्देश इस पावन पर्व पर सुनाते
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आर्थिक लाभ का चक्कर


दोस्त ने कहा
‘रुक जाओ
इतनी भी क्या है जल्दी 
भला कहाँ तुम्हें जाना है’
उन्होंने जवाब दिया
‘यार आज जल्दी
बीमा पालिसी की
किश्त जमा करवाना है
दोस्त ने कहा
‘फ़िर तुम इतनी फिक्र
 क्यों करते हो
तुम्हारे  घर के अन्य सदस्यों को
इसकी फिक्र करना चाहिए
तुम्हारे बाद उनको ही तो
आर्थिक फायदा पाना है’
उन्होंने जवाब दिया
‘यार, जो मेरे नाम की है
उसकी तो फिक्र सब करते हैं
पर जो उनके  नाम पर है
उसकी फिक्र तो मुझे करनी है
भगवान् करे सब ठीक  रहें
पर कुछ हो गया तो उनका
आर्थिक लाभ तो मुझे ही पाना है.
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