भ्रष्टाचार के विरुद्ध स्वामी रामदेव का अभियान अब देश में चर्चा का विषय बन चुका है। बाबा रामदेव अब खुलकर अपने योग मंच का उपयोग भ्रष्टाचार तथा काले धन के विरुद्ध शब्द योद्धा की तरह कर रहे हैं। हम यह भी देख रहे हैं कि देश की हर समस्या की जड़ में भ्रष्टाचार को जानने वाले जागरुक लोग बाबा रामदेव की तरफ आकर्षित हो रहे हैं। कुछ लोगों को तसल्ली हो गयी है कि अब कोई नया अवतार उनके उद्धार के लिये आ गया है। हम यहां बाबा रामदेव की अभियान पर कोई विपरीत टिप्पणी नहीं कर रहे क्योंकि यह अब एक राजनीतिक विषय बन चुका है और वह अपना राजनीतिक दल बनाने की घोषणा भी कर चुके हैं। हां, यह सवाल पूछ रहे हैं कि अगर देश की दुर्दशा के लिये भ्रष्टाचार जिम्मेदार हैं तो फिर भ्रष्टाचार के लिये कौन जिम्मेदार हैं? क्या इसकी पहचान कर ली गयी है?
एक बात यहां हम बता दें कि यह लेखक निजी रूप से बाबा रामदेव को नहीं जानता पर टीवी पर उनकी योग शिक्षा की सराहना करता है और उनके वक्तव्यों को समझने का प्रयास भी करता है। दूसरी बात यह भी बता दें कि श्रीमद्भागवत गीता के संदेशों का अध्ययन भी किया है और उनके परिप्रेक्ष्य में बाबा की सभी प्रकार की गतिविधियों को देखने का प्रयास यह लेखक करता है। बाबा रामदेव अब आक्रामक ढंग से राष्ट्रधर्म के निर्वाह के लिये तत्पर दिखते हैं, यह अच्छी बात है पर एक बात यह भी समझना चाहिए कि राजनीतिक क्रांतियां तो विश्व के अनेक देशों में समय समय पर होती रही हैं पर वहां के समाजों को इसका क्या परिणाम मिला इसकी व्यापक चर्चा कोई नहंी करता। इसका कारण यह है कि राष्ट्रधर्म निर्वाह करने वाले लोग अपने देश की समस्याओं का मूल रूप नहीं समझतें।
भारत में भ्रष्टाचार समस्या नहीं बल्कि अनेक प्रकार की सामाजिक, धार्मिक तथा पारिवारिक रूढ़िवादी परंपराओं की वजह से आम आदमी में दूसरे से अधिक धन कमाकर खर्च कर समाज में सम्मान पाने की इच्छा का परिणाम है।
बाबा रामदेव बाबा समाज के शिखर पुरुषों को ही इसके लिये जिम्मेदार मानते हैं पर सच यह है कि इस देश में ईमानदार वही है जिसे बेईमान होने का अवसर नहीं मिलता।
भारत का अध्यात्मिक ज्ञान विश्व में शायद इसलिये ही सर्वश्रेष्ठ माना जाता है क्योंकि सर्वाधिक मूढ़ता यही पाई जाती है जिसे हम भोलेपन और सादगी कहकर आत्ममुग्ध भी हो सकते हैं। हमारे ऋषियों, मुनियों और तपस्वियों ने समाज के इसी चरित्र की कमियों को देखते हुए सत्य की खोज करते हुए तत्वज्ञान का सृजन किया। शादी, गमी, जन्मदिन और अन्य तरह के सामूहिक कार्यक्रमों में खर्च करते हुए सामान्य लोग फूले नहीं समाते। लोगों को यही नहीं मालुम कि अच्छा क्या है और बुरा क्या है? भ्रष्टाचार को समाज ने एक तरह से शिष्टाचार मान लिया है? क्या आपने कभी सुना है कि किसी रिश्वत लेने वाले अधिकारी याद कर्मचारी को उसके मित्र या परिचित सामने रिश्वतखोर कहने का साहस कर पाते हैं। इतना ही नहीं सभी जानते हैं कि अमुक आदमी रिश्वत लेता है पर उसकी दावतों में लोग खुशी से जाते हैं। समाज में चेतना नाम की भी नहीं है। इसका सीधा मतलब यह कि समाज स्वयं कुछ नहीं करता बल्कि किसी के रिश्वत में पकड़े जाने पर वाह वाह करता है। उसकी जमकर सामूहिक निंदा होती है और इसमें वह लोग भी शामिल होते हैं जो बेईमान हैं पर पकड़े नहीं गये। आज यह स्थिति यह है कि जो पकड़ा गया वही चोर है वरना तो सभी ईमानदार हैं।
आखिर यह भ्रष्टाचार पनपा कैसे? आप यकीन नहीं करेंगे कि अगर देश के सभी बड़े शहरों में अतिक्रमण विरोधी अभियान चल जाये तो पता लगेगा कि वहां चमकती हुए अनेक इमारतें ही खंडहर बन जायेंगी। नई नई कालोनियों में शायद ही कोई ऐसा मकान मिले जो अतिक्रमण न मिले। सभी लोग अपने सामर्थ्य अनुसार भूखंड लेते हैं पर जब मकान बनता है तो इस प्रयास में लग जाते हैं कि उसका विस्तार कैसे हो। पहली मंजिल पर अपनी छत बाहर इस उद्देश्य से निकाल देते हैं कि ऊपर अच्छी जगह मिल जायेगी। बड़े बड़े भूखंड है पर चार पांच फुट उनको अधिक चाहिये वह भी मुफ्त में। यह मुफ्त का मोह कालांतर में भ्रष्टाचार का कारण बनता है। जितना भूखंड है उसमें अगर चैन से रहा जाये तो भी बहुत उन लोगों के लिये बड़ा है पर मन है कि मानता नहीं।
विवाह नाम की परंपरा तो भ्रष्टाचार का एक बहुत बड़ा कारण है। बेटे को दुधारु बैल समझकर ं हर परिवार चाहता है कि उसके लिये अच्छा दहेज मिले। लड़की को बेचारी गऊ मानकर उसे धन देकर घर से धकेला जाता है। शादी के अवसर पर शराब आदि का सेवन अब परंपरा बन गयी है। स्थिति यह है कि अधिक से अधिक दिखावा करना, पाखंड करते हुंए धार्मिक कार्यक्रम करना और दूसरों से अधिक धनी दिखने के मोह ने पूरे समाज को अंधा कर दिया है। बाबा रामदेव ने स्वयं ही एक बार बताया था कि जब तक मुफ्त में योग सिखाते थे तब कम संख्या में लोग आते थे। जब धन लेना शुरु किया तो उनके शिष्य और लोकप्रियता दोनों ही गुणात्मक रूप से बढ़े। सीधी सी बात है कि समाज पैसा खर्च करने और कमाने वाले पर ही विश्वास करता है। अज्ञान में भटकते इस समाज को संभालने का काम संत इतिहास में करते रहे हैं पर आज तो पंच सितारे आश्रमों में प्रवचन और दीक्षा का कार्यक्रम होता है। आज भी कोई ऐसा प्रसिद्ध संत कोई बता दे जो कबीर दास और रविदास की तरह फक्कड़ हो तो मान जायें। हम यहां बाबा रामदेव की संपत्ति का मामला नहीं उठाना चाहते पर पतंजलि योग पीठ की भव्यता उनसे जुड़े लोगों की वजह से है यह तो वह भी मानते हैं। हम यहां स्पष्ट करना चाहेंगे कि पतंजलि योग पीठ की भव्य इमारत वह नहीं बनाते तो भी उनका सम्मान आम आदमी में कम नहीं होता। जिस तरह धन आने पर उन्होंने भव्य आश्रम बनाया वैसे ही देश के दूसरी धनी भी यही करते हैं। वह सड़क पर फुटपाथ पर कब्जा कर लेते हैं। फिर उससे ऊपर आगे अपनी इमारत ले जाकर सड़के के मध्य तक पहुंच जाते हैं। धन आने पर अनेक लोगों की मति इतनी भ्रष्ट हो जाती है कि उनको पता ही नहीं चलता कि अतिक्रमण होता क्या है? जमीन से ऊपर उठे तो उनको लगता है कि आकाश तो भगवान की देन है।
मुख्य बात यह है कि अंततः धन माया का रूप है जो अपना खेल दिखाती है। इसके लिये जरूरी था कि धार्मिक संत सामाजिक चेतना का रथ निरंतर चलाते रहें पर हुआ यह कि संतों के चोले व्यापारियों ने पहन लिये और अपने महलों और होटलों को आश्रम का नाम दे दिया। बाबा रामदेव पर अधिक टिप्पणियां करने का हमारा इरादा नहीं है पर यह बता दें कि जब तक समाज में चेतना नहीं होगी तब भ्रष्टाचार नहीं मिट सकता। एक जायेगा दूसरा आयेगा। मायावी लोगों का समूह ताकतवर है और उसे अपना व्यापार चलाने और बढ़ाने के लिये बाबा रामदेव को भी मुखौटा बनाने में झिझक नहीं होगी। अगर समाज स्वयं जागरुक नहीं है तो फिर कोई भी प्रयास सफल नहीं हो सकता। यह तभी संभव है कि योग शिक्षा के साथ अध्यात्मिक ज्ञान भी हो। बाबा रामदेव जब अपने विषय में की गयी प्रतिकूल टिप्पणियों को उत्तेजित होकर बयान दे रहे थे तब वह एक तत्वज्ञानी योगी नहीं लगे। उनके चेहरे पर जो भाव थे वह उनके मन की असहजता को प्रदर्शित कर रहे थे। हम यह नहीं कहते कि उत्तेजित होना अज्ञान का प्रमाण है पर कम से उनका स्थिरप्रज्ञ न होना तो दिखता ही है। वह केवल शिखर पुरुषों को कोसते हैं और समाज में व्याप्त मूढ़तापूर्ण स्थिति पर कुछ नहीं कहते। ऐसे में उनसे यह अपेक्षा भी की जा सकती है कि वह समाज को अपने अंदर की व्यवस्था के बारे में मार्गदर्शन दें।
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लेखक संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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