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बिग बॉस एक शानदार कार्यक्रम-हास्य कविता


फंदेबाज ने कहा
‘‘दीपक बापू
यह बिग बॉस धारावाहिक
अश्लीलता फैला रहा है
आप इस पर कोई लिखो हास्य कविता,
जल जाये जैसे इसकी चिता,
वैसे भी आप इंटरनेट पर फ्लाप चल रहे हो,
बेमतलब के कवि हिट हो गये
यही सोच जल रहे हो,
शायद बिग बॉस पर कुछ जोरदार लिखने से
आपका नाम चल जाये,
कोई सफल रचना आपका नाम लेकर छाये।’’

दीपक बापू मुस्कराये
‘‘लगता है हमसे लिखवाना कहीं
फिक्स कर आये हो,
शालीनता का संदेश फैलाने के नाम पर
बिग बॉस को सफल बनाने की
शायद सुपारी लाये हो,
समाचार चैनलों में बिग बॉस का नाम छाया है,
ऐसा कोई दिन नहीं जब उसका नाम न आया है,
मगर पब्लिक में नहीं है उसका प्रचार,
चाहे डाले जा रहे अश्लील विचार,
लोगों को शालीनता से ज्यादा
अश्लीलता पसंद आती है,
पर्दे पर साड़ी पहने औरत से अधिक
बिकनी पहनी अभिनेत्री पसंद आती है,
समाचार चैनल तो
उस पर अश्लीलता और अभद्रता का
आरोप लगाकर
लोगों को वह देखने के लिये उकसाते हैं,
भले ही खुद को संस्कृति का रक्षक जताते हैं,
लगता है हमसे अश्लीलता का आरोप लगवाकर
उसे बौद्धिक वर्ग का प्रचार
दिलवाना चाहते हो,
इसलिये हमसे हास्य कविता लिखवाना चाहते हो,
मगर हम तो यही कहेंगे
बिग बॉस अत्यंत शालीनता और
भद्र व्यवहार करना सिखा रहा है,
नयी पीढ़ी को नया मार्ग दिखा रहा है,
मु्फ्त में उसे असंस्कृत कह कर
उसका प्रचार नहीं करेंगे,
हम तो उसे संस्कृत और ज्ञानबर्द्धक कहकर
लोगों में अरुचि का भाव भरेंगे,
वैसे यह कार्यक्रम अब हिट नहीं रहा,
बदतमीजी करने में ज्यादा फिट भी किसी ने नहीं कहा,
गाली गलौच करने वाला कोई
महान कलाकर शायद इसमें नहीं आया,
कपड़े उतारकर शानदार अभिनय करे
ऐसा भी कोई घरवाला नहीं छाया,
बदनाम नहीं हुआ
इसलिये तुम भी शायद नही देखते हो,
इसलिये हमसे इंटरनेट पर
हास्य कविता लिखवाने की बात
हमारी तरफ ही फैंकते हो,
जहां तक हमारे फ्लाप होने सवाल है
तुम्हारी सफलता के नुस्खे
हमें दे जाते हैं हास्य कविता का विषय
भले ही वह कभी हमने नहीं आजमाये।’’
————

वि, लेखक एवं संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
poet,writer and editor-Deepak Bharatdeep, Gwaliro
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फसाद फिक्सिंग-हिन्दी हास्य व्यंग्य (fasad-hindi comic story)


वह समाज सेवक निठल्ले घूम रहे थे। दरअसल अब कंप्यूटर और इंटरनेट आने से चंदा लेने देने का धंधा आनलाईन हो गया था और वह इसमें दक्ष नहीं थे। फिर इधर लोग टीवी से ज्यादा चिपके रहते हैं इसलिये उनके कार्यक्रमों के बारे में सुनते ही नहीं इसलिये चंदा तो मिलने से रहा। पहले वह अनाथ आश्रम के बच्चों की मदद और नारी उद्धार के नाम पर लोगों से चंदा वसूल कर आते थे। पर इधर टीवी चैनलों ने ही सीधे चैरिटी का काम करने वाले कार्यक्रम प्रस्तुत करना शुरु कर दिये हैं तो उनके चैरिटी ट्रस्ट को कौन पूछता? इधर अखबार भी ऐसे समाज सेवकों का प्रचार नहीं करते जो प्रचार के लिये तामझाम करने में असमर्थ हैं।
उन समाज सेवकों ने विचार किया कि आखिर किस तरह अपना काम बढ़ाया जाये। उनकी एक बैठक हुई।
उसमें एक समाज सेवक को बहुत तीक्ष्ण बुद्धि का-सीधी भाषा में कहें तो शातिर- माना जाता था। उससे सुझाव रखने का आग्रह किया गया तो वह बोला-आओ, दंगा फिक्स कर लें।
बाकी तीनों के मुंह खुले रह गये।
दूसरे ने कहा-‘पर कैसे? यह तो खतरनाक बात है?
पहले ने कहा-‘नहीं, दंगा नहीं करना! पहले भी कौनसा सच में समाज सेवा की है जो अब दंगा करेंगे! बस ऐसे तनावपूर्ण हालत पैदा करने हैं कि दंगा होता लगे। बाकी काम मैं संभाल लूंगा।’
तीसरे ने पूछा-‘ पर इसके लिये चंदा कौन देगा।’
पहले ने कहा-‘अरे, इसके लिये परेशान होने की जरूरत नहीं है। हमारे पूर्वज समाज को टुकड़ों में केक की तरह बांट कर रख गये हैं बस हमें खाना है।’
तीसरे ने कहा-‘मगर, इस केक के टुकड़ों में अकल भी है, आखें भी हैं, और कान भी हैं।’
पहला हंसकर बोला-‘यहीं तो हमारी चालाकी की परीक्षा है। अब करना यह है कि दूसरा और तीसरा नंबर जाकर अपने समाजों में यह अफवाह फैला दें कि विपक्षी समाज अपने इष्ट की दरबार सड़क के किनारे बना रहा है। उसका विरोध करना है। सो विवाद बढ़ाओ। फिर अमन के लिये चौथा दूसरे द्वारा और पहले के द्वारा आयोजित समाज की बैठकों मैं जाऊंगा। तब तक तुम दोनो गोष्ठियां करो तथा अफवाहें फैलाओ। समाज के अमीर लोगों के वातानुकूलित कमरों में बैठकें कर उनका माल उड़ाओ। पैसा लो। सप्ताह, महीना और साल भर तक बैठकें करते रहो। कभी कभी मुझे और चौथे नंबर वाले को समाज की बैठकों बुला लो। पहले विरोध के लिये चंदा लो। फिर प्रस्ताव करो कि उसी सड़क के किनारे दूसरे समाज के सामने ही अपने इष्ट का मंदिर बनायेंगे। हम दोनों हामी भरेंगे। संयुक्त बैठक में भले ही दूसरे लोगों को बुलायेंगे पर बोलेंगे हम ही चारों। समझौता करेंगे। दोनों समाजों के इष्ट की दरबार बनायेंगे। फिर उसके लिये चंदा वसूली करेंगे।’
दूसरे ने कहा-‘पर हम चारों ही सक्रिय रहेंगे तो लोगों का शक होगा।’
पहला सोच में पड़ गया और फिर बोला-‘ठीक है। पांचवें के रूप में हम अपने वरिष्ठ समाज सेवक को इस तरह उस बैठक में बुलायेंगे जैसे कि वह कोई महापुरुष हो। लोगों ने उनके बारे में सुना कम है इसलिये मान लेंगे कि वह कोई निष्पक्ष महापुरुष होंगे।’
तीसरे ने कहा-‘पर सड़कों का चौड़ीकरण हो रहा है। अब इतना आसान नहीं रहा है अतिक्रमण करना। अदालतें भी ऐसे विषय पर सख्त हो गयी हैं। कहीं फंस गये तो। इसलिये किसी भी समाज के इष्ट का दरबार नहीं बनेगा।’
पहला हंसकर बोला-‘इसलिये ही मुझे तीक्ष्ण बुद्धि का माना जाता है। अरे, दरबार बनाना किसे है। सड़क पर एक कंकड़ भी नहंी रखना। सारा झगड़ा फिक्स है इसलिये दरबार बनाने का सपना हवा में रखना है। बरसों तक मामला खिंच जायेगा। हम तो इसे समाजसेवा में बदलकर काम करेंगे। अब बताओ कपड़े, बर्तन तथा किताबें गरीबों और मजदूरों में बांटने के लिये कितना रुपया लिया पर एक पैसा भी किसी को दिया। यहां एक पत्थर पर भी खर्च नहीं करना। सड़क पर एक पत्थर रखने का मतलब है कि दंगा करवाना। जब पानी सिर के ऊपर तक आ जाये तब कानूनी अड़चनों का बहाना कर मामला टाल देंगे। फिर कहीं   किसी दूसरी जगह कोई नया काम हाथ में लेंगे। अब जाओ अपनी रणनीति के अनुसार काम करो।’
चारों इस तरह तय झगड़े और समझौते के अभियान पर निकल पड़े।

सूचना-यह लघु व्यंग्य काल्पनिक है तथा इसे मनोरंजन के लिये लिखा गया है। इसका किसी घटना या व्यक्ति से कोई संबंध नहीं है। अगर किसी की कारिस्तानी से मेल खा जाये तो वही इसके लिये जिम्मेदार होगा।
कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
http://rajlekh.blogspot.com

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