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आंसुओं से महलों के चिराग रौशन हैं-हिन्दी शायरी (ansu se roshan mahal-hindi shayri)


दौलत बनाने निकले बुत

भला क्या ईमान का रास्ता दिखायेंगे।

अमीरी का रास्ता

गरीबों के जज़्बातों के ऊपर से ही

होकर गुजरता है

जो भी राही निकलेगा

उसके पांव तले नीचे कुचले जायेंगे।

———–

उस रौशनी को देखकर

अंधे होकर शैतानों के गीत मत गाओ।

उसके पीछे अंधेरे में

कई सिसकियां कैद हैं

जिनके आंसुओं से महलों के चिराग रौशन हैं

उनको देखकर रो दोगे तुम भी

बेअक्ली में फंस सकते हो वहां

भले ही अभी मुस्कराओ।

कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
http://rajlekh.blogspot.com

यह आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप का चिंतन’पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
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रौशनी को देखकर-हिंदी व्यंग्य कविता


सर्वशक्तिमान का अवतार बताकर भी

कई राजा अपना राज्य न बचा सके।

सारी दुनियां की दौलत भर ली घर में

फिर भी अमीर उसे न पचा सके।

ढेर सारी कहानियां पढ़कर भी भूलते लोग

कोई नहीं जो उनका रास्ता बदल चला सके।

मालुम है हाथ में जो है वह भी छूट जायेगा

फिर भी कौन है जो केवल पेट की रोटी से

अपने दिला को मना सके।

अपने दर्द को भुलाकर

बने जमाने का हमदर्द

तसल्ली के चिराग जला सके।


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दौलत बनाने निकले बुत

भला क्या ईमान का रास्ता दिखायेंगे।

अमीरी का रास्ता

गरीबों के जज़्बातों के ऊपर से ही

होकर गुजरता है

जो भी राही निकलेगा

उसके पांव तले नीचे कुचले जायेंगे।

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उस रौशनी को देखकर

अंधे होकर शैतानों के गीत मत गाओ।

उसके पीछे अंधेरे में

कई सिसकियां कैद हैं

जिनके आंसुओं से महलों के चिराग रौशन हैं

उनको देखकर रो दोगे तुम भी

बेअक्ली में फंस सकते हो वहां

भले ही अभी मुस्कराओ।


कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
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तरक्की पसंद-हिन्दी व्यंग्य शायरी


 कुछ लोगों की मौत पर

बरसों तक रोने के गीत गाते,

कहीं पत्थर तोड़ा गया

उसके गम में बरसी तक मनाते,

कभी दुनियां की गरीबी पर तरस खाकर

अमीर के खिलाफ नारे लगाकर

स्यापा पसंद लोग अपनी

हाजिरी जमाने के सामने लगाते हैं।

फिर भी तरक्की पसंद कहलाते हैं।

———

लफ्जों को खूबसूरत ढंग से चुनते हैं

अल्फाजों को बेहद करीने से बुनते हैं।

दिल में दर्द हो या न हो

पर कहीं हुए दंगे,

और गरीब अमीर के पंगे,

पर बहाते ढेर सारे आंसु,

कहीं ढहे पत्थर की याद में

इस तरह दर्द भरे गीत गाते धांसु,

जिसे देखकर

जमाने भर के लोग

स्यापे में अपना सिर धुनते हैं।

कवि, लेखक और संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
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स्वर्ग की चाहत-हिन्दी व्यंग्य शायरी


स्वर्ग की परियां किसने देखी

स्वयं जाकर

बस एक पुराना ख्याल है।

धरती पर जो मिल सकते हैं,

तमाम तरह के सामान

ऊपर और चमकदार होंगे

यह भी एक पुराना ख्याल है।

मिल भी जायें तो

क्या सुगंध का मजा लेने के लिये

नाक भी होगी,

मधुर स्वर सुनने के लिये

क्या यह कान भी होंगे,

सोना, चांदी या हीरे को

छूने के लिये हाथ भी होंगे,

परियों को देखने के लिये

क्या यह आंख  भी होगी,

ये भी  जरूरी  सवाल है।

धरती से कोई चीज साथ नहीं जाती

यह भी सच है

फिर स्वर्ग के मजे लेने के लिये

कौनसा सामान साथ होगा

यह किसी ने नहीं बताया

इसलिये लगता है स्वर्ग और परियां

बस एक ख्याल है।


कवि, लेखक और संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
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आम इंसान की जिंदगी-हिन्दी शायरी (life of comman man-hindi poem)


 जो तुम भी चाहोगे

इंसानी बुत बनकर

बड़े कहलाओगे।

सीख लो नटों के इशारों की डोर पर नाचना

जमाने में मशहूर हो जाओगे।

आम इंसान की अगर

नसीब हुई है जिंदगी

करो उसी की बंदगी

आजादी में सांसें ले रहे हो

इसी पर करो फख्र

खुश रहो इस बात पर

कि नहीं है गिरने की फिक्र

बड़े बनकर

गंवा बैठोगे अपना अमन

कितनी भी ऊंचाई पर जाओ

चिंताओं की गठरी सिर पर उठाओगे।

पर्दे के पीछे बैठे काले चेहरों से

कभी मुंह नहीं फेर पाओगे

 
कवि, लेखक और संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
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