Tag Archives: satire poem

भक्ति से बड़ा सोने का चमत्कार-हिन्दी व्यंग्य कविता (bhakti se bada sone ka chamatkar-hindi satire poem)


भक्ति के व्यापार में
संतों के दरबार
भक्तों के भाव से
सोने की ईंटों और डालरों से
भर जाते हैं,
संत शायद इसलिए ही
चमत्कारी कहे जाते हैं।
————
चमत्कार के व्यापारियों ने
धर्म को बाज़ार में सजा दिया,
धार्मिक भावनाओं का दोहन करते हुए
सोने का भंडार दरबार में लगा लिया।
————-
चमत्कार बेचकर
संतों का बिल्ला अपनी कमीज़ पर
उन्होने लगा लिया,
भक्तों के भावों को
बदलते रहे सोने और रुपयों में
अपने चमत्कारी होने का प्रमाण दिया
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
poet,writer and editor-Deepak Bharatdeep, Gwaliro
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ऐसे भागीरथ अब कहां मिलते हैं-व्यंग्य कविता (aaj ke bhagirath-vyangya kavita


तमाशों में गुज़ार दी
पूरी ज़िदगी
तमाशाबीन बनकर।
कहीं दूसरे की अदाओं पर हंसे और रोए,
कहीं अपने जलवे बिखेरते हुए, खुद ही उसमें खोए,
हाथ कुछ नहीं आया
भले ही रहा ज़माने को दिखाने के लिये
सीना तनकर।
—————
ऐसे भागीरथ अब कहां मिलते हैं,
जो विकास की गंगा घर घर पहुंचायें,
सभी बन गये हैं अपने घर के भागीरथ
जो तेल की धारा
बस!
अपने घर तक ही लायें,
अपने पितरों को स्वर्ग दिलाने के लिये
केवल आले में चिराग जलायें।
————-

कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com

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शिकायत-हिन्दी व्यंग्य कवितायें (shikayat-hindi satire poem)


हमने उनका रास्ता
कांटे हटाकर फूलों से सजाया
पर बदले में उन्होंने
हमारी राह में गड्ढे खोदकर
अपनी वफादारी दिखाई।
शिकायत करने पर बोले वह
‘हमने सीखी है जो दुनियांदारी
तुम्हें सिखाकर
अपनी वफादारी निभाई।’
——-

देश में बढ़ रहा है खज़ाना
मगर फिर भी अमीरों की भूख
मिटती नज़र नहीं आती।

देश में अन्न भंडार बढ़ा है
पर सो जाते हैं कई लोग भूखे
उनकी भूख मिटती नज़र नहीं आती।
सर्वशक्तिमान के दलाल बेच रहे हैं
शांति, अहिंसा और गरीबों का ख्याल रखने का संदेश
मगर इंसानों पर असर होता हो
ऐसी स्थिति नहीं बन पाती।

फरिश्ते टपका रहे आसमान से तोहफे
लूटने के लिये आ जाते लुटेरे,
धरती मां बन देती खाने के दाने,
मगर रुपया बनकर
चले जाते हैं वह अमीरों के खातों में,
दिन की रौशनी चुराकर
महफिल सज़ाते वह रातों में,
भलाई करने की दुकानें बहुत खुल गयीं हैं
पर वह बिना कमीशन के कहीं बंटती नज़र नहीं आती।
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कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
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तमाशाबीन-हिन्दी शायरी (tamashabeen-hindi shayri)


तमाशों में गुज़ार दी
पूरी ज़िदगी
तमाशाबीन बनकर।
कहीं दूसरे की अदाओं पर हंसे और रोए,
कहीं अपने जलवे बिखेरते हुए, खुद ही उसमें खोए,
हाथ कुछ नहीं आया
भले ही रहा ज़माने को दिखाने के लिये
सीना तनकर।
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ऐसे भागीरथ अब कहां मिलते हैं,
जो विकास की गंगा घर घर पहुंचायें,
सभी बन गये हैं अपने घर के भागीरथ
जो तेल की धारा
बस!
अपने घर तक ही लायें,
अपने पितरों को स्वर्ग दिलाने के लिये
केवल आले में चिराग जलायें।
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कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
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सुविधा संचय-हिन्दी व्यंग्य कविता


भ्रष्टाचार, गरीबी, और शोषण के खिलाफ
जंग करने के नारे सभी लगा रहे हैं,
मिलकर समाज को जगा रहे हैं।
बैठे बैठे सभी चीखकर
छेड़ रहे है जाग्रति अभियान,
सुविधाभोगी बुद्धिमान बनकर
ढूंढ रहे सम्मान,
कोशिश यही है कि कोई
दूसरा वीर बनकर गर्दन कटाये,
हम क्रांतिकारी प्रसिद्ध हो, बिना पसीना बहाये,
परायी औलादों को झौंक रहे मैदान में
अपनी को सुविधा संचय के लिये भगा रहे हैं।
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कवि, लेखक और संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
http://anant-shabd.blogspot.com

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