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कागज के शेर-हिन्दी व्यंग्य कविता kagaj ke sher or loin of paper-hindi satire poem)


लापता हो गये हाड़मांस के असली शेर,
कुछ बीते इतिहास में दर्ज थे
कुछ आज भी कागजों में दिख रहे हैं।
नए जमाने में
पैसे, पद और प्रतिष्ठा के शिखर पर
बैठे इंसान ही कागज पर
अपने नाम में शेर लिख रहे हैं।
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सुना है उनका शेर जैसा है जिगर
पर नहीं जिंदा रह सकते
वह कागज़ के नोट खाये बगैर।
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कंधे पर बंदूक लटकाए
वह घूम रहे हैं
कहते हुए अपने को शेर,
दुश्मन बनाए हैं जमाने में
काँपते हैं हर पल
कब कौन कर देगा कब ढेर।
वि, लेखक एवं संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
poet,writer and editor-Deepak Bharatdeep, Gwaliro
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