जिंदगी के दरिया में बहते हुए
अपने मन की हलचलों के साथ
चला जाता हूं
कभी कभी किनारे पर आकर
करता हूं आत्म मंथन तो
अपने ही दिल के ख्यालों पर
अपने को हंसता पाता हूं।
किया था कुछ लोगों पर भरोसा
दिया था खुद को धोखा
दूसरों को क्या दोष देता।
निभाया था साथ अपनों का
अपनी इज्जत बढ़ाने के सुख की खातिर
क्यों शिकायत करूं कि
मैंने कुछ नहीं पाया।
कई इंसानी बुतों को रास्ता दिखाकर
मैंने अपने चिराग होने का अहसास पाला
उनका क्या दोष
जिन्होंने मतलब निकालकर
पलटकर नहीं देखा।
जब करता हूं आत्म मंथन
होता है यह अनुभव कि
मेरे मन में उठती हुई हलचल
क्षणिक रूप से उठती है
फिर गिरती है जिंदगी के सत्य रूपी दरिया में
व्यर्थ ही उनके साथ कभी हंसकर तो
कभी रोकर समय बिताया।
अपनी हालातों के लिये
बस अपने को ही जिम्मेदार पाया।
———–
कवि,लेखक,संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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कभी कभी किनारे पर आकर
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किया था कुछ लोगों पर भरोसा
दिया था खुद को धोखा
दूसरों को क्या दोष देता।
निभाया था साथ अपनों का
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क्यों शिकायत करूं कि
मैंने कुछ नहीं पाया।
कई इंसानी बुतों को रास्ता दिखाकर
मैंने अपने चिराग होने का अहसास पाला
उनका क्या दोष
जिन्होंने मतलब निकालकर
पलटकर नहीं देखा।
जब करता हूं आत्म मंथन
होता है यह अनुभव कि
मेरे मन में उठती हुई हलचल
क्षणिक रूप से उठती है
फिर गिरती है जिंदगी के सत्य रूपी दरिया में
व्यर्थ ही उनके साथ कभी हंसकर तो
कभी रोकर समय बिताया।
अपनी हालातों के लिये
बस अपने को ही जिम्मेदार पाया।
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दीपक भारतदीप द्धारा
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अनुभूति, अभिव्यक्ति, दीपक भारतदीप, दीपकबापू, मस्तराम, हिन्दी में प्रकाशित किया गया
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हैरानी है इस बात पर कि
समलैंगिकों के मेल पर लोग
आजादी का जश्न मनाते हैं,
मगर किसी स्त्री पुरुष के मिलन पर
मचाते हैं शोर
उनके नामों की कर पहचान,
पूछतें हैं रिश्ते का नाम,
सभ्यता को बिखरता जताते हैं।
कहें दीपक बापू
आधुनिक सभ्यता के प्रवर्तक
पता नहीं कौन हैं,
सब इस पर मौन हैं,
जो समलैंगिकों में देखते हैं
जमाने का बदलाव,
बिना रिश्ते के स्त्री पुरुष के मिलन
पर आता है उनको ताव,
मालुम नहीं शायद उनको
रिश्ते तो बनाये हैं इंसानों ने,
पर नर मादा का मेल होगा
तय किया है प्रकृति के पैमानों ने,
फिर जवानी के जोश में हुए हादसों पर
चिल्लाते हुए लोग, क्यों बुढ़ाये जाते हैं।
———-
योगी कभी भोग नहीं करेंगे
किसने यह सिखाया है,
जो न जाने योग,
वही पाले बैठे हैं मन के रोग,
खुद चले न जो कभी एक कदम रास्ता
वही जमाने को दिखाया है।
जानते नहीं कि
भटक जाये योगी,
बन जाता है महाभोगी,
पकड़े जाते हैं जब ऐसे योगी
तब मचाते हैं वही लोग शोर
जिन्होंने शिष्य के रूप में अपना नाम लिखाया है।
कवि, लेखक और संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
http://anant-shabd.blogspot.com
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