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नया आइडिया-हिन्दी हास्य कविता (new idea-hindi hasya kavita)


चेला पहुचा समाज सेवक के पास और बोला
‘‘महाराज,
गरीबों की सेवा,
स्त्रियों का उद्धार,
और असहायों की सहायता
जैसे जैसे काम करते
अपना भी मन भर आया
ऐसे में दिमाग में नया आईडिया भी आया।
आज एक खबर छपी है जिसने कन्या पक्ष ने
वर के माता पिता को दहेज में
नकली सोने के आभूषण के साथ
नकली नोटों का पुलिंदा थमाया,
ऐसे में मेरे अंदर दहेज पहचान केंद्र की
स्थापना कर लोगों की मदद करने का
ख्याल आया।
कमीशन लेंगे जोरदार
हम तो बटोरेंगे माल
दहेज देने और लेने वाले पर रहेगा
असल नकल का दारोमदार,
इस रंग बदलती दुनियां में
यह अच्छा समय आया
पड़ गयी है संस्कार और संस्कृति पर
संकट की छाया,
नकली नोट और सोने की पहचान में
हम करेंगे वरपक्ष की मदद,
अपना धंधा भी चलेगा
आपका भी धर्मरक्षके रूप में लोहा मनेगा,
चेलों को भी पहुंच जायेगी रसद,
संस्कार और धर्म की रक्षा करने का
इसी तरह एक नया अवसर आया।’’

सुनकर बोले
‘कमबख्त
यह कैसा विचार तेरे मन में आया,
तुझे शायद मेरे धंधों का ज्ञान नहीं है,
हमारी असल के पीछे नकल है
इसका तुझे भान नहीं है,
हमारे अपने लोग
घी, दूध, सोना और तेल
नकली बेचकर ही अपना काम चला रहे हैं,
इतने महान हैं कि
अपने घर में नकली तेल से चिराग जला रहे हैं,
मैं तो आंखें बंद कर करता हूं समाज सेवा,
चेले डाल जाते हैं अपनी सुरक्षा क लिये मेरे घर मेवा,
ऐसे में दहेज पहचान केद्र की स्थापना करना
अपने लोगों के लिये
संकट की बन सकती है वजह,
समाज में फिर बची कहां है असल के लिये जगह,
छा रही है सभी जगह नकल
शादी में कहां से आयेगी असल,
हमें तो बाहर असल और नैतिकता की बात करनी है,
अलबत्ता तिजोरी अपनी नकल से ही भरनी है,
इसलिये भूल जा अपना विचार,
हम क्यों करें समाज का उद्धार
असल में नकल करने वालों को ही सहारा देकर
हमने सम्मानीय स्थान पाया।’’

लेखक एवं संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर

poet,writer and editor-Deepak Bharatdeep, Gwaliro
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पहले से सब तय है-हिन्दी साहित्यक कविताएँ


चेतन हैं
पर जड़ जैसे दिखते हैं,
कलम उनके हाथ में
पर दूसरे के शब्द लिखते हैं।
चमकदार नाम वही चारों तरफ
पर उनके चेहरे बाज़ार में
दाम लेकर बिकते हैं।
—————
एक सवाल उठाता है
दूसरा देता है जवाब।
बहसें बिक रही है
विज्ञापन के सहारे
चेहरे पहले से तय हैं,
जुबान से निकले
और कागज़ में लिखे शब्द भी
पहले से तय हैं,
निष्कर्ष कोई नहीं
पर बात हमेशा होती है लाजवाब
—————-
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक ‘भारतदीप”,ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak ‘BharatDeep’,Gwalior

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सज्जन और दुर्जन-हिन्दी कविता (sajjan aur durjjan-hindi kavita)


सुना है रईस भी
कन्या के भ्रूण की हत्या कराते हैं,
दूसरे के आगे सिर झुकाने से
वह भी शर्माते हैं,
फिर गरीबों की क्या कहें,
जो हर पल कुचले जाने का दर्द सहें,
जिनका कत्ल हो गया
उनकी लाश होती गवाह
ज़माने में उसके कातिल दिखते है,
मगर गर्भ के भ्रूण की शिकायत भला कहां लिखते हैं,
पूरा समाज पहने बैठा है नकाब
कौन दुर्जन
कौन सज्जन
सभी चेहरे खूबसरत हैं
पूरे ज़माने को पहचान के संकट में पाते हैं।’’
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हिन्दू धर्म संदेश-ज्ञान आदमी को घमंडी भी बना देता है


महाराज भर्तृहरि नीति दर्शन के अनुसार
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यदा किंचिज्ज्ञोऽहं द्विप इव मदान्धः समभवम्
तदा सर्वज्ञोऽस्मीत्यभवदवलिपतं मम मनः
यदा किञ्चित्किाञ्चिद् बुधजनसकाशादवगतम्
तदा मूर्खोऽस्मीति जवन इव मदो में व्यपगतः
हिंदी में भावार्थ –जब मुझे कुछ ज्ञान हुआ तो मैं हाथी की तरह मदांध होकर उस पर गर्व करने लगा और अपने को विद्वान समझने लगा पर जब विद्वानों की संगत में बैठा और यथार्थ का ज्ञान हुआ तो वह अहंकार ज्वर की तरह उतर गया तब अनुभव हुआ कि मेरे समान तो कोई मूर्ख ही नहीं है।
वरं पर्वतदुर्गेषु भ्रान्तं वनचरैः सह
न मूर्खजनसम्पर्कः सुरेन्द्रभवनेष्वपि
हिंदी में भावार्थ – बियावान जंगल और पर्वतों के बीच खूंखार जानवरों के साथ रहना अच्छा है किंतु अगर मूर्ख के साथ इंद्र की सभा में भी बैठने का अवसर मिले तो भी उसे स्वीकार नहीं करना चाहिए।
वर्तमान सन्दर्भ में संपादकीय व्याख्या-मनुष्य की पंच तत्वों से बनी इस देह में मन, बुद्धि तथा अहंकार स्वाभाविक रूप से रहते हैं। अच्छे से अच्छे ज्ञानी को कभी न कभी यह अहंकार आ जाता है कि उसके पास सारे संसार का अनुभव है। इस पर आजकल अंग्रेजी शिक्षा पद्धति लोग तो यह मानकर चलते हैं कि उनके पास हर क्षेत्र का अनुभव है जबकि भारतीय अध्यात्मिक ज्ञान के बिना उनकी स्थिति अच्छी नहीं है। सच तो यह है कि आजकल जिन्हें गंवार समझा जाता है वह अधिक ज्ञानी लगते हैं क्योंकि वह प्रकृति से जुड़े हैं और आधुनिक शिक्षा प्राप्त आदमी तो एकदम अध्यात्मिक ज्ञान से परे हो गये हैं। इसका प्रमाण यह है कि आजकल हिंसा में लगे अधिकतर युवा आधुनिक शिक्षा से संपन्न हैं। इतना ही नहीं अब तो अपराध भी आधुनिक शिक्षा से संपन्न लोग कर रहे हैं।
जिन लोगों के शिक्षा प्राप्त नहीं की या कम शिक्षित हैं वह अब अपराध करने की बजाय अपने काम में लगे हैं और जिन्होंने अंग्रेजी में शिक्षा प्राप्त की और इस कारण उनको आधुनिक उपकरणों का भी ज्ञान है वही बम विस्फोट और अन्य आतंकवादी वारदातों में लिप्त हैं। इससे समझा जा सकता है कि उनके अपने आधुनिक ज्ञान का अहंकार किस बड़े पैमाने पर मौजूद है।
आदमी को अपने ज्ञान का अहंकार बहुत होता है पर जब वह आत्म मंथन करता है तब उसे पता लगता है कि वह तो अभी संपूर्ण ज्ञान से बहुत परे है। कई विषयों पर हमारे पास काम चलाऊ ज्ञान होता है और यह सोचकर इतराते हैं कि हम तो श्रेष्ठ हैं पर यह भ्रम तब टूट जाता है जब अपने से बड़ा ज्ञानी मिल जाता है। अपनी अज्ञानता के वश ही हम ऐसे अल्पज्ञानी या अज्ञानी लोगों की संगत करते हैं जिनके बारे में यह भ्रम हो जाता है वह सिद्ध हैं। ऐसे लोगों की संगत का परिणाम कभी दुखदाई भी होता है। क्योंकि वह अपने अज्ञान या अल्पज्ञान से हमें अपने मार्ग से भटका भी सकते हैं।

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धरती और आकाश-हिन्दी कविता (dharti aur akash-hinid kavita)


अपने दिल में उठे तमन्नाओं के तूफान से
आकाश में इतना क्यों उछल रहे हो,
अपने लंबे भारी भरकम पांवों के नीचे
क्यों बेबसों को कुचल रहे हो,
हमेशा आकाश की तरफ देखकर
न चला करो
धरती पर छोटे कांटे भी हैं,
जो चुभ गये कभी तो
औकात बता देंगे
सभी की तरह तुम भी जहर फैला रहे हो
अपने अनोखे होने का अहसास न दिलाओ
तुम भी उन लाखों लोगों में एक हो
जो ज़माने के लिये आग उगल रहे हो।

कवि,लेखक,संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
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