अपनी तन्हाई दूर करने के लिये
कई दरवाजे हमने खटखटाये,
बांटने चले थे अपने ग़म हम जिनके साथ
उनके दर्द अपने साथ और ले आये।
दिल को बहलाने के सामानों में
लोग हो गये मशगूल
शिकायत करो तो
खिलौने खरीदने पर
अपनी चुकाई कीमतों के पैमाने बताते हैं,
मुलाकाती ढूंढते हैं रुतवा दिखने के लिये
भले ही अकेलेपन के अहसास उनको भी सताते हैं,
जहां भी जज़्बातों का समंदर ढूंढा हमने
तन्हा लगा पूरा ज़माना
हमदर्दी के लिये सभी प्यासे नज़र आये।
—————————-
कवि, लेखक और संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
http://anant-shabd.blogspot.com
—————————–
‘दीपक भारतदीप की हिन्दी-पत्रिका’ पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका
हिन्दी कविता,hindi literature poem,hindi sahitya kavita,khilona,dil ko bahlana,tanhai,hindi sher,hindi sher-o-shayari,tanhai men zamana,hindi kavita