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अकाल और बाढ़-हिंदी लघु कथा


     गर्मी का समय था। स्कूल की इमारत के बाहर फूलों का पेड़ सूख रहा था। माली पास से गुजरा तो उसने उसे पुकार कर कहा‘-‘‘माली सर, आजकल आप मेरे पर पानी का छिड़काव नहीं करते हो। देखो, मैं गर्मी में  सूख रहा हूं।’’
माली ने कहा-‘‘तेरे पर पानी डालने का पैसा आजकल नहीं मिल रहा।  फाईल चालू है। जब पैसा मंजूर हो जायेगा। तेरा उद्धार अवश्य करूंगा।’’
     माली चला गया।  बहुत दिन बात आया तो उसके हाथ में पानी का बाल्टी थी। वह जब उस पर डालने के लिये उद्यत हुआ तो पेड़ ने कहा‘‘माली सर, अब छिड़काव की जरूरत नहीं है।  इतनी बरसात हो गयी है कि मैं पानी में आकंठ डूबा  हुआ हूं। लगता है सड़ न जाऊं। ऐसा करो पानी कहीं दूसरी जगह डालकर लोटे से मेरा यह पानी निकालो।’’
माली ने कहा-‘‘नहीं, मुझे पानी डालने का पैसा मिला है।  अब महीने भर तक यही कंरूगा। अगर तू मना करता है तो ठीक है कहीं  दूसरी जगह डाल दूंगा  पर  यह पानी की बाढ़ कम नहीं कर सकता क्योंकि इसका पैसा मुझे नहींText Box:      गर्मी का समय था। स्कूल की इमारत के बाहर फूलों का पेड़ सूख रहा था। माली पास से गुजरा तो उसने उसे पुकार कर कहा‘-‘‘माली सर, आजकल आप मेरे पर पानी का छिड़काव नहीं करते हो। देखो, मैं गर्मी में  सूख रहा हूं।’’ माली ने कहा-‘‘तेरे पर पानी डालने का पैसा आजकल नहीं मिल रहा।  फाईल चालू है। जब पैसा मंजूर हो जायेगा। तेरा उद्धार अवश्य करूंगा।’’      माली चला गया।  बहुत दिन बात आया तो उसके हाथ में पानी का बाल्टी थी। वह जब उस पर डालने के लिये उद्यत हुआ तो पेड़ ने कहा‘‘माली सर, अब छिड़काव की जरूरत नहीं है।  इतनी बरसात हो गयी है कि मैं पानी में आकंठ डूबा  हुआ हूं। लगता है सड़ न जाऊं। ऐसा करो पानी कहीं दूसरी जगह डालकर लोटे से मेरा यह पानी निकालो।’’ माली ने कहा-‘‘नहीं, मुझे पानी डालने का पैसा मिला है।  अब महीने भर तक यही कंरूगा। अगर तू मना करता है तो ठीक है कहीं  दूसरी जगह डाल दूंगा  पर  यह पानी की बाढ़ कम नहीं कर सकता क्योंकि इसका पैसा मुझे नहीं मिला।  अब जाकर तेरी दूसरी फाइल बनवाऊंगा। जब पैसा मंजूर होगा तब अगर तेरी मदद करूंगा।       पेड़ ने कहा-‘‘जल्दी जाओ, पानी डालने का जो पैसा मिला  उसे बाढ़ राहत में बदलवाओ।‘‘     माली ने कहा-‘‘नहीं, वह तो अब मेरे पास रहेगा। हां, तू यह शिकायत किसी से न करना कि मैं तुझ पर पानी नहीं डाल रहा वरना इस बाढ़ में तू सड़ जायेगा।’’       वह माली दोबारा दिवाली पर आया तो देखा वह पेड़ मृतप्राय अवस्था में था।  माली के हाथ में खाली लोटा था।  उसने पेड़ से कहा-‘‘अरे, तेरा तो अब पानी उतर गया है।  तू तो यहां गिरी पड़ी अंतिम सांस ले रहा है।’’    उस पेड़ ने कहा-‘‘ यह तेरी मेरी अंतिम मुलाकात है। बाढ़ ने इस बार इतना सताया कि अब मेरा अंतिम दिना आ गया है। अब तू यहां दूसरा पेड़ लगाने की तैयारी कर। हो सकता है कि दूसरा जन्म लेकर वापस आऊं’’   माली ने कहा-‘‘वह तो ठीक है ! पर एक बात कह देता हूं  कि मरने के बाद मेरी यह शिकायत किसी से न करना कि मैने तेरा पानी नहीं निकाला वरना यहां दूसरा पेड़ नहीं लगाउंगा। वरना तू पुनर्जन्म को तरस जायेगा।’’       पेड़ मर गया और माली दूसरी फाईल बनाने चला गया।   मिला।  अब जाकर तेरी दूसरी फाइल बनवाऊंगा। जब पैसा मंजूर होगा तब अगर तेरी मदद करूंगा।
      पेड़ ने कहा-‘‘जल्दी जाओ, पानी डालने का जो पैसा मिला  उसे बाढ़ राहत में बदलवाओ।‘‘
    माली ने कहा-‘‘नहीं, वह तो अब मेरे पास रहेगा। हां, तू यह शिकायत किसी से न करना कि मैं तुझ पर पानी नहीं डाल रहा वरना इस बाढ़ में तू सड़ जायेगा।’’
     वह माली दोबारा दिवाली पर आया तो देखा वह पेड़ मृतप्राय अवस्था में था।  माली के हाथ में खाली लोटा था।  उसने पेड़ से कहा-‘‘अरे, तेरा तो अब पानी उतर गया है।  तू तो यहां गिरी पड़ी अंतिम सांस ले रहा है।’’
   उस पेड़ ने कहा-‘‘ यह तेरी मेरी अंतिम मुलाकात है। बाढ़ ने इस बार इतना सताया कि अब मेरा अंतिम दिना आ गया है। अब तू यहां दूसरा पेड़ लगाने की तैयारी कर। हो सकता है कि दूसरा जन्म लेकर वापस आऊं’’
  माली ने कहा-‘‘वह तो ठीक है ! पर एक बात कह देता हूं  कि मरने के बाद मेरी यह शिकायत किसी से न करना कि मैने तेरा पानी नहीं निकाला वरना यहां दूसरा पेड़ नहीं लगाउंगा। वरना तू पुनर्जन्म को तरस जायेगा।’’
      पेड़ मर गया और माली दूसरी फाईल बनाने चला गया।
लेखक-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश

कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
http://rajlekh.blogspot.कॉम

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Text Box:      गर्मी का समय था। स्कूल की इमारत के बाहर फूलों का पेड़ सूख रहा था। माली पास से गुजरा तो उसने उसे पुकार कर कहा‘-‘‘माली सर, आजकल आप मेरे पर पानी का छिड़काव नहीं करते हो। देखो, मैं गर्मी में  सूख रहा हूं।’’ माली ने कहा-‘‘तेरे पर पानी डालने का पैसा आजकल नहीं मिल रहा।  फाईल चालू है। जब पैसा मंजूर हो जायेगा। तेरा उद्धार अवश्य करूंगा।’’      माली चला गया।  बहुत दिन बात आया तो उसके हाथ में पानी का बाल्टी थी। वह जब उस पर डालने के लिये उद्यत हुआ तो पेड़ ने कहा‘‘माली सर, अब छिड़काव की जरूरत नहीं है।  इतनी बरसात हो गयी है कि मैं पानी में आकंठ डूबा  हुआ हूं। लगता है सड़ न जाऊं। ऐसा करो पानी कहीं दूसरी जगह डालकर लोटे से मेरा यह पानी निकालो।’’ माली ने कहा-‘‘नहीं, मुझे पानी डालने का पैसा मिला है।  अब महीने भर तक यही कंरूगा। अगर तू मना करता है तो ठीक है कहीं  दूसरी जगह डाल दूंगा  पर  यह पानी की बाढ़ कम नहीं कर सकता क्योंकि इसका पैसा मुझे नहीं मिला।  अब जाकर तेरी दूसरी फाइल बनवाऊंगा। जब पैसा मंजूर होगा तब अगर तेरी मदद करूंगा।       पेड़ ने कहा-‘‘जल्दी जाओ, पानी डालने का जो पैसा मिला  उसे बाढ़ राहत में बदलवाओ।‘‘     माली ने कहा-‘‘नहीं, वह तो अब मेरे पास रहेगा। हां, तू यह शिकायत किसी से न करना कि मैं तुझ पर पानी नहीं डाल रहा वरना इस बाढ़ में तू सड़ जायेगा।’’       वह माली दोबारा दिवाली पर आया तो देखा वह पेड़ मृतप्राय अवस्था में था।  माली के हाथ में खाली लोटा था।  उसने पेड़ से कहा-‘‘अरे, तेरा तो अब पानी उतर गया है।  तू तो यहां गिरी पड़ी अंतिम सांस ले रहा है।’’    उस पेड़ ने कहा-‘‘ यह तेरी मेरी अंतिम मुलाकात है। बाढ़ ने इस बार इतना सताया कि अब मेरा अंतिम दिना आ गया है। अब तू यहां दूसरा पेड़ लगाने की तैयारी कर। हो सकता है कि दूसरा जन्म लेकर वापस आऊं’’   माली ने कहा-‘‘वह तो ठीक है ! पर एक बात कह देता हूं  कि मरने के बाद मेरी यह शिकायत किसी से न करना कि मैने तेरा पानी नहीं निकाला वरना यहां दूसरा पेड़ नहीं लगाउंगा। वरना तू पुनर्जन्म को तरस जायेगा।’’       पेड़ मर गया और माली दूसरी फाईल बनाने चला गया।  

 

मुफ्त में ईमानदारी-लघु हिन्दी हास्य व्यंग्य


                विद्यालय के संचालक ने प्राचार्य को बुलाकर कहा कि-‘‘देखो मैंने भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन में भाग लेने का फैसला किया है। तुम अपने साथ शिक्षकों को मेरे साथ रैली में भाग लेने के लिये तैयार रहने के लिये कहो। विद्यालय के छात्रों के लिये देश में व्याप्त भ्रष्टाचार रोकने के संबंध में विशेष ज्ञान देने का प्रबंध करो। मैं चाहता हूं कि मेरे साथ मेरे विद्यालय का नाम भी प्रचार के शीर्ष पर पहुंचे।’’
           प्राचार्य ने कहा-‘‘महाशय, आपका आदेश सिर आँखों  पर! मगर इसी आंदोलन  की वजह से हमारे विद्यालय के शिक्षक अब जागरुक हो गये हैं। आप जितने वेतन की रसीद पर हस्ताक्षर करते हो उसका चौथाई ही केवल भुगतान करते हैं। वह चाहते हैं कि कम से कम आधी रकम तो दें। विद्यार्थियों के पालक भी तयशुदा फीस से अलग चंदा या दान देकर नाराज होते हैं। ऐसे में आप स्वयं भले ही इस आंदोलन में सक्रियता दिखायें पर विद्यालय की सक्रियता पर विचार न करें, संभव है यह बातें आपके विरुद्ध प्रचार का कारण बने।’’
संचालक ने कहा-‘‘तुम कहना क्या चाहते हो, यह भ्रष्टाचार है! कतई नहीं, यह तो मेरा निजी प्रबंधन है। हम तो केवल सरकारी भ्रष्टाचार की बात कर रहे हैं!’’
            प्राचार्य ने कहा-‘हमारे पास कुछ मदों मे सरकारी पैसा भी आता है।’’
संचालक ने कहा-‘‘वह मेरा निजी प्रभाव है। ऐसा लगता है कि तुम देश का भ्रष्टाचार रोकने की बजाय उसकी आड़ में तुम मेरे साथ दाव खेलना चाहते हो! तुम मेरा आदेश मानो अन्यथा अपनी नौकरी खोने के लिये तैयार हो जाओ।’’
             आखिर प्राचार्य ने कहा-‘‘आपका आदेश मानने पर मुझे क्या एतराज हो सकता है? पर संभव है कि छात्रों के पालक अपने बच्चों में भ्रष्टाचार के विरुद्ध तिरस्कार का भाव देखकर नाराज हो जायें। आप तो जानते हैं कि अधिकतर माता पिता चाहते हैं कि उनका बच्चा पढ़ लिखकर बड़े पद पर पहुंचे। बड़ा पद भी वह जो मलाईदार हो। ऐसे में अगर उसकी निष्ठा कहीं ईमानदारी से हो गयी तो संभव है वह अधिक पैसा न कमा पाये। भला कौन माता पिता चाहेगा कि उसका बेटा मलाई वाली जगह पर बैठकर माल न कमाये। सभी चाहते हैं कि देश में भ्रष्टाचार खत्म हो पर उनके घर में ईमानदार पैदा हो यह कोई नहंीं चाहता। कहंी ऐसा न हो कि हमारे इस प्रयास पर पालक नाराज न होकर अपने बच्चों को दूसरे स्कूल पर भेजना शुरु करें और आपकी प्रसिद्धि ही विद्यालय की बदनामी बन जाये।’’
             संचालक कुछ देर खामोश रहा और फिर बोला-‘‘तुम क्या चाहते हो मैं भी वहां न जाऊं?’
प्राचार्य ने कहा-‘‘आप जाईये, पर अपने स्कूल का परिचय न दें। आप सारे देश में ईमानदारी लाने की बात अवश्य करें पर उसे अपने विद्यालय से दूर रखें।’’
           संचालक खुश हो गया। प्राचार्य बाहर आया तो एक अन्य शिक्षक जिसने दूसरे कमरे में यह वार्तालाप सुना था उससे कहा-‘‘आपने मना किया तो अच्छा लगा। बेकार में हमारे हिस्से एक ऐसा काम आ जाता जिसमें हमें कुछ नहीं मिलता। यह संचालक वैसे ही छात्रों से फीस जमकर वसूल करता है पर हम शिक्षकों को देने के नाम पर इसकी हवा निकल जाती है। वैसे आपके दिमाग में ऐसा बोलने का विचार कैसे आया?’’
         प्राचार्य ने कहा-‘‘अपनी जरूरतें जब पूरी न हों तो ईमानदारी की बात करना भी जहर जैसा लगता है। वैसे फोकट में भ्रष्टाचार का विरोध करना मैं भी ठीक नहीं समझता। खासतौर से जब इस आंदोलन को चलाने वाले घोषित रूप से चंदा लेने वाले हों। हमें अगर कोई पैसा दे तो एक बार क्या अनेक बार ऐसे आंदोलन में जाते। फोकट में टांगें तोड़ना या भाषण देना तो तब और भी मुश्किल हो जब हमें यही अपनी मेहनत का पैसा कम मिलता है।’’

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संकलक, लेखक और संपादक-दीपक भारतदीप,ग्वालियर 
athor and editor-Deepak  Bharatdeep, Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com

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बिग बॉस एक शानदार कार्यक्रम-हास्य कविता


फंदेबाज ने कहा
‘‘दीपक बापू
यह बिग बॉस धारावाहिक
अश्लीलता फैला रहा है
आप इस पर कोई लिखो हास्य कविता,
जल जाये जैसे इसकी चिता,
वैसे भी आप इंटरनेट पर फ्लाप चल रहे हो,
बेमतलब के कवि हिट हो गये
यही सोच जल रहे हो,
शायद बिग बॉस पर कुछ जोरदार लिखने से
आपका नाम चल जाये,
कोई सफल रचना आपका नाम लेकर छाये।’’

दीपक बापू मुस्कराये
‘‘लगता है हमसे लिखवाना कहीं
फिक्स कर आये हो,
शालीनता का संदेश फैलाने के नाम पर
बिग बॉस को सफल बनाने की
शायद सुपारी लाये हो,
समाचार चैनलों में बिग बॉस का नाम छाया है,
ऐसा कोई दिन नहीं जब उसका नाम न आया है,
मगर पब्लिक में नहीं है उसका प्रचार,
चाहे डाले जा रहे अश्लील विचार,
लोगों को शालीनता से ज्यादा
अश्लीलता पसंद आती है,
पर्दे पर साड़ी पहने औरत से अधिक
बिकनी पहनी अभिनेत्री पसंद आती है,
समाचार चैनल तो
उस पर अश्लीलता और अभद्रता का
आरोप लगाकर
लोगों को वह देखने के लिये उकसाते हैं,
भले ही खुद को संस्कृति का रक्षक जताते हैं,
लगता है हमसे अश्लीलता का आरोप लगवाकर
उसे बौद्धिक वर्ग का प्रचार
दिलवाना चाहते हो,
इसलिये हमसे हास्य कविता लिखवाना चाहते हो,
मगर हम तो यही कहेंगे
बिग बॉस अत्यंत शालीनता और
भद्र व्यवहार करना सिखा रहा है,
नयी पीढ़ी को नया मार्ग दिखा रहा है,
मु्फ्त में उसे असंस्कृत कह कर
उसका प्रचार नहीं करेंगे,
हम तो उसे संस्कृत और ज्ञानबर्द्धक कहकर
लोगों में अरुचि का भाव भरेंगे,
वैसे यह कार्यक्रम अब हिट नहीं रहा,
बदतमीजी करने में ज्यादा फिट भी किसी ने नहीं कहा,
गाली गलौच करने वाला कोई
महान कलाकर शायद इसमें नहीं आया,
कपड़े उतारकर शानदार अभिनय करे
ऐसा भी कोई घरवाला नहीं छाया,
बदनाम नहीं हुआ
इसलिये तुम भी शायद नही देखते हो,
इसलिये हमसे इंटरनेट पर
हास्य कविता लिखवाने की बात
हमारी तरफ ही फैंकते हो,
जहां तक हमारे फ्लाप होने सवाल है
तुम्हारी सफलता के नुस्खे
हमें दे जाते हैं हास्य कविता का विषय
भले ही वह कभी हमने नहीं आजमाये।’’
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वि, लेखक एवं संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
poet,writer and editor-Deepak Bharatdeep, Gwaliro
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असमंजस-हिंदी लघुकथा (hindi lagu katha)


     पिता ने अपनी पूरी जिंदगी छोटी दुकान पर गुजारी और वह नहीं चाहते थे कि उनका पुत्र भी इसी तरह अपनी जिंदगी बर्बाद करे। उन्होंने अपने पुत्र को खूब पढ़ाया। पुंत्र कहता था कि ‘पापा, मुझे नौकरी नहीं करनी!
     पिता कहते थे कि-‘नहीं बेटे! धंधे में न तो इतनी कमाई है न इज्जत। बड़ा धंधा तो तुम कभी नहीं कर पाओगे और छोटा धंधा में करने नहीं दूंगा। नौकरी करोगे तो एक नंबर की तनख्वाह के अलावा ऊपरी कमाई भी होगी।’
     पुत्र ने खूब पढ़ाई की। आखिर उसे एक कंपनी में नौकरी मिल गयी। जब पहले दिन वह लौटा तो पिता ने पूछा-‘कैसी है नौकरी? कमाई तो ठीक होगी न!’
पुत्र ने कहा-‘हां, पापा नौकरी तो बहुत अच्छी है। अच्छा काम करूंगा तो बोनस भी मिल जायेगा। थोड़ा अतिरिक्त काम करूंगा तो वेतन के अलावा भी पैसा मिल जायेगा।’
     पिता ने कहा-‘यह सब नहीं पूछ रहा! यह बताओ कहीं से इसके अलावा ऊपरी कमाई होगी कि नहीं। यह तो सब मिलता है! हां, ऐसी कमाई जरूर होना चाहिये जिसके लिये मेहनत की जरूरत न हो और किसी को पता भी न चले। जैसे कहीं से सौदे में कमीशन मिलना या कहीं ठेके में बीच में ही कुछ पैसा अपने लिये आना।’
     पुत्र ने कहा-‘नहीं! ऐसी कोई उम्मीद नहीं है। यह सारा काम तो बड़े स्तर के अधिकारी करते हैं और फिर कंपनी में इस तरह की कोई कमाई नहीं कर सकता।’
     पिता ने कहा-‘तुझे पढ़ाना लिखाना बेकार गया! एक तरह से मेरा सपना टूट गया। तुझे ऐसी ही कंपनी मिली थी नौकरी करने के लिये जहां ऊपरी कमाई करने का अवसर ही न मिले। मैं तो सोच रहा था कि ऊपरी कमाई होगी तो शान से कह सकूंगा। वैसे तुम अभी यह बात किसी से न कहना। हो सकता है कि आगे ऊपरी कमाई होने लगे।’
     पुत्र ने कहा-‘इसके आसार तो बिल्कुल नहीं है।’
 पिता ने कहा-‘प्रयास कर देख तो लो। प्रयास से सभी मिल जाता है। वैसे अब तुम्हारी शादी की बात चला रहा हूं। इसलिये लोगों से कहना कि ऊपरी कमाई भी होती है। लोग आजकल वेतन से अधिक ऊपरी कमाई के बारे में पूछते हैं। इसलिये तुम यही कहना कि ऊपरी कमाई होती है। फिर बेटा यह समय है, पता नहीं कब पलट जाये। हो सकता है कि आगे ऊपरी कमाई का जरिया बन जाये। इसलिये अच्छा है कि तुम कहते रहो कि ऊपरी कमाई भी होती है इससे अच्छा दहेज मिल जायेगा।’
     पुत्र ने कहा-‘पर पापा, मैं कभी ऊपरी कमाई की न सोचूंगा न करूंगा।’
     पिता ने कहा-पागल हो गया है! यह बात किसी से मत कहना वरना तेरी शादी करना मुश्किल हो जायेगा। हो भी गयी तो जीवन गुजारना मुश्किल है।
     पुत्र चुप हो गया। पिता के जाने के बाद वह घर की छत की तरफ देखता रहा।
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