Tag Archives: hindi hasya kavita

उस्ताद और शागिर्द का मुफ्त का खेल-हिंदी हास्य कविता


उस्ताद ने शागिर्द से कहा
” इस साल के सालाना जलसे के
अपने प्रचार पत्र में तुमने
यह घोषणा कैसे डाल दी है।
हम गरीब बच्चों को
मुफ्त कापियां पेन और किताबें
मुफ्त बांटेंगे,
कभी सोचा है कि
हम चंदे का इस्तेमाल अगर
ऐसा करेंगे तो
क्या खुद पूरा साल धूल चाटेंगे,
विरोधियों को हंसने वाली
यह बैठे बिठाये कैसी चाल दी है.”
सुनकर शागिर्द बोला
“आपके साथ काम करने में
यही परेशानी है,
मेरी चालों से कमाते
पर फिर भी शक जताते
यह देखकर होती हैरानी है,
लोगों के भले का हम दंभ भरते,
छोड़ भलाई सारे काम करते,
पढ़ने वाले गरीब बच्चे
भला हमारे पास कब आयेंगे,
सामान खत्म हो गया
अगर आया कोई भूले भटके तो
उसे बताएँगे,
देश में जितने बढ़े है गरीब,
समाज सेवकों के चढ़े हैं नसीब,
लोगों की इतनी नहीं बढ़ी समस्याएँ,
जितनी उनके लिए बनी हैं समाज सेवी संस्थाएं,
ऐसे में यह मुफ्त मुफ्त का खेल
अब जरूरी है,
सस्ते में दवाएं बांटने का कम हो गया पुराना
इसलिए नया दाव लगाना एक मजबूरी है,
विरोधियों के सारे विकेट उड़ा दे
मैंने यह ऐसी बाल की है।”


कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक ‘भारतदीप”,ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak ‘BharatDeep’,Gwalior

http://dpkraj.blogspot.com

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बिग बॉस एक शानदार कार्यक्रम-हास्य कविता


फंदेबाज ने कहा
‘‘दीपक बापू
यह बिग बॉस धारावाहिक
अश्लीलता फैला रहा है
आप इस पर कोई लिखो हास्य कविता,
जल जाये जैसे इसकी चिता,
वैसे भी आप इंटरनेट पर फ्लाप चल रहे हो,
बेमतलब के कवि हिट हो गये
यही सोच जल रहे हो,
शायद बिग बॉस पर कुछ जोरदार लिखने से
आपका नाम चल जाये,
कोई सफल रचना आपका नाम लेकर छाये।’’

दीपक बापू मुस्कराये
‘‘लगता है हमसे लिखवाना कहीं
फिक्स कर आये हो,
शालीनता का संदेश फैलाने के नाम पर
बिग बॉस को सफल बनाने की
शायद सुपारी लाये हो,
समाचार चैनलों में बिग बॉस का नाम छाया है,
ऐसा कोई दिन नहीं जब उसका नाम न आया है,
मगर पब्लिक में नहीं है उसका प्रचार,
चाहे डाले जा रहे अश्लील विचार,
लोगों को शालीनता से ज्यादा
अश्लीलता पसंद आती है,
पर्दे पर साड़ी पहने औरत से अधिक
बिकनी पहनी अभिनेत्री पसंद आती है,
समाचार चैनल तो
उस पर अश्लीलता और अभद्रता का
आरोप लगाकर
लोगों को वह देखने के लिये उकसाते हैं,
भले ही खुद को संस्कृति का रक्षक जताते हैं,
लगता है हमसे अश्लीलता का आरोप लगवाकर
उसे बौद्धिक वर्ग का प्रचार
दिलवाना चाहते हो,
इसलिये हमसे हास्य कविता लिखवाना चाहते हो,
मगर हम तो यही कहेंगे
बिग बॉस अत्यंत शालीनता और
भद्र व्यवहार करना सिखा रहा है,
नयी पीढ़ी को नया मार्ग दिखा रहा है,
मु्फ्त में उसे असंस्कृत कह कर
उसका प्रचार नहीं करेंगे,
हम तो उसे संस्कृत और ज्ञानबर्द्धक कहकर
लोगों में अरुचि का भाव भरेंगे,
वैसे यह कार्यक्रम अब हिट नहीं रहा,
बदतमीजी करने में ज्यादा फिट भी किसी ने नहीं कहा,
गाली गलौच करने वाला कोई
महान कलाकर शायद इसमें नहीं आया,
कपड़े उतारकर शानदार अभिनय करे
ऐसा भी कोई घरवाला नहीं छाया,
बदनाम नहीं हुआ
इसलिये तुम भी शायद नही देखते हो,
इसलिये हमसे इंटरनेट पर
हास्य कविता लिखवाने की बात
हमारी तरफ ही फैंकते हो,
जहां तक हमारे फ्लाप होने सवाल है
तुम्हारी सफलता के नुस्खे
हमें दे जाते हैं हास्य कविता का विषय
भले ही वह कभी हमने नहीं आजमाये।’’
————

वि, लेखक एवं संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
poet,writer and editor-Deepak Bharatdeep, Gwaliro
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भक्ति और कमाई-हिन्दी हास्य कविता (bhakti aur kamai-hindi hasya kavita)


दादा ने कहा पोते से
“बड़ा होकर तू
अपने बाप की तरह नौकरी नहीं करना,
दूसरे की चाकरी में जाएगी ज़िंदगी वरना,
बन जाना कोई कारखानेदार,
कहलाएगा इज्जतदार,
इस तरह तेरे साथ
तेरे बाप के साथ मेरा भी
नाम रौशन   हो जाएगा।”

सुनकर पोता हंसा
“क्या बात करते है आप
उद्यमियों की क्या औकात
लोग कर रहें संतों और साधुओं का जाप,
अपने शायद सुना नहीं
उद्योपातियों से अधिक दौलत
अब साधू संतों के पास पायी जाती है,
दौलतमंदों को चोर मानती जनता
भक्ति के व्यापार में
सोने के शिखर पर चढ़े
कथित संतों की  छवि
समाज में ऊंची पाई जाती है,
मैं सोच रहा हूँ
आपसे कुछ ज्ञान प्राप्त करूँ,
फिर संत का वेश धरूँ,
पैसा भी होगा
प्रतिष्ठा भी होगी,
इससे आपका वंश
सदियों तक याद किया जाएगा।

लेखक और संपादक-दीपक “भारतदीप”,ग्वालियर 
poet, writer and editor-Deepak ‘BharatDeep’,Gwalior

writer aur editor-Deepak ‘Bharatdeep’ Gwalior

स्वयंवर का खतरा-हास्य कविता (svayanvar ka khatra-hasya kavita)


आशिक ने माशुका से कहा
‘एक टीवी चैनल वाले ने अपने कार्यक्रम में
मेरे को स्वयंवर का प्रस्ताव दिया है,
मैंने भी उससे तुम्हें ही चुनने का
पक्का वादा लिया है,
चलो इस बहाने देश में लोकप्रिय हो जायेंगे
अपना ‘फिक्स स्वयंवर’ रचायेंगे।’
माशुका बोली
‘क्या पगला गये हो,
यह टीवी और फिल्म वाले
भले ही हिन्दी का खाते हैं
शब्द सुनते जरूर पर अर्थ नहीं समझ पाते हैं,
बन गये हैं सभी उनके दीवाने,
इसलिये भाषा से हो गये वीराने,
स्वयंवर में वधु चुनती है वर,
और स्वयंवधु की कोई प्रथा नहीं है मगर,
फिर कहीं मिल गया कोई क्रिकेटर
या भा गया कोई एक्टर
तब तुम्हें भूल जायेंगे,
बिना पैसे मिले प्रचार की वजह से
हम यूं ही बदनाम हो जायेंगे,
वैसे भी लगता है तुम झांसा दे रहे हो,
मेरा इम्तहान ले रहे हो,
क्योंकि तुम्हें मुझ पर विश्वास नहीं,
विवाह तुमसे करूंगी यह आस नहीं है,
इसलिये शायद मुझे फंसा रहे हो,
दिखाने के लिये हंसा रहे हो
यह बाज़ार और प्रचार है जुड़वां भाई,
मेल इनका ऐसा ही है जैसे फरसा और कसाई
हम जैसे लाखों हैं आशिक माशुकाऐं,
मिले टीवी पर मौका तो
बदल दें सभी अपनी आज की आस्थाऐं,
झूठा है तो ठीक
पर अगर सच्चा है तुम्हारा दावा,
होगा दोनों को पछतावा,
प्रसिद्ध हो जाने पर हम कभी
साथ नहीं चल पायेंगे।
तुम्हारे पीछे दौड़ेंगी दूसरी माशुकाऐं
मेरे पीछे भी ढेर सारे आशिक चले आयेंगे।’
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कवि, लेखक और संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
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किस जमाने की माशुका हो-हिन्दी हास्य कविता (hindi poem on love)


 माशुका ने पूछा आशिक से

‘अगर शादी के बाद मैं

मर गयी तो क्या

मेरी याद में ताजमहल बनवाओगे।’

आशिक ने कहा

‘किस जमाने की माशुका हो

भूल जाओ चैदहवीं सदी

जब किसी की याद में

कोई बड़ी इमारत बनवाई जाती थी,

फिर समय बदला तो

किसी की याद में कहीं पवित्र जगह पर

बैठने के लिये बैंच लगती तो

कहीं सीढ़ियां बनवायी जाती थी,

अब तो किस के पास समय है कि

धन और समय बरबाद करे

अब तो मरने वाले की याद में

बस, मोमबत्तियां जलाई जाती हैं

दिल में हो न हो

बाहर संवेदनाएं दिखाई जाती हैं

हमारा दर्शन कहता है कि

जीवन और मौत तो

जिंदगी का हिस्सा है

उस पर क्या हंसना क्या रोना

अब यह मत पूछना कि

मेरे मरने पर मेरी अर्थी पर

कितनी मोमबतियां जलाओगे।’

कवि, लेखक और संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
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