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यहाँ बदलते हैं रिश्ते


जब काम था वह रोज
हमारे गरीबखाने पर आये
अब उन्हें हमें याद करने की
फुरसत भी नहीं मिलती
गुजरे पलों की उन्हें कौन याद दिलाये
हम डरते हैं कि
कहीं याद दिलाने पर
उन्हें अपने कमजोर पल न सताने लगें
वह यह सोचकर मिलने से
बहुत घबडाते हैं कि
हम उन्हें अपनी पुरानी असलियत का
कहीं आइना न दिखाने लगें
दूरियां है कि बढती जाएँ
टूटे-बिखरे रिश्तों को फिर जोड़ना
इतना आसान नहीं जितना लगता है
बात पहले यहीं अटकती हैं कि
आगे पहले कब और क्यों आये
अच्छा है मतलब से बने
रिश्तों को भूल ही जाएँ
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इस रंग बदलती दुनिया मैं
बदल जाते हैं रिश्ते भी
अपनों से चलते हैं
संबंध बरसों तक
पराये से लगते हैं वह भी कभी
प्रेम से जो साथ चले
वह अपना है
जहाँ कम होते लगें
छोड़ तो उन्हें तभी

बस यही संदेश इस पावन पर्व पर सुनाते


नीचे से ऊपर जाते हुए पटाखे
धमाके से कानों को कंपाते
साथ में नीचे आते प्रदूषण लाते
नीचे चलती गाडियाँ
तेज लाईट से आंखों को अंधा करती
और हार्न से निकला भयानक शोर
रास्ते के दोनों और बिखरी रौशनी
में भी उसके जलते अँधेरे का अहसास कराते
खुशी में चिराग जलाने के तो
खूब सुने हैं अफसाने
अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारता हो
एकजुट होकर समाज
नही मिलतीं ऐसी दास्ताने
अंधी दौड़ में शामिल हैं सब लोग
जिनमें अक्ल है ताकत नहीं है
जिनके पास ताकत है तो
नीयत में है अपने लाभ पाने का स्वार्थ
इसलिए चेतना का अलख नहीं जगाते

कहैं दीपक बापू
किस-किसको रोईये
आराम बड़ी चीज है
मुहँ ढककर सोईये
यह नीति अच्छी होती
अगर आवाजों से नींद नहीं टूटी होती
चैन होता हमें भी अगर
मिठाई के नाम पर विष को
परोसते नहीं देख पाते
करते समाज सेवा का व्यापार तो
हम ही चेतना का अलख जगाते
बना लेते कोई बड़ा आश्रम
इन आवाजों से दूर रह पाते
चूंकि दर्द है कई लोग का
उनका हमदर्द बन जाते
यह त्यौहार खाने-पीने के ही लिए नहीं
चिंतन और मनन के लिए भी आते
कुछ सोचो कहाँ जा रहे हो
अपने हाथ से अपने लिए विष जुटा रहे हो
बस यही सन्देश इस पावन पर्व पर सुनाते
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सात समंदर भी कम होंगे


अगर सुबह का भूला शाम को
घर लौट आये तो बुद्धिमान कहलाता
पर रात को जो भटका घर लौटे तो
उसको माफ़ क्यों नहीं किया जाता
शायद आदमी के पाप सूरज की अग्नि में
जलकर राख हो जाते हैं पर
रात को अंधियारे में चाँद की तरह लगा दाग
कभी नहीं मिट पाता
इसीलिए भी रात का भटका
कभी घर वापस नहीं आता
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एक घूँट मिले तो ग्लास चाहिए
ग्लास मिले तो गागर चाहिए
गागर मिले तो सागर चाहिए
प्यास अगर पानी से बुझने वाली होती तो
कोई जंग नहीं होती
पर जो पैसे से बुझती है
उसको बुझाने के लिए तो
सात समंदर भी कम होंगे
उसके लिए तो दिल को तसल्ली
देने के लिए कोई अच्छा ख्याल चाहिए
आदमी को पैगाम पर पैगाम देने कुछ नहीं होगा
उन पर अमल करने का जज्बा चाहिए

रावण तुम कभी मर नहीं सकते-कविता


रावण तुम कभी मर नहीं सकते
क्योंकि तुम्हारे बिना राम को लोग
कभी समझ नहीं सकते
बरसों से जला रहे हैं तुम्हारे पुतले
तुम्हारे दोषों को गिनाते हुए
हर बार तुम्हारी बरसी पर
रामजी जैसे बनने की सौगंध खाते हैं
पर तुम्हारा पुतला फूँकने के बाद भूल जाते हैं
रामजी की भक्ति करने की बजाय
तुम्हारे जैसे सुखों की तलाश में जुट जाते हैं
भक्ति के लिए बैठने की बजाय
तुम्हारी तरह माया के पीछे
दौड़ने में ही वह सुख पाते हैं
तुमने जो भेजा था मारीचि को
सोने का मृग बनाकर
सीता को भरमाने के लिए
राम तो जानते हुए उस छल में फंसे थे
रामजी का बाण खाकर वह भी
हुआ ऐसा अमर कि
पूरी दुनिया के लोग जानते हुए भी
मृग- मारिचिका में फंसने से ही मौज पाते हैं
युद्ध में रामजी का बाण खाकर
उनका दर्शन करते हुए प्राण त्यागते हुए
तुमने पाया है अमरत्व
रामजी का तो लोग लेते हैं नाम
मार्ग तो तुम्हारे ही पर चलते जाते हैं
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समस्त पाठकों को दशहरा पर्व की बधाई-दीपक भारतदीप