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ईमानदारी संग भ्रष्टाचार-हिन्दी हास्य कविता


शिक्षक ने छात्रों से पूछा
“तुम में से बड़ा होकर कौन
भ्रष्टाचार से लड़ेगा,
समाज में ईमानदारी के रंग भरेगा,
यह काम मुश्किल है
क्योंकि बिना रिश्वत के तो
अपने घर में इज्ज़त भी नहीं रह जाती है,
तनख्वाह के भरोसे चले तो
तीन तारीख को ही
जेब खाली नज़र आती है,
खुद रहो सूखे तो कोई बात नहीं
पर भ्रष्टाचार से लड़ने निकले तो
अपनी जान भी मुसीबत फंस सकती है,
गैरों में ही नहीं अपनों की नज़र में भी
इज्ज़त धंस सकती है,
बताओ तुम में कौन
देश में बदलाव का बीड़ा उठाएगा।

एक छात्र मे कहा
“मैं करूंगा भ्रष्टाचार से ज़ंग,
भरूगा देश में ईमानदारी का रंग,
हाँ,
इससे पहले खूब कमा लूँगा,
सबकी सेवा हो जाए
इसके लिए रुपयों का इंतजाम करा दूँगा,
फिर कोई ताना नहीं मारेगा,
धन की कमी न होगी तो
कोई गैर ज़िम्मेदार होने का आरोप हम पर नहीं धरेगा,
घर के बड़े लोगों ने
बस कमाने के लिए कहा है,
शिक्षा खत्म होते ही
पहले यही काम करेंगे
उनको पहले सुने, यह उनका हक है
सभी ने यही कहा है,
बाद में आपकी बताई राह चलेंगे,
ईमानदारी क्या शय है समझेंगे,
फिर तो हर कोई
आपके नाम पर अपनी जान लुटाएगा।
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लेखक और संपादक-दीपक “भारतदीप”,ग्वालियर 
poet, writer and editor-Deepak ‘BharatDeep’,Gwalior

writer aur editor-Deepak ‘Bharatdeep’ Gwalior