सामने से आती
बेईमान हवाओं की
उनको पहचान नहीं
है।
है।
बहने को आतुर
सामना करते हुए
टिकते नहीं
टिकते नहीं
उनकी रीढ़ की
हड्डी में
हड्डी में
इतनी जान नहीं
है।
है।
रंग बिरंगा आकाश
खरीदने की चाहत
है
है
अपने लिये ही
खुद के दिल में
शान नहीं है।
शान नहीं है।
कहें दीपक बापू
आदर्श की बात
आदर्श की बात
परीक्षा के लिये
रट लीं
रट लीं
पद और पैसे की
दौड़ में जुटे
दौड़ में जुटे
अक्ल के अंधों
को
को
बाकी कुछ ध्यान
नहीं है।
नहीं है।
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राजमार्ग पर जो निकल गये
वह कवि से
महाकवि हो गये।उपाधियों का बोझ
जिनके सिर पर आया
उनके शब्द आमजन की सपंत्ति थे
विशिष्ट सभा में खो गये।
राजमार्ग पर जो निकल गये
वह कवि से
महाकवि हो गये।उपाधियों का बोझ
जिनके सिर पर आया
उनके शब्द आमजन की सपंत्ति थे
विशिष्ट सभा में खो गये।
कहें दीपक बापू बिकती है कलम
बाज़ार में सस्ते भाव,
अपनी पंसद के शब्द
अपनी प्रशंसा के गीत पर
लगाते दौलतमंद दाव,
बिके जो रचनाकार प्रसिद्धि पाई
रहे स्वंतत्र उन्होंने सिद्धि पाई
यह अलग बात है
अपनी जिंदगी का बोझ
खाली हाथ ढो गये।
लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप
ग्वालियर मध्य प्रदेश
Writer and poet-Deepak Raj Kukreja “Bharatdeep”
Gwalior Madhyapradesh
Gwalior Madhyapradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
poet,writer and editor-Deepak Bharatdeep, Gwaliro
यह आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप का चिंतन’पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
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