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कवि से महाकवि-हिंदी व्यंग्य कविता (kavi se mahakavai-hindi satire poem


सामने से आती
बेईमान हवाओं की
उनको पहचान नहीं
है।
बहने को आतुर
सामना करते हुए
टिकते नहीं
उनकी रीढ़ की
हड्डी में
इतनी जान नहीं
है।
रंग बिरंगा आकाश
खरीदने की चाहत
है
अपने लिये ही
खुद के दिल में
शान नहीं है।
कहें दीपक बापू
आदर्श की बात
परीक्षा के लिये
रट लीं
पद और पैसे की
दौड़ में जुटे
अक्ल के अंधों
को
बाकी कुछ ध्यान
नहीं है।
———————–
 
राजमार्ग पर जो निकल गये
वह कवि से
महाकवि हो गये।उपाधियों का बोझ
जिनके सिर पर आया
उनके शब्द आमजन की सपंत्ति थे
विशिष्ट सभा में खो गये।

कहें दीपक बापू बिकती है कलम
बाज़ार में सस्ते भाव,
अपनी पंसद के शब्द
अपनी प्रशंसा के गीत पर
लगाते दौलतमंद दाव,
बिके जो रचनाकार प्रसिद्धि पाई
रहे स्वंतत्र उन्होंने सिद्धि पाई
यह अलग बात है
अपनी जिंदगी का बोझ
खाली हाथ ढो गये।

लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप 
ग्वालियर मध्य प्रदेश
Writer and poet-Deepak Raj Kukreja “Bharatdeep”
Gwalior Madhyapradesh


वि, लेखक एवं संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
poet,writer and editor-Deepak Bharatdeep, Gwaliro

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