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आज़ाद पंछी और गुलाम इन्सान-हिंदी व्यंग्य कविता


आजाद तो पंछी हैं
चाहे जहां उड़ जाते हैं,
इंसान का मन उड़ता है
पर लाचार देह में पंख कहां
जुड़ पाते हैं।
कहें दीपक बापू
औकात से ज्यादा
कामयाबी पाने की ख्वाहिश
मतलबपरस्ती के साथ जीने की आदत
सपना इज्जतदार कहलाने का
हर आदमी इंसान गुलाम अपने दिल का
जुबां से उगलते लफ्ज जहर की तरह
प्यारे बोल का अब गुड़ कहां पाते हैं। 
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लेखक एवं कवि- दीपक राज कुकरेजा,‘‘भारतदीप’’, ग्वालियर
लेखक और संपादक-दीपक “भारतदीप”,ग्वालियर 
poet, writer and editor-Deepak ‘BharatDeep’,Gwalior

writer aur editor-Deepak ‘Bharatdeep’ Gwalior