writer aur editor-Deepak ‘Bharatdeep’ Gwalior
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writer aur editor-Deepak ‘Bharatdeep’ Gwalior
सुनकर बोले
‘कमबख्त
यह कैसा विचार तेरे मन में आया,
तुझे शायद मेरे धंधों का ज्ञान नहीं है,
हमारी असल के पीछे नकल है
इसका तुझे भान नहीं है,
हमारे अपने लोग
घी, दूध, सोना और तेल
नकली बेचकर ही अपना काम चला रहे हैं,
इतने महान हैं कि
अपने घर में नकली तेल से चिराग जला रहे हैं,
मैं तो आंखें बंद कर करता हूं समाज सेवा,
चेले डाल जाते हैं अपनी सुरक्षा क लिये मेरे घर मेवा,
ऐसे में दहेज पहचान केद्र की स्थापना करना
अपने लोगों के लिये
संकट की बन सकती है वजह,
समाज में फिर बची कहां है असल के लिये जगह,
छा रही है सभी जगह नकल
शादी में कहां से आयेगी असल,
हमें तो बाहर असल और नैतिकता की बात करनी है,
अलबत्ता तिजोरी अपनी नकल से ही भरनी है,
इसलिये भूल जा अपना विचार,
हम क्यों करें समाज का उद्धार
असल में नकल करने वालों को ही सहारा देकर
हमने सम्मानीय स्थान पाया।’’
लेखक एवं संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
पुरानी प्रेमिका मिली अपने
पुराने प्रेमी कवि से बहुत दिनों बाद
और बोली,
‘कहो क्या हाल हैं,
तुम्हारी कविताओं की कैसी चाल है,
सुना है तुम मेरी याद में
विरह गीत लिखते थे,
तुम पर सड़े टमाटर और फिंकते थे,
अच्छा हुआ तुमसे शादी नहीं की
वरना पछताती,
कितना बुरा होता जब बेस्वादी चटनी से
बुरे आमलेट ही जीवन बिताती,
तुम भी दुःखी दिखते हो
क्या बात है,
पिचक गये तुम्हारे दोनों गाल हैं,
मेरी याद में विरह गीत लिखते तुम्हारा
इतना बुरा क्यों हाल है।’
सुनकर कवि बोला
‘तुमसे विरह होना अच्छा ही रहा था,
उस पर मेरा हर शेर हर मंच पर बहा था,
मगर अब समय बदल गया है,
कन्या भ्रुण हत्याओं ने कर दिया संकट खड़ा,
लड़कियों की हो गयी कमी
हर नवयुवक इश्क की तलाश में परेशन है बड़ा,
जिनकी जेब भरी हुई है
वह कई जगह साथ एक जगह जुगाड़ लगाते हैं,
जिनके पास नहीं है खर्च करने को
वह केवल आहें भर कर रह जाते हैं,
विरह गीतों का भी हाल बुरा है,
हर कोई सफल कवि हास्य से जुड़ा है,
इश्क हो गयी है बाज़ार में बिकने की चीज,
पैसा है तो करने में लगता है लज़ीज,
एक से विरह हो जाने से कौन रोता है,
दौलत पर इश्क यूं ही फिदा होता है,
दिल से नहीं होते इश्क कि टूटने पर कोई हैरान हो,
कल दूसरे से टांका भिड़ जाता है
फिर क्यों कोई विरह गीत सुनने के लिये परेशान हो,
जिन्होंने बस आहें भरी हैं
उनको भी इश्क पर हास्य कविता
सुनने में मजा आता है,
आशिक माशुकाओं का खिल्ली उड़ाने में
उनका दिल खिल जाता है,
कन्या भ्रुण हत्याओं ने कर दिया कचड़ा समाज का,
इश्क पर फिल्में बने या गीत लिखे जा रहे ज्यादा
मगर तरस रहा इसके लिये आम लड़का आज का,
तुम्हारे विरह का दर्द तो अभी अंदर है
मगर उस पर छाया अब हास्य रस का जाल है।
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कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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कुछ रिश्ते बन गये
कुछ हमने भी बनाये,
मगर कुछ चले
कुछ नहीं चल पाये,
समय की बलिहारी
कुछ उसने पानी में बहाये।
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नाच न सके नटों की तरह, इसलिये ज़माने से पिछड़ गये।
सभी की आरज़ू पूरी न कर सके, अपनों से भी बिछड़ गये।
महलों में कभी रहने की ख्वाहिश नहीं की थी हमने,
ऐसे सपने देखने वाले हमराहों से भी रिश्ते बिगड़ गये।
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कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
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एक कवि सम्मेलन में मंच पर
पहुंच गया ब्लोगर
लोगों ने समझा कोई नया कवि आया
सबकी पुरानी कवितायेँ झेलते हुए
उसको सुनने के इन्तजार में बिताया
आख़िर उसके मित्र कवि संचालक ने
उसे भी कविता सुनाने के लिए बुलाया
‘और कहा कि आज हम सुनेंगे
अंतर्जाल के महान कवि जो बहुत हिट हैं
नए जमाने में पूरी तरह फ़िट हैं ‘
ब्लोगर ने गला किया साफ और
सुनाने लगा वहीं सुनाई गयी
कविताओं के अंश
साथ मे रखता ‘बहुत बढ़िया’
और ‘बहुत सुन्दर’ जैसे शब्द
लोग चीखने और चिल्लाने लगे
और पूछने लगे
‘कैसा है ब्लोगर यहीं की कवितायेँ
फिर हमें सुनाता है और
अपने दो शब्द चिपकाता है’
ब्लोगर बोला
‘ यह ठीक समझो कि
यहाँ कुछ पंक्तियां लेकर
कमेंट लगा रहा हूँ जैसे
वहां करता हूँ
अगर पूरी की पूरी पोस्ट ही लिंक कर देता
तो तुम्हारा क्या हाल होता
सोचो तुम्हारा कितना समय बच जाता है ‘
लोग हल्ला मचाने लगे
कवियों ने उसे किसी तरह वहाँ से हटाया
वह अपने मित्र से बोला
‘कैसे लोग हैं ज़रा भी तमीज नहीं है
कितना हिट हूँ मैं वहां
यहाँ हूट कर दिया
नहीं जानते कि कैसे
ब्लोगर का सम्मान किया जाता है’
कवि मित्र बोला
‘इतनी जल्दी घबडा गये
हमारे साथ रोज ही ऐसा हादसा पेश आता है
तुम खुश किस्मत हो कि
तुम्हारे कंप्यूटर से कोई बाहर नही आता है’
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