Tag Archives: हास्य

गरीब का कोई हमराह नहीं होता-हिंदी व्यंग्य कविताएँ


मिट्टी से बना इंसान
रात और दिन में चलता बुत की तरह
कोई उनमें शाह नहीं होता,
समंदर जैसी लहरें उठती हैं मन में
पर पिंजरे में बंद है, वह अथाह नहीं होता,
कहें दीपक बापू
भलाई बेच रहे लोग
अपना घर भरने के लिये
महफिलों में गरीबी पर  अफसोस के सुर
गाये जाते मजे के लिये
मगर गरीब का कोई हमराह नहीं होता। 
————————————-
लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’ग्वालियर
कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
http://rajlekh.blogspot.com 

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साधू, शैतान और इन्टरनेट-हिंदी हास्य व्यंग्य कविता


शैतान ने दी साधू के आश्रम पर दस्तक
और कहा
‘महाराज क्या ध्यान लगाते हो
भगवान के दिए शरीर को क्यों सुखाते हो
लो लाया हूँ टीवी मजे से देखो
कभी गाने तो कभी नृत्य देखो
इस दुनिया को भगवान् ने बनाया
चलाता तो मैं हूँ
इस सच से भला मुहँ क्यों छुपाते हो’

साधू ने नही सुना
शैतान चला गया
पर कभी फ्रिज तो कभी एसी ले आया
साधू ने कभी उस पर अपना मन नहीं ललचाया
एक दिन शैतान लाया कंप्यूटर
और बोला
‘महाराज यह तो काम की चीज है
इसे ही रख लो
अपने ध्यान और योग का काम
इसमें ही दर्ज कर लो
लोगों के बहुत काम आयेगा
आपको कुछ देने की मेरी
इच्छा भी पूर्ण होगी
आपका परोपकार का भी
लक्ष्य पूरा हो जायेगा
मेरा विचार सत्य है
इसमें नहीं मेरी कोई माया’

साधू ने इनकार करते हुए कहा
‘मैं तुझे जानता हूँ
कल तू इन्टरनेट कनेक्शन ले आयेगा
और छद्म नाम की किसी सुन्दरी से
चैट करने को उकसायेगा
मैं जानता हूँ तेरी माया’

शैतान एकदम उनके पाँव में गिर गया और बोला
‘महाराज, वाकई आप ज्ञानी और
ध्यानी हो
मैं यही करने वाला था
सबसे बड़ा इन्टरनेट तो आपके पास है
मैं इसलिये आपको कभी नहीं जीत पाया’
साधू उसकी बात सुनकर केवल मुस्कराया

सबकी नज़र है हमारे कमाने पर -व्यंग्य कविता


रात की रौशनी में चमकने वाले चेहरे
सुबह सूरज की पहली किरण में ही
फक नजर आते हैं।
सौंदर्य के सच की धूप के पसीने में ही
होती है पहचान
अंधेरे में चिराग भले ही सहारा हों
इंसान के लिये
पर उसके तले अंधेरे भी छिप जाते हैं।

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भरोसा कब तक करें
जमाने पर।
टूट जाता है हर बार
आजमाने पर।
कोई चरित्र  से पहचान नहीं करता
हर कोई दौलत पर ही मरता
गलतफहमी है कि कोई हमें देख रहा है
सबकी नजर है हमारे कमाने पर।
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नैतिकता की स्थापना के लिए जंग -व्यंग्य कविता
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अनैतिकता से हैं सभी तंग
लड़ रहे इसलिये नैतिकता की स्थापना के लिये जंग
कोई लिख रहा है कविता
कोई लिख रहा व्यंग
कभी कभी लगता है
वैलंटाईन डे भी कुछ ऐसा मना
जैसे होली पर खेला जा रहा हो रंग

कहैं दीपक बापू
हैरान है यह देखकर कि
नैतिकता और अनैतिकता का
नहीं बता पा रहा कोई भेद
तर्कों में दिखते हैं ढेर सारे छेद
स्त्री घुटने के ऊपर पहने या
घुटने तक दिखें उसके कपड़े
इसी पर हो रहे हैं लफड़े
दारुखाने में जाकर पिये नारी
बिगड़ जाती है इस पर भी दुनियां सारी
पीने की सलाह देने वाले भी
नहीं बताते कितना हो उसका पैमाना
वह तो देखते हैं बस
जाम के दरिया में ही नया जमाना
नहीं होती हास्य कविता लिखने की
पर जब आ जाता है सामने विषय
तो जी मचल उठता है
किस पर टिप्पणी करो
कौन हो प्रसन्न
कौन हो जाये नाराज
दिलचस्प हैं लोगों के बहस के ढंग
संस्कारों की रक्षा के लिये कोई जूझ रहा है
कोई नारी की आजादी की पहेली बूझ रहा है
मय से शुरु हुई बहस
आ गयी वहां,जहां था अंडरवियर का गुलाबी रंग
हम तो होली पर हमारा गंभीर चिंतन हो जाता व्यंग
नये जमाने के विद्वान भी
कुछ ऐसे ही निकले
वैलंटाईन डे पर भी बरसाते हैं
अपनी गंभीरता से हास्य का रंग

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जैसा होगा ख्यालों का दरिया


गरीब का जीना क्या मरना क्या
अमीर का जीतना क्या हारना क्या
इस जीवन को सहज भाव से वही
बिता पाते हैं
जो इन प्रश्नों से दूर
रह जाते हैं

जिन्दगी एक खेल की तरह है
इसे खिलाड़ी की तरह जियो
दूसरे की रोशनी उधार लेकर
अपने घर के अँधेरे दूर करने की
कोशिश मत करना
अपना कुँआ खुद खोदकर पानी पियो
भौतिक साधनों के अभाव पर
अपने अन्दर इतनी पीडा मत पालो कि
हर पल तुम्हारा ख़ून जलता रहे
ऐसे लोग हंसी के पात्र बन जाते हैं

देखो इस धरती और आकाश की ओर
तुम्हारी साँसों के लिए बहती हवा
बादलों से गिरता पानी
सूर्य बिखेरता अपने ऊर्जा
और अन्न प्रदान करती यह धरती
क्या यह दौलत कम है
जिन्दा रहने के लिए
माया के खेल तो
बनते है बिगड़ते हैं
उसमें हार-जीत पर क्या रोना
दृष्टा बनकर इस ज्ञान और सत्य के
साथ जीते हैं जो लोग
वही मरने से पहले
हमेशा जिन्दा रह पाते हैं
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कौन गरीब कौन अमीर
कौन संतरी कौन वजीर
देखने का है अपना-अपना नजरिया
मन में कीचड है तो चारों और दिखेगा
और कमल की तरह खिला है मन तो
चारों और महकेगा
वैसा ही सब तरफ होगा
जैसा होगा तुम्हारा ख्यालों का दरिया

मामला एक कंपनी का – हिंदी हास्य कविता (hindi hasya kavita


हीरो ने कहा निर्देशक और निर्माता से
‘आज शूटिंग नहीं करूंगा
पैकअप करा दो
मेरा मूड है खराब’
निर्माता ने अपना मोबाइल
उसकी तरफ बढ़ाया और कहा
‘मैंने नंबर लगा दिया है
पहले इस पर बात कर लो
फिर देना जनाब’

हीरो ने नंबर देखा और घबडाया
अपने सेक्रेटरी को बुलाया
उसने जब मामला समझा
तब उसने भी अपना मोबाइल
निर्माता की तरफ बढाया
और कहा
‘उस बिचारे को क्या धमकाते हो
मुझ से बात करो
आप इस नंबर पर बात करो पहले जनाब ‘

निर्माता का सेक्रेटरी भी वहीं खड़ा
उसने भी नंबर देखा और खुश होकर बोला
‘अरे काहेका झगडा आप और हम एक ही
कंपनी का मोबाइल इस्तेमाल करते हैं
एक ही कंपनी से एक ही नबर पर
एक जैसी बात करते हैं
फिर क्यों झगडा करते हैं साहब’

हीरो ने कुछ सुना कुछ समझा
और बोला
‘बात एक कंपनी ही की है
अपना मोबाइल एक कंपनी का
अपना प्यारा नंबर एक कंपनी का
यह सुनकर मैं खुश हुआ
अब तो शूटिंग शुरू करो जनाब’
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