Tag Archives: साहित्य

भक्ति से बड़ा सोने का चमत्कार-हिन्दी व्यंग्य कविता (bhakti se bada sone ka chamatkar-hindi satire poem)


भक्ति के व्यापार में
संतों के दरबार
भक्तों के भाव से
सोने की ईंटों और डालरों से
भर जाते हैं,
संत शायद इसलिए ही
चमत्कारी कहे जाते हैं।
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चमत्कार के व्यापारियों ने
धर्म को बाज़ार में सजा दिया,
धार्मिक भावनाओं का दोहन करते हुए
सोने का भंडार दरबार में लगा लिया।
————-
चमत्कार बेचकर
संतों का बिल्ला अपनी कमीज़ पर
उन्होने लगा लिया,
भक्तों के भावों को
बदलते रहे सोने और रुपयों में
अपने चमत्कारी होने का प्रमाण दिया
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
poet,writer and editor-Deepak Bharatdeep, Gwaliro
यह आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप का चिंतन’पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
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सज्जन और दुर्जन-हिन्दी कविता (sajjan aur durjjan-hindi kavita)


सुना है रईस भी
कन्या के भ्रूण की हत्या कराते हैं,
दूसरे के आगे सिर झुकाने से
वह भी शर्माते हैं,
फिर गरीबों की क्या कहें,
जो हर पल कुचले जाने का दर्द सहें,
जिनका कत्ल हो गया
उनकी लाश होती गवाह
ज़माने में उसके कातिल दिखते है,
मगर गर्भ के भ्रूण की शिकायत भला कहां लिखते हैं,
पूरा समाज पहने बैठा है नकाब
कौन दुर्जन
कौन सज्जन
सभी चेहरे खूबसरत हैं
पूरे ज़माने को पहचान के संकट में पाते हैं।’’
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अमीर और गरीब के स्टार अलग अलग-हिन्दी लेख (amir aur garib ke star alag alag-hindi lekh)


बड़ी खबर या ब्रेकिंग न्यूज का सही स्तर तय करना मुश्किल हो गया है क्योंकि टीवी न्यूज चैनल हर सैकंड में एक बड़ी खबर लाते हैं। कहना तो यह भी चाहिए कि उनकी हर खबर पहले कहीं न कहीं बड़ी होती है या फिर वह अपनी हर आम खबर को भी खास कर परोसने की वैसी ही कोशिश करते हैं जैसे कोई हलवाई अपने एक घंटा पहले रखे समोसे को भी खस्ता और गर्म कहकर प्रस्तुत करता है। ऐसी ही एक खबर थी कि एक सरकारी दफ्तर में बार बालाओं ने सांस्कृतिक कार्यक्रम के नाम पर अश्लील डांस प्रस्तुत किया।
टीवी ऐंकर चिल्ला रहा था कि ‘उस समय अनेक वरिष्ठ अधिकारी भी मौजूद थे।’
बाकी सब तो ठीक पर उसका बार बार उस डांस को अश्लील कहना थोड़ा अज़ीब लग रहा था। ऐसा लगता है कि सेठ साहूकारों की-आजकल उनको कंपनियों के मैनेजिंग डाइरेक्टर या चीफ के रूप में जाना जाता है-छत्रछाया में पलने वाले हमारे बौद्धिक समाज की सोच भी अब केवल नीचे ही आंखें किये रहती है क्योंकि ऊपर देखने का मतलब है कि सड़क पर आ जाना। उनके लिये शालीनता और नैतिकता के मायने अब केवल गरीब और मध्यम वर्ग तक ही सिमट गये हैं।
किस्सा यह था कि एक सरकारी कर्मचारी यूनियन के पदाधिकारियों का चुनाव हुआ जिनके शपथ ग्रहण समारोह में सांस्कृतिक कार्यक्रम के दौरान कथित रूप से यह डांस या नृत्य कार्यक्रम हुआ। फिल्मी गीत और नृत्य की नकल पर ऐसे कार्यक्रम अपने यहां आम बात हो गयी है इसलिये उनको असांस्कृतिक कहना ही अपने आप में गलत है। अगर टीवी चैनलों की बात मान ली जाये तो सरकारी कर्मचारियों या अधिकारियों को ऐसे कार्यक्रम आयोजित ही नहीं करना चाहिए। अगर करें तो उनको आधुनिक सेठ साहुकारों की छत्रछाया में पलने वाले कलाकारों को उसमें बुलाना चाहिये क्योंकि वह चाहे जैसे नृत्य करें या गायें वही शालीनता की परिधि में आता है।
सीधी बात कहें कि जो विज्ञापनदाता बनने की औकात नहीं रखते उनको कोई सार्वजनिक मनोरंजन कार्यक्रम आयोजित नहीं करना चाहिए। पूंजीपतियों, समाज सेवकों, अपराधियों तथा प्रचार माध्यमों के शिखर पुरुषों की छत्रछाया में एक सांस्कृतिक गिरोह बन गया है जो अपने आकाओं से कम ताकतवर या फिर अपने क्षेत्र के बाहर के आदमी की सार्वजनिक सक्रियता को खत्म किये दे रहा है। प्रचार माध्यम उसको हवा देने का एक सशक्त माध्यम बन गया है। यह गिरोह पूंजीपतियों तथा अपराधियों के पैसे पर बनने वाली फिल्मों की अश्लीलता को महान कला बताता है। इतना ही नहीं टीवी चैनलों पर चलने वाले कार्यक्रमों की अश्लीलता को भी उनके सहधर्मी चैनल भुनाते हैं। पहले तो वह अश्लीलता दिखाते हैं फिर उसकी आलोचना करते हैं। इतना ही नहीं फिर अश्लीलता परोसने वाले का साक्षात्कार भी प्रसारित करते हैं। यह सब चलेगा क्योंकि वह शिखर पुरुषों के गिरोह की छत्रछाया में हैं।
ऐसे में कई सवाल उठते हैं। बार बालाओं का डांस अश्लील है तो फिर उन अभिनेत्रियों के बारे में क्या ख्याल है जिनको पर्दे पर देखकर वह उनकी नकल करती हैं। इतना ही नहीं अनेक बार जलकल्याण तथा पुरस्कार वितरण के नाम पर होने वाले मनोरंजक कार्यक्रमों में बड़ी बड़ी अभिनेत्रियां इससे भी बुरे नृत्य प्रस्तुत करती हैं पर क्या मज़ाल उसे कोई अश्लील कह जाये? इतना ही नहीं ऐसे कार्यक्रमों में समाज के अनेक शिखर पुरुष आंखें फाड़कर देखते हैं पर कोई उन पर उंगली उठाकर तो देखे।
इन प्रचार माध्यमों ने ऐसा आंतक का वातावरण बना दिया है कि श्लीलता और अश्लीलता का आधार कोइ सामाजिक पैमाना नहीं बल्कि सामयिक और स्वार्थ से प्रभावित बन रहा है। यही कारण है कि इनके प्रचार की वजह से तीन अधिकारी तथा चार कर्मचारी निलंबित कर दिये गये। आगे उनका क्या होगा यह पता नहीं पर जब तक ऐसा नहीं होता यह चैनल इस खबर पर चर्चा करते रहते।
हम यह इस कार्यक्रम का समर्थन नहीं कर रहे। बल्कि यह तो चिंता की बात है कि इस देश में हर छोटा और बड़ा आदमी यह समझ रहा है कि इस तरह के ठुमके लगवाकर लोगों का मनोरंजन कर उनका दिल जीता जा सकता है। बड़े आदमी करें तो ठीक छोटा करे तो अश्लील! यह बात समझ से परे है। बार बालाऐं कोई बड़े धनपति से प्रायोजित नहीं होती। वह गरीब घरों से होती है। गाहे बगाहे उन पर कार्यवाही होती है। जब देश में रोजगार की कमी है तब बार बालाओं को नृत्य कर कमाने का अवसर मिलता है तो बुरा क्या है? उनके नृत्य में अश्लीलता ढूंढने वाले जरा प्रायोजित नृत्यांगनाओं के फिल्मी डांस देखें! अगर उनमें से किसी के पास हिम्मत हो तो उसे अश्लील बताये। चैनल बंद हो जायेगाा या प्रस्तोता फिर दूसरा कार्यक्रम देने लायक नहीं रहेगा। क्या हैरानी है कि बार बालाओं को चरित्रहीन और जिनकी वह नकल कर रही हैं उन महान महिलाओं को चरित्रवान बताया जाता है। यह प्रचारात्मक आतंकवाद समाज में अपनी नैतिकता-अनैतिकता और श्लीलता-अश्लीलता के ऐसे ही पैमाने बना रहा है जैसा कि अन्य धार्मिक आतंकवादी तय करते हैं। यह आतंकवादी स्वयं खूब मनोरंजन और मनमानी करते हैं पर दूसरे पर इसी वजह से हमला करते हैं कि वह वही कर रहा है। मतलब वह आतंकवादी बंदूक के दम पर करते हैं और प्रचार माध्यम अपनी खबरों के दम पर! मुश्किल यह है कि समझाया किसे जाये? धार्मिक आतंकवादी इसलिये नहीं समझते क्योंकि वह स्वयं ही अप्रत्यक्ष रूप से प्रायोजित हैं तो प्रचारात्मक आतंकवाद में लगे लोगों को तो इस बात का आभास ही नहीं कि वह कर क्या रहे है? समझकर करेंगे भी क्या वह तो प्रत्यक्ष रूप से ही विज्ञापनदाताओं से प्रायोजित हैं।
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लेखक संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com

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साधू, शैतान और इन्टरनेट-हिंदी हास्य व्यंग्य कविता


शैतान ने दी साधू के आश्रम पर दस्तक
और कहा
‘महाराज क्या ध्यान लगाते हो
भगवान के दिए शरीर को क्यों सुखाते हो
लो लाया हूँ टीवी मजे से देखो
कभी गाने तो कभी नृत्य देखो
इस दुनिया को भगवान् ने बनाया
चलाता तो मैं हूँ
इस सच से भला मुहँ क्यों छुपाते हो’

साधू ने नही सुना
शैतान चला गया
पर कभी फ्रिज तो कभी एसी ले आया
साधू ने कभी उस पर अपना मन नहीं ललचाया
एक दिन शैतान लाया कंप्यूटर
और बोला
‘महाराज यह तो काम की चीज है
इसे ही रख लो
अपने ध्यान और योग का काम
इसमें ही दर्ज कर लो
लोगों के बहुत काम आयेगा
आपको कुछ देने की मेरी
इच्छा भी पूर्ण होगी
आपका परोपकार का भी
लक्ष्य पूरा हो जायेगा
मेरा विचार सत्य है
इसमें नहीं मेरी कोई माया’

साधू ने इनकार करते हुए कहा
‘मैं तुझे जानता हूँ
कल तू इन्टरनेट कनेक्शन ले आयेगा
और छद्म नाम की किसी सुन्दरी से
चैट करने को उकसायेगा
मैं जानता हूँ तेरी माया’

शैतान एकदम उनके पाँव में गिर गया और बोला
‘महाराज, वाकई आप ज्ञानी और
ध्यानी हो
मैं यही करने वाला था
सबसे बड़ा इन्टरनेट तो आपके पास है
मैं इसलिये आपको कभी नहीं जीत पाया’
साधू उसकी बात सुनकर केवल मुस्कराया

जमाने में लूटते हैं वाहवाही-हास्य व्यंग्य कवितायें


दूसरे के दर्द का बयान करना
बहुत आसान और अच्छा लगता है,
जब देखते हैं अपना दर्द तो
वही बयान हल्का लगता है।
आदत है जिनकी दूसरों के बयान करने की

पर अपने दर्द के साथ जीते हुए भी
उनको बयान करना मुश्किल लगता है।

जीकर देखो अपने दर्द के साथ
सतही बयान करने की आदत चली जायेगी,
शब्दों की नदिया कोई
नई बहार लायेगी,
अपने पसीने से सींचे पाठों में
जीना भी अच्छा लगता है।
अपने दर्द पर लिखते आती है शर्म
क्योंकि बेशर्म बनना मुश्किल लगता है।
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उठा लिये हैं
उन्होंने हथियार
जमाने को इंसाफ दिलाने के लिये।
उन्हें मालुम नहीं कि
गोली को आंख नहीं होती
सही गलत की पहचान करने के लिये।

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कवि, लेखक और संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
http://anant-shabd.blogspot.com

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