writer aur editor-Deepak ‘Bharatdeep’ Gwalior
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दूसरों के घर की रौशनी चुराकर
अंधेरों को वहां सुलाने लगे,
नौनिहालों के दूध में जहर मिलाकर
ज़माने को दिखाने के लिये
अपनी दौलत से अपना कद
ऊंचा उठाने लगे।
इंसानों जैसे दिखते हैं वह शैतान
पेट से बड़ी है उनकी तिजोरी
जंगलों की हरियाली चुराकर
भरी है नोटों से उन्होंने अपनी बोरी,
अब गरीबी और बेबसी को
विकास का मुखौटा पहनाकर बुलाने लगे।
——-
गरीबी की रेखा के ऊपर बैठे लोग ही
पूरा हिस्सा खा जाते हैं
इसलिये ही नीचे वाले
नहीं उठ पाते ऊपर
कहीं अधिक नीचे दब जाते हैं।
———
गरीबी रेखा के ऊपर बसता है इंडिया
नीचे भारत के दर्शन हो जाते हैं,
शायद इसलिये बुद्धिजीवी अब
इंडिया शब्द का करते हैं इस्तेमाल
भारत कहते हुए शर्माते हैं।
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गरीबी की रेखा पर कुछ लोग
इसलिये खड़े हैं कि
कहीं अन्न का दाना नीचे न टपक जाये
जिस भूखे की भूख का बहाना लेकर
मदद मांगनी है दुनियां भर से
उसका पेट कहीं भर न जाये।
——-
गरीबी रेखा के नीचे बैठे लोगों का
जीवन स्तर भला वह क्यों उठायेंगे,
ऐसा किया तो
रुपये कैसे डालर में बदल पायेंगे,
फिर डालर भी रुपये का रूप धरकर
देश में नहीं आयेंगे,
इसलिये गरीबी रेखा के नीचे बैठे
इंसानों को बस आश्वासन से समझायेंगे।
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अपना पेट भरने के लिये
गरीबी की रेखा के नीचे
वह इंसानों की बस्ती हमेशा बसायेंगे,
रास्ते में जा रही मदद की
लूट तभी तो कर पायेंगे।
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लोग हादसों की खबर पढ़ते और सुनते हैं
लगातार देखते हुए उकता न जायें
इसलिये विज्ञापनों का बीच में होना जरूरी है।
सौदागारों का सामान बिके बाज़ार में
इसलिये उनका भी विज्ञापन होना जरूरी है।
आतंक और अपराधों की खबरों में
एकरसता न आये इसलिये
उनके अलग अलग रंग दिखाना जरूरी है।
आतंक और हादसों का
विज्ञापन से रिश्ता क्यों दिखता है,
कोई कलमकार
एक रंग का आतंक बेकसूर
दूसरे को बेकसूर क्यों लिखता है,
सच है बाज़ार के सौदागर
अब छा गये हैं पूरे संसार में,
उनके खरीद कुछ बुत बैठे हैं
लिखने के लिये पटकथाऐं बार में
कहीं उनके हफ्ते से चल रही बंदूकें
तो कहीं चंदे से अक्लमंद भर रहे संदूके,
इसलिये लगता है कि
दौलत और हादसों में कोई न कोई रिश्ता होना जरूरी है।
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कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
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भ्रष्टाचार, गरीबी, और शोषण के खिलाफ
जंग करने के नारे सभी लगा रहे हैं,
मिलकर समाज को जगा रहे हैं।
बैठे बैठे सभी चीखकर
छेड़ रहे है जाग्रति अभियान,
सुविधाभोगी बुद्धिमान बनकर
ढूंढ रहे सम्मान,
कोशिश यही है कि कोई
दूसरा वीर बनकर गर्दन कटाये,
हम क्रांतिकारी प्रसिद्ध हो, बिना पसीना बहाये,
परायी औलादों को झौंक रहे मैदान में
अपनी को सुविधा संचय के लिये भगा रहे हैं।
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कवि, लेखक और संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
http://anant-shabd.blogspot.com
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बरसात के लिये यज्ञ करवाने की बात सुनकर
समाज सेवक जी की पत्नी प्रसन्न हो गयी
और बोली
‘धन्य भाग मेरे जो
आप बरसात होने के लिये यज्ञ करवा रहे हैं,
समाज में अपने साथ मेरी भी इज्जत बढ़वा रहे हैं,
चलो आपके मन में
जन कल्याण की बात तो आई,
मैंने तो अभी तक यही देखा कि
भले के नाम पर चंदा वसूलने के अलावा
किसी अन्य काम की सुधि नहीं आई।’
सुनकर समाज सेवक तमतमाये और बोले
‘यह सुबह सुबह क्या
जन कल्याण की बात कर दी,
अच्छे भले काम पर अपनी लात धर दी,
अरे भागवान,
इस यज्ञ के लिये ढेर सारा
चंदा लोगों से लिया है,
उसमें से कुछ खर्च करना जरूरी है
इसलिये सस्ते में यज्ञ का ठेका दिया है,
फिर यह अपने पुराने धंधे की नयी शुरुआत है
शायद बरसात जोरदार हो जाये,
कहीं बाढ़ अपनी रंगत जमाये,
न हो तो अकाल डाले अपनी छाया,
अपने लिये तो जुट जाये चंदे की माया,
पिछले साल घोटालों की वजह से
बंद कर दिया था चंदे का धंधा,
घोटालों की चर्चा से पास आ रहा था
बदनामी का फंदा,
वैसे चाहो तुम जनता में
अपने धार्मिक होने का ढिंढोरा पीट लो,
मुफ्त में समाज का दिल जीत लो,
मैं तो उन मेहमानों पर ध्यान दूंगा
जिनसे बाढ़ या अकाल के लिये चंदा लूंगा,
किसी का भला करते देखा था मुझे कभी
जो अभी ऐसी मूर्खतापूर्ण बात तुम्हारी बुद्धि में आई।
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कवि,लेखक,संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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