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रहीम के दोहे:बकवास करे जीभ, जूते खाए सिर


रहिमन जिह्म बावरी, कही गइ सरग पाताल
आपु तो कहि भीतर रही, जूती खात कपाल

कविवर रहीम कहते हैं कि इस मनुष्य के बुद्धि बहुत वाचाल है. वह स्वर्ग से पाताल तक का अनाप-शनाप बककर अन्दर चली जाती है पर अगर उससे लोग गुस्सा होते हैं तो बिचारे सिर को जूते खाने पड़ते हैं.

भावार्थ-यहाँ संत रहीम चेता रहे हैं कि जब भी बोलो सोच समझ कर बोलो. कटु वचन बोलना या दूसरे का अपमान करने पर मार खाने की भी नौबत आती है. इसलिए किसी को बुरा-भला कहकर लांछित नहीं करना चाहिए.

रहिमन ठहरी धूरि की, रही पवन ते पूरि
गाँठ युक्ति की खुलि गयी, अंत धूरि को धूरि

संत रहीम कहते हैं ठहरी हुई धूल हवा चलने से स्थिर नहीं रहती, जैसे व्यक्ति की नीति का रहस्य यदि खुल जाये तो अंतत: सिर पर धूल ही पड़ती है.

भावार्थ-श्रेष्ठ पुरुष अपने अपने हृदय के विचारों को आसानी से किसी के सामने प्रकट नहीं करते. यदि उनके नीति सबंधी विचार पहले से खुल जाएं तो उनका प्रभाव कम हो जाता है और उन्हें अपमानित होना पड़ता है.

रहीम के दोहे:बन्दर कभी हाथी नहीं हो सकता



बडे दीन को दुख सुनो, लेट दया उर जानि
हरी हाथी सों कब हुतो, कहू रहीम पहिचानि
कवि रहीम कहते हैं. महान पुरुषों के हृदय में दुखी व्यक्ति की कातर वाणी सुनकर दया का संचार हो जाता है, परन्तु बन्दर कब हाथी हो सकता है? इस बात को समझ लें.
भावार्थ-उनका आशय यह है किस संसार में अपने हितैषी की पहचान में सतर्कता बरतनी चाहिए. जो मदद करने वाले होते हैं वह आदमी का दर्द सुनते ही मदद करते हैं. कुछ लोग ऐसे होते हैं जो बातें बहुत बड़ी-बड़ी करते हैं और उछल कूद इस तरह करते हैं जैसे की बहुत कार्य कुशल हों पर वास्तव में किसी काम के नहीं होते-केवल बातों के ही होते हैं.

बिगरी बात बनाईं नहीं, लाख करू किन कोय
रहिमन फाटे दूध को, मथे न माखन होय

कवि रहीम कहते हैं की दूध के फटने से मक्खन नहीं निकल सकता. इस प्रकार जो बात एक बात बिगड़ जाती है, वह फिर से बन नहीं पाती, चाहे आदमी कितना भी यत्न कर ले.

भावार्थ-हर व्यक्ति को अपने व्यवहार में सतर्कता बरतनी चाहिए-क्योंकि एक बार बात बिगड़ जाती है तो फिर उसे बनाना मुश्किल है. सभी से प्रेम और मधुर वाणी का व्यवहार करना चाहिए, अगर किसी के मन में एक बार विद्वेष आ गया तो फिर उसे दूर करना मुश्किल होगा.

रहीम के दोहे:कपटी की संगत से भारी शारीरिक हानि


रहिमन लाख भली करो, अगुनी अगुन न जाय
राग सुनत पय पियत हू, सांप सहज धरि खाय

कविवर रहीम कहते हैं की असंख्य भलाई करे, परन्तु गुणहीन व्यक्ति का अवगुण नष्ट नहीं होता जैसे संगीत सुनते और दूध पीते हुए भी सर्प सहज भाव से व्यक्ति को काट लेता है.

रहिमन यहाँ न जाईये, जहाँ कपट को हेत
हम तन ढारत ढेकुली सींचत अपनों खेत

कविवर रहीम का कथन है वहाँ कदापि न जाईये, जहाँ प्रेम में कपट, छल छिपा हो. हमारे शरीर को तो वह कपटी सिंचाई के लिए कूएँ से पानी निकालने वाल यंत्र बना डालेगा और उससे अपना खेत सींच लेगा.

रहीम के दोहे:सूखे तालाब से प्यास नहीं बुझती


तासों ही कछु पाइए, कीजै जाकी आस
रीते सरवर पर गए, कैसे बुझे पियास

कविवर रहीम कहते हैं की सूखे तालाब पर जाने से प्यास शांत नहीं हो सकती. उसी प्रकार उसी व्यक्ति से आशा की जा सकती है जिसके पास कुछ हो.

भावार्थ-इससे आशय यह है कि अगर किसी की पास धन-धान्य या अन्य साधन है उसी से से किसी प्रकार की कोई आशा की जा सकती है, इसलिए अपने लोगों के सदैव संपन्न होने की दुआ करना चाहिऐ.

तेहि प्रमान चलिबो भलो, जो सब दिन ठहराइ
उमडि चलै जल पर ते, जो रहीम बढ़ी जाइ

कवि रहीम कहते हैं कि जीवन में प्रतिदिन ठहराव होना चाहिऐ, नदी के उस पानी की तरह नहीं जो बढ़ जाने पर नदी के तट को तोड़कर बाहर निकल जाता है और व्यर्थ हो जाता है तो उसी हिसाब से चलना चाहिऐ जिससे जीवन धन्य हो सके.

रहीम के दोहे:बुरे वक्त में राम का नाम ही सहायक


जो रहीम करिबो हुतो, ब्रज को इहै हवाल
तौ काहे  कर धरुयो, गोवर्धन गोपाल

कविवर रहीम कहते हैं कि श्रीकृष्ण का अपनी मातृभूमि और वहाँ रहने वाले लोगों से इतना प्रेम था कि उन्होने उनकी रक्षा के लिए गोवर्धन पर्वत को उठा लिया-अगर उन्हें अपनी मातृभूमि किसी और को देंती होती तो वह पर्वत  किसलिए उठाते.
भाव-उनका भाव यही  है कि लोगों को अपनी मातृभूमि और वहाँ रहने वाले लोगों से प्रेम करना चाहिए भले ही कहीं भी रहते हों. भगवान् श्री कृष्ण बाद में द्वारका में रहने लगे थे पर उनका प्रेम और स्नेह अपनी मातृभूमि  और वहाँ रहने वाले लोगों के प्रति सतत रूप से बना रहा.

जैसी तुम हमसौं करी, करी करो जो तीर
बाढे दिन के मीत हौ, गाढे दिन रघुवीर

जैसे नदी के तट पर बैठकर व्यक्ति विश्राम करता उसी प्रकार तुमने अपने हित के लिए संपर्क रखा. तुम तो अच्छे दिनों के साथी हो. विपति में तो भगवान् राम ही सहायक होते हैं.

भाव-उनका आशय यही है कि भगवान के निकट रहने से मनुष्य को सुख प्राप्त होता है जैसे कोई यात्री थक जाने पर नदी के किनारे बैठकर विश्राम करता है और फिर वहाँ से चला जाता है उसी तरह अच्छे समय में कई मित्र बनते हैं पर बुरे समय में तो राम का नाम ही सहायक होता है.