Tag Archives: मनोंरजन

इस ब्लॉग ने पार की दो लाख पाठक/पाठ पठन संख्या-हिन्दी आलेख


            इस लेखक का एक अन्य ब्लाग ‘शब्द पत्रिका’ ने आज दो लाख पाठक/पाठपठन संख्या पार कर ली। यह संख्या पार करने वाला यह चौथा ब्लाग है। संयोगवश यह वर्डप्रेस का ही ब्लाग है। अपने आप में यह आश्चर्यजनक स्वयं को ही लगता है कि मजा तो ब्लॉगर के ब्लाग पर आता है पर पाठकों की संख्या की दृष्टि से सफलता वर्डप्रेस के ब्लाग पर ही मिलती है। ब्लॉगर के 13 ब्लाग मिलकर पूरे दिन में जितने पाठक जुटाते हैं उतने तो वर्डप्रेस का ब्लाग ‘हिन्दी पत्रिका’ ही जुटा लेता है। वर्डप्रेस के आठ मिलकर ब्लॉगर के 13 ब्लॉग से चार गुना से पांच तक पाठक अधिक जुटा लेते हैं।
           यह लेखक ब्लॉगर पर लिखे पाठ ही वर्डप्रेस के ब्लाग पर रखता है पर इसका मतलब यह कतई नहीं है कि उनमें टालने वाली कोई बात है। वहां टैब अधिक लगाने का अवसर मिलता है और शायद यही कारण है कि वहां पाठक अधिक मिल जाते हैं।
           इधर डर लगने लगा है कि कहीं ब्लॉगर के ब्लॉग कूड़ा होने की तरफ तो नहीं बढ़ रहे। वजह, यह है कि ब्लॉगर के ब्लॉगों से हिन्दी लिखने की सुविधा खत्म हो गयी है। कुछ ही दिन पहले ब्लॉगर पर अधिक लेबल लिखने की सुविधा मिली थी। उस समय लगा कि शायद ब्लॉगर अब वर्डप्रेस की बराबर करेगा पर यह सुविधा महीने भर भी नहीं चली। इधर अखबारों में पढ़ने को मिला था कि गूगल अब फेसबुक का मुकाबला करने के लिये गूगल प्लस लॉंच करने वाला है। साथ ही यह भी पता लगा कि ई-ब्लागर से उसका नाता टूटने वाला है या टूट चुका है। इधर अनुभव से एक बात पता लगी है कि ब्लॉगर पर जितने भी हिन्दी के अनुकूल जो सुविधा थी वह शायद भारत में सक्रिय गूगल से जुड़े लोगों के प्रयासों का ही परिणाम था। अब यह कहना कठिन है क ई-ब्लॉगर और ब्लागर अलग अलग है या एक, पर जिस तरह ब्लॉगर से हिन्दी की सुविधायें गयी हैं उससे लगता है कि गूगल उससे विरक्त हो गया है।
               अभी तक हमने गूगल प्लस को देखने का प्रयास किया पर कुछ समझ में नहीं आ रहा। फेसबुक को देख लिया और उस पर काम करना बेकार लगता है। एक विशुद्ध लेखक का मन फेसबुक से भर नहीं सकता क्योंकि वहां उसकी रचना भीड़ का हिस्सा हो जाती हैं। ब्लॉग एक किताब की तरह बन जाता है। यही कारण है कि रचनाधर्मियों को वह बहुत भाता। कहना मुश्किल है कि गूगल के विशेषज्ञों का क्या सोच है पर अगर वह ब्लॉग से विरक्त होते हैं तो मानना पड़ेगा कि वह फेसबुक और ट्विटर जैसे संकीर्ण संदेश साधन संवाहक स्त्रोतों को प्रश्रय देना चाहते हैं। यह स्वाभाविक भी है क्योंकि ट्विटर और फेसबुक जैसे साधन रचना धर्मियों के साधना स्थल नहीं हो सकते पर उनकी संख्या उन प्रयोक्ताओं के मुकाबले नगण्य हैं जो फेसबुक और ट्विटर में व्यापर छद्म व्यवहार को सत्य समझकर खुश हो जाते हैं। निजीकरण के चलते यह संभव नहीं है कि कंपनियों से आशा की जाये कि वह उदारतापूर्वक रचनाधर्मियों को समर्थन दें।
        ऐसे में वर्डप्रेस के ब्लॉग की आवश्यकता निरंतर बनी रहेगी। फिर भी मानना पड़ेगा कि गूगल ने इंटरनेट पर हिन्दी को याहु से कहीं अच्छा समर्थन दिया पर लगता नहीं है कि वह आगे अधिक सहायक होगा। अक्सर गूगल के ब्लॉगर पर मोबाइल से जुड़ने के प्रस्ताव आते हैं पर हमारे लिये वह सब बेकार है। गूगल मोबाइल धारकों को लक्ष्य कर रहा है पर एक लेखक के लिये मोबाइल तब बेकार होता है जब वह ब्लाग पर सक्रिय होता है। मोबाइल धारक अपने देश में बहुत हैं और गूगल उनमें पैठ बनाने की कर रहा है हालांकि ऐसा कम ही दिखता है कि मोबाइल धारकों की रुचि उस समय इंटरनेट पर होती हो जब वह उस पर बात करना चाहते हैं। फिर हम जैसे ब्लाग लेखक के लिये छोटे अक्षरों में ब्लाग देखने की इच्छा करना ही संभव है। स्थिति यह है कि कभी किसी को एसएमएस भेजने की इच्छा भी नहीं होती। जो भेजते हैं तो उनसे कह देते हैं कि हमें संदेश भेजना ही है तो ईमेल पर भी भेजो।
           मोबाईल के मुकाबले कंप्यूटर पर इंटरनेट का उपयोग देश की नयी पीढ़ी के लिये हम अल्पज्ञान ही मानते हैं। वैसे भी हमारे देश में अल्पज्ञान पाते ही उछलने लगता है। यही कारण है कि लोग मोबाइल हाथ में पकड़ कर इस तरह धूमते हैं जैसे कि अलीबाबा का खजाना मिल गया है। मोबाइल पर संदेश वगैरह भेजना हमारी नज़र में कंप्युटर के अभ्यास से रहित होना है।
             एक बालक ने हमसे कहा कि ‘अंकल, हमने आपको कंप्युटर पर मैसेज भेजा था आपने जवाब नहीं दिया।’
          हमने कहा-‘‘एक तो हम किसी का मैसेज पढ़ते ही नहीं है क्योंकि उसमें फालतु मैसेज बहुत होते हैं। दूसरे हमसे मैसेज भले ही एक लाईन के हों पर टाईप नहीं हो सकते।’
          बालक ने कहा-‘‘आप सीख लो न! हालांकि अब आपको उम्र के कारण थोड़ी दिक्कत आयेगी।’’
हमने ऊपर से नीचे तक उसे देखा और कहा-‘‘ठीक है प्रयास करेंगे पर तुंम अगर इंटरनेट पर सक्रिय हो तो ईमेल भेज सकते हो।’
          वह हैरानी से हमें देखने लगा और बोला-‘‘इंटरनेट पर कभी कभी बैठता हूं। मेरा ईमेल खाता भी है पर उसमें टाईप करना नहीं आयेगा।’’
        हमने कहा-‘‘हां यह बात तो सही है, हम तुम्हें अब टाईप सीखने के लिये तो नहीं कह सकते क्योंकि वह तुम्हारी उम्र भी निकल चुकी है। अलबत्ता हम एसएमएस लिखना ही सीख लेंगे।’’
लड़के लड़कियों के मुख से फेसबुक, ट्विटर और ऑरकुट की बातें अक्सर हम सुनते हैं। उनके बहुत सारे दोस्त हैं यह भी वह बताते हैं। उनके अनुभव में कितना भ्रम और कितना सत्य है यह अनुमान करना कठिन है पर ब्लॉग लेखन में अपनी सक्रियता से सीखे ज्ञान के कारण उन पर हंसी आती है।
        शब्द पत्रिका का दो लाख पाठक/पाठन संख्या पार करने पर बस इतना ही कहना चाहते हैं कि अभी बहुत कुछ और देखना बाकी है तो लिखना भी बाकी है। हम यहां ऐसे लेखक हैं जो अपना लिखा दूसरों को पढ़ाने के लिये बल्कि पाठकों को पढ़ने के लिये तत्पर रहता है। हमारे पाठ कितने लोग पढ़ते हैं यह पता है पर पाठक नहीं जानते हम उनको कितना पढ़ रहे हैं। हमारे शब्द हमें बता देते हैं कि कौन कैसे पढ़ रहा है। धन्यवाद
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक ‘भारतदीप”,ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak ‘BharatDeep’,Gwalior

http://dpkraj.blogspot.com
यह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
इस लेखक के अन्य ब्लाग/पत्रिकायें जरूर देखें
1.दीपक भारतदीप की हिन्दी पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अनंत शब्दयोग पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का  चिंतन
4.दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका
5.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान का पत्रिका

८.हिन्दी सरिता पत्रिका

पेट्रोल में विदेशी और साइकिल में स्वदेशी का भाव-हिन्दी व्यंग्य लेख


करीब दो वर्ष तीन माह से अब लीटर की नाप की जगह दाम बताकर पेट्रोल भरवाना प्रारंभ कर दिया है। उसमें तेल नहीं डलता। दाम बताकर पेट्रोल भरवाते हैं इसलिये उसका सही दाम नहीं मालुम। दरअसल हमने आलोच्य अवधि में ही स्कूटर छोड़कर नया दुपहिया वाहन लिया। जिसमें मीटर बताता है कि गाड़ी में पेट्रोल कितना है। जैसे ही मीटर के लाल संकेत की ऊपर वाली लाईन के पास कांटा आता है हम पेट्रोल भरवा लेते हैं। हमेशा ही सौ रुपये का भरवाते हैं और देख रहे हैं कि भाव बढ़ते बढ़ते पेट्रोल भरने के बाद कांटा अब पूर्णता के संकेत से नीचे आता जा रहा है। मतलब पेट्रोल के भाव बढ़ रहे हैं।
कल एटीएम से पैसे निकालने से पहले पेट्रोल भरवाया। जेब मे एक सौ क और एक पचास का नोट था। इसलिये पचास का ही भरवाया। कांटा कुछ ही ऊपर गया पर आज शाम घर आये तो लगा कि तेल संकेतक कांटा फिर अपनी जगह पेट्रोल भरवाने से पहले वाली लाईन पर आ गया है। मतलब एक दिन में पचास रुपये का पेट्रोल फूंक दिया। यह दाम जेब की लाल रेखा से ऊपर जा रहा है। अभी कुछ दिन पहले पुरानी साइकिल बेचकर नई ली थी। वह भी लाल है पर जेब की की हरियाली बनाये रखने का काम करती है। बरसों से काम पर साइकिल से गये पर अब स्कूटर की आदत हो गयी है, मगर साइकिल चलाना जारी है। मुश्किल यह है कि वह नियमित आदत नहीं रही। नई साइकिल को हम रोज निहारते हैं क्योंकि मालुम है कि संकट की सच्ची साथी है। फिर टांगों को भी निहारते हैं जिन पर अब पहले से कम यकीन रहा है। इसलिये कभी कभी चार से पांच किलोमीटर साइकिल चला लेते हैं। चार पांच दिन के अंतराल से चलाने पर घुटने कुछ नाराजगी जताते हैं पर दम नहीं तोड़ते। लगातार तीन चार दिन चलाओ तो लगता है कि आदत बन रही है मगर छोड़ दें तो फिर मुश्किल आती है।
यह साइकिल करीब तीन हजार रुपये की छह माह पूर्व खरीदी थी पर उसका पैसा वसूलने के लिये समय चाहिए। हमारा अंदाजा है कि पिछले छह माह में सात सौ किलोमीटर से अधिक नहीं चलायी होगी-यह दूरी कम भी हो सकती है।
हमारा मानना है कि उसे तीन हजार किलोमीटर चलाकर ही कीमत की वसूली हो सकती है। अगर वह साइकिल हम काम पर भी ले जायें तो कम से कम पांच माह नियमित रूप से चलानी होगी तभी कीमत की वसूली मानी जा सकती है।
जिस दिन खरीदी थी उस दिन दुकानदार ने बताया था कि साइकिल किसी भी कंपनी की हो मगर वह बनती पंजाब में ही है। बताते हैं कि पंजाब में बनी साइकिलें विदेशों में निर्यात भी होती हैं। मतलब स्वदेशी हैं इसलिये इसमें संदेह नहीं है कि देश का भविष्य वही संभाले रहेंगी। पेट्रोल विदेशी उत्पाद है और कभी भी साथ छोड़ सकता है। आज सोच रहे हैं कि अब साइकिल पर अपनी आदत बढ़ाई जाये।
प्रसंगवश आज एक मित्र ने अपनी कार दिखाई जो उन्होंने एक वर्ष पूर्व खरीदी थी। अभी उन्होंने चलाना सीखा है और रास्ते में मिलने पर उन्होंने बताया कि उनकी गाड़ी डीजल से चलती है और एक किलोमीटर में बीस लीटर! डीजल 42 रुपयेे लीटर है और उनके अनुसार कहीं किराये से आने जाने पर लगने वाले पैसे से कम इस पर खर्च होता है।
सद्भावना से उन्होंने कहा कि-‘तुम भी कार खरीद क्यों नहीं लेते!’
हमने मित्र से कहा कि-‘आपके घर के मार्ग की सड़के सही और चौड़ी हैं और हम दूर रहते हैं। हमारा पेट्रोल तो सड़क जाम में ही खत्म हो जायेगा।’’
वह बोले-‘हां, यह तो ठीक है।’
हमने हंसते हुए कहा कि-‘हमने तो नई साइकिल खरीदी है। सड़क जाम में पेट्रोल फूंकते फूंकते तो लगता है कि वही चलाया करें!’
वह बोले-‘हां, आपके घर का मार्ग वाकई बहुत खराब है।’
बातचीत खत्म घर आये। समाचार चैनल खोले। कहीं क्रिकेट तो कहीं फिल्म तो कहीं कोई दूसरी बकवास चल रही थी। हर बार हम समाचार सुनने के लिये खोलते हैं। मालुम है कि देखाने सुनने को नहीं मिलेंगे पर आदत तो आदत है। वहीं एक जगह ब्रेकिंग न्यूज आ रही थी कि मिस्र के जनआंदोलन की वजह से कच्चे तेल की कीमतें बढ़ने का असर भारत में जल्दी महसूस किया जायेगा। यह सुनते ही मित्र से हुए वार्तालाप का स्मरण हुआ और हम गैलरी में खड़ी साइकिल के पास गये। उसे परसों ही चलाया था। उस पर हाथ फेरा जैसे निर्देश दे रहे हों कि तैयार हो जाओ स्वदेशी चाल पर चलने के लिये।
अब तो यह लगने लगा है कि जैसे सुविधाओं का गुलाम होना ही विदेशी गुलाम होने जैसा है। गांधी जी के स्वेदशी वस्तुओं के उपभोग करने के विचार की पूरा देश खिल्ली उड़ा रहा है। देश की अर्थव्यवस्था कृषि प्रधान है पर कृत्रिम रूप से पेट्रोल प्रधान बना दिया गया है। पेट्रोल के दाम बढ़ते हैं तो हर चीज़ के दाम बढ़ जाते हैं। ऐसी चीजों के दाम भी बढ़ने लगते हैं जिनका पेट्रोल से रिश्ता नहीं है पर मुश्किल यह है कि उसके उत्पादक और विक्रेता मोटर साइकिलों पर घूमते हैं और उनका निजी खर्च बढ़ता है। सो महंगाई बढ़नी है।
ऐसा लगता है कि देश के बाज़ार विशेषज्ञ देश के पांच सौ तथा हजार के नोट लायक बना रहे हैं। यह तभी हो पायेगा जब प्याज एक किलो और पेट्रोल एक लीटर आठ सौ रुपये हो जायेगा।
इसी प्रसंग पर अंतिम बात! लिखते लिखते टीवी पर आ रहे समाचार पर हमारी नज़र गयी। यह समाचार सुबह अखबार में पढ़ा था। ब्रिटेन के वैज्ञानिकों ने एक कृत्रिम पेट्रोल का सृजन किया है जिसका प्रयोग सफल रहा तो वह तीन साल बाद बाज़ार में आ जायेगा। कीमत 15 रुपये लीटर होगी। मगर क्या तीन साल बाद इसकी कीमत इतनी रह पायेगी। भारत के बाज़ार नियंत्रकों के लिये यह खबर नींद उड़ाने वाली होगी क्योंकि तब देश के सभी लोगों को हजार और पांच सौ के उपयोग लायक बनाने के उनके प्रयास संकट में पड़ जायेंगे। यकीनन इस पेट्रोल का भारत में उपयोग रोकने की कोशिश होगी या फिर उसकी कीमत किसी भी तरह तमाक कर तथा अन्य प्रयास पेट्रोल जितनी बना दी जायेगी। इस तेल के खेल को भला कौन समझ पाया? साइकिल पर चले तो फिर समझने की जरूरत भी क्या रह जायेगी?
———————

लेखक संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com

यह आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप का चिंतन’पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.अनंत शब्दयोग
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका
4.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान पत्रिका
5हिन्दी पत्रिका

६.ईपत्रिका
७.दीपक बापू कहिन
८.शब्द पत्रिका
९.जागरण पत्रिका
१०.हिन्दी सरिता पत्रिका  

इन्टरनेट के प्रयोग से होने वाले दोषों से बचाती है योग साधना-हिंदी आलेख


कुछ समाचारों के अनुसार इंटरनेट पर अधिक काम करना स्वास्थ्य के लिये हानिकारक है। इंटरनेट का संबंध कंप्यूटर से ही है जिसके उपयोग से वैसे भी अनेक बीमारियां पैदा होती हैं। एक खबर के अनुसार कंप्यूटर पर काम करने वालों में विटामिन डी की कमी हो जाती है इसलिये लोगों को धूप का सेवन अवश्य करना चाहिये। अगर इन खबरों का विश्लेषण करें तो उनसे यही निष्कर्ष निकलता है कि कंप्यूटर और इंटरनेट के अधिक प्रयोग से ही शारीरिक और मानसिक विकार उत्पन्न होते हैं। इसके अलावा इनके उपयोग के समय अपने आपको अनावश्यक रूप से थकाने के साथ ही अपनी शारीरिक तथामानसिक स्थिति पर पर्याप्त ध्यान न देना बहुत तकलीफदेह यह होता है। सच बात तो यह है कि इंटरनेट तथा कंप्यूटर पर काम करने वालों के पास उससे होने वाली शारीरिक और मानसिक व्याधियों से बचने का एकमात्र उपाय योग साधना के अलावा अन्य कोई उपाय नज़र नहीं आता।
दरअसल कंप्यूटर के साथ अन्य प्रकार की शारीरिक तथा मानसिक सावधानियां रखने के नुस्खे पहले बहुत पढ़ने को मिलते थे पर आजकल कहीं दिखाई नहीं देते । कुछ हमारी स्मृति में हैें, जो इस प्रकार हैं-
कंप्यूटर पर बीस मिनट काम करने के बाद विश्राम लें। पानी अवश्य पीते रहें। खाने में नियमित रूप से आहार लेते रहें। पानी पीते हुए मुंह में भरकर आंखों पर पानी के छींटे अवश्य मारें। अगर कंप्यूटर कक्ष से बाहर नहीं आ सकें तो हर बीस मिनट बार अपनी कुर्सी पर ही दो मिनट आंख बंद कर बैठ जायें-इसे आप ध्यान भी कह सकते हैं। काम खत्म करने पर बाहर आकर आकाश की तरफ जरूर अपनी आंखें केंद्रित करें ताकि संकीर्ण दायरे में काम कर रही आंखें व्यापक दृश्य देख सकें।
दरअसल हम भारतीयों में अधिकतर नयी आधुनिक वस्तुओं के उपयोग की भावना इतनी प्रबल रहती है कि हम अपने शरीर की सावधनी रखना फालतु का विषय समझते हैं। जहां तक बीमारियों का सवाल है तो वह शराब, सिगरेट और मांस के सेवन से भी पैदा होती हैं इसलिये इंटरनेटर और कंप्यूटर की बीमारियों से इतना भय खाने की आवश्यकता नहीं है मगर पर्याप्त सावधानी जरूर रखना चाहिए।
इंटरनेट और कंप्यूटर पर काम करने वाले हमारे देश में दो तरह लोग हैं। एक तो वह है जो शौकिया इससे जुड़े हैं और दूसरे जिनको इससे व्यवसायिक बाध्यता ने पकड़ा है। जो शौकिया है उनके लिये तो यह संभव है कि वह सावधानी रखते हुए काम करें-हालांकि उनके मनोरंजन की प्यास इतनी गहरी होती है कि वह इसे समझेंगे नहीं-पर जिनको नौकरी या व्यवसाय के कारण कंप्यूटर या इंटरनेट चलाना है उनके स्थिति बहुत दयनीय होती है। दरअसल इंटरनेट और कंप्यूटर पर काम करते हुए आदमी की आंखें और दिमाग बुरी तरह थक जाती हैं। यह तकनीकी काम है पर इसमें काम करने वालों के साथ एक आम कर्मचारी की तरह व्यवहार किया जाता है। जहां कंप्यूटर या इंटरनेट पर काम करते एक लक्ष्य दिया जाता है वहां काम करने वालों के लिये यह भारी तनाव का कारण बनता है। दरअसल हमारे देश में जिनको कलम से अपने कर्मचारियेां को नियंत्रित करने की ताकत मिली है वह स्वयं कंप्यूटर पर काम करना अपने लिये वैसे ही हेय समझते हैं जैसे लिपिकीय कार्य को। वह जमीन गड़ढा खोदने वाले मजदूरो की तरह अपने आपरेटरों से व्यवहार करते हैं। शारीरिक श्रम करने वाले की बुद्धि सदैव सक्रिय रहती है इसलिये वह अपने साथ होने वाले अनाचार या बेईमानी का मुकाबला कर सकता है। हालांकि यह एक संभावना ही है कि उसमें साहस आ सकता है पर कंप्यूटर पर काम करने वाले के लिये दिमागी थकावट इतनी गहरी होती है कि उसकी प्रतिरोधक क्षमता काम के तत्काल बाद समाप्त ही हो जाती है। इसलिये जो लोग शौकिया कंप्यूटर और इंटरनेट से जुड़े हैं वह अपने घर या व्यवसाय में परेशानी होने पर इससे एकदम दूर हो जायें। जिनका यह व्यवसाय है वह भी अपने साइबर कैफे बंद कर घर बैठे या किसी निजी संस्थान में कार्यरत हैं तो पहले अवकाश लें और फिर तभी लौटें जब स्थिति सामान्य हो या उसका आश्वासन मिले। जब आपको लगता हो कि अब आपको दिमागी रूप से संघर्ष करना है तो तुरंत कीबोर्ड से हट जायें। घर, व्यवसाय या संस्थान में अपने विरोधी तत्वों के साथ जब तक अमन का यकीन न हो तब कंप्यूटर से दूर ही रहें ताकि आपके अंदर स्वाभाविक मस्तिष्कीय ऊर्जा बनी रहे।
कंप्यूटर पर लगातार माउस से काम करना भी अधिक थकाने वाला है। जिन लोगों को लेखन कार्य करना है अगर वह पहले कहीं कागज पर अपनी रचना लिखे और फिर इसे टाईप करें। इससे कंप्यूटर से भी दूरी बनी रहेगी दूसरे टाईप करते हुए आंखें कंप्यूटर पर अधिक देर नहंी रहेंगी। जो लेाग सीधे टाईप करते हैं वह आंखें बंद कर अपने दिमाग में विचार करते हुए टंकित करें।
वैसे गूगल के फायरफाक्स में बिना माउस के कंप्यूटर चलाया जा चलाया जा सकता है। जहां तक हो सके माउस का उपयोग कम से कम करें। वैसे भी बेहतर कंप्यूटर आपरेटर वही माना जाता है जो माउस का उपयोग कम से कम करता है।
कुछ लोगों का कहना है कि कंप्यूटर पर काम करने से आदमी का पेट बाहर निकल आता है क्योंकि उसमें से कुछ ऐसी किरणें निकलती हैं जिससे आपरेटर की चर्बी बढती है। इस पर थोड़ा कम यकीन आता है। दरअसल आदमी जब कंप्यूटर पर काम करता है तो वह घूमना फिरना कम कर देता है जिसकी वजह से उसकी चर्बी बढ़ने लगती है। अगर सुबह कोई नियमित रूप से घूमें तो उसकी चर्बी नही बढ़ेगी। यह अनुभव किया गया है कि कुछ लोगों को पेट कंप्यूटर पर काम करते हुए बढ़ गया पर अनेक लोग ऐसे हैं जो निरंतर काम करते हुए पतले बने हुए हैं।
आखिरी बात यह है कि कंप्यूटर पर काम करने वाले योगसाधना जरूर करें। प्राणायाम करते हुए उन्हेंइस बात की अनुभूति अवश्य होगी कि हमारे दिमाग की तरफ एक ठंडी हवा का प्रवाह हो रहा हैं। सुबह प्राणायाम करने से पूर्व तो कदापि कंप्यूटर पर न आयें। रात को कंप्यूटर पर अधिक देर काम करना अपनी देह के साथ खिलवाड़ करना ही है। सुबह जल्दी उठकर पहले जरूर पानी जमकर पियें और उसके बाद अनुलोम विलोम प्राणायाम निरंतर करंें। इससे पांव से लेकर सिर तक वायु और जल प्रवाहित होगा उससे अनेक प्रकार के विकार बाहर निकल आयेंगे। जब आप करेंगे तो आपको यह लगने लगेगा कि आपने एक दिन पूर्व जो हानि उठाई थी उसकी भरपाई हो गयी। यह नवीनता का अनुभव प्रतिदिन करेंगे। वैसे कंप्यूटर पर काम करते समय बीच बीच में आंखें बंद कर ध्यान अपनी भृकुटि पर केद्रित करें तो अनुभव होगा कि शरीर में राहत मिल रही है। अपने साथ काम करने वालों को यह बता दें कि यह आप अपने स्वास्थ्य के लिये कर रहे हैं वरना लोग हंसेंगे या सोचेंगे कि आप सो रहे हैं।
किसी की परवाह न करें क्योंकि सबसे बड़ी बात तो यह है कि जान है तो जहान हैं। भले ही इस लेख की बातें कुछ लोगों को हास्यप्रद लगें पर जब योगासन, ध्यान, प्राणायाम तथा मंत्रोच्चार-गायत्री मंत्र तथा शांति पाठ के सा ओम का जाप- करेंगे और प्रतिदिन नवीनता के बोध के साथ इंटरनेट या कंप्यूटर से खेलें्रगे तक इसकी गंभीरता का अनुभव होगा।

कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
http://rajlekh.blogspot.com

यह आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप का चिंतन’पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.अनंत शब्दयोग
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका
4.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान पत्रिका

सच का सामना करने से नहीं होगा तय रिश्ता-हिन्दी हास्य कविता (sach ka samana aur shadi ka rishta-hindi hasya kavita


लड़के की मां ने
रिश्ते कराने वाले मध्यस्थ से कहा
‘‘लड़की और परिवार के साथ
दहेज का मामला भी समझ में आयेगा।
बस एक बात रह गयी है कहना कि
अब तो चल गया है सच के सामना करने का फैशन
इसलिये लड़की को उस मशीन पर भी बिठायेंगे
चाहें उसके मां बाप तो
अपने लड़के को भी उस पर दिखायेंगे
इस तरह रिश्ता तय हो जायेगा।’

सुनकर लड़का चौंका
और इशारा कर मां को बाहर बुलाया
और बोला-
‘यह क्या कर रही हो माताश्री
उस तरह तो मेरा कभी भी विवाह
संपन्न नहीं हो पायेगा।
तेरा और मेरा रिश्ता तो इसी जन्म का है
जो व्यर्थ जायेगा।
यह टीवी देखकर मत चलो
ऐसा न हो कि फिर इस रिश्ते से हाथ मलो
सच की मशीन है इस तरह कि
जो मेरे बारे में तुम भी नहीं जानती
सभी को पता चल जायेगा।
चुपचाप हामी भर दो
वरना तुम्हारे सास बनने का
और मेरा घर बसने का सपना
सच का सामना करते ही टूट जायेगा।’’

…………………………….

यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप

किताब का नायक कोई जिन्न बनाओ- हिंदी हास्य कविताएँ (kitab ka nayak jinna banao-hasya kavitaen


लिखो कोई किताब
नायक बनाओ कोई जिन्न।
चाहे जो भाषा हो
चाहे जैसे शब्द हों
मतलब से परे हो सारी सामग्री
पर दिखना चाहिए कुछ भिन्न।
किसी के जख्म सहलाना
या दर्दनाक गीत गाना
अब हिट होने का फार्मूला नहीं रहा
जीत लो दुनियां अपने शब्दों से
करके लोगों का मन खिन्न।
……………………………
गढ़े हुए मुर्दे जमीन में खाक हो गये
कुछ जलकर राख हो गये
मगर फिर भी उनके नाम की
पट्टिका अपनी किताब पर लगाओ।
जिंदा आदमी पर लिखे शब्दों के लिये
आज का जमाना प्रमाण मांगता है
जिस पर लिखो
वह भी अपनी हांकता है
मरे हुए लोगों के नाम
अपने शब्दों में सजाकर सफल लेखक कहलाओ।
मुर्दे बोलते नहीं हैं
जज्बाती लोग भी उनका चरित्र तोलते नहीं है
इसलिये कोई मुर्दा नायक बनाओ।

…………………………..
‘दीपक भारतदीप की हिन्दी-पत्रिका’ पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका
लेखक संपादक-दीपक भारतदीप