Tag Archives: प्रचार

हंसी हो या स्यापा बाजार में बिकता है- हिन्दी शायरी


खुशी हो या ग़म
हंसी हो या स्यापा
अब बाजार में बिकता है,
कब क्या करना है
प्रचार में इशारा दिखता है।
कभी दिल को गुदगुदाना,
कभी आंखों में आंसु लाना,
सौदागरों का करना है जज़्बातों का सौदा
उनको नहीं मतलब इस बात से कि
किसका बसेगा
या किसका उजड़ेगा घरौंदा,
कलम का गुलाम
उनके पांव तले
उनकी उंगलियों के इशारे पर
हर पल की कहानी लिखता है।

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कवि, लेखक और संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
http://anant-shabd.blogspot.com

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‘दीपक भारतदीप की हिन्दी-पत्रिका’ पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
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योगी और यौवन-हिन्दी व्यंग्य कविता (yogi and sex relation-hindi comic poem


हैरानी है इस बात पर कि
समलैंगिकों के मेल पर लोग
आजादी का जश्न मनाते हैं,
मगर किसी स्त्री पुरुष के मिलन पर
मचाते हैं शोर
उनके नामों की कर पहचान,
पूछतें हैं रिश्ते का नाम,
सभ्यता को बिखरता जताते हैं।
कहें दीपक बापू
आधुनिक सभ्यता के प्रवर्तक
पता नहीं कौन हैं,
सब इस पर मौन हैं,
जो समलैंगिकों में देखते हैं
जमाने का बदलाव,
बिना रिश्ते के स्त्री पुरुष के मिलन
पर आता है उनको ताव,
मालुम नहीं शायद उनको
रिश्ते तो बनाये हैं इंसानों ने,
पर नर मादा का मेल होगा
तय किया है प्रकृति के पैमानों ने,
फिर जवानी के जोश में हुए हादसों पर
चिल्लाते हुए लोग, क्यों बुढ़ाये जाते हैं।
———-
योगी कभी भोग नहीं करेंगे
किसने यह सिखाया है,
जो न जाने योग,
वही पाले बैठे हैं मन के रोग,
खुद चले न जो कभी एक कदम रास्ता
वही जमाने को दिखाया है।
जानते नहीं कि
भटक जाये योगी,
बन जाता है महाभोगी,
पकड़े जाते हैं जब ऐसे योगी
तब मचाते हैं वही लोग शोर
जिन्होंने शिष्य के रूप में अपना नाम लिखाया है।

कवि, लेखक और संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
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पहले बनाओ पंगेबाज फिर बताओ चंगेबाज-हास्य व्यंग्य कविता


घर से निकले ही थे पैदल
देखा फंदेबाज को भागते हुए आते
इससे पहले कुछ कह पाते
वह हांफते हुए गिर पड़ा आगे
और बोला
’‘दीपक बापू अभी मुझे बचा लो
चाहे फिर भले ही अपनी हास्य कविता सुनाकर
हलाल कर मुझे पचा लो
रास्ते में उस पंगेबाज को जैसे ही मैंने
कहा बापू से मिलने जा रहा हूं
पत्थर लेकर मारने के लिये मेरे पीछे पड़ा है
सिर फोड़ने के लिये अड़ा है
कह रहा है ‘टीवी पर तमाम समाचार आ रहे है
बापू के नाम से बुरे विचार मन में छा रहे हैं
तू उनका नाम हमारे सामने लेता है
उनको तू इतना सम्मान देता है
अभी तेरा काम तमाम करता हूं
वीरों में अपना नाम करता हूं’
देखो वह आ रहा है
अच्छा होगा आप मुझे बचाते’’

पंगेबाज भी सीना तानकर खड़ा हो गया
हांफते हांफते बोला फंदेबाज
‘अच्छा होता आप इसे भी
अपनी हास्य कविता सुनाते’

कविता का नाम सुनकर भागा पंगेबाज
उसके पीछे दौडने को हुए
फंदेबाज का हाथ छोड़ने को हुए
पर अपनी धोती का एक हिस्सा
उसके हाथ में पाया
उनकी टोपी पा रही थी
अपने ही पांव की छाया
अपनी धोती को बांधते
टोपी सिर पर रखते बोले महाकवि दीपक बापू
‘कम्बख्त जब भी हमारे पास आना
कोई संकट साथ लाना
क्या जरूरत बताने थी उसे बताने की कि
हम हास्य कविता रचाते
कविता सुनने से अच्छे खासे तीसमारखां
अपने आपको बचाते
हम उसे पकड़कर अपनी कविता सुनाते
तुम अपने मोबाइल से कुछ दृश्य फिल्माते
वह नहीं भागता तो हम मीडिया में छा जाते
कैसे बचाया एक फंदेबाज को पंगेबाज से
इसका प्रसारण और प्रकाशन सब जगह करवाते
आजकल सभी जगह हिट हो रहे पंगे
रो रहे है फ्लाप काम करके भले चंगे
ऐसे ही दृश्य बनते हैं खबर
खींचो चाहे दृश्य और शब्द
जैसे कोई हो रबड़
पहले बनाते हैं ऐसी योजना जिससे
मशहूर हो जायें पंगे
फिर जिनको पहले बताओ बुरा
बाद में बताओ उनको चंगे
पहले बनाओ पंगेबाज फिर बताओ चंगेबाज
कितना अच्छा होता हम सीधे प्रसारण करते हुए
अपनी हास्य कविता से पंगेबाज को भगाते
हो सकता है उससे हम भी नायक बन जाते
हमारे ब्लाग पर भी छपती वह कविता
शायद इसी बहाने हिट हो जाते
इतने पाठ लिखकर भी कभी हिट नहीं पाते
पंगेबाज कुछ देर खड़ा रहा जाता तो
शायद हम भी कुछ हास्य कविता पका लेते
अपने पाठको का पढ़ाकर सकपका देते
पर तुमने सब मामला ठंडा कर दिया
अब हम तो चले घर वापस
इस गम में
कोई छोटी मोटी शायरी लिख कर काम चलाते
………………………………………………………

यह हास्य कविता काल्पनिक है तथा किसी घटना या व्यक्ति से इसका कोई संबंध नहीं है। अगर किसी की कारिस्तानी से मेल खा जाये तो वही इसक लिये जिम्मेदार होगा
दीपक भारतदीप

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सभी का व्यापार शोर के सहारे चल रहा है-आलेख


उज्जैन के ब्लाग लेखक श्री सुरेश चिपलूनकर हिंदी के न केवल सक्रिय ब्लाग लेखक हैं बल्कि दूसरों को भी सक्रिय रखने का अवसर अपने हाथ से नहीं जाने देते। वह अक्सर ईमेल पर तमाम तरह की छबियां भेजते रहते हैं-जिनमें करीब करीब सभी दिलचस्प होती है। उनकी इन्हीं प्रेषणों पर मैं पहले अपने दो पाठ लिख चुका हूं। तीन दिन पहले उन्होने कुछ फोटो भेजे थे जिनमें एक टीवी चैनल की खबर थी जिसमें यू.एफ.ओ. द्वारा गायें उठा कर ले जाने की जानकारी थी।
उन चित्रों पर अंकित था
‘क्या गायों को बचाने आयेंगे गौरक्षक’
‘अभी तक एक भी गाय का सुराग नहीं‘, आदि आदि।
पहली बार जब मैंने सरसरी तौर से पढ़ा तो मुझे समझ में नहीं आया कि चिपलूनकर जी गुस्से में अपनी टिप्पणियां फोटो के नीचे रख रहे हैं या कटाक्ष के रूप में। उनकी एक लाईन ने जरूर इशारा किया कि वह शायद कोई एनिमेशन फिल्म रही होगी जिसके बारे में वह टीवी चैनल दावा कर रहा था कि उसके पास गायों को एलियन द्वारा उठाये जाने का यह समाचार उसके पास ही है। मेरे विचार से कोई सनसनी फैलाने वाली एनिमेशन फिल्म रही होगी।
अब तो वह समय आ गया है जब किसी एनिमेशन फिल्म, सामाजिक धारावाहिक और जादूगरों के कर्तव्यों को सभी समाचार चैनल सनसनीखेज बनाकर प्रसारित कर रहे हैं संभवतः उपरोक्त खबर भी इसी तरह की दी होगी। मैं उनके फोटो यहां इसलिये नहीं दे रहा क्योंकि उससे उसका व्यर्थ ही प्रचार होगा क्योंकि यहां मुख्य विषय तो टीवी चैनलों द्वारा काल्पनिक कथाओं पर आधारित एनिमेशन, फिल्म, धारावाहिक तथा अन्य मनोरंजन के अंशों का अपने कार्यक्रम को सनसनीखेज बनाने के औचित्य का प्रश्न है।
कल एक चैनल लिख रहा था‘मां ने बहु बेटे की सुपारी दी‘ थोड़े देर में देखिये। पता लगा कि वह किसी सामाजिक धारावाहिक का विज्ञापन कर रहा था।
आज भी ऐसा ही देखा
‘क्या आपके घर में रखा है कोई बक्सा,जिसकी चाबी खो गयी है तो उस लड़की को उसके पास नहीं आने दें। अगर वह उस पर चढ़ गयी तो पांच सैकंड में यह हो जायेगा। देखिए थोड़ी देर में।’
उस दौरान वहां विस्फोट भी होते दिखाई दिया।
उसे देख और सुनकर सनसनी का बोध होने के कारण हर आदमी उसे देखने के लिये उत्सुक होता है। मैंने भी कुछ देर देखा और बाद में तो उसने अनेक जादू के करतब दिखाना शुरू किये।
यह समाचार चैनलों की हालत हो गयी है कि वह अब समाचारों से कम अपने मनोरंजन की वजह से चल रहे हैं। वैसे तो यह व्यवसाय है और किसी को उन पर क्या टिप्पणियां करना है यह तो करने वाले ही जाने। हां, मेरा नजरिया थोड़ा अलग है।
कमाने को तो सभी कमाते हैं पर पश्चिम के लोगों का अपने जीवन में जो व्यवसायिक रवैया है वह वाकई अनुकरणीय हैं वहां बी.बी.सी और सी.एन.एन. की जो आकर्षक छबि है वह उनके व्यवसायिक रवैये के कारण हैं। आज भी बी.बी.सी का रेडियो भारत में लोकप्रिय है। खबर सुनने वाले आज भी उसे पसंद करते हैं। प्रबंधन के मामले में भारतीय कुशल नहीं हैं अपने कमाने में चाहें कितने भी सिद्ध हस्त हो जायें। आखिर क्या फर्क है एक व्यवसायिक और अव्यवसायिक व्यक्ति में। जो लोग अपने रोजगार के साथ व्यवसायिक रवैये जुड़े होते हैं वह उसमें नये प्रयोग करते हुए नये अविष्कार भी करते हैं और किसी की नकल तो वह करते ही नहीं हैं। जबकि अव्यवसायिक रवैये वाले कोई प्रयोग नहीं करते ओर जहां से जैसा दांव मिला काम चलाते हैं। वह अपने व्यवसाय से नहीं बल्कि अपनी आय से प्रतिबद्ध होते हैं। अवसर पड़े तो अपना व्यवसाय भी बदल लेते हैंं। भारत में ढेर सारे आई. टी. विशेषज्ञ, इंजीनियर,डाक्टर और अन्य विषयों के विशारद हैं पर प्रबंध कौशल में दक्षता के अभाव में ही भारत की प्रतिभा कौशल की कदर नहीं हो पायी। अर्थशास्त्र में भारत की समस्याओं में प्रबंध कौशल का अभाव भी माना जाता है। यह केवल सरकारी क्षेत्र में ही नहीं बल्कि निजी क्षेत्र में भी है और जो लोग निजीकरण की वकालत कर रहे हैं उन्हें यह समझना चाहिए कि वहां भी सेठ लोग और उनके कारिंदे परंपरागत ढंग से सोचने के आदी हैंं। वह अपनी कमाई में तो दिलचस्पी लेते हैं पर बेहतर सेवाऐं देना और ग्राहकों से सच्चाई बरतने जैसी बातों पर कभी सोचना भी नहीं चाहते। वह कमाई करना चाहते हैं व्यवसाय नहीं। वह अपना पेट पालने के लिये (पता नहीं वह कितना बड़ा है जो कभी भरता ही नहीं) काम करते हैं उसमें नये प्रयोग करना उनके लिये अपना समय बरबाद करना है।
टीवी चैनलों और अन्य प्रचार माध्यमों को यहां कमाई इसलिये हो रही है क्योंंकि यहां आबादी अधिक है पर पश्चिम के देशों की निजी संस्थायें तो अपने यहां कम आबादी होते हुए भी भारतीय संस्थाओं से अधिक कमातीं हैं। वैसे आबादी अधिक होते हुए भी निजी क्षेत्र ने केवल अपने पांव उतने ही फैलाये जितने से उनका काम चलता रहे। भारत के लोगों की उपभोग रुचियों में बदलाव का श्रेय तो पश्चिमी देशों को ही जाता है। आजकल टेलीफोन कंपनियां, फिल्में,दवाई कारखाने,समाचार पत्र तथा अन्य बृहद उद्योग आबादी अधिक होने के कारण अधिक ग्राहक और सस्ते श्रम के कारण ही कमा रहे हैं। उनकी आय का आधार व्यवसायिक कौशल कम शोषण अधिक है। यही कारण है कि भारतीय पत्रकार,अर्थशास्त्री,और व्यवसायी यहां कितना भी ढिंढोरा पीट लें विश्व स्तर पर कोई उनका सम्मान नहीं करता। चाहे वह प्रवासी हो या अप्रवासी यही आकर सम्मान पाते हैंं। इनमें से कुछ लोग तो पुरस्कार आदि का स्वयं इंतजाम कर अपनी प्रतिष्ठा बढ़ाते हैं। आस्कर अवार्ड में भारतीय फिल्म शामिल होने का शोर कितना मचता है पर वहां से पिटकर लौटने पर फिर चर्चा बंद हो जाती है। कुल मिलाकर यहां शोर के सहारे ही सभी के व्यापार चल रहे हैं।

यह मूल पाठ इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की शब्द- पत्रिका’ पर लिखा गया। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
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हास्य कविता -विद्यालय ने बोर्ड बदला


विद्यालय के प्रबंधन ने
छात्रो की भर्ती बढाने के लिए
अपने प्रचार के पर्चों में
शिक्षा के अलावा अन्य गतिविधियों में
संगीत, गायन, नृत्य और अभिनय में
इस तरह प्रशिक्षण देने का
दावा किया गया  कि
बच्चा इंडियन आइडियल प्रतियोगिता में
नंबर वन पर आ जाये
ट्वंटी ओवर में विश्व कप मे देश जीता
मिटा कर लिखा गया अन्य गतिविधियों में
यहाँ ट्वंटी ओवर क्रिकेट सिखाने की
विशेष सुविधा उपलब्ध है
जिसमे सिक्स लगाने का
जमकर अभ्यास कराया जाता है
जिससे खिलाड़ी सिक्स सिक्सर
लगाने वाला बन जाये
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