Tag Archives: घर और परिवार

काला और सफेद धन-हिन्दी कविता


 धन ने भी कर लिये

अपने दो रूप

काला और सफेद।

पीछे दौड़े हर इंसान

गले लगाता सभी को

राक्षस और देवता का

करता नहीं कभी भेद।

बन गया जो सेठ

कर लेता सभी को मुट्ठी में

नहीं देखता ज़माना

उसके चरित्र में छेद।

कहें दीपक बापू भगवान नाम का

स्मरण बहुत बड़ी कमाई

मानी जाती है,

भक्ति की कीमत भी

धन से ही जानी जाती है,

कोई सफेद कागज पर

काले अक्षर लिखकर कमाता,

कोई सफेद अक्षर पर पर

कालिख पोतकर अपन काम जमाता,

सभी सिक्कों की बरसात के

इंतजार में खड़े हैं,

भर जाये झोली

इसी चाह में अडे हैं,

सुमार्ग से आता नहीं

कुमार्ग से आये धन पर

किसी को नहीं खेद है।

——————-

रोटी कपड़े और मकान की

ढेर सारी सुविधाओं के भोग से

बहुत लोग ऊबे हैं।

मन बहलाने के लिये

पिछड़े  समाज के सुधार की

चिंता में शिखर पुरुष डूबे हैं।

कहें दीपक बापू एकता की बात

कहते हुए शोर मचाते हैं

मगर अपनी ज़मीन

बचाने के लिये

जाति भाषा और धर्म के नाम पर

उनके पास अपने अपने सूबे हैं।

———————————–

लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप 

ग्वालियर मध्य प्रदेश

Writer and poet-Deepak Raj Kukreja “Bharatdeep”
Gwalior Madhyapradesh

वि, लेखक एवं संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर

poet,writer and editor-Deepak Bharatdeep, Gwaliro

http://rajlekh-patrika.blogspot.com

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अकल और नकल-हिन्दी कविताऐ


खाने पीने पहनने और रहन सहन में

अंग्रेजों की करते हम नकल,

पढ़ पढ़ अंग्रेजी अपनी हिन्दी हो गयी हिंग्लिश

चरने लगी है मनोरंजन की घास हमारी अकल।

कहें दीपक बापू उपभोग में नया फैशन अपनाते हैं

नहीं होती अब चौपाल पर अध्यात्मिक चर्चा

बीमार लोग राजरोग पर अपना ज्ञान दर्शाते हैं।

रोटी की जगह जीभ पीजा और बर्गर का स्वाद मांगती है,

आंखें सच से ज्यादा पांखंड पर अपनी नज़र टांगती हैं।

निज स्वामित्व के सपने अब नहीं देखता कोई

गौरव गाथा  लोग सुनते बड़े चाव से

उनकी जो गुलामी के शिखर पर पहुंचने में रहे सफल।

———–

एकरसता में जीने का आदी विलासिता में फंसा समाज,

मौसम के बदलने से परेशान हो रहा है आज।

वातानुकूलित कक्ष में बैठकर अपनी ऊंची हैसियत पर

इतराते लोग भूख पर बहस में होते मशगूल,

बेबात के विषय को देते जोरदार तूल,

जिनके पेट चिकनी रोटी से भरे हैं,

महंगाई पर चर्चा करते हुए उनकी आंखों में आंसु भरे हैं,

कहें दीपक बापू सभी दे रहे हैं अपने अपने बयान

किसके हाथ में है हालातों पर काबू करने की ताकत

यह अभी तक बना हुआ राज है।

————-

लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,

ग्वालियर मध्यप्रदेश

writer and poet-Deepak Raj kurkeja “Bharatdeep”

Gwalior Madhya Pradesh

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बिकती कलम सस्ते भाव-हिन्दी व्यंग्य कवितायें


सामने से आती

बेईमान हवाओं की

उनको पहचान नहीं है।

बहने को आतुर

सामना करते हुए टिकते नहीं

उनकी रीढ़ की हड्डी में

इतनी जान नहीं है।

रंग बिरंगा आकाश

खरीदने की चाहत है

अपने लिये ही

खुद के दिल में शान नहीं है।

कहें दीपक बापू आदर्श की बात

परीक्षा के लिये रट लीं

पद और पैसे की दौड़ में जुटे

अक्ल के अंधों को

बाकी कुछ ध्यान नहीं है।

———————–

राजमार्ग पर जो निकल गये

वह कवि से

महाकवि हो गये।

उपाधियों का बोझ

जिनके सिर पर आया

उनके शब्द आमजन की सपंत्ति थे

विशिष्ट सभा में खो गये।

कहें दीपक बापू बिकती है कलम

बाज़ार में सस्ते भाव,

अपनी पंसद के शब्द

अपनी प्रशंसा के गीत पर

लगाते दौलतमंद दाव,

बिके जो रचनाकार प्रसिद्धि पाई

रहे स्वंतत्र उन्होंने सिद्धि पाई

यह अलग बात है

अपनी जिंदगी का बोझ

खाली हाथ ढो गये।

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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप 

ग्वालियर मध्य प्रदेश

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समाज सेवा की जिम्मेदारी-हिन्दी व्यंग्य कवितायें


समाचार चैनल देखो

लगता है पूरा ज़माना

विकास या विनाश के पीछे

भाग रहा है।

अध्यात्मिक चैनल पर

करते ध्यान तो लगता है

पूरा ज़माना ज्ञान की

प्रतीक्षा में जाग रहा है।

मनोरंजन चैनल पर जायें

ऐसा लगता है कि

पूरे ज़माने के हाथ

हथियार से सजे हैं

हर कोई गोली दाग रहा है।

कहें दीपक बापू लगाते ध्यान

आंखें बंद अदृश्य संसार

मस्तिष्क से पर होते विचार

शोर से मुक्त कान

मौन की अनुभूति मेें

प्रतीत होत है

ज़माने में हर इंसान के

हृदय में बसा शांति का राग है।

—————————-

हर इंसान इस दुनियां से

भरोसा उठ जाने की देता दुहाई

नही कोई देखतां अपनी नीयत खाली।

दोनों हाथ बांधे खड़े हैं

इस इंतजार में

कब बजेगी वफादारी की ताली।

स्वार्थ के मार्ग पर चलना सहज है

इसलिये समाज सेवा की जिम्मेदारी

पेशेवरों पर डाली।

कहें दीपक पेड़ लगाये नहीं

फल की तलाश में

घूम रहा ज़माना,

भलाई में वक्त बिताने से

सभी की पंसद  है

अपने लिये पैसे कमाना

बिगड़ते हालातों पर चिंता बेकार है

जब कहलाते अक्लमंद वह लोग

जिन्होंने अपने लिये जुटाये

ऊंचे ओहदे और सोने के महल

अपनी फिक्र दूसरों पर टाली।

                                                                                  ——–

लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,

ग्वालियर मध्यप्रदेश

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मजदूर का सच-हिन्दी कविता


भरी दोपहर में

मैले कपड़े पहने

पसीने से नहाया

ठेले पर केले बेचता वह आदमी

आवाज देकर अपने ग्राहक की तलाश कर रहा है,

प्यास दबाने के लिये

पास रखी बोतल से गले में पानी भर रहा है।

कहें दीपक बापू सुनते हैं गरीबों के भले के लिये

बड़ी बड़ी बातें श्रीमानों के मुख से

पढ़ते हैं बड़ी क्रांतियों की कथायें बड़े सुख से,

मजदूर नहीं मांगते किसी से भीख,

मेहनत से जिंदा रहने की देते हैं जमाने को सीख,

हमने देखा है हमेशा उनको अपनी बेचैनी के साथ

 पसीने के हथियार से जंग लड़ते हुए

कभी नहीं दिखाई दिया कोई विशिष्ट पुरुष

जो उनकी सांसों में ताजगी भर रहा है।

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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,

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