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साधू, शैतान और इन्टरनेट-हिंदी हास्य व्यंग्य कविता


शैतान ने दी साधू के आश्रम पर दस्तक
और कहा
‘महाराज क्या ध्यान लगाते हो
भगवान के दिए शरीर को क्यों सुखाते हो
लो लाया हूँ टीवी मजे से देखो
कभी गाने तो कभी नृत्य देखो
इस दुनिया को भगवान् ने बनाया
चलाता तो मैं हूँ
इस सच से भला मुहँ क्यों छुपाते हो’

साधू ने नही सुना
शैतान चला गया
पर कभी फ्रिज तो कभी एसी ले आया
साधू ने कभी उस पर अपना मन नहीं ललचाया
एक दिन शैतान लाया कंप्यूटर
और बोला
‘महाराज यह तो काम की चीज है
इसे ही रख लो
अपने ध्यान और योग का काम
इसमें ही दर्ज कर लो
लोगों के बहुत काम आयेगा
आपको कुछ देने की मेरी
इच्छा भी पूर्ण होगी
आपका परोपकार का भी
लक्ष्य पूरा हो जायेगा
मेरा विचार सत्य है
इसमें नहीं मेरी कोई माया’

साधू ने इनकार करते हुए कहा
‘मैं तुझे जानता हूँ
कल तू इन्टरनेट कनेक्शन ले आयेगा
और छद्म नाम की किसी सुन्दरी से
चैट करने को उकसायेगा
मैं जानता हूँ तेरी माया’

शैतान एकदम उनके पाँव में गिर गया और बोला
‘महाराज, वाकई आप ज्ञानी और
ध्यानी हो
मैं यही करने वाला था
सबसे बड़ा इन्टरनेट तो आपके पास है
मैं इसलिये आपको कभी नहीं जीत पाया’
साधू उसकी बात सुनकर केवल मुस्कराया

अनुवाद टूल से सभी भाषाओं के लेखक करीब आयेंगे-आलेख


मैंने कुछ अंग्रेजी ब्लाग के पाठों को हिंदी में अनुवाद कर उन्हें पढ़ा। इसमें कुछ भारतीय लेखकों द्वारा भी लिखे गये हैं। ऐसा लगता है कि विश्व का पूरा ब्लाग जगत एक समय एक जैसा ही दिखाई देगा हालांकि उनमें लिखी गयी विषय सामग्री अपने देश और क्षेत्र के कारण पृथक-पृथक दिखाई देगी पर मूल तत्व एक समान नहीं परिलक्षित होगा।

हिंदी अंग्रेजी अनुवाद टूल का उपयोग करने से वह ब्लाग लेखक भी अपनी भाषाई सीमाओं से निकलकर बाहर प्रतिष्ठित हो सकते हैं जो अंग्रेजी नहीं जानते। हिंदी फोरमों पर अपंजीकृत ब्लाग पर मैं अपने पाठों के अंग्रेजी अनुवाद भी प्रस्तुत कर रहा हूं। अंग्रेजी में मेरे आलेख साफ पढ़े जा सकें इसलिये अनुवाद टूल पर मुझे मेहनत तो होगी पर जिज्ञासावश मै यह कर रहा हूं। इस अंग्रेजी-हिंदी टूल की जानकारी अभी मिली पर यह पहले से ही कहीं उपयोग में लाया जा रहा है। एक ब्लाग लेखक ने मुझे उस दिन अपनी एक पोस्ट पर टिप्पणी दी थी और जब मैं उसके ब्लाग पर गया तो वहां हिंदी में पोस्ट थी। ब्लाग लेखक का नाम अंग्रेजी में था। पहले भी कई अंग्रेजी नामों वाले टिप्पणी लिखते रहे पर मैं सोचता था कि यह ऐसे ही रख रहे होंगे। एक ब्लाग लेखक ने मेरे ब्लाग पर अपनी टिप्पणी में ऐसे हिंदी-अंग्रेजी टूल की चर्चा की थी तब मुझे लगा था कि एक दिन ऐसा टूल आयेगा पर इतनी जल्दी आयेगा ऐसी अपेक्षा मुझे नहीं थी।

मुख्य बात है कि अनुवाद का परिणाम शतप्रतिशत नहीं है पर उससे अंग्रेजी को पढ़ने के सहायता तो मिल ही रही है। इसलिये उसका लिखने के लिये भी उपयोग कर रहा हूं। मैं जब अपना पाठ उस पर अनुवाद के लिये लाता हूं तो कई शब्द वह स्वीकार नहीं करता पर फिर उसके लिये वैकल्पिक शब्द रखता हूं। मेरी रचना अंग्रेजी में थोड़ा बहुत समझी जाये तो वह भी मुझे अच्छा लगेगा। ऐसा लग रहा है कि उसकी प्रतिक्रिया सकारात्मक होने वाली है। कुछ अंग्रेजी ब्लाग लेखक भी हिंदी ब्लाग लेखकों से संपर्क बनाने के लिये प्रयासरत दिख रहे हैं। हिंदी ब्लाग लेखक को अब अपन मनःस्थिति विदेशी भाषी ब्लाग लेखकों से अपने संपर्क रखने के लिये बना लेनी चाहिए। यह ब्लाग यहीं घूमने वाले नहीं है और अनुवाद टूल के माध्यम से अन्य भाषी ब्लाग लेखकों से इनके संपर्क में आने की पूरी संभावना है।

ब्लाग शब्द का किसी भाषा में कोई अनुवाद नहीं है और ब्लाग लेखकों के लिये भाषाई दीवार भी खत्म होती नजर आ रही है। कल एक अंग्रेजी ब्लाग लेखिका ने एक पोस्ट पर प्रतिक्रिया दी तो बात समझ में आ गयी कि वह मेरी पोस्ट पढ़कर ही वह लिख रही है Jennifer Lancey ने लिखा Hello there. I was sent a link to your blog by a friend a while ago. I have been reading a long for a while now. Just wanted to say HI. Thanks for putting in all the hard work। अब है न आश्चर्य की बात कि मैं लिख रहा हूं हिंदी में पढ़ रहे है वह लोग जो केवल अंग्रेजी ही जानते हैं। उसने मेरे अंग्रेजी अनुवाद को पढ़ा और उसके बारे में उसकी राय पता नहीं चलती, पर हम लोग भी भला कहां ऐसी टिप्पणियां लगाते हैं जिससे स्पष्ट होता है कि हमारे समझ में आया कि नहीं। हां, मैं इस बात का इंतजार नहीं कर रहा कि कोई मेरे हिंदी ब्लाग को अनुवाद टूल से पढ़े बल्कि स्वयं ही अनुवाद भी रख रहा हूं। अनुवाद में अशुद्धियों को ठीक करने पर इसलिये मेहनत कर रहा हूं ताकि मेरी पोस्ट और अधिक स्पष्ट पठनीय हो। अब लिखते समय इस बात का भी ध्यान रख रहा हूं कि मेरा ब्लाग अन्य भाषाओं के भी अनुवाद होगा। विश्व के सभी भाषाओं के ब्लाग लेखक एक दिन इतने करीब आ जायेंगे कि उनमें दूरियां नाम की रह जायेंगी। मैं चाहता हूं कि हिंदी के ब्लाग लेखक भी विश्व पर प्रतिष्ठित हों और उन्हें अपनी पोस्टों को समय होने पर कभी कभी अनुवाद टूल पर देखना चाहिये कि वह अंग्रेजी में पूरी तरह अनुवाद से पढ़ने में आती है कि नहीं। जो शब्द अनुवाद न हों उसके लिये वैकल्पिक शब्द चुन कर रखें। जरूरी नहीं हैं कि हम अंग्रेजी अनुवाद रखें पर उसे इस लायक तो बना सकते हैं कि उसका अंग्रेजी में अधिकतम शुद्ध अनुवाद हो जाए। इसमें कोई आपत्तिजनक नहीं है क्योंकि हम हिंदी में लिख रहे हैं और अगर अन्य भाषाओं के ब्लाग लेखक हमसे संपर्क रखने के इच्छुक हों तो उन्हें सुविधा हो जायेगी। एक बात का अनुभव हुआ कि अपने पाठों में हम जितने अधिकतम शुद्ध हिंदी शब्दों का उपयोग करेंगे उतना ही इसका अंग्रेजी अनुवाद शुद्ध होगा।

Google’s translation of the text has been presented here to http://rajdpk1.wordpress.com

क्या क्रिकेट की पुनःप्रतिष्ठा इंटरनेट के लिये चुनौती है?


मुझे याद है जब पिछली बार मैं ब्लाग बनाने के लिये प्रयास कर रहा था तब वेस्टइंडीज में विश्वकप शुरू हो चुका था और मैने यह सोचा कि लीग मैचों में भारतीय (जिसे अब मैं बीसीसीआई की टीम कहता हूं) क्रिकेट टीम   तो ऐसे ही जीत जायेगी। इतना ही नहीं मैने  इस टीम के खेल पर संदेह होने कारण एक व्यंग्य भी लिखा था ‘क्रिकेट में सब चलता है यार’ पर वह कोई नहीं पढ़ पाया। बहरहाल यह टीम लीग मैचों में ही बाहर हो गयी। तब  मेरा ब्लाग तैयार हो चुका था पर उसे पढ़ कोई नहीं पा रहा था पर हां क्रिकेट पर लिखी सामग्री नारद पर चली जाती थी पर यूनिकोड में न होने के कारण कोई पढ़ नहीं पाता था। नारद ने बकायदा एक अलग काउंटर बना दिया था।

मुझे उस समय यह देखकर हैरानी हो रही थी कि जो नारद मुझे पंजीकृत नही कर रहा है वह मेरे क्रिकेट से संबंंधित ब्लाग क्यों अपने यहां दिखा रहा है। बहरहाल भारतीय क्रिकेट टीम के हारते ही नारद ने अपना काउंटर भी वहां से हटा लिया और मैं फिर वहां से बाहर हो गया। भारतीय क्रिकेट टीम हारी लोगों की हवा ही निकल गयी। ऐसे में कई लोगों के विज्ञापन तक रुक गये।

मैं पिछले 25 बरसों से इस टीम का खेल देख रहा हूं और पिछले साल गयी टीम की जीत की भविष्यवाणी करने वालें से मैं एक ही सवाल करता था कि ‘आप मुझे टीम का एक भी ऐसा पक्ष बतायें जिसकी वजह से इस टीम को संभावित विजेता मान सकें। टीम हारी लोगों की दुनियां ही लुट गयी। संयोगवश मैं यूनिकोड में लिखना शूरू कर चुका था और लिखने बैठा तो एक तो मुझे इस हार के गम से नहीं गुजरना पड़ा तो दूसरे खिसियाये लोग इंटरनेट की तरह आते दिखे।  सभी लोग पढ़ने नहीं आये तो सभी ऐसे वैसे फोटो देखने भी नहीं आये। पिछले साल से इंटरनेट का इस्तेमाल बढ़ा है।
मैने अपने ब्लाग पर हिट्स और व्यूज तेजी से बढ़ते देखे हैं और एक समय तो मुझे लगा कि हो सकता है कि 2008 के अंत तक किसी एक ब्लाग पर एक दिन में पांच सौ व्यूज भी हो सकते हैं। वर्डप्रेस के हर ब्लाग पर व्यूज सौ से ऊपर निकलते देखे हैं।  एक ब्लाग पर तो दो दिन तक 200 व्यूज आते दिखे। आज हालत वैसी नहीं है। अपने हिसाब से थोड़ा विश्लेषण किया तो कुछ स्मृतियां मेरे मन में आयी है।

अचानक भारतीय टीम ने ट्वंटी-ट्वंटी विश्व कप जीत लिया और उस समय मैने लिखा भी था कि क्रिकेट फिर जनचर्चा का विषय बना। एक हास्य कविता भी लिखी कि अब बीस का नोट पचास में चलायेंगे-आशय यह था कि पचास ओवरों के विश्व कप में पिट गये तो अब बीस का जीतकर फिर क्रिकेट को जीवित करने की कोशिश होगी। यही हुआ और उसके बाद कई खिलाड़ी जो हाशियं पर जा रहे थे वापस चर्चा में आ गये और तीन वरिष्ठ खिलाड़ी जो ट्वंटी-ट्वंटी विश्व कप में नहीं थे फिर मैदान में जम गये। इधर यह भी दिखाई   दिया कि भारतीय क्रिकेट टीम ने घरेलू श्रंखलाओं में जीत दर्ज की तो नवयुवक को एक वर्ग उस पर फिदा हो रहा है। साथ भी मैने यह अनुभव किया कि पिछले चार माह में ब्लाग पर हिट और व्यूज  की संख्या कम होती जा रही है।

अब यह जो नयी प्रतियागिता शुरू हुई है उसके बाद मुझे लग रहा है कि व्यूज और कम होते जा रहे हैं। पहले सौ के आसपास रहने वाले व्यूज साठ से सतर और तीस  से पचास तक सिमट रहे हैं।  मैने ब्लागवाणी पर भी जाकर अनुभव किया कि वहां भी सभी ब्लाग पर व्यूज कम हैं।  हो सकता है यह मेरा मतिभ्रम हो पर मुझे लगता है कि कुछ ब्लागर भी यह मैच देखने में लग गये हैं। मैने आज अपने साइबर कैफे के मालिक अपने मित्र से पूछा-‘‘क्या तुम्हें ऐसा लगता है कि इन मैचों की वजह से तुम्हारे यहां आने वाले लोगों की संख्या कम हुई है?’’

तो उसने कहा-‘‘हां, पर गर्मिंयां और छुट्टियां होने से भी यह हो सकता है पर मुझे लगता है मैचों वाले समय में संख्या कम हो रही है।’

इधर मुझे भी लगता है कि कुछ ऐसे लोग भी मैच देखने में लग गये हैं जो बिल्कुल इससे विरक्त हो गये थे। शायद इसका कारण यह भी है कि लोगों के पास समय पास करने के लिये और कोई जरिया भी तो नहीं है। इसलिये अब इस खेल में मनोरंजन का भी इंतजाम किया गया है। मैं उन लोगों में हूं जिनका मोह तभी इस खेल से भंग होता गया जब इस संदेह के बादल लहराने लगे थे। इसके बावजूद मैं आधिकारिक मैच मैं देखता हूं और यह प्रतियोगिता मुझे अधिक प्रभावित नहीं कर पा रही। मैं पहले भारत का वासी हूं और फिर मध्यप्रदेश का ओर दोनों का वहां कोई वजूद नहीं देखता इसलिये मुझे इसमें कोई दिलचस्पी नहीं है। हां, इधर जब ब्लागवाणी पर दूसरे ब्लाग और वर्डप्रेस के अपने ब्लाग पर घटते व्यूज देखे तो विचार आया कि कहीं अंतर्जाल की वेबसाईटों और ब्लागों पर क्या लोगो की आमद कम हो जायेगी? इस तरह क्या इंटरनेट को क्रिकेट की पुनःप्रतिष्ठा से कोई चुनौती मिलने वाली है। 

यह बात याद रखने वाली है कि आदमी को चलाता मन ही है और इधर इंटरनेट पर जो लोग आये वह कोई आसमान से नहीं आये। मैं क्रिकेट, अखबार और टीवी से हटकर यहां आया तो और भी आये। मैं वहां नहीं जा रहा क्योंकि मुझे लिखने में मजा आ रहा है पर दूसरे तो जा सकते हैं। फिलहाल तो ऐसा लग रहा है पर कालांतर में फिर लोग इधर आयेंगे। मेरे जो मित्र पहले क्रिकेट से विरक्त हो चुके थे और यह मैच देख रहे हैं उनका कहना था कि ‘यह मैच अधिक समय तक लोकप्रिय नहीं रहेंगे क्यांेंकि इनमें राष्ट्रप्रेम का वह जज्बा नहीं है जिसकी वजह से क्रिकेट इस देश में लोकप्रिय हुआ था’। यह प्रतियोगिता समाप्त होते ही फिर लोग अपने पुराने ढर्रे पर वापस आ जायेंगे और अगर मुझे लगता है कि इन मैचों की वजह से इंटरनेट पर लोगों की आमद कम है तो वह निश्चित रूप से बाद में बढ़ेगी। यहां याद रखने वाली बात यह है कि लोग अपना समय केवल खेल देखने में ही नहीं बल्कि उसके बाद होने वाली चर्चाओं पर भी व्यय करते हैं और ऐसे में अगर इंटरनेट पर लोगों की आमद कम हो रही हो तो आश्चर्य की बात नहीं है।

मेरी स्थिति तो यह है कि हरभजन सिंह को टीम से निकाला गया-यह खबर भी मुझे बहुत  हल्की लगी। अगर यही अगर उसे किसी अतर्राष्ट्रीय एक दिवसीय मैच से निकाला जाता तो शायद मैं कुछ जरूर  लिखता। इस प्रतियोगिता में खेल रही टीमों में कोई दिलचस्पी नहीं होने के कारण कोई भी समाचार मेरे दिमाग में जगह नहीं बना पाता।

करते रहो समर्पण भाव से अपना कर्म


इधर जाएँ कि उधर
यह कभी तय नहीं कर पाए
जिस माया को पाने की चाहत है
उसके आदि और अंत को समझ नहीं पाए
चारों और फैली दिखती है रोशनी
पर कभी हाथ से पकड़ नहीं पाए
कहीं इस घर मे मिलेगी
कहीं उस दर पर सजेगी
और कहीं किसी शहर में दिखेगी
उसके पीछे दौडे जाते लोग
जितना उसके पास जाओ
वह उतनी दूर नजर आये
सौ से हजार
हजार से लाख
लाख से करोड़
गिनते-गिनते मन की भूख बढती जाये

कहै दीपक बापू
माया की जगह जेब में ही है
उसे सिर मत चढ़ाओ
इधर-उधर देख क्यों चकराये
पीछे जाओगे तो आगे भागेगी
बेपरवाह होकर अपनी राह चलोगे
तो पीछे-पीछे आयेगी
जितना खेलोगे उससे
उतना ही इतरायेगी
मुहँ फेरोगे तो खुद चली आयेगी
आदमी की पास उसका है धर्म
करते रहो समर्पण भाव से अपना कर्म
सत्य का यही है मर्म
जीवन के खेल में वही विजेता होते
जो सत्य के साथ ही चल पाए
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शक्तिशाली लोग हर जगह समाज की फिक्र करें


मलेशिया में भारतवंशियों के आन्दोलन पर वहाँ की सरकार का बराबर रवैया अत्यंत चिंता का विषय है और हर समय विभिन्न देशों में मानवाधिकारों के हनन का मामला उठाने वाले अनेक अंतर्राष्ट्रीय संगठन इस पर खामोश हैं क्योंकि उस समुदाय की न तो कोई आर्थिक ताकत है और न ही राजनीतिक आधार है.

मलेशिया में भारतवंशियों की हालत इस बात का द्योतक है शांति, सहिष्णुता और सात्विकता के भाव जो हमारे देश के लोगों में हैं और कहीं भी नहीं है. अंग्रेजों ने भारत के आर्थिक एवं मानवीय स्त्रोतों का अपने लिए खूब इस्तेमाल किया और जब इसके कठिनाई आई तो छोड़ कर चले गए. अंग्रेज जाते-जाते भारत का बंटवारा करते गए ताकि यह देश कभी अधिक शक्तिशाली न बन सके तो भीं उन्होने एक लंबे समय तक भारत विरोधी ताकतों को समर्थन दिया ताकि यह देश विवादों में फंसा रहे. आज पश्चिमी राष्ट्र जिस आतंकवाद के संकट में है वह उनकी ही देन है और यही वजह है एशिया के आम लोगों की उनके साथ कोई सहानुभूति नहीं है. इसके बावजूद किसी में इतना साहस नहीं है कि पश्चिमी मूल के लोगों को तंग कर सके.

भारत के लोगों की आर्थिक ताकत तो बढ़ रही है पर सम्मान नहीं बढ़ रहा, इसका सीधा आशय यही है कि जिनके पास आर्थिक और सामाजिक ताकत है वह समाज की वैसी ही फिक्र नहीं कर रहे जैसे पश्चिमी राष्ट्र के लोग करते हैं, यही कारण है कि पश्चिमी देशो के अलावा जहाँ कहीं भी भारतीय हैं उनको सम्मान नहीं मिलता. यह भी हो सकता है कि विश्व में भारतीय समाज के बढ़ती ताकत से खिसियाह्ट के कारण ऐसा हो रहा हो-क्योंकि इस समाज के धन और शक्ति से संपन्न लोगों से लाभ लेना चाहते हैं इसलिए उनसे सही व्यवहार करते हैं पर मन की खिसियाह्ट श्रमिक और कर्मचारी वर्ग के लोगों पर उतारते हैं.

मलेशिया कोई इतना संपन्न राष्ट्र नहीं है कि वह आर्थिक रूप से भारत की परवाह नहीं करें इसलिए भारत के आर्थिक राजनीतिक और सामाजिक रूप से संपन्न लोग अपने प्रभाव का उपयोग करें तो ऐसा नहीं है कि वहाँ की सरकार को भारतवंशियों के साथ सही व्यवहार करने का सन्देश दिया जा सके. हालांकि इस्लामिक राष्ट्र होने के साथ वह राजनीतिक रूप से चीन का साथी है और हो सकता है कि भारतवंशियों के साथ दुर्व्यवहार किसी सोची समझी राजनीति के तहत किया जा रहा हो पर अगर भारत के शक्तिशाली लोग अपने समाज के लिए प्रतिबद्धता दिखाएँ तो ऐसी घटनाओं को रोका जा सकता है. इसमें हमें संदेह नहीं है कि इस समय विश्व के आर्थिक जगत पर भारतीय चमक रहे है पर मन में होते हुए भी अपने समाज के लिए प्रतिबद्धता नहीं दिखाते यही कारण है कि जहाँ जाते हैं वहाँ अपने परिश्रम और लगन से वहाँ का विकास करते हैं पर सामाजिक रूप से सम्मान नहीं अर्जित कर पाते क्योंकि वह अपने समाज से अलग दिखने का प्रयास करते हैं. अब समय आ गया है कि जैसे आर्थिक जगत में दीवारें टूट रहीं है वैसे ही सामाजिक क्षेत्र मी दीवारें तोड़कर पूरे विश्व की भारतीय समाज को एक माना जाना चाहिऐ.