Category Archives: shayree

साधू, शैतान और इन्टरनेट-हिंदी हास्य व्यंग्य कविता


शैतान ने दी साधू के आश्रम पर दस्तक
और कहा
‘महाराज क्या ध्यान लगाते हो
भगवान के दिए शरीर को क्यों सुखाते हो
लो लाया हूँ टीवी मजे से देखो
कभी गाने तो कभी नृत्य देखो
इस दुनिया को भगवान् ने बनाया
चलाता तो मैं हूँ
इस सच से भला मुहँ क्यों छुपाते हो’

साधू ने नही सुना
शैतान चला गया
पर कभी फ्रिज तो कभी एसी ले आया
साधू ने कभी उस पर अपना मन नहीं ललचाया
एक दिन शैतान लाया कंप्यूटर
और बोला
‘महाराज यह तो काम की चीज है
इसे ही रख लो
अपने ध्यान और योग का काम
इसमें ही दर्ज कर लो
लोगों के बहुत काम आयेगा
आपको कुछ देने की मेरी
इच्छा भी पूर्ण होगी
आपका परोपकार का भी
लक्ष्य पूरा हो जायेगा
मेरा विचार सत्य है
इसमें नहीं मेरी कोई माया’

साधू ने इनकार करते हुए कहा
‘मैं तुझे जानता हूँ
कल तू इन्टरनेट कनेक्शन ले आयेगा
और छद्म नाम की किसी सुन्दरी से
चैट करने को उकसायेगा
मैं जानता हूँ तेरी माया’

शैतान एकदम उनके पाँव में गिर गया और बोला
‘महाराज, वाकई आप ज्ञानी और
ध्यानी हो
मैं यही करने वाला था
सबसे बड़ा इन्टरनेट तो आपके पास है
मैं इसलिये आपको कभी नहीं जीत पाया’
साधू उसकी बात सुनकर केवल मुस्कराया

आतंकवाद से लड़ने के दावे-हास्य कविता और चिंत्तन लेख


आतंकवाद एक व्यापार है, और यह संभव नहीं है कि बिना पैसे लिये कोई आतंक फैलाता हो। अभी अखबार में एक खबर पढ़ी थी कि उत्तरपूर्व में केंद्र सरकार ने आर्थिक विकास के लिये जो धन दिया उसमें से कुछ आतंकी संगठनों के पास पहुंचा जिससे आतंकियों ने हथियार खरीदे। स्पष्टतः इन हथियारों का पैसा उसके निर्माताओं को मिला होगा। इस संबंध में केंद्रीय खुफिया ऐजेंसियों की जानकारी के आधार पर कुछ सरकारी अधिकारियों, ठेकेदारों तथा अन्य लोगों के खिलाफ़ मामला दर्ज किया गया है और यकीनन यह इस तरह के सफेदपोश लोग हैं जो कहीं न कहीं समाज में अपना चेहरा पाक साफ दिखते हैं। जब आतंक की बात आती है तो चंद मानवाधिकार कार्यकर्ता प्रभावित क्षेत्रों में धर्म और धन के आधार पर शोषण का आरोप लगाते हैं पर जब विकास के धन से आतंक को सहायता मिलती है तो उस पर खामोश हो जाते हैं।
ऐसे में आतंक को रंग से पहचाने वाले बुद्धिजीवियों पर तरस आता है पर उनको भी क्या दोष दें। सभी किसी न किसी रंग से प्रायोजित हैं और उनको अपने प्रायोजकों की बज़ानी है। एक स्वतंत्र और मौलिक लेखक होने के नाते हमने तो यह अनुभव किया है कि संगठित प्रचार माध्यमों-टीवी, समाचार पत्र पत्रिकाओं तथा रेडियो-में हमें जगह इसलिये नहीं मिल पाई क्योंकि किसी रंग ने प्रयोजित नहीं किया। हम इस पर अफसोस नहीं जता रहे बल्कि अपने जैसे स्वतंत्र लेखकों ओर पाठकों को यह समझा रहे हैं कि जब किसी आतंकवाद या उग्र आंदोलन का समर्थक कोई प्रसिद्ध बुद्धिजीवी बयान दे तो समझ लें कि वह दौलतमंदों का प्रयोजित बुत बोल रहा है। यकीनन उसे प्रयोजित करने वाला कोई ऐसा दौलतमंद ही हो सकता है जो अपने रंग की रक्षा केवल इसलिये करना चाहता है जिससे कि उसके काले धंधे चलते रहें। पहले गुस्सा आता था पर अब हंसी आती है जब आतंक या उग्रता की पहचान लिये आंदोलनों के समर्थक बुद्धिजीवी बयान देते हैंे और समझते हैं कि कोई इस बात को जानता नहीं है। एक रंग समर्थक बुद्धिजीवी उग्र बयान देता है तो उस पर अनेक बयान आने लगते हैं इस तरह आतंक के साथ ही उस पर बयान और बहस भी प्रचार का व्यापार हो गये हैं।
इस पर एक हास्य कविता लिखने का मन था पर लगा कि उसमें पूरी बात नहीं कह पायेंगे इसलिये यह गद्य भी लिखकर मन की भड़ास निकाल दी। इसका उद्देश्य यही है कि दुनियां भर के सभी शासक आतंकवाद से लड़ने का दावा करते हैं पर वह है कि बढ़ता ही जा रहा है। स्पष्टतः ऐसे में जिम्मेदार लोगों की अकुशलता, कुप्रबंधन के साथ इसमें कहीं न कहीं सहभागिता का भी शक होता है। सभी देश अपने अपने ढंग से आतंकवाद को समझ रहे हैं इसलिये लड़ कोई नहीं रहा। दावे केवल दावे लगते हैं
इस पर यह एक बेतुकी हास्य कविता प्रस्तुत है।

पोते ने दादा से कहा
‘‘बड़ा होकर मैं भी आतंकवादी बनूंगा
क्योंकि उनके साक्षात्कार टीवी पर आते हैं,
समाचारों में भी वह छाते हैं,
पूरी दुनियां में मेरा नाम छा जायेगा।
अमेरिका भी मुझसे घबड़ायेगा।’’

तब दादा ने हंसते हुए कहा
‘‘बेटा, यह क्या सपना तूने पाल लिया,
आतंकवादी सबसे बड़ा है यह कैसे मान लिया,
तू मादक द्रव्य का तस्कर बन जाना,
चाहे तो क्रिकेट पर सट्टा भी लगवाना,
मन में आये तो जुआ घर खोल देना,
अपहरण उद्योग भी बुरा नहीं है,
अपहृत के बदले भारी रकम मोल लेना,
जब ढेर सारा पैसा तेरे पास आयेगा,
तब क्या पहरेदार, क्या चोर,
आतंकवादी भी तेरे आगे सिर झुकायेगा।
बेटा, यह भी एक व्यापार है,
पर इसमें खतरे अपार हैं,
धंधा चाहे काला हो
पर दौलत होगी तो
हमेशा अपने को सफेदपोश पायेगा,
आतंकी बनकर भी रहेगा गुलाम,
हर कोई अपना रंग तुझ पर चढ़ायेगा।
टीवी पर चेहरा आने ,
या अखबार में खबर छप जाने पर
तेरे को चैन नहीं आयेगा,
मरने का डर तेरे को सतायेगा,
काम निकल जाने पर प्रायोजक ही

तेरा बैरी होकर ज़माने का नायक बन जायेगा
पहले तेरे को मरवायेगा,
या फिर इधर से उधर दौड़ाते हुए
तेरा पीछा करते अपने को दिखायेगा।
मेरी सलाह है
न तो सफेदपोश प्रयोजक बन,
न आतंकवादी होकर तन,
अपना छोटा धंधा या नौकरी करना,
चाहे तो कविता लिखना
या चित्र बनाकर उसमें रंग भरना,
दूसरे खुश हो या नहीं
तुम अपने होने का खुद करना अहसास,
दिल की खुशी का बाहर नहीं अंदर ही है वास,
ऐसा चेहरा रखना अपना
जो खुद आईने में देख सके,
दौलत, शौहरत और ताकत में
अंधे समाज को भला क्या दिखायेगा।
मुझे गर्व होगा तब भी जब
आतंकवादी की तरह प्रसिद्ध न होकर
अज्ञात श्रमजीवी की सूची में अपना नाम लिखायेगा।
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लेखक संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com

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बुतों का बाजार-हास्य व्यंग्य कविता (buton ka bazar-hindi hasya kavita)


चौराहे पर खड़े पत्थर के बुत पर
कंकड़ लगने पर भी लोग
भड़क जाते हैं।
अगला निशाना खुद होंगे
यह भय सताता है
या पत्थर के बुत से भी
उनको हमदर्दी है
यह जमाने को दिखाते हैं।

कहना मुश्किल है कि
लोग ज्यादा जज्बाती हो गये हैं
या पत्थरों के बुतों के सहारे ही
खड़े हैं उनके घर
जिनके ढहने का रहता है डर
जिसे शोर कर वह छिपाते हैं।
यह मासूमियत है जिसके पीछे चालाकी छिपी
जो लोग कंकड़ लगने से कांप जाते हैं।
……………………….
बुतों के पेट से ही
बुत बनाकर वह बाजार में सजायेंगे।
समाज में विरासत मिलती है
जिस तरह अगली पीढ़ी को
उसी तरह खेल सजायेंगे।
जज्बातों के सौदागर
कभी जमाने में बदलाव नहीं लाते
वह तो बेचने में ही फायदा पायेंगे।
करना व्यापार है
पर लोगों के जज्बातों की
कद्र करते हुए सामान सजायेंगे।

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मन को झूठ के सहारे कब तक बहलायें


यूं ही कहीं देख लें बाग़
तो दिल मचल जाता है
फोटो में ही क्यों न देख लूं वृक्ष
शेर कहने का जजबात उमड़ आता है
देखते हुए नकली दृश्य
अब ऊबने लगा है मन
जहाँ देखता है हरियाली को लहराते हुए
वही ठहर जाता है
घर में चीखता हुआ टीवी
रास्ते में वाहनों की भयानक आवाजें
जीवन का ऐसा हिस्सा बन गईं है
कि धीमी चलती हवा में
पेडों के हिलते पत्तो की मधुर आवाज
कहीं सुन ले तो खुश हो जाता है
पंच तत्वों से बने शरीर में रहने वाले
मन को कब तक
झूठ के सहारे बहलायें
धरतीपुत्र पेडों से भला वह कब दूर रह पाता है
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मामला एक कंपनी का – हिंदी हास्य कविता (hindi hasya kavita


हीरो ने कहा निर्देशक और निर्माता से
‘आज शूटिंग नहीं करूंगा
पैकअप करा दो
मेरा मूड है खराब’
निर्माता ने अपना मोबाइल
उसकी तरफ बढ़ाया और कहा
‘मैंने नंबर लगा दिया है
पहले इस पर बात कर लो
फिर देना जनाब’

हीरो ने नंबर देखा और घबडाया
अपने सेक्रेटरी को बुलाया
उसने जब मामला समझा
तब उसने भी अपना मोबाइल
निर्माता की तरफ बढाया
और कहा
‘उस बिचारे को क्या धमकाते हो
मुझ से बात करो
आप इस नंबर पर बात करो पहले जनाब ‘

निर्माता का सेक्रेटरी भी वहीं खड़ा
उसने भी नंबर देखा और खुश होकर बोला
‘अरे काहेका झगडा आप और हम एक ही
कंपनी का मोबाइल इस्तेमाल करते हैं
एक ही कंपनी से एक ही नबर पर
एक जैसी बात करते हैं
फिर क्यों झगडा करते हैं साहब’

हीरो ने कुछ सुना कुछ समझा
और बोला
‘बात एक कंपनी ही की है
अपना मोबाइल एक कंपनी का
अपना प्यारा नंबर एक कंपनी का
यह सुनकर मैं खुश हुआ
अब तो शूटिंग शुरू करो जनाब’
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