Category Archives: kavita

क्योंकि इंसान फूलों की तरह खुशबू नहीं बिखेर पाते-हिंदी शायरी



जिंदा और चलते फिरते इंसान की
खिदमत में
उसके गले पर चढ़ती है फूलों की माला
अगर बन जाये कोई इंसान लाश
तो भी श्रद्धांजलि में भी
शव पर बिछ जाती है फूलों की माला
जिन पर है दौलत की दुआ
उन इंसानों के पैदा होने पर खुश
और मरने पर रोने वाले बहुत हैं
पर बिखेरते हैं हर पल जिंदा खुशबू
उनके उन फूलों के खिलने पर कौन हंसता है
और कौन है मुरझाने पर रोने वाला
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क्योंकि इंसान कभी फूलों की तरह
खुशबू नहीं बिखेर पाते
इसलिये ही अपने जिंदा रहते हुए
अपनी खिदमत में खुद
और मरने पर मातम में
उनके अपने उन पर फूलों की बरसात करवाते
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यह मूल पाठ इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की शब्द- पत्रिका’ पर लिखा गया। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
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पहले बनाओ पंगेबाज फिर बताओ चंगेबाज-हास्य व्यंग्य कविता


घर से निकले ही थे पैदल
देखा फंदेबाज को भागते हुए आते
इससे पहले कुछ कह पाते
वह हांफते हुए गिर पड़ा आगे
और बोला
’‘दीपक बापू अभी मुझे बचा लो
चाहे फिर भले ही अपनी हास्य कविता सुनाकर
हलाल कर मुझे पचा लो
रास्ते में उस पंगेबाज को जैसे ही मैंने
कहा बापू से मिलने जा रहा हूं
पत्थर लेकर मारने के लिये मेरे पीछे पड़ा है
सिर फोड़ने के लिये अड़ा है
कह रहा है ‘टीवी पर तमाम समाचार आ रहे है
बापू के नाम से बुरे विचार मन में छा रहे हैं
तू उनका नाम हमारे सामने लेता है
उनको तू इतना सम्मान देता है
अभी तेरा काम तमाम करता हूं
वीरों में अपना नाम करता हूं’
देखो वह आ रहा है
अच्छा होगा आप मुझे बचाते’’

पंगेबाज भी सीना तानकर खड़ा हो गया
हांफते हांफते बोला फंदेबाज
‘अच्छा होता आप इसे भी
अपनी हास्य कविता सुनाते’

कविता का नाम सुनकर भागा पंगेबाज
उसके पीछे दौडने को हुए
फंदेबाज का हाथ छोड़ने को हुए
पर अपनी धोती का एक हिस्सा
उसके हाथ में पाया
उनकी टोपी पा रही थी
अपने ही पांव की छाया
अपनी धोती को बांधते
टोपी सिर पर रखते बोले महाकवि दीपक बापू
‘कम्बख्त जब भी हमारे पास आना
कोई संकट साथ लाना
क्या जरूरत बताने थी उसे बताने की कि
हम हास्य कविता रचाते
कविता सुनने से अच्छे खासे तीसमारखां
अपने आपको बचाते
हम उसे पकड़कर अपनी कविता सुनाते
तुम अपने मोबाइल से कुछ दृश्य फिल्माते
वह नहीं भागता तो हम मीडिया में छा जाते
कैसे बचाया एक फंदेबाज को पंगेबाज से
इसका प्रसारण और प्रकाशन सब जगह करवाते
आजकल सभी जगह हिट हो रहे पंगे
रो रहे है फ्लाप काम करके भले चंगे
ऐसे ही दृश्य बनते हैं खबर
खींचो चाहे दृश्य और शब्द
जैसे कोई हो रबड़
पहले बनाते हैं ऐसी योजना जिससे
मशहूर हो जायें पंगे
फिर जिनको पहले बताओ बुरा
बाद में बताओ उनको चंगे
पहले बनाओ पंगेबाज फिर बताओ चंगेबाज
कितना अच्छा होता हम सीधे प्रसारण करते हुए
अपनी हास्य कविता से पंगेबाज को भगाते
हो सकता है उससे हम भी नायक बन जाते
हमारे ब्लाग पर भी छपती वह कविता
शायद इसी बहाने हिट हो जाते
इतने पाठ लिखकर भी कभी हिट नहीं पाते
पंगेबाज कुछ देर खड़ा रहा जाता तो
शायद हम भी कुछ हास्य कविता पका लेते
अपने पाठको का पढ़ाकर सकपका देते
पर तुमने सब मामला ठंडा कर दिया
अब हम तो चले घर वापस
इस गम में
कोई छोटी मोटी शायरी लिख कर काम चलाते
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यह हास्य कविता काल्पनिक है तथा किसी घटना या व्यक्ति से इसका कोई संबंध नहीं है। अगर किसी की कारिस्तानी से मेल खा जाये तो वही इसक लिये जिम्मेदार होगा
दीपक भारतदीप

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ऐसे में चेतना लायें तो किसमें-हिंदी शायरी


न खुशी पहचाने न गम
बस कर लेते लोग आंखें नम
दिल की गहराई में खाली है जगह
अंदर की बजाय बाहर ताकते रहना ही है वजह
रोने और हंसने के लिये ढूंढते बहाने
दिखना चाहते सभी सयाने
पढ़े लिखे लोग बहुत हो गये हैं
पर उनके ज्ञान के चक्षु सो गये हैं
ऐसे में चेतना लायें तो किसमें
नाभि तक बात पहुंचे तो जिसमें
यूं गूंज रहा है चारों तरफ छोर
जैसे सब बने हैं दुनियां के उद्धार के लिये
बातें बड़ी-बड़ी करते हैं जंग की
पर नहीं है किसी में लड़ने का दम
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शब्दखोजी और शब्दयोगी-व्यंग्य कविता


शब्दखोजी ने कहा
‘अब तो मैं नये शब्द रचूंगा
फिर कोई जोरदार रचना करूंगा
पुराने शब्द लिखते हुए अब
मेरा मन नहीं भरता
लिखने बैठता हूं तो
रचना करने से पुराने शब्दों से
पीछा छुड़ाने का मन करता
कई नये शब्द गढ़ लूंगा
फिर कोई अपनी भाषा के ग्रंथ का सृजन करूंगा
जिससे मेरा नाम प्रसिद्ध हो जायेगा’

शब्दयोगी ने कहा
‘खोज शब्द ही तुम्हें असहज बना देती है
अपनी इच्छा ही आदमी को हरा देती है
सहजत से रचना करने के लिये
अपने कदम जब उठ जाते हैं
शब्द अपने आप नया रूप गढ़ते हुए
कागज पर उतर आते हैं
लाखों लोग भी मिलकर बोलें तो
कोई नया शब्द नही बन पाता है
कोई एक सहजता से लिखे और बोले तो
वही भाषा का हिस्सा बन जाता है
कुछ शब्द छोटे करने या मिलाने से
अर्थ तो बना लेते
पर अपना सहज भाव गंवा देते
रचना करने की पहले सोचना
कोई शब्द खोजने की छोड़ो योजना
क्या पता कोई लिख जाये शब्द ऐसा
जिससे तुम और तुम्हारी रचना को
अपने आप अमरत्व मिल जायेगा’
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उसे ही प्यार करते हैं जो करीब होता है-कविता


यूं तो दिल सभी की देह में होता है
पर खुशनसीब होते हैं वह जिनको
जिंदगी में प्यार नसीब होता है

देखकर पर्दे पर चलचित्र का प्यार
नाचते गाते नायक-नायिका
अपनी जिंदगी में वैसा ही सच देखनें के लिए
कई लोग तरस जाते है
पर जमीन पर न कोई नायक होता न नायिका
यहां बगीचों में जाकर घूमते हुए में भी
पहरेदारों के डंडे बरस जाते है
हीरो बूढ़ा भी हो तो
तो कमसिन मिल जाती है प्यार करने के लिए
पर सच में कोई कोई आंख उठाकर भी देख ले
भला ऐसा भी कहां गरीब होता है

प्यार भरे गाने सुनते हुए बीत गये बरसों
दिल की दिल में रह गयी
इंतजार तो इंतजार ही रहा
शायद कोई सच में नहीं प्यार करे
तो दिल्लगी ही कर ले
आज, कल या परसों
परदे के चलचित्र से परे रहकर
जब देखते हैं अपनी जिंदगी तो
उसे ही प्यार करते हैं
जो शरीर के करीब होता है
फिर भी गीतों में झूम लेते हैं
यही ख्याल करते हुए
गीत-संगीत पर झूम सकते हैं
यह भी किसी किसी का नसीब होता है

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दीपक भारतदीप