शाम का समय था और उन शराब के नशे में धुत उन दोनों लड़कों में एक ने राह पर अकेले जा रही उस लड़की का हाथ पकड़ लिया। सामान्य भाषा में कहें तो उसे छेड़ना भी कहते हैं। वह चिल्लाई तो वहां से गुजर रहे दो शहर पहरेदारों की नजर उस पर पड़ गयी। वह सीटी बजाते हुए लड़कों पकड़ने दौड़े। एक लड.का वहां से भाग निकला। दूसरे को मौका नहीं मिला इसलिये लड़के अकड़ कर खड़ा हो गया। दोनों पहरेदारों ने लड़के का हाथ पकड़ लिया और बोले-‘चलो बड़े घर! देखों तुम्हारी क्या हालत करते है?’
लड़का अकड़ कर बोला-‘पहले हाथ छोड़ो! तुम जानते नहीं मैं कौन हूं?’
पहले पहरेदार ने कहा-‘अबे चुप रह! यहां तुम जैसा हर लड़का यहां के मशहूर आदमी शहर साहब का बेटा होने का नाटक करता हैं। ं हर इलाके में शहर साहब का आदमी अगर यही करने लगा तो चल लिया हमारा कानून। चलो बड़े घर! सब पता लग जायेगा। कैसे लड़की छेड़ी जाती है।’
उस लड़के ने कहा-‘कौनसी लड़की? कोई सबूत है तुम्हारे पास?’
पहरेदारों ने इधर उधर देखा। वह लड्र+की वहां से जा चुकी थी। तब एक पहरेदार ने कहा-‘लड़की का यहां होना अब जरूरी नहीं है। बड़े घर चल तेरे को सब बता देंगे। एक नहीं तो दूसरी लड़की बुला लेंगे।’
पहले लड़के ने कहा-‘अरे, तुम अपने लिये मुसीबत मोल ले रहे हो। तुम्हारी वर्दी उतर जायेगीं! मैं वास्तव में शहर साहब का बेटा हूं। बड़े शहर साहब का पोता हूं।’
दोनों पहरेदारों की घिग्घी बंध गयी थी। क्या न क्या करें। पहले पहरेदार ने दूसरे से कहा-‘बड़े घर पर बड़े पहरेदार साहब को फेान लगाकर पता करे कि क्या किया जाये। इसे इतनी मेहनत से पकड़ कर वहां ले चलें और फिर छोड़ना पड़े। खालीपीली अपनो धंधा भी चैपट हो और डांट फटकार भी सुनने को मिले।’
उसी समय मोटर सायकिल पर बड़े पहरेदार साहब भी वहीं से निकल रहे थे। अपने मातहतों पर नजर पड़ी और वह गाड़ी रोककर उनके पास अपने आप ही आ गये। उस लड़के का हाथ पकड़े पहरेदार ने कहा-‘साहब, हमने इस लड़को को एक लड़की को छेड़ते हुए रंगे हाथों पकड़ा है। इसका एक साथी भाग गया। यह कहता है कि यह यहां के मशहूर आदमी शहर साहब का बेटा है।’
बड़े पहरेदार ने कहा-‘बड़े शहर साहब को मोबाइन लगाकर पता कर लो।’
पहरेदार ने कहा-‘ठीक है। ओए लड़के बता बड़े शहर साहब का नंबर।’
लड़के ने बता दिया तो एक पहरेदार उसे लगाने लगा। मगर वह लगा ही नहीं। एक ही जवाब आ रहा था कि यह नंबर मौजूद नहीं है। पहरेदार ने यह बात बड़े पहरेदार को बता दी।
अब बड़े पहरेदार का ताव आ गया और वह बोले-यह झूठ बोल रहा है। पकड़ कर ले चलो बड़े घर।’
एक पहरेदार बोला-‘ साहब। वैसे इनकी शक्ल तो शहर साहब से मिलती है। हो सकता है यह सच बोल रहा हो।’
बड़े पहरेदार ने कहा-‘हां, लगती है। छोड़ दो। भले घर के लगते हैं।’’
लड़का खुश हो गया और बोला-‘और क्या साहब? वह लड़की चालू थी। हमारी जेब काट कर भाग रही थी तो मैंनेे उसका हाथ पकड़ा। इसी बीच यह आ गये। हमें पकड़ लिया। आप देखिये वह भी भाग गयी।’’
बड़े पहरेदार ने कहा-‘नालायक हैं दोनों। आप इनकी गलती क्षमा कर दें।’’
अब दूसरा पहरेदार बोला-‘पर साहब मुझे इनकी शक्ल बड़े साहब से मिलती नहीं दिख रही । उनका मूंह चैड़ा है और इसका लंबा। फिर इसने जो मोबाइल नंबर दिया भी वह फोन लग नही रहा। साहब यकीन मानिए यह झूठ बोल रहा है।’’
बड़े पहरेदार ने उसे गौर से देखा-‘‘ फिर कहा! हां तुम शायद ठीक कहते हो। पकड़ लो इन दोनों को। यह सरासर झूठ बोल रहा है।’’
पहला पहरेदार बोला-‘साहब। पर इसकी आवाज भी बड़े शहर साहब से मिलती है। मुझे लगता है कि यह उनके सुपुत्र ही हैं।’
बड़े पहरेदार ने फिर उसकी तरफ देखा और कहा-‘हां, बिल्कुल ठीक। यह लग ही रहे हैं। अरे, इतने बड़े आदमी का बेटा भला कभी झूठ बोलेगा। छोड़ दो इनको।’
दूसरे ने कहा-‘साहब! बड़े शहर साहब की आवाज मैंने भी सुनी है। उनकी आवाज पतली है और इसकी मोटी। फिर इसने जो मोबाइल नंबर दिया वहां इतनी देर से फोन लग ही नहीं रहा है। कुछ दाल में काला है।’’
बडे पहरेदार ने फिर लड़के को गौर से देखा और कहा-‘दाल में काला! यहां तो दाल ही पूरी काली लग रही है। यह वाकई झूठ बोल रहा है। इसने जरूर ही लड़की को छेड़ होगा। देखो चेहरे से ही खूंखार लग रहा है।’
पहला पहरेदार बोला-पर साहब! मुझे बड़े शहर साहब और इसके बाल एक जैसे घुंघराले लगते हैं। यह सही कह रहा हो।’
बड़े पहरेदार ने लड़के के बाल देखे और कहा-‘हां, मुझे भी लगता है। छोड़ दो इनको। आजकल चालू लड़कियां भी बहुत हैं। भले लोगों को तंग करती हैं। देखो न कैसे भाग गयी। मूर्खों तुम्हें उसे पकड़ना चाहिये था।’
दूसरा पहरेदार बोला-‘साहब! बड़े शहर साहब के बाल तो बरसों से आधे सिर पर हैं। मैं तो उनके बारे में तबसे जानता हूं जब वह इसकी उमर के थे। इसके बाल तो घने हैं।’’
बड़े पहरेदार ने कहा-‘हां, तुम ठीक कहते हो। पकड़ लो इन दोनों को। बड़े घर ले चलो। सब पता लग जायेगा। इनकी वह हालत करेंगे कि फिर अपनी जिंदगी में किसी लड़की को छेड़ेंगे नहीं।’’
इतने में बड़े पहरेदार की घंटी बजी। उसने बात की और बोला-‘इसको छोडो। यहां से थोड़ी दूर गैस रिसने की खबर मिली है। वह तेजी से फैल रही हैै। यहां से भागो इससे पहले कि वह गैस हमें पकड़ ले। कहीं यह भी मर गया तो अपने सिर पर बात आयेगी।’
तीनों इनको भाग गये। लड़का अपनी जान बचाकर भागा। कुछ दूर उसका साथी मिल गया। उसने कहा-‘यार, इस तरह तुम रास्ते चलते हुए लड़की को छेड़ा मत करो। इस बार तो मैंने बचा लिया। अगली बार नहीं बचाऊंगा।’’
पहले वाले लड़के ने उससे पूछा-‘यार निकल लो यहां से। गैस आ रही है।’
दूसरे वाले ने कहा-‘कोई गैस नहीं आ रही। मैंने अपने एक जुआरी दोस्त ने बड़े पहरेदार का फोन लिया और ऐसे ही उसे झूठी खबर सुना दी। वैसे तुमने उसे क्या बताया था? मैं दूर से देख रहा था तो बहुत बहस हो रही थी।’’
पहले ने कहा-‘छोड़ यार! यह जानने की कोशिश भी मत करो। मैं भी भूलना चाहता हूं।’
उधर भागते हुए पहले पहरेदार ने दूसरे से पूछ-‘तुमने रूस के प्रसिद्ध लेखक चेखोव को पढ़ा है। उसने ऐसा ही व्यंग्य लिखा था ‘गिरगिट’। वैसे होने को क्या है? एक घटना दूसरी जगह भी घट सकती है।’
दूसरे ने कहा-‘कौन चेखोव।’
पहला वाला चुप हो गया
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