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दिल का क्या हिसाब रखते


जिस राह से गुजरे हम
वहीं हमसफ़र मिलते गये
वह अपनी मंजिल पर आकर रुके
हम अपनी राह पर चलते गये
किसी से बिछडे तो किसी से मिले
अपना कारवां लिए बढते रहे
जो बिछडे क्या उनका पता रखते
क्या भला अपनी उनको खबर करते
जो साथ होते
उनसे ही निभाने से फुर्सत कहाँ होती
अपनी राह पर हम चलते रहे
कहीं रास्ते में नहीं होंगे हमारे पैर के निशान
कहीं नहीं होगी हमारे नाम की इबारत
हमारे आगे जाते ही सब मिटते गये
हो सकता है कि किसी के दिल में
हमारे लिए जगह हो
क्योंकि दिल पर नहीं होता बस किसी का
अगर बसे तो बस ही गये
करते हों शायद वह लोग
जिन्हें हम खुद भूल गए
दिलों को पढ़ना कहाँ संभव
किसके दिन में कैसे बसे
किसकी आंखों के सामने से गुजरे
और उसके दिल में बसे
और कहाँ बाहर से ही निकल गए
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सात समंदर भी कम होंगे


अगर सुबह का भूला शाम को
घर लौट आये तो बुद्धिमान कहलाता
पर रात को जो भटका घर लौटे तो
उसको माफ़ क्यों नहीं किया जाता
शायद आदमी के पाप सूरज की अग्नि में
जलकर राख हो जाते हैं पर
रात को अंधियारे में चाँद की तरह लगा दाग
कभी नहीं मिट पाता
इसीलिए भी रात का भटका
कभी घर वापस नहीं आता
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एक घूँट मिले तो ग्लास चाहिए
ग्लास मिले तो गागर चाहिए
गागर मिले तो सागर चाहिए
प्यास अगर पानी से बुझने वाली होती तो
कोई जंग नहीं होती
पर जो पैसे से बुझती है
उसको बुझाने के लिए तो
सात समंदर भी कम होंगे
उसके लिए तो दिल को तसल्ली
देने के लिए कोई अच्छा ख्याल चाहिए
आदमी को पैगाम पर पैगाम देने कुछ नहीं होगा
उन पर अमल करने का जज्बा चाहिए

आज की जोरदार खबर-हिन्दी लघुकथा (joradar khabar-hindi laghu katha


उससे कहा गया की वह बहुत दिन से कोई खबर नहीं लाया है और आज अगर आज कोई खास नहीं लाया तो उसकी नौकरी भी जा सकती है.
वह दफ्तर से कैमरा लेकर निकला और बाहर खडा हो गया. उसने वहाँ पास से गुजरते एक आदमी से पूछा-“तुम आस्तिक हो या नास्तिक? जो भी हो तो क्यों? बताओ मैं तुम्हारा बयान और चेहरा अपने कैमरे से सबको दिखा चाहता हूँ.
उस आदमी ने कहा-”में आस्तिक हूँ और अभी मंदिर जा रहा हूँ. बाकी वहाँ से लौटकर बताऊंगा.

वह चला गया तो दूसरा आदमी वहाँ से गुजरा तो उसने वही प्रश्न उससे दोहराया. उसने जवाब दिया-‘मैं नास्तिक हूँ और अभी शराब पीने जा रहा हूँ. उसके कुछ पैग पीने के बाद ही बता पाऊंगा. तुम रुको मैं अभी आता हूँ.

वह अपना कैमरा लेकर टीवी टावर पर चढ़ गया. थोडी देर बाद दोनों लौटे. उसको न देखकर दोनों ने एक दूसरे से पूछा”वह कैमरे वाला कहाँ है?”
फिर दोनों का परिचय हुआ तो असली मुद्दा भी सामने आया. दोनों के बीच बहस शुरू हो गई और नौबत झगडे तक आ पहुची. दोनों अपनी कमीज की आस्तीन ऊपर कर झगडे की तैयारी कर रहे थे. उनके बीच गाली-गलौच सुनकर भीड़ इकट्ठी हो गयी थी. उसमें से एक समझदार आदमी ने दोनों से पूछा”पहले यह बताओ की यह प्रश्न आया कहाँ से? किसने तुम्हें इस बहस में उलझाया.

दोनों इधर-उधर देखने लगे. तब तक वह कैमरा लेकर नीचे उतर आया. दोनों ने उसकी तरफ इशारा किया. उसने दोनों से कहा-‘आप दोनों का धन्यवाद! मुझे मिल गयी आज की जोरदार खबर!

वह चला गया. दोनों हैरान होकर उसे देखने लगे. समझदार आदमी ने कहा-तुम दोनों भी घर जाओ और उसकी जोरदार खबर देखो. हम सबने देख ली, तुम नहीं देख पाए यह जोरदार खबर, क्योंकि तुम दोनों आस्तिक-नास्तिक के झगडे में व्यस्त थे तो कहाँ से देखते. वैसे हम भी जा रहे हैं क्योंकि यह खबर दोबारा देखकर भी मजा आयेगा.
दोनों वहीं हतप्रभ खडे रहे और भीड़ के सब लोग वहाँ से चले गए अपने घर वह आज की जोरदार खबर देखने.

(मौलिक एवं स्वरचित लघुकथा)

सहमति-असहमति का द्वंद


जब किसी विषय पर एक से अधिक लोगों के मध्य विचार होता है तब असहमति भी होती है और होना भी चाहिए क्योंकि उससे ही किसी नए मत के निर्माण की संभावना होती है. जब कोई अपना विचार किसी विषय पर व्यक्त इस उद्देश्य से करता है कि लोग उसकी बात को माने तो उसे इस बात के लिए भी तैयार रहना चाहिऐ कि उस पर कहीं सहमति तो कहीं असहमति होगी-और उसे दोनों पर दृष्टि रखते हुए ही अपने विचार का पुन:निरीक्षण भी करना चाहिए. पर ऐसा होता नहीं है. जिन लोगों के पास पद, प्रतिष्ठा और पैसा होता है उन्हें कभी कोई चुनौती स्वीकार्य नहीं है. जिनके पास अपने विचार व्यक्त करने के साधन है वह किसी असहमति को सुनने को तैयार नहीं होती और यहीं से शुरू होता है संघर्ष. विचारों का यह संघर्ष अनंत काल से चल रहा है और आज तक कोई एक धारा- जिससे इस धरती पर शांति और विश्वास स्थापित हो सके-नहीं बह सकी.

कहते हैं कि झूठ मत बोलो पर बोलते सभी हैं. कहते हैं जीवन में आराम नहीं काम करना चाहिए पर आराम की तलाश सभी कर रहे हैं. दूसरे को सुख दो तो सुख मिलेगा और दुख दोगे तो वह भी तुम्हारे हिस्से में आयेगा, पर वास्तविकता में सभी अपने सुख जुटाने में लगे हैं और अवसर पाते ही दूसरे को दुख देते हैं. ज्ञान बघारने को सब तैयार पर चलने को तैयार नहीं है. आदमी का अहंकार उसे कभी अपने विचार से पीछे नहीं हटने देता. मानसिक अंतर्द्वंद में फंसा आदमी कभी भला किसी को सुख दे सकता है? रचना से अधिक विध्वंस में उसकी रूचि होती है. कहीं शांति हो उसका ध्यान नहीं जाता जहाँ द्वंद हो वहाँ वह मन और तन के साथ उपस्थित होने में उसे बहुत आनन्द आता है.

मेरा विचार सब माने-यह विचार हर आदमी का है. असहमति उसे उतेजित कर देती है और वह लड़ने पर आमादा हो जाता है. इस पूरे विश्व में तमाम तरह के वर्ग, जातियाँ, धर्म और भाषाएं हैं उनके आधार पर मनुष्यों ने अपने को अलग-अलग समूहों में बाँट लिया है, और इन समूहों के आपसे संघर्ष से इतिहास भरा पढा है . कहते हैं हम यह हैं और तुम वह हो .कही लड़ते हैं तो कहीं एकता की बात करते हैं. यह दोनों ही बाते भ्रम हैं क्योंकि कहीं जब एकता की चर्चा होती है तो सब अपनी गाते हैं और इसमें असहमति है और फिर बात इस निष्कर्ष पर ख़त्म होती है कि समूहों में एकता क्यों होना चाहिए? कहते हैं शांति के लिए! शांति क्यों हो? क्योंकि लडाई हो रही है? आदमी हमेशा अपने मन में विचारों का अंतर्द्वंद पाले रहता है जब वह शांत रह नहीं रह सकता समाज कैसे शांत रह सकता है. समान भी तो आदमी की इकाई से बना है.

भला अशांत मन कभी शांति ला सकते हैं. सहज नहीं होना चाहते बल्कि शांति चाहते हैं. हम चिल्लायें और बाकी लोग शांत हो जाएँ. हम कहें उसे सब माने और शांत हो जाएँ. कहीं लडाई विचारों की है को कहीँ शांति के लिए है. असहमति को खत्म करने के लिए सहमति बना रहे हैं और अधिक असहमत होते जा रहे हैं. भला सहमत हुए बिना भी कभी सहमति बन सकती है. अपने विचारों में बदलाव के बिना कभी हम जब किसी से सहमत नहीं हो सकते तो दूसरा कैसे हो जायेगा कभी सोचा है.

अपनी आभा खोते हुए समाचार चैनल


हम भारत के लोग मूलत: सीधे होते हैं इसमें कोई शक नहीं है, क्योंकि इसी कारण विदेशियों ने हम पर कई वर्ष तक शासन किया. उनके शासकमें चालाकी और कुटिलता कूट-कूट कर भरी हुई थी जबकि हमारे देश के लोग एकदम सीधे-साधे थे. पर अब अंग्रेजी भाषा के साथ उसकी मानसिकता को भी अपनाने वाले लोग भी अपने ही देश के लोगों को नासमझ समझने लगे हैं . अब देश के समाचार चैनलों को ही लें. विकसित देश की तर्ज पर इस देश में उन्होने यहाँ कार्यक्रम शुरू किये और उनको लोकप्रियता भी बहुत मिली और यह तय था कि उनको विज्ञापन भी मिले. अब सफलता के गुरूर ने इतना आत्ममुग्ध बना दिया है कि उनको यह भ्रम हो गया है कि हम चाहे जैसे कार्यक्रम दें लोग उसे देखने के लिए बाध्य हैं. उन्होने इस बात को भुला दिया है कि मनोरंजन और समाचार दो अलग अलग चीजे हैं.

इस देश में करोड़ों लोग हैं जो केवल समाचार पढने और सुनने में रूचि लेते हैं और मनोरंजन उनके लिए दूसरी प्राथमिकता होती है. समाचार का मतलब केवल देश के ही नहीं बल्कि विदेशों की भी छोटी और बडे खबरों में उनकी रूचि होती है. सामयिक चर्चाओं को वह बहुत रूचि के साथ पढते और सुनते हैं. एसे लोगों की वजह से ही इन समाचार चैनलों को लोकप्रियता मिली. फिर भी समाचार चैनलों वालों को भरोसा नहीं है और वहा मनोरंजन कार्यक्रमों को ठूंसे जा रहे हैं. मनोरंमन चैनलों पर होने वाली गीत-संगीत प्रतियोगिताओं पर अपना आधे से अधिक समय खर्च कर रहे हैं जैसे कोई देश की बड़ी खबर है. सामयिक चर्चाएं जो कि समाचारों का एक बहुत महत्वपूर्ण भाग माना जाता है उसके मामले में तो सभी चैनल कोरे हैं. उन्हें लगता है कि यह तो केवल एक फालतू चीज है. जिस तरह किसी समाचार पत्र और पत्रिका को उसका संपादकीय ताकत देता है और वैसे ही समाचार चैनलों की ताकत उसकी सामयिक चर्चा होती है. जिन्होंने सी एन एन और बीबीसी का प्रसारण देखा है उन्हें यह चैनल वैसे ही नहीं भाते पर अपनी भाषा के कारण सबको अच्छे लगते हैं पर इन चैनलों ने आपने असली प्रशंसकों पर भरोसा करने की बजाए उसे नई पीढ़ी पर ज्यादा भरोसा दिखाया जिसे अभी समाचारों से अधिक महत्व नहीं है.

कई लोग हैं जो शाम को घर बैठकर देश-विदेश की खबरे और उनके बारे में सामयिक चर्चाएं सुनना चाहते हैं पर उन्हें सुनने पढते हैं बस गाने और डांस. अगर कोई कह रहा है कि लोग यही देखना चाहते हैं तो झूठ बोल रहा है. क्योंकि शुरू में तो इन चैनलों पर ऐसे कार्यक्रम नहीं आते थे तब उन्हें कैसे लोकप्रियता मिली. दर असल घर में बैठी महिलाएं और बच्चे इन्हें देखने लगे थे और इसी का फायदा उठाने के लिए विज्ञापन देने वालों ने इन्हें अपने बस में कर लिया. पैसा कमाने में कोई बुराई नहीं है पर इस तरह अपने मूल स्वरूप से जी तरह छेड़छाड़ कर उन्होने यह साबित किया है कि वह विदेशी चैनलों की तरह व्यवसायिक नहीं हैं. मैं आज भी जब भी बीबीसी पर इस देश के बारे में सामयिक चर्चा सुनता हूँ तो एसा लगता है कि उनके प्रसारणों की इसे देश में कोई बराबरी नहीं कर सकता और न सीख सकता है. कई बार शाम को जब मैं समाचार सुनना चाहता हूँ तो निराशा हाथ लगती है.

इन लोगों को पता ही नहीं है कि समाचार केवल देश के ही नहीं विदेश के भी होते है और लोग उन्हें सुनते हैं. फिर यह कहते हैं कि विदेशी चैनलों की तरह यहां नहीं चल सकता- पर यह नहीं बताते कि पहले कैसे चल रहा था. इस मामले में इस देश का दूरदर्शन चैनल आज भी इनसे आगे है जिस पर यह सरकारी का ठप्पा लगाकर उसकी उपेक्षा करते हैं. कम से कम उस पर सामयिक चर्चाएँ तो सुनाने को तो मिल जाती हैं.

इन समाचार चैनलों को अपना सही स्वरूप बनाए रखें के लिए अपने चैनलों पर सामयिक विषयों पर चर्चा के लिए समय भी रखना चाहिए ताकि उनके साथ बौद्धिक वर्ग के दर्शक भी जुडे रहे. .