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इंसान को पंख नहीं लगा सकता-व्यंग्य कविता


जमीन पर आते हुए इंसान ने
सर्वशक्तिमान से कहा
‘इस बार इंसान बनाया है
इसके लिये शुक्रगुजार हूं
पर मुझे परिंदों की तरह पंख लगा दो
उड़कर पूरी दुनियां घूम सकूं
इतना मुझे ताकतवर बना दो’

सर्वशक्तिमान ने कहा
‘तेरी इस ख्वाहिश पर
परिंदों का आकाश में उड्ना
बंद नहीं करा सकता
इंसान के दिमाग की फितरत है जंग करना
आपस में होता है उनका लड़ना मरना
वैसे भी कभी उड़ते हुए परिंदों को
मारकर जमीन पर गिरा देता है
अगर तुम्हें पंख दे दिये तो
आकाश में उड़ने वालों को
वह भी नसीब नहीं हो पायेगा
जमीन पर तो क्या तुम्हारे साथ
कोई परिंदा रह पायेगा
क्योंकि बिना पंख में इंसान का दिमाग
उड़ता है ख्वाबों और सपनों में इधर उधर
ख्वाहिशें उससे क्या क्या नहीं करवाती
नीयत और चालचलन को गड्ढे में गिराती
ऊंचाई की तरफ उड़ने की चाहत
उसको हमेशा बैचेन बनाती
पंख दे दिये तो तू जमीन पर
चैन नहीं पायेगा
आकाश में और बैचेनी फैलायेगा
जमीन पर तो इंसानों के घर को ही
आग लगाने की इंसानों में आदत होती
मैं तुझे पंख देकर इतना ताकतवर
कभी नहीं बना सकता कि
तुम आकाश में भी आग लगा दो
या ऊंचे उड़ते हुए
आकाश छूने की हवस में
अपने पंख जलाकर
समय से पहले अपनी मौत बुला लो

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यह आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की सिंधु केसरी-पत्रिका ’ पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
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मै अखबार आज भी क्यों पढ़ता हूं-हास्य व्यंग्य


          मैने अखबार पढ़ना बचपन से ही शुरू किया क्योंकि मोहल्ले का वाचनालय हमारे किराये के घर के पास में ही था। धीरे-धीरे इसकी ऐसी आदत हो गयी कि जब हमने मकान बदले तो भी मैं सुबह वाचनालय अखबार पढ़ने जरूर जाता और धीरे-धीरे शहर बढ़ने के साथ  थोड़ी दूर एक कालोनी में आया और वहां कोई वाचनालय नहीं होने के कारण अखबार मंगवाना शुरू किया।

इधर इलैक्ट्रोनिक मीडिया के तेजी से बढ़ने के साथ ही डिस्क कनेक्शन भी लग गया और एक लायब्रेरी भी पास में खुल गयी जहां मैं अपने घर आने वाले अखबार के अलावा अन्य अखबार वहां कभी कभी पढ़ लेता हूं। कई बार सोचता हूं कि अखबार बंद कर दूं पर श्रीमतीजी उसे बड़ी रुचि के साथ पढ़ती हैं और वही हमें बतातीं हैं कि आज अमुक जगह आपको शवयात्रा या उठावनी में जाना है।

सुबह जब मैं अपने घर के बाहर पेड़ के नीचे योगसाधना करता हूं  तब अखबार वाला फैंक कर चला जाता है और उस समय वह कई बार मेरे ऊपर आकर गिरता है। खासतौर से जब उष्टासन या सर्वांगासन के समय वह आकर गिरता है तब अगर श्रीमतीजी वहां  होती है तो जोर-जोर से  हंसती हैं।

कई बार देर होने की वजह से अखबार नहीं पढ़ पाता तो श्रीमती जी मोबाइल पर सूचना देतीं हैं ‘आपने आप अखबार नहीं पढ़ा आज उठावनी पर जाना है‘ या ‘आज आप जल्दी निकल गये उधर शवयात्रा पर जाना है’। शहर से बाहर होने के बावजूद आप अपने लोगों से कट नहीं सकते। किसी कि शादी में आप जायें या नहीं या कोई आपको बुलाये या नहीं पर गमी में आपको जाना ही चाहिये और इसी कारण इसकी सूचना कहीं न कहीं से होना जरूरी है। कई बार निकट व्यक्ति होने के कारण सूचना फोन पर आ जाती है, पर अगर थोड़ा दूर का हो तो उस फिर उसके लिये अखबार एक मददगार साबित होता है।

कई बार ऐसे अवसरों पर दूसरे शहर भी जाना पड़ता है। उस समय उस शहर में बस स्टेंड या रेल्वे स्टेशन पर ही अखबार खरीद लेता हूं जिससे पता चल जाता है कि उठावनी कहां है। कई बार तो  ऐसा भी हुआ है कि जिनके घर हम जा रहे हैं उनका पता हमें इसीलिये नहीं होता क्योंकि पहले कभी उनके घर गये नहीं हैं या उसकी आवश्यकता नहीं अनुभव की। तब ऐसे ही अखबार से पता लिया है। एक बार तो हम छहः लोग एक साथ एक दूसरे शहर उठावनी में शामिल होने जा रहे थे पर किसी के पास पता नहीं था। तब मैंने ही अखबार का आईडिया सुझाया और मेरा अनुमान सही निकला।  हम समय पर वहां पहुंच गये और वहां किसी को नहीं बताया कि अखबार से पता निकाल कर लायें हैं वरना कोई सुनता तो क्या कहता कि निकटस्थ लोग होकर इनको घर का पता तक नहीं मालुम था। वह समय यह सफाई देने का नहीं होता कि जिसके यहां आये हैं वह हमारे पास कई बार आये पर हम उनके यहां पहली बार आये हैं।

एक बार तो हम एक शोक कार्यक्रम में शामिल होने गये तो जिस व्यक्ति के यहां जा रहे थे उसके घर पर न होने की पक्की संभावना थी क्योंकि उनके पिता का देहांत हुआ था और वह उनसे अलग रहते थे। हम पांच लोग थे और इस बात को लेकर चिंतित थे कि कैसे वहां पहुंचेगे। मैने बस से उतरते ही अखबार खरीद लिया और फिर हमारी समस्या हल हो गयी।

हालांकि अखबार में कई दिलचस्प खबरे आतीं हैं और वह हमारे जीवन को अभिन्न अंग है पर समय के साथ कुछ ऐसा हो गया है कि उसमें दिलचस्पी तभी होती है जब समय होता है पर फिर भी ऐसे अवसरों पर अखबारों की सहायता मिलती है जो उनके प्रकाशन का उद्देश्य बिल्कुल नहीं होता।  हालांकि आजकल अखबार इतने सस्ते हैं कि उसका व्यय तो कही गिना भी नहीं जाता पर फिर भी कभी आदमी सोचता है कि क्या फायदा? कहा जाता है कि किसी की शादी में भले मत जाओ पर गमी में जरूर जाना चाहिए। शहरों के बढ़ने के साथ आधुनिक साधन भी आये हैं पर आदमी की सोच और विचार का दायदा सिकुड़ रहा है। कई बार लोग ऐसे अवसरों सूचना नहीं देते या आवश्यकता नहीं अनुभव नहीं करते पर वहां अपना पहुंचना जरूरी होता है तब अखबारों की सहायता मिल जाती है। इसलिये आज भी अखबार पढ़ता हूं तो केवल इसलिये ताकि अन्य सूचनाओं के साथ ऐसी सूचनाएं भी मिलतीं रहें जिससे समाज से सतत संपर्क में रहा जा सके। अन्य सूचनाएं भी मिल जाती है जो महत्वपूर्ण होती हैं और अपने लिखने के साथ जानकारी बढ़ाने के काम भी आतीं हैं।


इस ब्लोग (पत्रिका) के बीस हजारिया होने पर विशेष संपादकीय


यह ब्लाग (पत्रिका) आज बीस हजारिया हो गया-यानि इसकी पाठक संख्या बीस हजार पार हो गयी थी। इसने दस हजार  पाठक संख्या दस नवंबर 2007 को पार की थी। इस समय इस पर पोस्ट संख्या 230 के पास थी और वर्डप्रेस के ब्लोग  बहुत तंग कर रहे थे  तो हमने इसकी जगह एक ब्लाग और बना लिया और इसे लगभग अनदेखा कर दिया। मगर यह ब्लाग हमें देखता और दिखता रहा। अनेक बार यह बिना किसी पोस्ट लिये ही वर्डप्रेस के डेशबोर्ड पर हिट लेकर सात हिट ब्लागों की सूची में आ जाता जैसे  कहता हो-‘‘भूल गये क्या? हम भी तुम्हारे एक फ्लाप ब्लाग हैं?’

तब भी हम इसकी परवाह नहीं करते थे कि इस पर कितने व्यूज आज हैं। हम दूसरे ब्लाग पर लिखते रहे जो हमने उसी महीने पंजीकृत कराया था। इस ब्लाग की अनदेखी का परिणाम हमें भोगना पड़ा। कहीं हमारे ब्लाग  रेटिंग के लिये उठाये गये और इसकी जगह स्थापित उस ब्लाग की हालत खस्ता हो गयीं। तय बात है कि ब्लाग तो हमारा ही था और हम पर उसकी आंच आनी ही थी। बेटे के फेल या पास होने का बाप के मन पर प्रभाव तो पड़ता ही है। सो हमारे साथ भी हुआ।

इसके बाद भी हमने तय किया कि अब उसी ब्लाग को पास करायेंगे। यह एक बाप का ही फैसला होता है कि अपने पढ़ाई में कमजोर बच्चे को अधिक पढ़ाने का विचार करता है। हमने भी दूसरे ब्लाग पर लिखना और तेज कर दिया पर इस पर भी कभी कभार पोस्ट लिखते रहे। एक दिन हमने देखा कि इस पर तो अठारह हजार व्यूज हो रहे हैं तो आश्चर्य हुआ। हमने अपने वर्डप्रेस के  बाकी ब्लाग देखे तो पाया कि यह सबसे अधिक हिट ले रहा है।
इधर एक दो दोस्त जिनको हमने इसी ब्लाग का पता दिया तो उन्होंने भी सूचना दी कि तुम्हारा वह ब्लाग बीस हजार के पार होने वाला है।

दस से बीस हजार की यात्रा में कई बार फोरमों पर हिट लेने वाला यह ब्लाग अब आम पाठकों की बढ़ती भागीदारी, उनकी पसंद और रुचियों के संकेत दे रहा है। मुझे सुबह ही आशा थी यह ब्लाग इस संख्या को पार करेगा और इसके लिये विशेष संपादकीय लिखेंगे। मैं एक पोस्ट प्रकाशित करने के बाद एक ही बार अपने ब्लाग को देखता हूं और उसके बाद कही इसको नहीं खोलता। दस हजार पार करने से पहले कभी कभी डेशबोर्ड पर इसे देखता था और शुरूआती दिनों में जब यह फोरम पर नहीं था तो इसे कुछ बार डेशबोर्ड पर खोल कर देखता था कि यह कैसा दिखता है।

दस से बीस हजार के बीच मैंने इसे कहीं भी खोलकर नहीं देखा। इसका मतलब यह है कि यह दस हजार व्यूज दूसरे लोगों को है।

इस ब्लाग पर प्राप्त आंकड़ों का विश्लेषण अब मैं प्रस्तुत करूंगा तब हिंदी ब्लाग में तमाम तरह के विश्लेषण कर रहे लोगों को काफी अच्छा लगेगा। यह ब्लाग जो संदेश दे रहा है उससे स्पष्ट है कि आम पाठक की रुचि हास्यकविताओं और अध्यात्म की तरफ  बहुत है-ब्लाग और ब्लोगरों पर लिखी गयी पोस्ट आम पाठक उसे नहीं पढ़ना चाहते। अभी आंकड़े इस समय प्रस्तुत नहीं कर रहा पर यहां बता दूं कि इन दोनों पर लिखते हुए मुझे ऐसी सफलता मिलेगी यह आशा तो मैं कर भी नहीं रहा था पर इन नीचे लिख 19 पोस्टें और उनके हिट पर नजर डालें। क्या इनमें कोई संदेश है जिसे समझा जा सकता है।
Title Views
कबीर के दोहे:अब मन हंस की तरह मोती चुनता 355
हास्य कविता-असली इंडियन आइडियल बनूंगा 232
सास-बहू का ब्लोग-हास्य व्यंग्य 229
तरक्की का यही है खेल-हास्य कविता 203
शादी से पहले और शादी के बाद 193
मेरा परिचय=दीपक भारतदीप, ग्वालियर 187
रावण तुम कभी मर नहीं सकते-कविता 183
हास्य कविता -बीस का नोट पचास में नहीं चल 177
हास्य कविता -अल्पज्ञानी और कौवा 158
खुद ही बहकते हैं लोग-हिन्दी शायरी 152
हिंदूओं की ताकत है ध्यान और गीता का ज्ञा न 150
बाबा रामदेव की आलोचना से पहले अपने को दे 135
फिर कौन चेला और कौन गुरु-हास्य कविता 124
जमाने को दोष देते हैं 122
कंप्यूटर चलाने वालो को योग जरूर करना चाह 119
जो सहज वह ‘कबीर’ जो असहज वह गरीब है 119
प्यार से है ज्यादा जान प्यारी 116
रहीम के दोहे:कपटी की संगत से भारी शारीरि 115
संत कबीर वाणी:जीभ का रस सर्वोत्तम 115
ब्लोगवाणी पर महापुरुषों के संदेशों के इतने कम व्यूज देखकर शायद ही कोई उनको लिखना चाहे पर मैने लिखे क्योंकि मैं आम पाठक तक जाना चाहता था और उसके लिये जरूरी है तात्कालिक टिप्पणियों के मोह का त्याग। मैं इसे अपना त्याग नहीं कहता क्योंकि यह तो मेरी स्वाभाविक प्रवृत्ति है। मेरे ब्लाग उसी दिशा में जा रहे हैं जहां मैं भेजना चाहता हूं।
हिंदी के मेरे से पुराने ब्लागरों का मुझे सहयोग मिला तो मैने उनकी वह  आकांक्षाएं पूरीं कीं जिसकी वह अपेक्षा करते थे-मेरे हिसाब से इतनी कम अवधि में इस सफलता की आशा भी नहीं की जा सकती थी। मुझे यह कहने में  झिझक नहीं है कि यह मेरा सबसे हिट ब्लाग है और फोरमों के बाहर से अपने लिये व्यूज जुटाने वाले ब्लागों (वेब साइटें नहीं )मे यह प्रमुख हैं और यकीन मानिए अपने माडरेटर के मित्रों की इस पर कोई कृपा नहीं है। मेरा मनोबल बनाये रखने के लिये अनेक ब्लागर कमेंट रखते हैं तो इस बार उनको अपने लिये नहीं बल्कि हिंदी जगत में उनके इस योगदान के लिये बधाई। याद रखिये यह ब्लाग लिखता मैं हूं पर आखिर यह कोई मेरे घर पर रहने वाला नहीं है और हिंदी भाषा की श्रीवृद्धि करता है।

इस बार मैं श्रीअनुनाद सिंह, उन्मुक्त जी, ममता  श्रीवास्तव जी , परमजीत बालीजी  और सागरचंद नाहर जी को खासतौर से साधुवाद देना चाहूंगा जिनके ब्लागों से विषय, तकनीकी और अन्य जानकारियां लाकर मैने इस पर लिखा। श्रीअनुनादसिंह जी ने कृतिदेव के यूनिकोड को बताकर हिंदी ब्लागिंग जगत में मेरा दूसरा दौर शुरू किया और इसी दौर में इस ब्लाग ने बीस हजारीय ब्लाग होने का श्रेय प्राप्त किया। शेष विश्लेषण बाद में।

इस ब्लोग (पत्रिका) के बीस हजारिया  होने पर विशेष संपादकीय
उन्मुक्त जी

छद्म ब्लाग ने सास से बचाया-हास्य कविता


अंतर्जाल पर बहू ने अपना
एक ब्लाग बनाया
और अपनी सास को भी दिखाया
हंसते हुए सास ने कह दिया
‘तुम मेरे काम को देखना और
बातों को ध्यान से सुनना
फिर अपने लिये कुछ उसमें से चुनना
लिख देना तो हिट हो जायेगी
वैसा ही करना जैसा मैंने बताया’

बहू ने किया लिखना शुरू
सास को ही बनाया अपना गुरू
उसके प्रपंचों और परनिंदाओं पर लिखकर
उसने पाये जोरदार हिट
पर सास को कभी अपना ब्लाग नहीं पढ़ाया
 
एक दिन सास की पड़ौसन अपनी
बहू की डींंग हांक रही थी
तब उसने भी अपनी बहू के
ब्लाग के बारे मे उसे बताया
पड़ौसन बोली-‘पर तुमने कभी उसका
ब्लाग पढ़ा है
कहीं ऐसा तो नहीं
तेरे खिलाफ ही कुछ लिखती हो
वैसे भी तुम भोली दिखती हो
उड़ाती न हो तुम्हारा मजाक
जमाने भर की सासों पर बरसती हो
कर  देती हो बहू की मर्यादा खाक
एक बार पढ़ लो
फिर आकर अपनी हांकना
रोती नहीं आओ तब कहना कि
मैने तुम्हें गलत बताया’
इस तरह पड़ौसन ने मंथरा का रोल निभाया

सास सीधे बहू के पास आयी
और बोली
‘बहुत दिन से सोचती रही
पर आज विचार मेरे दिल में ख्याल पक्का आया
तुमने कभी मुझे अपना ब्लाग नहीं बताया
आज पढ़ाओ देखूंगी कि
तुमने कितना हिट पाया’

पहले बहू चैंकी फिर समझते उसे
यह देर नहीं लगी कि
किसी मंथरा ने उसकी  सास को भड़काया
फिर भी वह सचेत थी
सास को उसने अपना एक छद्म ब्लाग दिखाया
जिसमें थी सास-ससुर, पति और ननदों की आरती
मायके वालों का जिक्र तक नहीं था
सास को वह ब्लाग भाया
और बोली-‘‘पड़ौसी हमसे जलते हैं
देखो पड़ौसन ने मुझे कैसा भड़काया
पर तुम्हारे ब्लाग में मैने कुछ भी अपने
लिये बुरा न पाया
उससे भी अच्छा लगा कि
इसमें तुमने मायके का नाम तक नही दिखाया’

सास चली गयी
और बहुत ने अपने असली ब्लाग पर
लिख डाली सासों के विरुद्ध एक पोस्ट
शीर्षक लिखा
‘छद्म ब्लाग ने सास से बचाया’
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नोट- यह हास्यव्यंग्य रचना काल्पनिक है तथा किसी घटना या व्यक्ति से इसका कोई संबंध नहीं है। अगर किसी कारिस्तानी से मेल खा जाये तो वही इसके लिये जिम्मेदार होगा।

विदुर नीति:शरीर रथ, इन्द्रियां घोडे और बुद्धि होती है सारथि


1. मनुष्य का शरीर रथ है, बुद्धि सारथि और इंद्रियां घोड़े है। इनको सावधानी से नियंत्रण करने वाला  ही जीवन की इस यात्रा में  सुख और आनंद के साथ अपनी यात्रा पूरी कर पाता है
2.  जिस तरह अप्रशिक्षित और अनियंत्रित घोड़े अपने सारथि को गिराकर हताहत कर देते है वैसे ही अपने वश में इंद्रियां को न रख पाने लोग जीवन यात्रा के बीच में ही नष्ट हो जाते हैं।
3. जिनका अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण नहं रहता वह  अर्थ और अनर्थ के ज्ञान से वंचित रहकर अपने दुःख और सुख का ज्ञान नहीं कर पाते।

वर्तमान संदर्भ में व्याख्या-सच तो यह है अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण रखने की बात कहना बहुत सरल है पर करना कठिन है। आजकल देश में अनेक प्रकार की दुर्घटनाएं होती है। इसका कारण यह है कि लोगों का अपने बुद्धि रूपी सारथि को प्रशिक्षित नहीं करते। वैसे तो कहा जाता है कि जब मृत्यु आनी होती  तभी आती है पर अगर आजकल देश में सड़क हादसों की संख्या को देखें तो उनके युवाओं की मृत्यु देखकर यह भ्रम टूट जाता है। लोगों के पास वाहन आ जाता है तो अक्ल मारी जाती है। ऐसे समझते हैं कि सड़क पर बस हम ही चल रहे हैं। ऊबड़-खाबड़ सड़कों पर तेज गाड़ी चलाने की निरर्थक कोशिश कर अपनी जान गंवाना इस बात का प्रतीक है कि लोग अपनी बुद्धि से काम नहीं लेते और अपनी इंद्रियों के अनियंत्रित घोड़े को सरपट दौड़ाए जाते है।

अतः आजकल जिस तरह का वातावरण बन गया है उसमें तो अपने आप पर नियंत्रण रखना बहुत जरूरी है।