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मजदूर दिवस-अकुशल श्रम को कभी खराब न समझें


भारत में मजदूर दिवस मनाने की कोई परंपरा नहीं है, अलबत्ता यहां विश्वकर्मा जयंती मानी जाती है जिसे करीब करीब इसी तरह का ही माना जा सकता है। यह पाश्चात्य सभ्यता द्वारा प्रदाय अधिकतर दिवसों को खारिज करता है यथा माता दिवस, पिता दिवस, मैत्री दिवस, प्र्रेम दिवस तथा नारी दिवस। मजदूर दिवस भी पश्चिम से ही आयातित विचारधारा से जुड़ा है पर इसे मनाने का समर्थन करना चाहिये।  दरअसल इसे तो बहुत शिद्दत से मनाना चाहिए। 
आधुनिक युग में कार्ल मार्क्स को मजदूरों का मसीहा कहा जाता है। उनके नाम पर मजदूर दिवस मनाया जाता है तो इसमें मजदूर या श्रम शब्द जुड़ा होने से संवेदनायें स्वभाविक रूप जाग्रत हो उठती हैं।  एक बात याद रखिये आज  भारत में जो हम नैतिक, अध्यात्म, तथा तथा देशप्रेम की भावना का अभाव लोगों में देख रहे हैं वह शारीरिक श्रम को निकृष्ट मानने की वजह से है।  हर कोई सफेद कालर वाली नौकरी चाहता है और शारीरिक श्रम करने से शरीर में से  पसीना निकलने से घबड़ा रहे हैं।  भारतीय तथा पाश्चात्य दोनों की प्रकार के  स्वास्थ्य विशेषज्ञ मानते हैं कि शरीर को जितना चलायेंगे उतना ही स्वस्थ रहेगा तथा जितना सुविधाभोगी बनेंगे उतनी ही तकलीफ होगी। 
सबसे बड़ी बात यह है कि गरीब और श्रमिक को तो एक तरह से मुख्यधारा से अलग मान लिया गया है।  संगठित प्रचार माध्यमो में-टीवी चैनल, रेडियो तथा समाचार पत्र पत्रिकाओं-इस तरह के प्रसारण तथा प्रकाशन देखने को मिलते हैं जैसे कि श्रम करना एक तरह से घटिया लोगों का काम है।  संगठित प्रचार माध्यमों को इसके लिये दोष नहीं दिया जा सकता क्योंकि वह आधुनिक बाज़ार के विज्ञापनों पर ही अपना साम्राज्य खड़े किये हैं। यह बाजार सुविधाभोगी पदार्थों का निर्माता तथा विक्रेता है। स्थिति यह है कि फिल्म और टीवी चैनलों के अधिकतर कथानक अमीर घरानों पर आधारित होते हैं जिसमें नायक तथा नायिकाओं को मालिक बनाकर प्रस्तुत किया जाता है।  उनमें नौकर के पात्र भी होते हैं पर नगण्य भूमिका में। क्हीं नायक या नायिका मज़दूर या नौकर की भूमिका में दिखते हैं तो उनका पहनावा अमीर जेसा ही होता है।  फिर अगर नायक या नायिका का पात्र मजदूर या नौकर है तो कहानी के अंत में वह अमीर बन ही जाता है।  जबकि जीवन में यह सच नज़र नहीं आता।  ऐसे अनेक उदाहरण समाज में  देखे जा सकते हैं कि जो मजदूर रहे तो उनके बच्चे भी मज़दूर बने।  आम आदमी इस सच्चाई के साथ जीता भी है कि उसकी स्थिति में गुणात्मक विकास भाग्य से ही आता है
कार्ल मार्क्स मजदूरों का मसीहा मानने पर विवाद हो सकता है पर पर देश के बुद्धिमान लोगों को अब इस बात के प्रयास करना चाहिये कि हमारी आने वाली पीढ़ी में श्रम के प्रति रूझान बढ़े। यहां श्रम से हमारा स्पष्ट आशय अकुशल श्रम से है-जिसे छोटा काम भी कहा जा सकता है। कुशल श्रम से आशय इंजीनियरिंग, चिकित्सकीय तथा लिपिकीय सेवाओं से है जिनको करने के लिये आजकल हर कोई लालायित है।  इसी अकुशल श्रम को सम्मान की तरह देखने का प्रयास करना चाहिये।
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि अपने पास या साथ काम करने वाले श्रमजीवी को कभी असम्मानित या हेय दृष्टि से नहीं देखना चाहिये। मनुष्य मन की यह कमजोरी है कि वह धन न होते हुूए भी सम्मान चाहता है।  दूसरी बात यह है कि श्रमजीवी मजदूरों के प्रति असम्माजनक व्यवहार से उनमें असंतोष और विद्रोह पनपता है जो कालांतर में समाज के लिये खतरनाक होता है।  यही श्रमजीवी और मजदूरी ही धर्म की रक्षा में प्रत्यक्ष सहायक होता है। यही कारण है कि हमारे अध्यात्मिक ग्रंथों में सभी को समान दृष्टि से देखने की बात कही जाती है।    इस विषय पर दो वर्ष पूर्व एक लेख यहां प्रस्तुत है। इसी लेख को कल सैकंड़ों पाठकों द्वारा देखने का प्रयास किया इसलिये इसे इस पाठ के नीचे भी प्रस्तुत किया जा रहा है।

आज मजदूर दिवस है और कई जगह मजदूरों के झुंड एकत्रित कर रैलियाँ निकालीं जायेंगी। ऐसा नहीं है कि हमारे दर्शन में मजदूरों के लिए कोई सन्देश नहीं है पर उसमें मनुष्य में वर्गवाद के वह मन्त्र नहीं है जो समाज में संघर्ष को प्रेरित करते हैं। हमारे अध्यात्मिक दर्शन द्वारा प्रवर्तित जीवनशैली पर दृष्टिपात करें तो उसमें पूंजीपति मजदूर और गरीब अमीर को आपस में सामंजस्य स्थापित करने का सन्देश है। भारत में एक समय संगठित और अनुशासित समाज था जो कालांतर में बिखर गया। इस समाज में अमीर और गरीब में कोई सामाजिक तौर से कोई अन्तर नहीं था।
न द्वेष्टयकुशर्ल कर्म कुशले नातुषज्जजते।
त्यागी सत्तसमाष्टिी मेघावी छिन्नसंशयः।।
“जो मनुष्य अकुशल कर्म से तो द्वेष नहीं करता और कुशल कर्म में आसक्त नहीं होता- वह शुद्ध सत्वगुण से युक्त पुरुष संशय रहित, बुद्धिमान और सच्चा त्यागी है।”

श्रीमदभागवत गीता के १८वे अध्याय के दसवें श्लोक में उस असली समाजवादी विचारधारा की ओर संकेत किया गया है जो हमारे देश के लिए उपयुक्त है । जैसा कि सभी जानते हैं कि हमारे इस ज्ञान सहित विज्ञानं से सुसज्जित ग्रंथ में कोई भी संदेश विस्तार से नहीं दिया क्योंकि ज्ञान के मूल तत्व सूक्ष्म होते हैं और उन पर विस्तार करने पर भ्रम की स्थिति निमित हो जाती है, जैसा कि अन्य विचारधाराओं के साथ होता है। श्री मद्भागवत गीता में अनेक जगह हेतु रहित दया का भी संदेश दिया गया है जिसमें अपने अधीनस्थ और निकटस्थ व्यक्तियों की सदैव सहायता करने के प्रेरित किया गया है।
स्वै स्वै कर्मण्यभिरतः संसिद्धि लभते नरः।
सव्कर्मनिरतः सिद्धिं यथा विन्दति तच्छृणु।।
अपने अपने स्वाभाविक कार्ये में तत्परता से लगा मनुष्य भक्ति प्राप्त करते हुए उसमें सिद्धि प्राप्त लेता है। अपने स्वाभाविक कर्म में लगा हुआ मनुष्य जिस प्रकार से कर्म करके परम सिद्धि प्राप्त करता है उस विधि को सुन।

यतः प्रवृत्तिभूंतानां वेन सर्वमिद्र ततम्।
स्वकर्मणा तमभ्यच्र्य सिद्धिं विन्दति मानवः।।
जिस परमेश्वर से संपूर्ण प्राणियों की उत्तपति हुई है और जिससे यह समस्त जगत व्याप्त है, उस परमेश्वर को अपने स्वाभाविक कर्मों द्वारा पूजा करके मनुष्य परम सिद्धि को प्राप्त हो जाता है।

श्रीमदभागवत गीता में ऊपर लिखे श्लोक को देखें तो यह साफ लगता है अकुशल श्रम से आशय मजदूर के कार्य से ही है । आशय साफ है कि अगर आप शरीर से श्रम करे हैं तो उसे छोटा न समझें और अगर कोई कर रहा है तो उसे भी सम्मान दे। यह मजदूरों के लिए संदेश भी है तो पूंजीपतियों के लिए भी है ।
श्री गीता में ही हेतु रहित दया का सन्देश तो स्पष्ट रुप से धनिक वर्ग के लोगों के लिए ही कहा गया है-ताकि समाज में समरसता का भाव बना रहे। कार्ल मार्क्स एक बहुत बडे अर्थशास्त्री माने जाते है जिन के विचारों पर गरीबों और शोषितों के लिए अनेक विचारधाराओं का निर्माण हुआ और जिनका नारा था “दुनिया के मजदूरों एक हो जाओ”।
शुरू में नये नारों के चलते लोग इसमें बह गये पर अब लोगों को लगने लगा है कि अमीर आदमी भी कोई ग़ैर नहीं वह भी इस समाज का हिस्सा है-और जो उनके खिलाफ उकसाते हैं वही उसने हाथ भी मिलाते हैं । जब आप किसी व्यक्ति या उनके समूह को किसी विशेष संज्ञा से पुकारते हैं तो उसे बाकी लोगों से अलग करते हैं तो कहीं न कहीं समाज में विघटन के बीज बोते हैं।
दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि श्रीगीता में अपने स्वाभाविक कर्मों में अरुचि न दिखाने का संदेश दिया गया है। सीधा आशय यह है कि कोई भी काम छोटा नहीं है और न तो अपने काम को छोटा और न किसी भी छोटा काम करने वाले व्यक्ति को हेय समझना चाहिये। ऐसा करना बुद्धिमान व्यक्ति का काम नहीं करना चाहियैं। कई बार एसा होता है कि अनेक धनी लोग किसी गरीब व्यक्ति को हेय समझ कर उसकी उपेक्षा करते हैं-यह तामस प्रवृत्ति है। उसी तरह किसी की मजदूरी कम देना या उसका अपमान केवल इसलिये करना कि वह गरीब है, अपराध और पाप है। हमेशा दूसरे के गुणों और व्यवहार के आधार पर उसकी कोटि तय करना चाहिये।
भारतीय समाज में व्यक्ति की भूमिका उसके गुणों, कर्म और व्यक्तित्व के आधार पर तय होती है उसके व्यवसाय और आर्थिक शक्ति पर नहीं। अगर ऐसा नहीं होता तो संत शिरोमणि श्री कबीरदास, श्री रैदास तथा अन्य अनेक ऎसी विभूतियाँ हैं जिनके पास कोई आर्थिक आधार नहीं था पर वे आज हिंदू विचारधारा के आधार स्तम्भ माने जाते हैं।
कुल मिलाकर हमारे देश में अपनी विचारधाराएँ और व्यक्तित्व रहे हैं जिन्होंने इस समाज को एकजुट रखने में अपना योगदान दिया है और इसीलिये वर्गसंघर्ष के भाव को यहां कभी भी लोगों के मन में स्थान नहीं मिल पाया-जो गरीबो और शोषितों के उद्धार के लिए बनी विचारधाराओं का मूल तत्व है। परिश्रम करने वालों ने रूखी सूखी खाकर भगवान का भजन कर अपना जीवन गुजारा तो सेठ लोगों ने स्वयं चिकनी चुपडी खाई तो घी और सोने के दान किये और धार्मिक स्थानों पर धर्म शालाएं बनवाईं । मतलब समाज कल्याण को कोई अलग विषय न मानकर एक सामान्य दायित्व माना गया-बल्कि इसे मनुष्य समुदाय के लिए एक धर्म माना गया वह अपने से कमजोर व्यक्ति की सहायता करे। आज के दिन अकुशल काम करने वाले मजदूरों के लिए एक ही संदेश मैं देना चाहता हूँ कि अपने को हेय न समझो । सेठ साहूकारों और पूंजीपतियों के लिए भी यह कहने में कोइ संकोच नहीं है अपने साथ जुडे मजदूरों और कर्मचारियों पर हेतु रहित दया करें ।

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लेखक संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com

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क्या क्रिकेट की पुनःप्रतिष्ठा इंटरनेट के लिये चुनौती है?


मुझे याद है जब पिछली बार मैं ब्लाग बनाने के लिये प्रयास कर रहा था तब वेस्टइंडीज में विश्वकप शुरू हो चुका था और मैने यह सोचा कि लीग मैचों में भारतीय (जिसे अब मैं बीसीसीआई की टीम कहता हूं) क्रिकेट टीम   तो ऐसे ही जीत जायेगी। इतना ही नहीं मैने  इस टीम के खेल पर संदेह होने कारण एक व्यंग्य भी लिखा था ‘क्रिकेट में सब चलता है यार’ पर वह कोई नहीं पढ़ पाया। बहरहाल यह टीम लीग मैचों में ही बाहर हो गयी। तब  मेरा ब्लाग तैयार हो चुका था पर उसे पढ़ कोई नहीं पा रहा था पर हां क्रिकेट पर लिखी सामग्री नारद पर चली जाती थी पर यूनिकोड में न होने के कारण कोई पढ़ नहीं पाता था। नारद ने बकायदा एक अलग काउंटर बना दिया था।

मुझे उस समय यह देखकर हैरानी हो रही थी कि जो नारद मुझे पंजीकृत नही कर रहा है वह मेरे क्रिकेट से संबंंधित ब्लाग क्यों अपने यहां दिखा रहा है। बहरहाल भारतीय क्रिकेट टीम के हारते ही नारद ने अपना काउंटर भी वहां से हटा लिया और मैं फिर वहां से बाहर हो गया। भारतीय क्रिकेट टीम हारी लोगों की हवा ही निकल गयी। ऐसे में कई लोगों के विज्ञापन तक रुक गये।

मैं पिछले 25 बरसों से इस टीम का खेल देख रहा हूं और पिछले साल गयी टीम की जीत की भविष्यवाणी करने वालें से मैं एक ही सवाल करता था कि ‘आप मुझे टीम का एक भी ऐसा पक्ष बतायें जिसकी वजह से इस टीम को संभावित विजेता मान सकें। टीम हारी लोगों की दुनियां ही लुट गयी। संयोगवश मैं यूनिकोड में लिखना शूरू कर चुका था और लिखने बैठा तो एक तो मुझे इस हार के गम से नहीं गुजरना पड़ा तो दूसरे खिसियाये लोग इंटरनेट की तरह आते दिखे।  सभी लोग पढ़ने नहीं आये तो सभी ऐसे वैसे फोटो देखने भी नहीं आये। पिछले साल से इंटरनेट का इस्तेमाल बढ़ा है।
मैने अपने ब्लाग पर हिट्स और व्यूज तेजी से बढ़ते देखे हैं और एक समय तो मुझे लगा कि हो सकता है कि 2008 के अंत तक किसी एक ब्लाग पर एक दिन में पांच सौ व्यूज भी हो सकते हैं। वर्डप्रेस के हर ब्लाग पर व्यूज सौ से ऊपर निकलते देखे हैं।  एक ब्लाग पर तो दो दिन तक 200 व्यूज आते दिखे। आज हालत वैसी नहीं है। अपने हिसाब से थोड़ा विश्लेषण किया तो कुछ स्मृतियां मेरे मन में आयी है।

अचानक भारतीय टीम ने ट्वंटी-ट्वंटी विश्व कप जीत लिया और उस समय मैने लिखा भी था कि क्रिकेट फिर जनचर्चा का विषय बना। एक हास्य कविता भी लिखी कि अब बीस का नोट पचास में चलायेंगे-आशय यह था कि पचास ओवरों के विश्व कप में पिट गये तो अब बीस का जीतकर फिर क्रिकेट को जीवित करने की कोशिश होगी। यही हुआ और उसके बाद कई खिलाड़ी जो हाशियं पर जा रहे थे वापस चर्चा में आ गये और तीन वरिष्ठ खिलाड़ी जो ट्वंटी-ट्वंटी विश्व कप में नहीं थे फिर मैदान में जम गये। इधर यह भी दिखाई   दिया कि भारतीय क्रिकेट टीम ने घरेलू श्रंखलाओं में जीत दर्ज की तो नवयुवक को एक वर्ग उस पर फिदा हो रहा है। साथ भी मैने यह अनुभव किया कि पिछले चार माह में ब्लाग पर हिट और व्यूज  की संख्या कम होती जा रही है।

अब यह जो नयी प्रतियागिता शुरू हुई है उसके बाद मुझे लग रहा है कि व्यूज और कम होते जा रहे हैं। पहले सौ के आसपास रहने वाले व्यूज साठ से सतर और तीस  से पचास तक सिमट रहे हैं।  मैने ब्लागवाणी पर भी जाकर अनुभव किया कि वहां भी सभी ब्लाग पर व्यूज कम हैं।  हो सकता है यह मेरा मतिभ्रम हो पर मुझे लगता है कि कुछ ब्लागर भी यह मैच देखने में लग गये हैं। मैने आज अपने साइबर कैफे के मालिक अपने मित्र से पूछा-‘‘क्या तुम्हें ऐसा लगता है कि इन मैचों की वजह से तुम्हारे यहां आने वाले लोगों की संख्या कम हुई है?’’

तो उसने कहा-‘‘हां, पर गर्मिंयां और छुट्टियां होने से भी यह हो सकता है पर मुझे लगता है मैचों वाले समय में संख्या कम हो रही है।’

इधर मुझे भी लगता है कि कुछ ऐसे लोग भी मैच देखने में लग गये हैं जो बिल्कुल इससे विरक्त हो गये थे। शायद इसका कारण यह भी है कि लोगों के पास समय पास करने के लिये और कोई जरिया भी तो नहीं है। इसलिये अब इस खेल में मनोरंजन का भी इंतजाम किया गया है। मैं उन लोगों में हूं जिनका मोह तभी इस खेल से भंग होता गया जब इस संदेह के बादल लहराने लगे थे। इसके बावजूद मैं आधिकारिक मैच मैं देखता हूं और यह प्रतियोगिता मुझे अधिक प्रभावित नहीं कर पा रही। मैं पहले भारत का वासी हूं और फिर मध्यप्रदेश का ओर दोनों का वहां कोई वजूद नहीं देखता इसलिये मुझे इसमें कोई दिलचस्पी नहीं है। हां, इधर जब ब्लागवाणी पर दूसरे ब्लाग और वर्डप्रेस के अपने ब्लाग पर घटते व्यूज देखे तो विचार आया कि कहीं अंतर्जाल की वेबसाईटों और ब्लागों पर क्या लोगो की आमद कम हो जायेगी? इस तरह क्या इंटरनेट को क्रिकेट की पुनःप्रतिष्ठा से कोई चुनौती मिलने वाली है। 

यह बात याद रखने वाली है कि आदमी को चलाता मन ही है और इधर इंटरनेट पर जो लोग आये वह कोई आसमान से नहीं आये। मैं क्रिकेट, अखबार और टीवी से हटकर यहां आया तो और भी आये। मैं वहां नहीं जा रहा क्योंकि मुझे लिखने में मजा आ रहा है पर दूसरे तो जा सकते हैं। फिलहाल तो ऐसा लग रहा है पर कालांतर में फिर लोग इधर आयेंगे। मेरे जो मित्र पहले क्रिकेट से विरक्त हो चुके थे और यह मैच देख रहे हैं उनका कहना था कि ‘यह मैच अधिक समय तक लोकप्रिय नहीं रहेंगे क्यांेंकि इनमें राष्ट्रप्रेम का वह जज्बा नहीं है जिसकी वजह से क्रिकेट इस देश में लोकप्रिय हुआ था’। यह प्रतियोगिता समाप्त होते ही फिर लोग अपने पुराने ढर्रे पर वापस आ जायेंगे और अगर मुझे लगता है कि इन मैचों की वजह से इंटरनेट पर लोगों की आमद कम है तो वह निश्चित रूप से बाद में बढ़ेगी। यहां याद रखने वाली बात यह है कि लोग अपना समय केवल खेल देखने में ही नहीं बल्कि उसके बाद होने वाली चर्चाओं पर भी व्यय करते हैं और ऐसे में अगर इंटरनेट पर लोगों की आमद कम हो रही हो तो आश्चर्य की बात नहीं है।

मेरी स्थिति तो यह है कि हरभजन सिंह को टीम से निकाला गया-यह खबर भी मुझे बहुत  हल्की लगी। अगर यही अगर उसे किसी अतर्राष्ट्रीय एक दिवसीय मैच से निकाला जाता तो शायद मैं कुछ जरूर  लिखता। इस प्रतियोगिता में खेल रही टीमों में कोई दिलचस्पी नहीं होने के कारण कोई भी समाचार मेरे दिमाग में जगह नहीं बना पाता।

इस ब्लोग (पत्रिका) के बीस हजारिया होने पर विशेष संपादकीय


यह ब्लाग (पत्रिका) आज बीस हजारिया हो गया-यानि इसकी पाठक संख्या बीस हजार पार हो गयी थी। इसने दस हजार  पाठक संख्या दस नवंबर 2007 को पार की थी। इस समय इस पर पोस्ट संख्या 230 के पास थी और वर्डप्रेस के ब्लोग  बहुत तंग कर रहे थे  तो हमने इसकी जगह एक ब्लाग और बना लिया और इसे लगभग अनदेखा कर दिया। मगर यह ब्लाग हमें देखता और दिखता रहा। अनेक बार यह बिना किसी पोस्ट लिये ही वर्डप्रेस के डेशबोर्ड पर हिट लेकर सात हिट ब्लागों की सूची में आ जाता जैसे  कहता हो-‘‘भूल गये क्या? हम भी तुम्हारे एक फ्लाप ब्लाग हैं?’

तब भी हम इसकी परवाह नहीं करते थे कि इस पर कितने व्यूज आज हैं। हम दूसरे ब्लाग पर लिखते रहे जो हमने उसी महीने पंजीकृत कराया था। इस ब्लाग की अनदेखी का परिणाम हमें भोगना पड़ा। कहीं हमारे ब्लाग  रेटिंग के लिये उठाये गये और इसकी जगह स्थापित उस ब्लाग की हालत खस्ता हो गयीं। तय बात है कि ब्लाग तो हमारा ही था और हम पर उसकी आंच आनी ही थी। बेटे के फेल या पास होने का बाप के मन पर प्रभाव तो पड़ता ही है। सो हमारे साथ भी हुआ।

इसके बाद भी हमने तय किया कि अब उसी ब्लाग को पास करायेंगे। यह एक बाप का ही फैसला होता है कि अपने पढ़ाई में कमजोर बच्चे को अधिक पढ़ाने का विचार करता है। हमने भी दूसरे ब्लाग पर लिखना और तेज कर दिया पर इस पर भी कभी कभार पोस्ट लिखते रहे। एक दिन हमने देखा कि इस पर तो अठारह हजार व्यूज हो रहे हैं तो आश्चर्य हुआ। हमने अपने वर्डप्रेस के  बाकी ब्लाग देखे तो पाया कि यह सबसे अधिक हिट ले रहा है।
इधर एक दो दोस्त जिनको हमने इसी ब्लाग का पता दिया तो उन्होंने भी सूचना दी कि तुम्हारा वह ब्लाग बीस हजार के पार होने वाला है।

दस से बीस हजार की यात्रा में कई बार फोरमों पर हिट लेने वाला यह ब्लाग अब आम पाठकों की बढ़ती भागीदारी, उनकी पसंद और रुचियों के संकेत दे रहा है। मुझे सुबह ही आशा थी यह ब्लाग इस संख्या को पार करेगा और इसके लिये विशेष संपादकीय लिखेंगे। मैं एक पोस्ट प्रकाशित करने के बाद एक ही बार अपने ब्लाग को देखता हूं और उसके बाद कही इसको नहीं खोलता। दस हजार पार करने से पहले कभी कभी डेशबोर्ड पर इसे देखता था और शुरूआती दिनों में जब यह फोरम पर नहीं था तो इसे कुछ बार डेशबोर्ड पर खोल कर देखता था कि यह कैसा दिखता है।

दस से बीस हजार के बीच मैंने इसे कहीं भी खोलकर नहीं देखा। इसका मतलब यह है कि यह दस हजार व्यूज दूसरे लोगों को है।

इस ब्लाग पर प्राप्त आंकड़ों का विश्लेषण अब मैं प्रस्तुत करूंगा तब हिंदी ब्लाग में तमाम तरह के विश्लेषण कर रहे लोगों को काफी अच्छा लगेगा। यह ब्लाग जो संदेश दे रहा है उससे स्पष्ट है कि आम पाठक की रुचि हास्यकविताओं और अध्यात्म की तरफ  बहुत है-ब्लाग और ब्लोगरों पर लिखी गयी पोस्ट आम पाठक उसे नहीं पढ़ना चाहते। अभी आंकड़े इस समय प्रस्तुत नहीं कर रहा पर यहां बता दूं कि इन दोनों पर लिखते हुए मुझे ऐसी सफलता मिलेगी यह आशा तो मैं कर भी नहीं रहा था पर इन नीचे लिख 19 पोस्टें और उनके हिट पर नजर डालें। क्या इनमें कोई संदेश है जिसे समझा जा सकता है।
Title Views
कबीर के दोहे:अब मन हंस की तरह मोती चुनता 355
हास्य कविता-असली इंडियन आइडियल बनूंगा 232
सास-बहू का ब्लोग-हास्य व्यंग्य 229
तरक्की का यही है खेल-हास्य कविता 203
शादी से पहले और शादी के बाद 193
मेरा परिचय=दीपक भारतदीप, ग्वालियर 187
रावण तुम कभी मर नहीं सकते-कविता 183
हास्य कविता -बीस का नोट पचास में नहीं चल 177
हास्य कविता -अल्पज्ञानी और कौवा 158
खुद ही बहकते हैं लोग-हिन्दी शायरी 152
हिंदूओं की ताकत है ध्यान और गीता का ज्ञा न 150
बाबा रामदेव की आलोचना से पहले अपने को दे 135
फिर कौन चेला और कौन गुरु-हास्य कविता 124
जमाने को दोष देते हैं 122
कंप्यूटर चलाने वालो को योग जरूर करना चाह 119
जो सहज वह ‘कबीर’ जो असहज वह गरीब है 119
प्यार से है ज्यादा जान प्यारी 116
रहीम के दोहे:कपटी की संगत से भारी शारीरि 115
संत कबीर वाणी:जीभ का रस सर्वोत्तम 115
ब्लोगवाणी पर महापुरुषों के संदेशों के इतने कम व्यूज देखकर शायद ही कोई उनको लिखना चाहे पर मैने लिखे क्योंकि मैं आम पाठक तक जाना चाहता था और उसके लिये जरूरी है तात्कालिक टिप्पणियों के मोह का त्याग। मैं इसे अपना त्याग नहीं कहता क्योंकि यह तो मेरी स्वाभाविक प्रवृत्ति है। मेरे ब्लाग उसी दिशा में जा रहे हैं जहां मैं भेजना चाहता हूं।
हिंदी के मेरे से पुराने ब्लागरों का मुझे सहयोग मिला तो मैने उनकी वह  आकांक्षाएं पूरीं कीं जिसकी वह अपेक्षा करते थे-मेरे हिसाब से इतनी कम अवधि में इस सफलता की आशा भी नहीं की जा सकती थी। मुझे यह कहने में  झिझक नहीं है कि यह मेरा सबसे हिट ब्लाग है और फोरमों के बाहर से अपने लिये व्यूज जुटाने वाले ब्लागों (वेब साइटें नहीं )मे यह प्रमुख हैं और यकीन मानिए अपने माडरेटर के मित्रों की इस पर कोई कृपा नहीं है। मेरा मनोबल बनाये रखने के लिये अनेक ब्लागर कमेंट रखते हैं तो इस बार उनको अपने लिये नहीं बल्कि हिंदी जगत में उनके इस योगदान के लिये बधाई। याद रखिये यह ब्लाग लिखता मैं हूं पर आखिर यह कोई मेरे घर पर रहने वाला नहीं है और हिंदी भाषा की श्रीवृद्धि करता है।

इस बार मैं श्रीअनुनाद सिंह, उन्मुक्त जी, ममता  श्रीवास्तव जी , परमजीत बालीजी  और सागरचंद नाहर जी को खासतौर से साधुवाद देना चाहूंगा जिनके ब्लागों से विषय, तकनीकी और अन्य जानकारियां लाकर मैने इस पर लिखा। श्रीअनुनादसिंह जी ने कृतिदेव के यूनिकोड को बताकर हिंदी ब्लागिंग जगत में मेरा दूसरा दौर शुरू किया और इसी दौर में इस ब्लाग ने बीस हजारीय ब्लाग होने का श्रेय प्राप्त किया। शेष विश्लेषण बाद में।

इस ब्लोग (पत्रिका) के बीस हजारिया  होने पर विशेष संपादकीय
उन्मुक्त जी

प्रतिबंध के बाद लगाये शोएब अख्तर ने फिक्सिंग के आरोप


शोएब अख्तर पर अनुशासनहीनता के आरोप में पांच साल क्रिकेट खेलने पर प्रतिबंध लगा दिया गया। इसके बाद तैंतीय वर्षीय इस खिलाड़ी का क्रिकेट कैरियर लगभग समाप्त ही है। मुझे उससे सहानुभूति है और अब तो उसने जिस तरह फिक्सिंग का मामला उछाला है उससे तो नहीं लगता कि उसकी वापसी इतनी आसानी से होगी।

क्रिकेट में फिक्सिंग का आरोप पाकिस्तान से विकेटकीपर बैटसमेन राशिद लतीफ ने सबसे पहले लगाया था और उसमें उसने भारतीय खिलाडियों का नाम लिया था। उस समय उसकी बात को भारतीय प्रचार माध्यमों ने यह कहते हुए तवज्जो नहीं दी कि हर पाकिस्तानी आमतौर से भारत का स्वाभाविक विरोधी होता है। देशभक्ति के डर के मारे किसी ने उसके बारे में अधिक नहीं लिखा मगर इसी दौरान न्यूजीलैंड के अखबार में भी भारतीय खिलाडि़यों पर फिक्सिंग का आरोप लगा तो फिर मामला लंबा खिंच गया। इस देश के लोगों की मानसिकता है कि अगर गोरे लोग गलत बात भी कहें तो उसे सही मानेंगे। बहरहाल उस समय हमने राशिद लतीफ के आरोपों को बहुत गंभीरता से लिया था क्योंकि हम तब भी जानते थे कि भले ही पाकिस्तानी हर तरह से भारत के विरोधी हों पर क्रिकेट के मामलें वह हमेशा दोस्ती निभाते हैं-भारतीय क्रिकेट खिलाड़ी भी अब तक यही दावे करत रहेे हैं।

आज अखबार में भारतीय क्रिकेट टीम के दक्षिण अफ्रीका के विरुद्ध 76 रन पर ढेर होने के समाचार प्रमुखता से छपा था तो शोएब का यह आरोप भी कि उसे भारत में मैच फिक्स करने के लिये प्रस्ताव दिया गया था, इसे भी प्रथम पृष्ठ पर छापा गया था। कल किसी टीवी चैनल पर मैने यह समाचार नहीं देखा था पर आज अखबार में उसका आरोप देखकर मुझे कोई हैरानी नहीं हुई। एक तो यह कि उससे उसकी रोजीरोटी छीनी गयी है तो उसको गुस्सा आना स्वाभाविक है। दूसरे यह कि उस पर लगे आरोप ऐसे नहीं थे जिस पर उसे इतनी बड़ी सजा मिलती। वैसे भी पाकिस्तान के क्रिकेट अधिकारी कौन दूध के धुले हैं जो इतनी कठोरता दिखा रहे हैं।

शोएब अख्तर के आरोपों पर अपने देश में कुछ लोग सवाल उठा सकते हैं क्योंकि इस बार देशभक्ति का कार्ड नहीं चलेगा। आखिर उसे इस देश की ही एक टीम में जगह दी गयी थी जहां प्रवेश होने से पहले ही उसकी विदाई हो गयी। जब इस देश के क्रिकेट के कर्णधार किसी पाकिस्तानी को यहां की किसी टीम में शामिल करते हैं तो फिर उसके कहे पर किसी के सवाल करने पर उसे देशभक्ति की घुटी नहीं पिला सकते।

किसी समय हम क्रिकेट के लिये हद दर्जे के दीवाने थे। कई रातें और दिन खराब किये। जब एक के बाद एक इस खेल पर फिक्सिंग के आरोप लगे तो हमारा मन खराब हो गया। कई खिलाडि़यों ने एक दूसरे पर आरोप लगाये तो कुछ पर प्रतिबंध भी लगे। आज क्रिकेट को लेकर न तो कोई आकर्षण है और न इसके प्रति कोई देशभक्ति का भाव है। यही सचिन जब बल्लेबाजी करता था तो अपने सारे काम छोड़कर हम घर में ही जम जाते थे और आज हालत यह कि टीवी और अखबारों से ही पता पड़ता है कि उसने कोई कारनामा किया है। शोएब अख्तर के आरोप पर आगे भी बहस होगी। अगर उसकी टीम में वापसी हो जाती है तो ठीक नहीं तो वह अपने आरोपों को आगे बढ़ाकर वह सनसनी फैला सकता है। हो सकता है यह नाटक हो केवल क्रिकेट को खबरों के बनाये रखने के लिये। जिस तरह पाकिस्तान के नये प्रधानमंत्री ने शोएब के बारे में वहां के क्रिकेट अधिकारयों को उसको दी गयी सजा पर पुनर्विचार करने को कहा है उससे तो लगता है कि वह बहाल भी सकता है। सब जानते हैं कि किसी देश के प्रधानमंत्री के ऐसे संदेशों का टाल पाना व्यवसायिक रूप ले चुके इस खेल के कर्णधारों के लिये कठिन होता है। यह भी हो सकता है कि वहां के प्रधानमंत्री की जनप्रिय मामलों में सक्रियता दिखाने के लिये यह मामला बनाया गया हो। तब तक शोएब अख्तर ने यह मामला उठाकर सनसनी फैला दी । अपनी वापसी पर वह ऐसे ही चुप हो जायेगा जैसे राशिद लतीफ चुप हो जायेगा। देखना यह है कि यह मामला किस तरह आगे बढ़ता है। एकदम कुछ कह पाना कठिन है क्योंकि क्रिकेट में सब कुछ चलता है यार!

कवि मन को कभी नहीं समझ पाओगे-कविता


कवि से उसने कहा
‘तुम कवितायेँ ही लिखते रहोगे
या लोगों की भीड़ में भी सुनाओगे
इस तरह लिखने से क्या फायदा
लोगों की वाह-वाह लूटो
मंच पर चढ़कर सुनाओ बाकायदा
वरना तुम न नाम पाओगे न नामा
कोई तुम्हारा नाम नहीं लेगा
अकेले बैठकर पछताओगे”

कवि ने कहा
”शब्दों के ग्राहक तो बहुत हैं
वाह-वाह शब्द के वाहक भी बहुत हैं
पर अर्थों को कितने समझते हैं
भावों में कितने बह सकते हैं
इसका हिसाब भी किया करो
मैं ही लिखूं और सुनाऊं
अर्थों से बहरे लोगों से ताली बजवाऊँ
भावों में बहना तो मुझे ही है
अकेला रहूँ या भीड़ में जाऊं
भीड़ में जाकर सुनाने से अच्छा है
कुछ और कविता लिखूं
अपनी नजर से कवित्व का बोध होते दिखूं
रंग-बिरंगे पंडाल में
लाइटों की रौशनी में
आकर्षण बहुत होता है
पर मन के अँधेरे को कोई दूर नहीं कर सकता
मेरा कवि मन ही है वह प्रकाश पुंज
जो मन में रौशनी हमेशा कर सकता
तालियों में अपनत्व
थालियों में घनत्व
ढूंढते हो तुम, कवि मन को नहीं समझ पाओगे
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