बेचने के लिए लिखे या बोले शब्द
होते हैं बहुत चमकदार
पर पढ़कर या सुनकर
जल्दी खो देते हैं असर
क्योंकि उनकी आत्मा जल्दी मर जाती है
भले ही लगते हैं वजनदार
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बाज़ार में खरीदे और बेचे जाते शब्द
पढ़वाने और सुनाने के लिए
वैसे ही जैसे बाजार में रोटी भी
सजती है बिकने के लिए
शब्द भी कई रंगों से भर जाते हैं
नफरत और दिखावटी प्यार में
ढूंढते हुए अपनी जगह
दौलतमंदों के इशारे पर चलते
इसलिए महलों में पलते
फिर बिक जाते हैं बड़े बाज़ार में
बाज़ार में अपने लिए खुशी ढूंढता
आदमी उनसे भी लिपट जाता है
जैसे बाज़ार की रोटी खाता है
मगर बाजार के शब्द
सभी नहीं खरीद पाते
घर में ही दाल रोटी मुश्किल से पाते
लिखी जाती हैं उन पर भी कहानियां
शब्द बटोर लेते हैं
उन पर नाम, नामा और तालियाँ
फिर खो जाते हैं भीड़ में
बाज़ार जुट जाता है फिर नये तलाशने के लिए
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बिकने के लिए लिखे शब्द
चमककर फिर खो जाते
लोग पढ़कर और सुनकर सो जाते
बाज़ार में कोई नहीं लिखवा सकता दिल से
इसलिए वह इंसानों की रूह पर
असर नहीं कर पाते
लिखते हैं जो दिल से
वही जमीन और आसमान में छा जाते
बाज़ार में सौदागर कभी
नहीं ढूंढते दिल से लिखे शब्दों को
लिखने वाला कब आँखें मूंदे तो
मुफ्त में लूट लें शब्दों का खजाना
इसी इन्तजार में जुट जाते
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