Category Archives: लम्हे

चाणक्य नीति:बल से बुद्धि की तीक्ष्णता भारी


१.इतने भारी शरीर वाला हाथी छोटे से अंकुश सा वश में किया जाता है. सब जानते हैं की अंकुश परिमाण में हाथी से बहुत छोटा होता है. प्रज्जवलित दीपक आसपास अंधकार को ख़त्म कर देता है. जबकि परिमाण में अन्धकार तो दीपक से कहीं अधिक विस्तृत एवं व्यापक होता है.वज्र के प्रभाव से बडे-बडे पर्वत टूट जाते हैं. जबकि वज्र पर्वत से बहुत छोटा होता है.
चाणक्य के इस कथन से आशय यह है की अंकुश से इतने बडे हाथी को बाँधना, छोटे से वज्र से विशाल एवं उन्मत पर्वतों का टूटना, इतने घने अन्धकार का छोटे से प्रज्जवलित दीपक से समाप्त हो जाना इसी सत्य के प्रमाण है की तेज ओज की ही विजय होती है. तेज में ही अधिक शक्ति होती है.

२.जिस प्राणी के पास बुद्धि है उसके पास सभी तरह का बल भी है. वह सभी कठिन परिस्थितियों का मुकाबला सहजता से करते हुए उस पर विजय पा लेता है. बुद्धिहीन का बल भी निरर्थक है, क्योंकि वह उसका उपयोग ही नहीं कर पाटा. बुद्धि के बल पर ही के छोटे से जीव खरगोश ने महाबली सिंह को कुएँ में गिराकर मार डाला. यह उसकी बुद्धि के बल पर ही संभव हो सका.

३.यह एक कटु सच्चाई है की किसी भी ढंग से समझाने पर भी कोई दुष्ट सज्जन नहीं बन जाता, जैसे घी-दूध से सींचा गया, नीम का वृक्ष मीठा नहीं हो जाता.

हास्य कविता -भूल गया अपना ज्ञान


एक बुद्धिमान गया
अज्ञानियों के सम्मेलन में
पाया बहुत सम्मान
सब मिलकर बोले दो ‘हम को भी ज्ञान’
वह भी शुरू हो गया
देने लगा अपना भाषण
अपने विचारों का संपूर्णता से किया बखान
उसका भाषण ख़त्म हुआ
सबने बाजीं तालियाँ
ऐक अज्ञानी बोला
‘आपने ख़ूब अपनी बात कही
पर हमारी समझ से परे रही
अपने समझने की विधि का
नहीं दिया ज्ञान

कुछ दिनों बात वही बुद्धिमान गया
बुद्धिजीवियों के सम्मेंलन में
जैसे ही कार्यक्रम शूरू होने की घोषणा
सब मंच की तरफ भागे
बोलने के लिए सब दौडे
जैसे बेलगाम घोड़े
मच गयी वहाँ भगदड़
माइक और कुर्सियां को किया तहस-नहस
मारे एक दूसरे को लात और घूसे
फाड़ दिए कपडे
बिना शुरू हुए कार्यक्रम
हो गया सत्रावसान
नही बघारा जा सका एक भी
शब्द का ज्ञान
स्वनाम बुद्धिमान फटेहाल
वहाँ से बाहर निकला
इससे तो वह अज्ञानी भले थे
भले ही अज्ञान तले
समझने के विधि नहीं बताई
इसलिये सिर के ऊपर से
निकल गयी मेरी बात
पर इन बुद्धिमानों के लफडे में तो
भूल गया मैं अपना ज्ञान

हास्य कविता -जब माया के रंग हो जाते बदरंग


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गद्दे और तकिये में रुई की जगह
नोट भरकर सोवें
ऐसे भाग्य तो किसी-किसी के होवें
मायापुत्र नॉट करें आर्तनाद
क्या हो गयी हमारे गत
हम तो दिन में बाजार में
चलने-फिरने वाले जीव
रात को कैसे जिन्दा लाशों को ढोवें
काश किसी सुन्दरी के पर्स में हौवें
यह क्या कि लोग दिन में हमारे लिए
करें हजारों पाप
प्यार से पुचकार घर लावें
और तकिया और गद्दों में भरकर हम पर सोवें

मायापति सोने के भी कोई
कम बुरे हाल न होवें
होना चाहिए गले और उंगली में
वही लग जाता है नल की टोंटी में
और लोग अपने अच्छे बुरे हाथ
उसका कान उमेठ कर धोवें
जिसे चमकना चहिये अपनी ख्याति के अनुरूप
होते हैं जिसके गह्रने शोरूम में
लोग उसके सामान को ऐसे देखे
जैसे चमकदार पीतल के होवें

वाह री माया तेरे खेल
कोई बेचता पीतल का सामान सोना बताकर
कहीं सोने को छिपाता पीतल जताकर
कहने वाले सही कह गये कि
अति सबकी बुरी होवें
चाहे माया के ढ़ेर ही क्यों न होवें
ख़ूब लगा लो अपने घर में
फूट जाता है भांडा जब
सर्वशक्तिमान डलवाता छापा
माया के रंग हो जाते बदरंग
भाग्य की रेखाएं टेढी होवें
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हीरो को मिली जेल, प्रियतम प्यार में फेल


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एक ही हीरो की फिल्म देखने और
गाने सुनने के शौक़ ने उन दोनों को
आपस में मिलवाया
फिर तो उन्होने फ़िल्मों जैसा ही
प्रेम प्रसंग रचाया

हीरो के जन्म दिन पर
प्रियतम ने प्रेयसी को
फेवरिट हीरो की फिल्मों की
सीडी अपने पहले उपहार के रुप में दीं
और उसने फिल्म में दिया था जैसा
सोने का हार वैसा ही उसे पहनाया
दोनों ने एक होटल में
केक काटकर जश्न मनाया

उसकी हर फिल्म
पहले दिन पहले शो में देखी और
हर गाने पर शोर मचाया
जब प्रेम फिल्मों जैसा था
तो फिल्म जैसी समस्या भी आनी थी
और वह दिन भी आया जब
हीरो को उसके काले कारनामों ने
सीधे असली जेल भिजवाया
प्रियतम तो गया संभल पर
प्रियतमा का हृदय घबडाया
और उसने जेल के बाहर जाकर
अपना डेरा जमाया

इधर प्रियतम ने रोज मिलने के
ठिकाने से जब उसे नदारद पाया
तो बहुत घबडाया
उसने अपनी प्रेयसी के मोबाइल पर
कई बार बजाई घंटी पर उसे बंद पाया
इधर-उधर ढूँढता रहा
अखिर जेल के दरवाजे से
हीरो का दर्शन किये बग़ैर लौटे
उसके ऐक मित्र ने उसे
प्रेयसी का पता बताया

वह वहां पहुंचा तो
अपनी प्रियतमा को गम में डूबा पाया
उसे देखते ही वह बोली
‘तुम मुझे प्यार करते हो तो
अन्दर जाकर हीरो का पता लगाओ
उसका हाल जानकार मुझे बताओं’

प्रीतम बोला
‘उसे अपने कर्मों का फल भोगने दो
उससे हमारा अब क्या वास्ता
अब उसे तुम भूल जाओ तुमने तो
अब मुझे अपना हीरो बनाया
बिना अपराध के अन्दर जाना संभव नहीं
सरकार ने कानून ही ऐसा बनाया’

प्रेयसी को गुस्सा आ गया और बोली
‘मुझे इससे मतलब नहीं है
मुझे तो बस हीरो के दर्शन करने हैं
आज तुम्हारे इम्तहान का समय आया
उस हीरो की वजह से तुम्हारा और मेरा मिलन हुआ
जिसे किस्मत ने सींखचों के पीछे पहुंचाया’

जब प्रियतम ही अपनी जताई असमर्थता
तब वह बोली
‘हीरो गया जेल और तुम्हें उस पर
बिल्कुल भी तरस नहीं आया
मैंने तो उसकी तस्वीर तुम में
देखकर ही तुमसे प्यार रचाया
उसके समर्थन में देखो कितने
लोगों ने आवाज उठाई है और तुमने
ऐक भी नहीं लगाया नारा
तुम प्यार के इम्तहान में फेल हो गये
आज मैंने तुम्हें आजमाया’

बहुत समझाने पर भी वह नहीं मानी
तब प्रियतम को भी गुस्सा आया और बोला
‘अच्छा ही है जो तुमने
अपना असली रुप दिखाया
नकली हीरे को असली समझकर
उसमें दिल लगाने की बात मेरे
समझ में भी नहीं आयी
परदे की हीरो जिन्दगी के विलेन
अभिनय कें दिखाएँ बहादुरी और जिन्दादिली
हकीकत में कमजोर और बेरहम
लिखे डायलाग बोलने वाले
क्या बेजुबानों की भाषा समझेंगे
उनके चाहने वालों की बुद्धि पर
तो मुझे शक होता है
अच्छा ही उसे मिली जेल
मैं हुआ प्यार में फेल’
ऐसा कहकर प्रियतम अपने घर चला आया

मन के भाव की भाषा


तुम्हारे मुख से निकले कुछ
प्रशंसा के कुछ शब्द
किस तरह लुभा जाते हैं
जो तुम्हे करते हैं नापसंद
वही तुम्हारे प्रशंसक हो जाते हैं

जुबान का खेल है यह जिन्दगी
कर्ण प्रिय और कटु शब्दों से
ही रास्ते तय हो पाते हैं
जो उगलते हैं जहर अपने लफ्जों से
वह अपने को धुप में खडे पाते हैं
जिनकी बातों में है मिठास
वही दोस्ती और प्यार का
इम्तहान पास कर
सुख की छाया में बैठ पाते हैं

जिन्होंने नहीं सीखा लफ्जों में
प्यार का अमृत घोलना
रूखा है जिनका बोलना
वह हमेशा रास्ते भटक जाते हैं
उनके हमसफर भी अपने
हमदर्द नहीं बन पाते हैं
चुनते हैं भाषा से शब्दों को
फूल की तरह
लुटाते हैं लोगों पर अपनों की तरह
गैरों से भी वह हमदर्दी पाते हैं
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