Category Archives: यकीन

ऐसा कोई सयाना नहीं रहा


कोई हमारे दर्द को आकर सहलाये
इस चाह में इन्तजार करने का
ज़माना अब नहीं रहा
किसी के दर्द को सहलाकर
हम अपने दिल को तसल्ली कर लें
पर किसी के दिल का हिस्सा बन जाएं
ऐसा नाम कमाना नहीं रहा
जिन्दगी के इस सफर में
हमसफ़र कई बनाते हैं
पर बस जाएं किसी के साथ
जिन्दगी भर के लिए
ऐसा आशियाना अब नहीं रहा
वादे करें खूब
नकली बाग़ में
दिखाए नकली दूब
छोड़ जाएं बेरहम
जब मझधार में रहें डूब
किसी की जिन्दगी में अमृत घोलकर
अपने लिए भी सुख ढूंढ लें
ऐसा कोई सयाना नहीं रहा
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सामाजिक सीरियल या हारर शो


बाप ने बेटे को दी कई बार
अपने पास आने के लिये जोर से आवाज
पर उसने लगा था कानों में इयर फ़ोन
और कोई नही दिया जवाब
फ़िर को प्यार से नाम लेकर  बुलाया
पर उसने भी नहीं सुन पाया
दोनों अपनी किताब पढने में मशगूल थे
दूसरे कमरे में जोर से टीवी
चला रखा था दादी और मां ने
कोई शांति में भी शोर महसूस कर रहा था
तो कोई शोर को  ही बैठा था शांति माने

पिता उठे और जाकर बेटे की
पीठ पर धौल जमाई और बोले
‘पढ रहे हो या हमें ही लगे हो चलाने
गाने सुन रहे हो पढ्ने के  बहाने
हमने भी किये हैं
अपने छात्र जीवन में ऐसे ही कारनामे’
पुत्र ने कान से  इयरफ़ोन निकाला और कहा
‘यह तो उधर चल रहे टीवी से आ रही
भयानक आवाजों से बचने के लिये है
जो चला रखा है दादी और मां ने
आप तो उधर दूर बैठे हो
सास-बहु के सीरियलों की आवाज को
झेल कर बता दो  तो जाने’
पिता ने बेटी की तरफ़ देखा
वह कान में से रुई निकाल कर बोली
”पापा  आप मुझे भी इयरफ़ोन लाकर दो
मैं भी कान में लगाकर गाने सुनुंगी
मम्मी दादी तो रोज
चलाकर बैठ्ती हैं सास बहु के सीरियल
हम नही सुन सकते उसकी भयानाक आवाज्
अगर हो सके तो हमारे लिये ऐक नया टीवी
बाजार से ला दो
हम अपने मनपसंद कामेडी सीरियल देखेंगे
अब हम बच्चे भी हो गये हैं सयाने’

पिता ने कहा
‘तुम्हारी दादी और मां तो
बडे चाव से देखती है
तुम्हारी समझ में नही आते
तुम्हारी बुद्धि में कहीं कमी है
इससे तो लगते हैं यही मायने’

बेटे ने  कहा
‘हम आप के ही बच्चे है
ऐक घंटा क्या दस मिनट ही
यह सीरियल झेल कर बता दो
हम छोड देंगे अपनी मांगें
आवाजे हैं उसकी भयानक है
दृश्य हैं डरावने’

बेटी बोली
‘पापा सब ओरतें पहनतीं है
महंगे सूट और साडियां
सभी आदमी शानदार  कपडे
पहनकर आते है
पर सब चिल्लाते हैं और चीखते  हैं
भयानक ढंग से आंखे दिखाते है
हम लगते हैं घबडाने
हम कुछ नहीं जानते आप तो
किसी भी तरह हमारी मांगें माने’

पिता ने  मांगें मांग लेने की बजाय्
पुत्र की चुनौती स्वीकारी
और पहुंच गये कमरे में
सास्-बहु का सीरियल  देखने
अपनी शक्ति और शौर्य दिखाने
दो मिनट में ही उनका लगा दिल घबडाने’

लौट्कर वापस आये
और दोनों बच्चों को गले लगा लिया और बोले
बच्चों तुमने सच कहा है
सब्र से सब सहा है
इन सास-बहु के सीरियल को देखने से
तो अच्छा है हम तुम्हारी मांगें माने
सारा सेट चमकदार है
सब पहने है शानदार और महंगे कपडे
फ़िर भी भूतों जैसे करते हैं लफ़डे
इतनी भयानक आवाजे और दृश्य्
कौन कहता है यह सामाजिक हैं
हम तो इनहें हारर शो माने
तुमने साबित किया है कि
तुम लायक बाप के हो बेटी-बेटे सयाने
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मोबाइल, वह और………..hasya kavita


मोबाइल की बेटरी में खराबी की
खबर ने उसे हिला दिया
क्योंकि उसने अपनी गर्ल फ़्रेंड को दिये थे
उसी कंपनी की मोबाइल प्रेजेंट जिनकी बेट्री
के फ़ट्ने की खबर ने देश में भूचाल ला दिया
मिलता था वह जिन   गर्लफ्रैंडस  से
अलग दिन और अलग जगह पर
बेटरी फटने के भय  ने
सबको एक ही दिन और ऐक ही समय 
उसकी होस्टल  के कमरे की  छत के नीचे 
आपस में मिलवा  दिया
 
उसने सबको एक ही कंपनी के
मोबाइल तोहफ़े में दिये थे
जिनकी बेटरी  फटने के चर्चे
टीवी चैनलों ने किये थे
भय से काँपती सब उसके रूम में पहुँची
अपने मोबाइल की बेटरी
बदलवाने का आग्रह लेकर  
 पर जो देखा वहां का मंजर
वह  गुस्से में सब भूल  गयीं  और मिलकर
उसे छठी का दूध याद दिला  दिया
जिसे जो मिला उसके सिर पर मार दिया
 
 
 वह पिटा-कूटा अपने कमरे में  पडा था
ऐक दोस्त ने आकर उसे उठाया
वजह पूछी पर वह कुछ नहीं बता रहा था
बस ऐक ही बात रोते हुए  दोहरा रहा था
‘मोबाइल वालों तुमने यह क्या किया
बेटरी फट जाने देते
पहले ही प्रचार क्यों किया
जिस कंपनी के मोबाइल खरीद्कर लव में
हो गया था हिट उसने ही आज पिटवा दिया
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भूखे को नही दें रोटी , भूत के लिये खोलें तिजोरी-hasya kavita


बरसात का दिन, रात थी अंधियारी
गांव से दूर ऐक झौंपडी में
गरीब का चूल्हा नही जल पाया
घर में थी गरीबी की बीमारी
भूख से बिलबिलाते बच्चे और
पत्नी भी परेशानी से हारी
देख नही पा रहा था
आखिर चल पडा वह उसी साहुकार के घर
जिसने हमेशा भारी सूद के साथ
जोर जबरदस्ती वसूल की रकम सारी
जिसकी वजह से छोडा था गांव
और उसके परिवार सहित मरने की
झूठी खबर सुनकर भूल गयी थी जनता सारी

बरसात में भीगे सफ़ेद कपडे उस पर
जमी थी धूल ढेर सारी
आंखें थीं पथराईं गाल पर बह्ते आंसु
साहुकार के घर तक पहुचते-पहुंचते
चेहरा हो गया ऐकदम भूत जैसा
रात के अंधियारे में देखकर उसे
सब घबडा गये वहां के नौकर
भागते-भागते मालिक को देते गये खबर सारी

जब तक वह संभलता पहुंच गया उसके पास
ताकतवर बना गरीब अपने भूत की बलिहारी
जिसकी आवाज थी, बंद मन था भारी
उसने मांगने के लिये हाथ एसे उठाये
जैसे हो कोई भिखारी
साहुकार कांप रहा था
भागा अंदर और अल्मारी से
निकाल लाया नोटों की गड्ढी
और आकर उसके हाथ में दी
कागज पर अंगूठा लगाने के
इंतजार  में वह खडा रहा
कांपते हुए साहुकार ने कहा
”और भी दूं’
तेज बरसात की आवाज में उसने नहीं सुना
बस स्वीकरोक्ति में अपना सिर हिलाया
साहुकार फ़िर अंदर गया और गड्ढी ले आया
और उसके हाथ में दी
उसने हाथ में लेते हुए
अंगूठे के निशान के लिये किया इशारा
साहुकार था डर का मारा बोला
‘महाराज उसकी कोई जरूरत नहीं है
आप मेरी जान बख्श दो, चाहे ले लो दौलत सारी’
वह लौट पडा वापस यह सोचकर कि
मेरी परेशानी से साहुकार द्रवित है
इसलिये दिखाई है कृपा ढेर सारी

साहुकार का ऐक समझदार नौकर
पूरा दृश्य देख रहा था
वह उस गरीब के पीछे आया
और उससे कहा
‘मैं जानता हूं तुम भूत नहीं हो
बरसात की वजह से तुम्हें काम
नहीं मिलता होगा इसलिये कर्जा मांगने आये हो
अपने हाल की वजह से भूत की तरह छाये हो
कभी तुमने सोचा भी नहीं होगा
आज इतने पैसे पाये हो
कल तुम छोड् देना अपना घर
वरना टूट पडेगा साहुकार का कहर्
कल फ़ैल जायेगी पूरे गांवों में खबर सारी
मैं भी तुम्हारी तरह गरीब हूं
इसलिये करता हूं तरफ़दारी’
उस गरीब के समझ में आयी पूरी बात
और भूल गया वह अपनी भूख और प्यास
और नोटों की गड्ढी की तरफ़ देखते हुए बोला
‘कितनी अजीब बात है
भूखे को रोटी नहीं देते और
भूत के लिये तिजोरी खोल देते
जिंदे को जीवन भर सताएं
मरों से मांगें जान की बख्शीश्
गरीब से करें सूद पर सूद वसूल
उसके  भूत के आगे भूल जायें पहले
अंगूठे लगवाने का उसूल
कल छोड जाउंगा अपना घर
भूतों पर यकीन नही था मेरा
पर अपने इंसान होने की  बात भी जाउंगा भूल
नहीं करूंगा फ़िर जिंदगी सारी
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छिद्रान्वेष्ण करने वाले क्या ख़ाक लिखेंगे


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दूसरों के लिखे का
करें छिद्रान्वेषण
कहैं जैसा वह लिखता है
वैसा खुद नही दिखता है
आधा-अधूरा पढ़ें
शब्दों के अर्थ न समझें
भाव क्या वह समझेंगे
करते हैं लिखने वाले का
चरित्र विश्लेषण
ऐसे लेखक क्या सृजन करेंगे

अपने दोष रहित होने का
जिसे आत्मबोध है
अपनी चाहत के अनुरूप
न लिखा होने का जिनके मन में
अत्यंत क्रोध है
दुसरे लेखक से अपने
लिखे के अनुसार ही चाल, चरित्र और
चेहरा रखने का होने का अनुरोध है
लिखेंगे वह खुद जो
उसका वह मतलब खुद नहीं समझेंगे
भाव रहित और भ्रमित अर्थ के
शब्दों से ही अपने पृष्ठ भरेंगे

आजकल तो दोष देखने का
सिलसिला कबीर और तुलसी

 में भी चल पडा है
हिंदी में इसलिये सार्थक
रचनाओं का अकाल पडा है
विदेशी लेखकों में
महानता ढूँढने वाले
उनके शब्दों को दोहराकर
इतराने वाले
अपनी मातृभाषा को
पवित्र रचनाओं की क्या सौगात देंगे

कहैं दीपक बापू
अपने दोषों में ही जीवन का
अर्थ ढूँढा है
अपने ही धर्म ग्रंथों में ही
जीवन का अनमोल सत्य ढूँढा है
तुलसी, सूर, कबीर और मीरा के
छंदों में जीवन का रहस्य ढूँढा है
उनकी रचनाओं में दोष ढूँढने वाले
हिंदी के स्वर्णिम काल में
पत्थर ढूँढने वाले
अपनी मातृभाषा की माला में से
क्या भला शब्दों के मोती चुनेंगे
जो दोषों का पुलिंदा पकड़े बैठे हैं
छिद्रों में अन्दर तक घुसे हैं
ऐसे लोग भला क्या ख़ाक सृजन करेंगे