Category Archives: प्रजातंत्र

बंधुआ बुद्धिमान


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जिस तरह बुद्धिमान लोग
करे रहे हैं अगडम-बगडम बातें
उससे तो लगता है कि
बंधुआ मजदूरों का युग गया
तो बंधुआ बुद्धिमान का युग आ गया है
मुश्किल यह है कि
बंधुआ मजदूरों की मुक्ति के लिए तो
इनका इस्तेमाल किया जा सकता है
पर इनके लिए कोई लडेगा
इसमें शक लगता है

बडे-बडे आदर्शों की बातें
तरह-तरह की विचारधारा की
गरीबों में बांटे सौगातें
‘वाद’ और नारों से भरे बस्ते
आंदोलन के जरिये पूरी दुनिया में
इन्कलाब लाने का ख्याली पुलाव दिखाते
पुराने देवी-देवताओं के नाम पर
नाक-भौं सिकोड़ जाते
लक्ष्यहीन चले जा रहे हैं
मार्ग का नाम नहीं बताते
एक शब्द से अधिक कुछ जानते हैं
इसमें शक लगता है

पुराने संस्कार में ढूंढते दोष
जिसके पाले में घुस जाएँ
उसी की बजाते
एक दिन किसी बात को अच्छा
दूसरे दिन ही उसमें खोट दिखाते
कहीँ दीपक बापू
इस रंग बदलती दुनिया में
कैसे-कैसे नजारे आते हैं
बंधुआ बुद्धिमानों की मुक्ति का
मार्ग ढूँढना तो दूर सोचना भी मुशिकल
जिसकी सेवा में हौं उसके दास बन जाते हैं
इनकी मुक्ति का प्रयास जो करते हैं
उनके लिए मुश्किल पैदा कर जाते हैं
लार्ड मैकाले ने जो बीज बोए
उसकी शिक्षित गुलामों की
फसल सब जगह लगी पाते हैं
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हास्य कविता -भूल गया अपना ज्ञान


एक बुद्धिमान गया
अज्ञानियों के सम्मेलन में
पाया बहुत सम्मान
सब मिलकर बोले दो ‘हम को भी ज्ञान’
वह भी शुरू हो गया
देने लगा अपना भाषण
अपने विचारों का संपूर्णता से किया बखान
उसका भाषण ख़त्म हुआ
सबने बाजीं तालियाँ
ऐक अज्ञानी बोला
‘आपने ख़ूब अपनी बात कही
पर हमारी समझ से परे रही
अपने समझने की विधि का
नहीं दिया ज्ञान

कुछ दिनों बात वही बुद्धिमान गया
बुद्धिजीवियों के सम्मेंलन में
जैसे ही कार्यक्रम शूरू होने की घोषणा
सब मंच की तरफ भागे
बोलने के लिए सब दौडे
जैसे बेलगाम घोड़े
मच गयी वहाँ भगदड़
माइक और कुर्सियां को किया तहस-नहस
मारे एक दूसरे को लात और घूसे
फाड़ दिए कपडे
बिना शुरू हुए कार्यक्रम
हो गया सत्रावसान
नही बघारा जा सका एक भी
शब्द का ज्ञान
स्वनाम बुद्धिमान फटेहाल
वहाँ से बाहर निकला
इससे तो वह अज्ञानी भले थे
भले ही अज्ञान तले
समझने के विधि नहीं बताई
इसलिये सिर के ऊपर से
निकल गयी मेरी बात
पर इन बुद्धिमानों के लफडे में तो
भूल गया मैं अपना ज्ञान

हास्य कविता -जब माया के रंग हो जाते बदरंग


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गद्दे और तकिये में रुई की जगह
नोट भरकर सोवें
ऐसे भाग्य तो किसी-किसी के होवें
मायापुत्र नॉट करें आर्तनाद
क्या हो गयी हमारे गत
हम तो दिन में बाजार में
चलने-फिरने वाले जीव
रात को कैसे जिन्दा लाशों को ढोवें
काश किसी सुन्दरी के पर्स में हौवें
यह क्या कि लोग दिन में हमारे लिए
करें हजारों पाप
प्यार से पुचकार घर लावें
और तकिया और गद्दों में भरकर हम पर सोवें

मायापति सोने के भी कोई
कम बुरे हाल न होवें
होना चाहिए गले और उंगली में
वही लग जाता है नल की टोंटी में
और लोग अपने अच्छे बुरे हाथ
उसका कान उमेठ कर धोवें
जिसे चमकना चहिये अपनी ख्याति के अनुरूप
होते हैं जिसके गह्रने शोरूम में
लोग उसके सामान को ऐसे देखे
जैसे चमकदार पीतल के होवें

वाह री माया तेरे खेल
कोई बेचता पीतल का सामान सोना बताकर
कहीं सोने को छिपाता पीतल जताकर
कहने वाले सही कह गये कि
अति सबकी बुरी होवें
चाहे माया के ढ़ेर ही क्यों न होवें
ख़ूब लगा लो अपने घर में
फूट जाता है भांडा जब
सर्वशक्तिमान डलवाता छापा
माया के रंग हो जाते बदरंग
भाग्य की रेखाएं टेढी होवें
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जंगल में लोकतंत्र


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 जंगल का राजा शेर सो रहा था
पास ही मेमनों का झुंड जंगल की
राजनीति में चर्चा कर रहा था
एक ने कहा-”
हमारे राजा की मति फिर गयी है
पास के जंगल का शेर हम पर
नजरें गाढ़े बैठा है
और यह उससे शांति का
समझौता कर रहा है
अपने जंगल की नहीं
अपनी जान की फिक्र कर रहा है
वह इस बात से अनजान थे कि शेर
सब बातें सुन रहा था

दूसरे ने कहा -‘
इसे पता नही अगर यह राजा है
तो हम भी प्रजा हैं
अगर हम यह जंगल छोड़ गये
तो इसकी गद्दी खतरे में होगी’
गद्दी की बात सुनकर शेर उठ बैठा
और जम्हाई लेते हुए बोला-‘
क्या कहा किसकी गद्दी ख़तरे में होगी’
उसकी गर्जना सुनकर हर मेमना
बुरी तरह काँप रहा था

सबने शेर से ऐसे मुहँ फेरा
जैसे वह किसी अन्य विषय पर
बतिया रहे थे पर शेर है कि
गरज रहा था-‘
जिसे जाना है चले जाओ
मैं तो राजा ही पैदा हुआ हूँ
राजा ही मरूंगा
तुम मुझे मत चलाओ
मैं तुम्हारी हर बात सुन रहा था’
मेमनों का नेता बोला-‘
हुजूर आपने ही तो इस
जंगल में लोकतंत्र की
स्थापना की है उसमें तो
सब चलता है
आप महान है आपकी दम पर
तो वही चलता है ‘
उसकी बात पर शेर का
गुस्सा ठण्डा हो गया और
वह जोर-जोर से हंस रहा था
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